मंगलवार को देशव्यापी प्रतिवाद : “जनता को भाषण नहीं, राशन और वेतन चाहिए”

पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है। यह बेहद चिंताजनक है। पूरी दुनिया इससे निपटने का प्रयास कर रही है। इस महामारी के समय में भारत सरकार के रवैया को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जैसे कई जगह से ख़बरें आ रही हैं कि मज़दूर भोजन न मिलने पर आत्महत्या कर रहे हैं। इस तरह की घटनायें सरकार के दावों की पोल खोलती हैं।
सरकार के रवैये पर गंभीर सवाल खड़ा करते हुए मज़दूर संगठन और उनके नेताओं का कहना है कि 'वर्तमान सरकार ने जिस तरह से अवाम के एक बड़े तबके की मूलभूत जरूरतों की अनदेखी करते हुए अचानक से लॉकडाउन का फरमान जारी किया, वह वंचित तबके के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ है। ग्रामीण परिवेश से विस्थापित बहुत से लोग आज भूखे मरने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य सुविधा सम्बन्धी लापरवाही और इस लॉकडाउन की स्थिति से उपजे तमाम तरह की समस्या से वंचित तबके के सामने एक बड़ा संकट उठ खड़ा हुआ है।'
सरकार के रवैये से नाराज़ वामपंथी जन-संगठनों के द्वारा संयुक्त रूप से मंगलवार, 21 अप्रैल को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है। उनका कहना है कि "जनता को भाषण नहीं, राशन और वेतन चाहिए।"
इसमें विरोध प्रदर्शन में मजदूर संगठन (सीटू), अखिल भारतीय किसान सभा (ए.आई.के.एस) , अखिल भारतीय खेतिहर मजदूर यूनियन (ए.आई.ए.डब्ल्यू.यू), ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेन्स एसोसिएशन (एडवा), स्टूडेन्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एस.एफ.आई) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डी.वाई.एफ.आई) जैसे संगठनों ने लोगों से अपील की है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए आपस में दूरी बनाकर अपने घरों के सामने तख्तियां दिखा कर केन्द्र सरकार के जन-विरोधी रवैया के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करें।
हालंकि 18 और 19 को भी मज़दूर संगठन ऐक्टू द्वार दो दिनों का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया गया था। उसमे भी मज़दूरों ने इस तरह की समस्याओं का जिक्र किया था।
कोरोना जैसी महामारी के समय केन्द्र सरकार के खिलाफ इस तरह के विरोध- प्रदर्शन दिखा रहा है कि मज़दूर कितने परेशान हैं। यह प्रदर्शन ऐसे समय में बुलाया गया है जब एक बड़ी आबादी कोरोना के साथ-साथ भूख से पीड़ित है। जीवन बचाए रखने के लिए लोगों को भोजन और आश्रय की सख्त जरुरत है और इसका सीधा आरोप केन्द्र सरकार पर लग रहा है कि वो इन लोगो की अनदेखी कर रही है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक़ भारत में कम से कम नब्बे फीसदी लोग गैर-संगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। इसमें से अधिकतर लोगों के पास बैंक खाता तक नहीं है। प्रवासी मजदूरों के पास राशन कार्ड नहीं है।
हजारों परिवार की स्थिति ऐसी है कि अगर ये दिन में मजदूरी का काम न करें तो रात को खाना भी नसीब नहीं होगा। इन्हें कभी भी अपने मालिक द्वारा रोजगार से वंचित किया जा सकता है। ऐसे समय में सरकार की यह जिम्मेदारी थी कि लम्बी अवधी के लिए ‘राष्ट्रीय बंद’ जैसे कठोर निर्णय लेने से पहले गैर-संगठित क्षेत्रों में काम कर रहे कामगारों के लिए दूरदर्शी और प्रभावी राहत पैकेज की घोषणा करे तथा प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है लगातर मज़दूरों के वेतन कटौती और छटनी की जा रही हैं।
समय रहते सरकार नहीं चेती और न तैयारी की
विरोध कर रहे संगठनों का कहना है कि "लॉकडाउन के 36 घंटे बाद जब हर तरफ से आलोचनाओं से सरकार घिरने लगी तो 26 मार्च को कोरोना से उपजे हालात से निपटने के लिए एक लाख 70 हजार करोड़ के पैकेज का ऐलान किया गया और साथ ही कई छोटी-बड़ी घोषणाएं हुईं। लेकिन सड़कों पर भूखे मजदूरों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। सरकार सिर्फ घोषणाएं करती रही। सवाल यह है कि जो सरकार हाल ही में कॉरपोरेट को प्रति वर्ष 1.45 लाख करोड़ रु छूट देने की घोषणा की है।
उसी सरकार के पास देश के 90 फीसदी लोगों के बारे में सोचने का वक्त नहीं है। दुखद तो यह है कि भोजन और सुरक्षा सुनिश्चित करने के बजाए महिला जन-धन खाता 500 रुपये (प्रतिमाह किश्त जून तक) भेजने की योजना बना दी गई बिना यह सोचे की लॉकडान में कितने लोग इसका फायदा उठा पायेंगे? और क्या 500 रूपये में वे अपने घर के राशन-पानी का बंदोबस्त कर पायेंगे। त्रासदी देखिए कि जिस 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी 21 दिनों के लिए लॉकडाउन बढ़ा रहे थे, ठीक उसी दिन भूख और भय से डरी जनता मुम्बई के बांद्रा स्टेशन पर पुलिस की लाठी खा रही थी। "
इससे पहले देश के सामने केरल मॉडल था वहां से सरकार सिख सकती थी उसके जैसा छोटा-सा राज्य जिसका नॉमिनल जीडीपी( ₹9.78 लाख करोड़) है और जो अन्य राज्यों के बाद दसवें पायदान पर है। जहाँ अन्य राज्य राहत पैकेज पर सोच रहे थे, उसके कई दिन पहले 19 मार्च को ही वहाँ की सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा कर दी थी। यही नहीं बल्कि मौके की नज़ाकत को समझते हुए अपने यहाँ लॉकडाउन की घोषणा के बाद जब दूसरे राज्यों के मजदूरों के केरल में फंसे होने की बात सामने आई तो उनके लिए ‘प्रवासी मजदूर’ की जगह ‘अतिथि मजदूर’ शब्द का इस्तेमाल किया गया और उनके आवास/भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित की गई।
विरोध कर रहे संगठनों ने दावा किया कि लॉकडाउन की वजह से लगभग 200 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है। बिहार के जहानाबाद में एक 3 साल के बच्चे की एंबुलेंस न मिल पाने के कारण मौत हो गई। बिहार में ही आरा जिले के जवाहर टोला में रहने वाले राहुल की मौत भूख की वजह से हो गई। राहुल सिर्फ 11 साल का था। उसके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। लेकिन, लॉकडाउन की वजह से वे कई दिनों से घर पर ही बेरोजगार बैठे थे। 39 साल के रणवीर सिंह दिल्ली में एक निजी रेस्टोरेंट में डिलीवरी बॉय का काम करते थे।
लॉकडाउन के बाद रणवीर दिल्ली से मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के लिए पैदल ही निकल पड़े। वे 200 किमी तक जा भी चुके थे, लेकिन रास्ते में ही आगरा पहुंचते ही उनकी मौत हो गई। रणवीर मुरैना के बादफरा गांव के रहने वाले थे। उनके तीन बच्चे हैं। महाराष्ट्र से गुजरात अपने घर जा रहे 4 प्रवासी मजदूरों को मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर पारोल गांव के पास एक टैम्पो ने पीछे से टक्कर मार दी। इस हादसे में चारों की मौत हो गई। इसी दिन गुजरात के वलसाड जिले में दो महिला मजदूर जब रेलवे ट्रैक पार कर रही थीं, तभी मालगाड़ी ने उन्हें कुचल दिया। उन दोनों महिलाओं की जान नहीं बच सकी।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, किसानों और कृषि श्रमिकों के राष्ट्रीय संगठनों ने जी.डी.पी के कम-से-कम 5-6% के राहत पैकेज से संकटग्रस्त लाखों मेहनतकश लोगों को राहत देने और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की घोषणा की जाने की मांग की है ।
जन-संगठनों की प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:-
1. एपीएल-बीपीएल भेदभाव किए बिना मुफ्त राशन, दवाओं और अन्य आवश्यकताओं का तत्काल प्रावधान। सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाया जाना चाहिए।
2. सरकार के किसी भी आर्थिक सुधार पैकेज में सबसे कमजोर वर्गों - विशेषकर महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और विकलांगों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
3. सभी के लिए नि: शुल्क परीक्षण और चिकित्सा सुविधाएं मुहैया हो, चाहे वे आयुष्मान भारत में नामांकित हों या नहीं।
4.अपने बच्चों के साथ फंसे हुए प्रवासी कामगारों (महिलाओं और पुरुषों), दोनों को मदद हेतु हेल्पलाइन और बुनियादी ढाँचे को तैयार करना; विशेष परिवहन सुविधाएं दी जाएं, जो उन्हें घर ले जाने में सक्षम हों।
5.ब्लॉक और जिला प्रशासन के माध्यम से सब्जियों, दूध और अन्य खाद्य पदार्थों की कटाई सहित अपरिहार्य कृषि कार्यों को करने के लिए खेत श्रमिकों और किसानों को मुफ्त सुरक्षा उपकरण प्रदान किया जाए।
6. तीन महीने के लिए सभी गैर-आयकर देने वाले परिवारों के बैंक खातों में तुरंत रु .7500 का हस्तांतरण हो।
7.शहरी क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना का विस्तार किया जाए तथा मनरेगा के तहत काम के दिन बढ़ाकर साल में 200 दिन किया जाए
8. छात्रों के मदद के लिए आर्थिक पैकेज की एलान की जाए और सरकार को सीधे बैंक खाते में छात्रों को न्यूनतम धनराशि प्रदान करे। साथ ही सरकार को छात्रों की बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
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