स्वास्थ्य बजट में 137 फीसदी का इजाफा? ये हैं सही आंकड़े

कोविड-19 महामारी ने दुनिया की हर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। मौजूदा महामारी भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय दशा को उजागर कर दिया है। आर्थिक सर्वे 2020-21 और 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट, दोनों ही यह बात कहती है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है।
पिछले साल, भारत सरकार ने कोविड-19 से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए कुछ कदम उठाए थे और अर्थव्यवस्था को संजीवनी दी थी। यह 2020-21 के संशोधित आकलन (आरई) तथा 2021-22 के बजट प्रावधान में परिलक्षित भी होता है: केंद्र सरकार का (आरई) में कुल व्यय 2020-21 के बजट अनुमानों की तुलना में 13 फ़ीसदी बढ़ा है।
संशोधित आकलन में और 4 फीसद राशि स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुष और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालयों की मांग पर जोड़ी गई।
अनुमानों से जाहिर होता है कि कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए 2020-21 के संशोधित स्वास्थ्य बजट में 89 फीसदी अतिरिक्त धन का आवंटन किया गया। (देखें टेबल नंबर 1)।
सरकार का लक्ष्य 2025 तक स्वास्थ्य के मध्य में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2 फ़ीसदी हिस्सा मुहैया कराने का है। 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण में स्वास्थ्य व्यय में जीडीपी का एक से लेकर ढाई-तीन फ़ीसदी राशि खर्च करके स्वास्थ्य की देखभाल पर होने वाले 65 फीसदी व्यय में से कम से कम 30 फीसद तक की कटौती हो सकती है। गौरतलब है कि देश में महंगी हो रहीं स्वास्थ्य सेवाओं के चलते लोगों की जेबें काफी ढीली हो रही हैं। 15वें वित्त आयोग ने भी भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर होने वाले सबसे कम व्यय की बात मानी थी।
“स्वास्थ्य और कल्याण” मद में 2,23,846 करोड़ की राशि के प्रावधान के साथ उसे केंद्रीय बजट 2021-22 के छह प्रमुख स्तंभों में से पहले स्थान पर रखा गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में पहले के बजट से तुलना करते हुए स्वास्थ्य और कल्याण मद में 137 फीसद राशि की बढ़ोतरी की बात कही है। वित्त मंत्री की इस घोषणा की सराहना करने से पहले हमें कुछ बिंदुओं को समझने की जरूरत है।
पहला,पूर्ववर्ती वित्त मंत्रियों से अलग हट कर, सीतारमण ने स्वास्थ्य बजट की एक व्यापक परिभाषा को स्वीकार किया है। उन्होंने इसके दायरे में “पोषण”, और “जलापूर्ति तथा स्वच्छता” को भी परिगणित किया है, जिसका प्रबंधन आयुष एवं स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
निर्मला सीतारमण ने अपने पहले बजट (2020-21) भाषण में केवल आयुष और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के बजट खर्च को स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च के एक भाग के रूप में लिया था।
जलापूर्ति और पोषाहार कार्यक्रमों को लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल पर होने वाले खर्च के दायरे में लाया जाए कि नहीं, इस पर बहस की जा सकती है। सिस्टम ऑफ हेल्थ अकाउंट (एसएचए) के ढांचे के मुताबिक, पोषाहार, जलापूर्ति और स्वच्छता, यद्यपि ये नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें स्वास्थ्य व्यय के मदों में नहीं गिना जा सकता। एसएचए वैश्विक मान्यता प्राप्त मानकीकरण है, जो विभिन्न देशों में स्वास्थ्य देखभाल संबंधी योजनाओं में वित्तीय आवंटन की विवेचना करता है और उसकी रिपोर्ट तैयार करता है। इसे डब्ल्यूएचओ, ओईसीडी और यूरोस्टैट ने विकसित किया है।
इस आलेख में संलग्न टेबल दो मंत्रालयों के स्तर पर “स्वास्थ्य एवं कल्याण” के लिए किए गए बजट प्रावधानों को दिखाता है। आयुष और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय दोनों मिलकर 2021-22 के बजट की मात्र 34 फीसद राशि खर्च करेंगे।
इनके अलावा, स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए कुल बजट की 38 फीसद राशि “वित्तीय कमीशन अनुदानों” के लिए रखी गई है, जो वित्त मंत्रालय के जरिए सीधे राज्यों को हस्तांतरित कर दी जाएगी। “वित्तीय कमीशन अनुदानों” की 35,000 करोड़ की ये रकम कोविड-19 टीकाकरण के लिए मद में रखी गई है।
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि “प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना”, नाम से एक नई केंद्र प्रायोजित स्कीम (सीएसएस) 64,180 करोड़ रुपये से शुरू की गई है, जो अगले 6 साल तक जारी रहेगी। हालांकि केंद्रीय बजट 2021-22 में इस व्यय का मद नहीं दिखाया गया है।
विभिन्न राज्यों में स्वास्थ्य सूचकांकों में सुधार लाने उद्देश्य से “आयुष्मान भारत” स्कीम लाई गई थी। 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण ने उसे स्कीम से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में विस्तार से अध्ययन किया है। इसमें कहा गया है कि भविष्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर आने वाले संकट से लड़ने के लिए भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। आयुष्मान भारत के साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने इस क्षेत्र में योगदान दिया है।
2021-2022 के बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (“आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों” सहित) के लिए पहले के बजट की तुलना में 10 फीसद राशि की बढ़ोतरी की गई है। हालांकि 2012-22 के लिए आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) की बजट राशि ज्यों की त्यों रखी गई है।
इस आलेख में संलग्न चित्र-1 राष्ट्रीय हेल्थ मिशन के लिए 2016-17 से लेकर 2021-22 तक के बजटों में सभी कारकों के लिए किए गए प्रावधानों को दिखाता है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के अलावा इन वर्षों में बजट आवंटन में कोई उल्लेखनीय बढ़ोतरी नहीं की गई है।
इसके अलावा, विश्लेषण से यह जाहिर होता है कि स्वास्थ्य प्रणाली से जुड़े कारकों को मजबूती देने के लिए आवंटित राशि न केवल कम है बल्कि यह बीमा-आधारित प्रणाली के लिए स्वास्थ्य निधियों का पुनरावर्तन भी है।
आयुष और स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए आवंटित धन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का हिस्सा है, उसमें 2018-19 के बजट की 54 फीसदी की तुलना में 2020 21 के बजट में 48 फीसदी तक गिरावट आई है। जबकि इन्हीं अवधियों (देखें टेबल-3) में इन दोनों मंत्रालयों की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं (आरएसबीवाई/पीएमजेएवाई) में आवंटित धनराशि में 4 से 8 फीसद तक की बढ़ोतरी की गई है।
इसलिए, केंद्रीय स्वास्थ्य बजट में बहुचर्चित 137 फ़ीसदी की बढ़ोतरी वित्त मंत्रालय के वित्तीय कमीशन अनुदानों के जरिय जल आपूर्ति तथा स्वच्छता के बजट व्यय में भारी वृद्धि की गई है।
यहां गौर करना लाजिम है कि इस बजट में पोषाहार योजना की व्यय राशि में पहले बजट की तुलना में -27 फीसद की नकारात्मक वृद्धि हुई है। पोषाहार कार्यक्रम महिला और बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
अब अगर हम दो स्वास्थ्य मंत्रालयों के बजट व्ययों पर विचार करें तो 2020-21 और 2021-22 के केंद्रीय स्वास्थ्य बजटों में मात्र 10 फीसद राशि की वृद्धि पाते हैं। यह बढ़ोतरी 2019-20 और 2020-21 के बीच मात्र 4 फीसद रही है।
मौजूदा बड़ी आर्थिक अनिश्चितताओं को देखते हुए स्वास्थ्य बजट में यह 10 फीसदी की बढ़ोतरी प्रभावकारी लगती है, लेकिन 137 फीसदी की बढ़ोतरी का प्रचार वास्तविक परिदृश्य को परिलक्षित नहीं करता है।
“स्वास्थ्य और कल्याण”, जिसमें स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता और पोषाहार भी समाविष्ट है, उस मद में जीडीपी की मात्र 1 फ़ीसदी और 2021-22 के बजट का 6 फीसदी हिस्सा ही रखा गया है।
हालांकि, हम दो स्वास्थ्य मंत्रालयों के बजट परिव्ययों पर विचार करते हैं तो वित्त आयोग स्वास्थ्य और कोविड-19 टीकाकरण के लिए अनुदान देता है तो इन दो मंत्रालयों के 2021-22 के लिए प्राक्कलित व्यय जीडीपी की राशि की मात्र 0.56 फीसदी और कुल बजट परिव्यय का 4 फीसदी ही रह जाता है।
यद्यपि आर्थिक सर्वे में स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने की महत्ता बार-बार दोहराई गई है, लेकिन वह इस बजट के प्रावधानों में नहीं झलकती है।
इसी तरह, आर्थिक सर्वेक्षण निजी क्षेत्रों के अनियंत्रित होने की बात स्वीकार करता है, जो बीमा आधारित स्वास्थ्य प्रणाली का सबसे बड़ा हिस्सा है और इस क्षेत्र में विफलता की बड़ी वजह वही हैं-यद्यपि सरकार ने कर-वित्तपोषित प्रणाली से बीमा आधारित प्रणाली की तरफ रुख कर लिया है।
यह सब तब हो रहा है, जबकि भारत वैश्विक महामारी के दौरान चिकित्सा क्षेत्र में आसमान छूते खर्च के साथ स्वास्थ्य की देखभाल के क्षेत्र में अनियंत्रित निजी क्षेत्रों के बुरे प्रभाव से भी जूझ रहा है।
प्रीतम दत्ता नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआइपीएफपी), नई दिल्ली में फेलो हैं और चेतना चौधरी पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई), गुरुग्राम में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
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