कोल खदानों के निजीकरण के खिलाफ हड़ताल पर जाएंगें कोयला श्रमिक

दिल्ली: प्रधानमंत्री ने कहा था कि कोरोना महामारी आपदा नहीं अवसर है। शायद इसी का पालन करते हुए मोदी सरकार ने 41 कोयला खदानों को निजी हाथों में बेच दिया है। सरकार के इस फैसले का विरोध तेज़ हो गया है। इसके खिलाफ कोल इंडिया और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड के मज़दूरों ने दो जुलाई से तीन दिवसीय हड़ताल पर जाने का ऐलान किया हैं।
इस हड़ताल का सभी सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन किया है और इसे लेकर एक संयुक्त बयान जारी किया है। यहाँ तक कि बीजेपी और मोदी सरकार समर्थक आरएसएस से संबंद्ध भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) ने भी इसका विरोध किया हैं। बीएमएस ने भी कोल इंडिया और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड के मज़दूरों ने दो जुलाई से तीन दिवसीय हड़ताल का समर्थन किया और इसमें शामिल होने की बात कही हैं। वैसे बीएमएस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए संयुक्त अभियानों से खुद को अलग ही रखती रही है। लेकिन शायद इस फैसले से सरकार के ख़िलाफ़ इतना गुस्सा है कि उसे खुद को लग कर पाना आसान नहीं लग रहा है।
सेंट्रल ट्रेड यूनियनों का पूर्ण समर्थन
एक ओर जहां सरकार कोयला खदानों निजी हाथों में सौंपे जाने को देशहित में बता रही है और इसे आत्मनिर्भर भारत के लिए एक मास्टरस्ट्रोक बता रही है। साथ ही इस नीलामी से हज़ारों करोड़ों के रेवन्यू आने की बात कर रही है। तो दूसरी ओर मज़दूर संगठनों का कहना है कि इससे कोयला खनन क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता ख़त्म हो जाएगी और सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादन इकाईयां निजी कंपनियों पर निर्भर हो जाएंगी ।
ट्रेड यूनियनों ने 18 जून को सरकार को इस हड़ताल से संबंधित नोटिस भी दिया है और इसका समर्थन सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने किया है। एटक, सीटू, इंटक, एचएमएस, सेवा, ऐक्टू सहित दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त रूप से बयान जारी कर कहा कि सभी ट्रेड यूनियनों ने कोयला खनन क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों और फ़ेडरेशनों के हड़ताल का समर्थन करती हैं।
अपने बयान में यूनियनों ने कहा कि कोयला खनन क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों ने 10 और 11 जून 2020 को इसका विरोध किया था। लेकिन सरकार ने इनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। बल्कि प्रधानमंत्री खुद 18 जून को नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आगे आए, जिसकी घोषणा 11 जून को हुई थी, इसलिए यूनियनों ने इसी दिन को विरोध का निर्णय किया और हड़ताल नोटिस दिया।
यूनियनों ने कहा कि इस मामले का तथ्य यह है कि पूर्व नीलामी और आवंटित कोयला ब्लॉक भी अनुसूची अवधि के अनुसार शुरू नहीं किया जा सका। इसलिए उन्हें तुरंत रद्द करने की आवश्यकता है।
यूनियनों ने पांच मांगें उठाई हैं:
1. कोयला उद्योग में वाणिज्यिक खनन का निर्णय वापस लें।
2. सीआईएल या एससीसीएल के कमजोर या निजीकरण की ओर सभी कदम वापस लिए जाए।
3. सीआईएल से सीएमपीडीआईएल को डी-लिंक करने का निर्णय वापस लें।
4. एचपीसी/सीआईएल की तरह ही सीआईएल और एससीसीएल में अनुबंध श्रमिकों के लिए मजदूरी लागू की जाए।
5. राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौते के खंड 9.3.0, 9.4.0 और 9.5.0 को लागू करें।
कोयला क्षेत्र की यूनियनों और सीटीयू कोयला क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई की सरकारी नीति का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश की अत्मनिर्भरता को बचने के लिए देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे।
राज्य सरकारों ने भी किया विरोध
सरकार के इस फैसले का पूरे देश में विरोध हो रहा है। झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्य खनन के प्रमुख राज्य है, दोनों ही राज्य सरकारों ने मोदी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो इसको लेकर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के सरपंचों ने भी सरकार के इस निर्णय की आलोचना की और इसे तत्काल वापस लेने की बात कही है।
सीपीएम ने किया प्रदर्शन और हड़ताल को पूर्ण समर्थन
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ और कोरोना महामारी के राहत पैकेज के लिए फंड जुटाने के नाम पर देश की सार्वजनिक संपत्ति को बेचने का आरोप लगाते हुए एसईसीएल, सुराकछार गेट के सामने कल यानि 19 जून को विरोध प्रदर्शन किया तथा कमर्शियल माइनिंग करने, कोल ब्लॉकों और कोल उद्योग का निजीकरण न करने, श्रम कानूनों में परिवर्तन कर कोयला मजदूरों को गुलाम बनाने की साजिश बंद करने, राहत पैकेज के लिए सार्वजनिक उद्योगों की बिक्री बंद करने की मांग की।
सीपीएम के कोरबा जिला सचिव प्रशांत झा ने कहा कि "मोदी सरकार देश की सार्वजनिक क्षेत्र का विनिवेशीकरण और निजीकरण करने की नीति पर चल रही है। आज से कोल ब्लाकों की नीलामी की प्रक्रिया इसी का हिस्सा है। कमर्शियल माइनिंग से निजी मालिकों को कोयला खुले रूप से बेचने का अधिकार मिल जाएगा, जिससे कोल इंडिया का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा और लाखों मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ जाएगी।"
उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार श्रम कानूनों में परिवर्तन कर मजदूरों को गुलाम बनाने की साजिश की जा रही है।
सी.पी.एम. नेता ने आरोप लगाया कि कोरोना संकट से निपटने के लिए धन जुटाने के नाम पर देश के किसानों-मजदूरों और आदिवासियों-दलितों के अधिकारों पर इस सरकार ने हमले तेज कर दिए हैं। 20 लाख करोड़ रुपयों का कथित आर्थिक पैकेज केवल धोखाधड़ी है, क्योंकि इसमें बजट के बाहर जीडीपी का आधा प्रतिशत भी अतिरिक्त खर्च नहीं किया जा रहा है। इस पैकेज में भी पूंजीपतियों को सब्सिडी दी गई है और आम जनता के लिए कर्ज रखा गया है।
उन्होंने कहा कि "आम जनता को कर्ज नहीं, कैश चाहिए। तभी जनता की क्रयशक्ति में वृद्धि होगी और बाजार में मांग बढ़ेगी। तभी अर्थव्यवस्था में आई गिरावट को रोका जा सकेगा। लेकिन बड़े तानाशाहीपूर्ण तरीके से यह सरकार संकट का बोझ आम जनता पर लादना चाहती है। इसके खिलाफ माकपा सड़कों पर अपना संघर्ष तेज करेगी।"
विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए माकपा पार्षद सुरती कुलदीप ने कहा कि "कोरबा जिले में भी घने जंगलों को उजाड़ कर आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन से बेदखल करने और पर्यावरण को ख़त्म करने की साजिश की जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों पर समाज का अधिकार खत्म करने का अर्थ है, देश को देशी-विदेशी पूंजी का गुलाम बनाना।"
सीपीएम ने अगले माह 2 से 4 जुलाई तक कोयला उद्योग में होने वाली तीन दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का समर्थन भी किया है।
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