जेएनयू का आंखों-देखा हाल : बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रोकने को काट दी गई लाइट!

जेएनयू का गेट बंद था, घुप अंधेरे में छात्रों के मोबाइल की लाइट जुगनुओं की तरह चमक रही थी। इस वक्त हम जेएनयू मेन गेट पर कुछ छात्रों के साथ खड़े थे। ज़बरदस्त नारेबाज़ी के बीच हमारे साथ मौजूद एक छात्र ने जेएनयू गेट पर लिखे इसके नाम को पढ़ते हुए कहा- 'जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय', इतनी प्यारी, खूबसूरत और शानदार यूनिवर्सिटी का क्या हाल कर दिया।
उसकी आवाज़ में झलकती मायूसी और दर्द को शायद ही कोई सरकार या प्रशासन महसूस कर सकता था। ये जेएनयू के उन छात्रों में से एक था जो न 'लेफ्ट' जाते हैं और न 'राइट', इन्हें केवल अपने 'सेंटर' (डिपार्टमेंट) से मतलब है। ये ऐसे छात्र हैं जो यूनिवर्सिटी में किसी की तरफ से नारे नहीं लगाते लेकिन जेएनयू से उनकी मोहब्बत हर उस छात्र की ही तरह है जो यहां काबिल बन जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए आते हैं। पर कल रात की घटना में अपनी यूनिवर्सिटी को राजनीति और उपद्रव का अखाड़ा बनते देख ये सभी छात्र मायूसी के समंदर में डूब गए।
कल रात जेएनयू गेट पर पहुंचते ही मीडिया गैदरिंग देखकर आभास हो गया कि आज की रात JNU पर भारी है।
वहां पहुंचकर हमने ये पाया कि जेएनयू के हर कोने में लगभग एक ही बात की चर्चा थी कि आज जेएनयू में बहुत हलचल है, 'आज कुछ तो गलत होगा।'
दरअसल JNUSU की तरफ से कैंपस में गुजरात दंगों पर रिलीज़ हुई BBC डॉक्यूमेंट्री की रात नौ बजे स्क्रीनिंग रखी गई थी। हालांकि जेएनयू प्रशासन ने इस स्क्रीनिंग को पहले ही सख्त निर्देशों के साथ रद्द कर दिया था लेकिन इसके बावजूद JNUSU स्क्रीनिंग पर अड़ा था।
हम वहां सभी चीज़ें समझने की कोशिश ही कर रहे थे कि अचानक पूरे कैंपस की लाइट चली गई जिसको लेकर छात्रों का आरोप है कि स्क्रीनिंग रोकने के लिए लाईट काटी गई। ये करीब साढ़े नौ-दस बजे के बीच की बात है। इसके बाद हम टेफलास की तरफ बढ़े तो वहां देखा छात्रों की अच्छी-खासी भीड़ थी। कुछ छात्र ह्वीलचेयर पर भी दिखे।
आईशी घोष
भीड़ के और करीब जाने पर हमें छात्रसंघ अध्यक्ष आईशी घोष दिखीं जो मीडिया को बाईट दे रही थीं।
लाइट न होने की वजह से स्क्रीनिंग नहीं हो सकती थी तो वहां मौजूद JNUSU के सदस्यों ने कई लैपटॉप में BBC की डॉक्यूमेंट्री चला दी। इस दौरान हमने बहुत से छात्रों को खुद को कपड़ों से ढंककर छिपाने की कोशिश करते हुए देखा वहीं कुछ को कैमरे की फ्लैश लाईट या किसी भी तरह की रिकॉर्डिंग से बचते देखा।
लैपटॉप पर BBC की डॉक्यूमेंट्री देखी ही जा रही थी कि अचानक कहीं से पत्थरबाज़ी शुरू हो गई और जिसका डर था वही हुआ। वहां भगदड़ मच गई और हर कोई खुद को बचाने की कोशिश करता दिखाई दिया। करीब 10 मिनट बेहद डरा देने वाले गुज़रे लेकिन फिर सभी छात्रों ने एकसाथ इकट्ठा होकर टेफलास से मेन गेट की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया और नारेबाज़ी भी शुरू हो गई।
हम गंगा ढाबा पर ही थे और छात्रों का प्रोटेस्ट मार्च गेट की तरफ बढ़ गया तभी कुछ लड़कों (अज्ञात) ने एक छात्र के साथ गाली-गलौज शुरू कर दी और उसे बुरी तरह से पीटना शुरू कर दिया और वो लगातार मदद के लिए बोल रहा था। इसे रिकॉर्ड करने के लिए हमनें अपना मोबाइल फोन ऑन ही किया था कि हमारे साथ खड़े एक छात्र ने हमें पीछे खींचते हुए कहा कि 'तुंरत फोन अंदर रखो' । शायद वो हमें बचाने की कोशिश कर रहा था।
हम कुछ समझे ही थे कि तभी सामने से एक डीटीसी बस आई और उसकी लाइट मारपीट कर रहे छात्रों पर पड़ी उनमें से कुछ ने नकाब पहन रखे थे।
जिस वक्त ये सब हो रहा था उस वक्त हमारे आस-पास बहुत से ऐसे छात्र थे जो इस पूरे प्रकरण में किसी भी तरफ नहीं थे और न ही वो किसी संगठन का हिस्सा थे। कुछ को अपने थीसिस पर काम करना था तो किसी को लैब जाना था, कोई किताबों पर कुछ बात कर रहा था तो कोई असाइनमेंट की लेकिन इस माहौल ने उन्हें परेशान कर दिया और जेएनयू के ये आम छात्र बस यही कह रहे थे, "ये गलत है, ये नहीं होना चाहिए था, उम्मीद नहीं थी कि JNU में ऐसी मारपीट और पत्थरबाज़ी होगी।"
जेएनयू को जिस रूप में जाना और पहचाना जाता था आज शायद तस्वीर उससे कुछ अलग है। जेएनयू को जानने और समझने वाले लोग भी इसी उम्मीद में हैं कि जल्द वो पुराना जेएनयू वापस लौटे जहां की मिट्टी में ऐसी घटनाओं के लिए कोई जगह नही थी, जहां वाद-विवाद करने और सवाल पूछने की सहूलियत थी।
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