बिहारः नगर निकाय चुनावों में अब राजनीतिक पार्टियां भी होंगी शामिल!

भारत दुनिया का सबसे विशाल लोकतांत्रिक प्रणाली वाला देश है। इस व्यवस्था को मजबूत करने के लिए स्थानीय स्तर पर पंचायत चुनाव तथा नगर निकाय चुनावों कराए जाते हैं ताकि जनता अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के सामने अपनी समस्याओं को रख सके और उनका समाधान जल्द से जल्द करा सके। बिहार में पिछले वर्ष पंचायत चुनावों हो चुके हैं लेकिन अब यहां नगर निकाय चुनावों की बारी है जो इस वर्ष अप्रैल महीने से शुरू होना संभावित है। इस बार के नगर निकाय चुनावों इस मायने में कुछ खास हो सकती है कि बिहार में भी इन चुनावों में राजनीतिक पार्टियां भी सीधे तौर पर भाग लेगी अर्थात राजनीतिक पार्टियां इन चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी। ये व्यवस्था पहले बिहार में नहीं थी।
राजनीतिक गलियारों में अब ये ख़बर आम हो चुकी है के बिहार में भी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की तरह ही अब नगर निकाय के चुनावों में भी राजनीतिक दलों की सीधी भागीदारी होगी यानी अब नगरीय निकायों के चुनाव भी पार्टी आधारित होने की संभावना है। चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, वार्ड पार्षद, वार्ड सदस्य एवं मेयर, चैयरमैन आदी पदों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित करेंगे और इन चुनावों में सीधे हिस्सा लेंगे। प्रत्याशी उन राजनीतिक दलों के चिन्ह का इस्तेमाल अपने चुनाव में कर पाएंगे। ध्यान रहे के अभी तक बिहार में नगर निकाय एवं ग्राम पंचायत चुनावों में राजनीतिक दल सीधे तौर पर हिस्सा नही लेते हैं और नगर निकाय के महत्वपूर्ण पदों के लिए जनता प्रत्यक्ष रूप से चुनाव में भागीदारी नही करती है।
राजनीतिक दल फ्रंट पर आ कर चुनावी मैदान में सक्रिय नहीं हुई क्योंकि उन्हें इसका अवसर नही मिला। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं द्वारा चुनाव अवश्य लड़ा जाता है लेकिन उनकी नामांकन प्रक्रियाओं को पूर्ण करने के बाद चुनाव आयोग द्वारा उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाता है जिसे उस प्रत्याशी का व्यक्तिगत चुनाव चिन्ह माना जाता है। नगर निकाय चुनावों को पार्टी के आधार पर कराने को लेकर लगातार कई वर्षों से महत्वपूर्ण नेताओं के बयान भी आते रहे हैं। विगत वर्ष 2021 के शुरुआती महीने में ही जेडीयू के प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा था सभी दलों से राय मांगी गई है कि निकाय के चुनाव पार्टी आधार पर हों या नहीं। उन्होंने कहा था कि कई दलों के विचार आये हैं, लेकिन अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है क्योंकि ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर सब के विचारों की सहमति आवश्यक है यही लोकतंत्र का तक़ाज़ा भी है, इसलिए इस विषय पर सभी राजनीतिक दलों की सहमति से ही सरकार कोई फ़ैसला करेगी।
इसके तुरंत बाद कांग्रेस के विधान पार्षद प्रेमचंद्र मिश्रा ने भी अपनी पार्टी की तरफ़ से इस संबंध में आधिकारिक बयान देते हुए कहा था के निकायों और ग्राम पंचायतों के चुनाव किस आधार पर हो यह तय करना चुनाव आयोग का काम है। बिहार में अभी तक पंचायत या निकाय चुनाव दलीय आधार पर नहीं हुआ है लेकिन सभी पार्टियों की राय बने तो कांग्रेस को भी कोई दिक्कत नहीं। कांग्रेस भी चाहती है चुनाव दलीय आधार पर कराए जाएं और इस संबंध में चुनाव आयोग को सर्वदलीय बैठक बुलाकर सभी पक्षों की राय लेनी चाहिए। राष्ट्रीय जनता दल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि ऐसा यदि होता है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रीय जनता दल का ही वोट शेयर सबसे अधिक रहेगा। इस संबंध में तत्कालीन नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा भी तक़रीबन दो वर्ष पहले कह चुके हैं कि नगर विकास विभाग नगर निकायों का चुनाव दलीय आधार पर कराने का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। जल्द ही इस प्रस्ताव को सरकार की मंजूरी के लिए कैबिनेट में भेजा जाएगा। फिलहाल बिहार में नगर विकास मंत्रालय का प्रभार उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के पास है। पहले तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में नगर निकायों के दो दिवसीय राज्यस्तरीय उन्मुखीकरण कार्यशाला को संबोधित करते हुए सरकार की तरफ से ये स्प्ष्ट कर चुके हैं कि नगर निकायों के चुनाव दलीय आधार पर कराए जाने के संबंध में सरकार गंभीरता से विचार कर रही है।
गौरतलब हो के बिहार नगर निकायों की वर्तमान स्थिति के अनुसार 262 नगर निकाय हैं जिनमें 19 नगर निगम, 89 नगर परिषद और 154 नगर पंचायत क्षेत्र हैं। विगत वर्ष के अंतिम सप्ताह में हुई नीतीश कैबिनेट की बैठक में सहरसा को बिहार के 19वें नगर निगम का दर्जा दिया गया। नगर पंचायत में 12 हजार से 40 हजार की आबादी वाले ऐसे इलाके आते हैं जहां 75% आबादी की निर्भरता खेती पर न हो। वहीं नगर परिषद के लिये 40 हजार से दो लाख की आबादी अनिवार्य है जबकि तक़रीबन दो लाख से ज्यादा आबादी वाले इलाकों को नगर निगम में आते हैं।
नगर निकाय या शहरी स्थानीय निकाय राज्य सरकार के नगर विकास एवं आवास विभाग के अधीनस्थ काम करते हैं या उन्हीं के प्रशासनिक नियंत्रण में होते हैं। नगर आयुक्त नगर निगम के कार्यकारी प्रमुख होते हैं जबकि नगर परिषद एवं नगर पंचायत के प्रधान कार्यपालक पदाधिकारी कहलाते हैं जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। अब इन चुनावों में राजनीतिक दलों की भागीदारी तय करने के लिए बिहार सरकार की तरफ से परिवर्तन का प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है और जल्द ही इसे कैबिनेट में लाए जाने की संभावना है। तक़रीबन चार वर्ष पहले ही बिहार सरकार के नगर विकास विभाग को राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया गया था। इसी बीच एक बार पुनः बिहार में विधानसभा चुनाव हुए और नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए दोबारा सत्ता में लौटी। पिछली नीतीश सरकार द्वारा लाये गए इस प्रस्ताव पर काम होता रहा और इसका मसौदा तैयार करने में डेवलमेंट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की सहायता ली गयी।
ऐसी चर्चा है कि नगर विकास एवं आवास विभाग ने नगर निकायों की इस नई चुनावी प्रक्रिया के संबंध में प्रस्ताव तैयार कर राज्य सरकार को सौंप दिया है और इस प्रस्ताव पर राज्य सरकार के विधि विभाग की स्वीकृति मिल चुकी है।
ये नई व्यवस्था प्रक्रिया के लगभग अंतिम चरण में है। बिहार सरकार इस प्रस्ताव को विधि विभाग से मंज़ूरी मिलने के पश्चात राज्य मंत्रिपरिषद में लाने की तैयारी में है। सरकार की कैबिनेट की स्वीकृति के बाद इस पर राज्यपाल की मुहर लग जाएगी।
कैबिनेट की मंजूरी के पश्चात राज्यपाल की मुहर लगने के बाद यह नई व्यवस्था लागू हो जाएगी और आने वाले नगर निकाय के चुनावों में, जो इसी वर्ष होना संभावित है, इसी व्यवस्था के तहत पार्टी आधार पर ही चुनाव अमल में आएगा। साथ ही साथ निकाय के तीन महत्वपूर्ण पदों के प्रत्यक्ष चुनाव को लेकर भी राज्य सरकार परिवर्तन की प्रक्रिया में है। ऐसी उम्मीद की जा सकती है के बिहार के शहरी अथवा नगर निकाय के चुनावों में मतदाता प्रत्यक्ष रूप से अपना मत देकर मेयर और डिप्टी मेयर, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को भी सीधे तौर पर चुनकर उनकी जवाबदेही भी तय कर पाएंगे।
हम जानते हैं के नगर निकायों और ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधि सीधे जनता से जुड़े होते हैं और उनके समस्याओं, कठिनाइयों और मौलिक ज़रूरतों को काफ़ी नज़दीक से समझते हैं इसलिए जनता की बुनियादी समस्याओं और जीवन को सीधे प्रभावित करने वाली योजनाओं के निर्माण के संबंध में उनकी सक्रिय भागीदारी काफ़ी ज़रूरी है। अब देखना यह होगा कि बिहार में नगर निकाय की इस नई चुनावी व्यवस्था से बिहार में कितनी तब्दीली आएगी।
(व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं।)
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