बनारस में हाहाकारः पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में पीने के पानी के लिए सब बेहाल

बनारस का चर्चित इलाका है राजघाट। इसी इलाके में तिराहे के पास रहते हैं टिल्लू बाबा। आराम फरमाने के लिए इन्होंने सरकारी हैंडपंप के आधे हिस्से पर चौकी (तख्त) डाल रखी है। वह कहते हैं, "सरकारी हैंडपंप सालों से खराब है। चेला-चपाटियों को आने-जाने में दिक्कत हो रही थी। हैंडपंप बेकार पड़ा था सो उस पर तख्त डाल दिया। अब हमें सुबह-सबेरे पूजा-पाठ करने और आराम करने में थोड़ी सहूलियत हो गई है।"
टिल्लू बाबा के पास मिले राजू साहनी। बात पानी की चलते दिल दर्द जुबां पर आ गया। वह कहते हैं, "राजघाट में गंगा हैं। नहाने का काम चल जाता है, लेकिन पीने के पानी की समस्या गंभीर है। जलकल महकमा पानी की सप्लाई सुबह छह से नौ बजे तक करता है। बिजली गुल होने पर गंगाजल से ही प्यास बुझती है। राजघाट तिराहे पर लगे इकलौते नल से हम पानी भरते हैं। यहां पानी के लिए सुबह लंबी लाइन लगानी पड़ती है। कई बार करीब एक किमी दूर जाकर पानी का इंतजाम करना पड़ता है। पानी ढोने में अक्सर बच्चे गिरते हैं और जख्मी भी होते हैं।"
बनारस के राजघाट पर टिल्लू बाबा ने हैंडपंप के ऊपर बिछा दिया तख्त
राजघाट के पास में समोसा-जलेबी की दुकान चलाने वाली देवी साहनी "न्यूजक्लिक" से बातचीत में भावुक हो जाती हैं। वह कहती हैं, "पानी की बहुत परेशानी है हमें। अक्सर दूर से पानी लाते हैं। हमें ही नहीं समूचे राजघाट और भैसासुर इलाके को है। यह भी संभव है कि घाट के किनारे रहने वाले हर बनारसी की दिक्कत हमारी जैसी ही हो। बिजली न आने पर पानी की किल्लत और बढ़ जाती है क्योंकि जिस टंकी से वो पानी लाती हैं वहां बिजली होने पर ही पानी आता है। पानी समस्या इतनी गंभीर है कि कई बार नलों से पानी भरने के लिए लोग मार पिटाई और झगड़े पर उतर आते हैं। कई बार बात थाना-पुलिस तक पहुंची है। हमारी बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं। नेता-विधायक सब वोट लेकर चले जाते हैं। पार्षद भी हमारी मुश्किलों का समाधान नहीं करते।"
देवी साहनी यह भी कहती हैं, "बनारस स्मार्ट सिटी तो हुई, लेकिन पीने के पानी का मर्ज जस का तस है। पिछले बीस सालों से राजघाट और आसपास के इलाकों में पेयजल का संकट बना हुआ है। सुबह दस बजे के बाद जलकल के नलों की टोटियां सूख जाती हैं। इकलौते हैंडपंप पर दिन लाइन लगी रहती है। घर और दुकान के काम निबटाते हुए नौ-दस बज जाता है और तब तक नलों से पानी आना बंद हो जाता है। मैं और मेरी जैसी तमाम महिलाओं को नहाने और कपड़े धोने के लिए गंगा में उतरना पड़ता है। राजघाट पर महिलाओं को कपड़ा बदलने के लिए कोई चेंजिंग रूम नहीं है। समझ में नहीं आता कि आखिर ये कैसी स्मार्ट सिटी है। औरतों को खुले आसामन के नीचे नहाना पड़ता है और कपड़ा भी बदलना पड़ता है। सत्ता बदलती है, लेकिन पानी की किल्लत जस की तस बनी रहती है। साल 2014 में हमारे सांसद नरेंद्र मोदी पीएम बने तो लगा कि हमारी मुश्किलें दूर हो जाएंगी, लेकिन स्थिति जस की तस है।" राजघाट की प्रेमा देवी का दर्द भी देवी साहनी की तरह ही है। वह कहती हैं, "हमें पीने के लिए साफ पानी मयस्सर नहीं है। पानी के लिए हम सालों से परेशान हैं और हमारी मुश्किलों पर गौर करने के लिए कोई तैयार नहीं है, न अफसर, न ही नेता।"
पेयजल के लिए मुश्किल से जूझने वाली सिर्फ देवी साहनी और प्रेमा अकेली महिला नहीं हैं। यह दर्द बनारस के पक्के महाल में रहने वाली उन सभी औरतों की है जिन्हें भोजन बनाने से लेकर पीने के पानी का इंतजाम खुद करना पड़ता है। भैंसासुर घाट पर पीने के पानी की किल्लत से जूझ रहे सोहन साहनी कहते हैं, "राजघाट ब्रिज के नीचे अंग्रेजों के जमाने से तीन हैंडपंप लगे हुए थे। गर्मी के दिनों में हर साल मरम्मत हो जाया करती थी और हमारी प्यास बुझ जाया करती थी। साल भर पहले ही स्मार्ट सिटी बनी तो भैसासुर घाट के घाट आसपास के इलाके के रास्तों का डामरीकरण करना शुरू किया। शहर को चमकाने की कवायद में रास्ते के सभी खराब हैंडपंपों को उखाड़कर दिया। पुराने जमाने के सभी हैंडपंपों का वजूद अब मिट गया है। सवाल जस का तस है कि आखिर हमारी प्यास आखिर कैसे बुझेगी?"
पानी में बह गए अरबों रुपये
बनारस को स्मार्ट बनाने में करोड़ों रुपये खर्च किए गए। बनारस में पानी का संकट दूर करने के लिए अरबों रुपये खर्च किए गए। कई ओवरहेड टैंक बने। यहां पैसा तो पानी की तरह बहा, लेकिन लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई। बनारस में सिर्फ पक्का महाल ही नहीं सभी इलाकों में लोग पेयजल के लिए जूझ रहे हैं। करीब 35 लाख की आबादी वाली काशी में लोगों के लिए पीने का पानी जुटाना बहुत से लोगों के लिए रोज़ का संघर्ष है।
राजघाट के नई बस्ती इलाके की आबादी तीन हजार है। रोजाना यहां 15 से 20 हजार की तादाम में देसी-विदेशी सैलानी घाट घूमने और पूजा-पाठ करने आते हैं। घाट के पास तिराहे एक नल लगा हुआ है। सुबह दस बजे के बाद इसी के भरोसे मोहल्ले के सौ परिवारों की आबादी और बीस हजार से अधिक सैलानियों के प्यास बुझती है। राजघाट के नई बस्ती, डीह बस्ती, भैंसापुर और तिराहे इलाके के नागरिकों को हर रात दरवाजे पर बाल्टी और टब का इंतजाम करके सोना पड़ता है, ताकि अल सुबह उन्हें पहले ही पानी मिल जाए और लंबी लाइन नहीं लगाना पड़े। सुबह के दस बजे के बाद इन मोहल्लों में लगे दर्जनों नलों से एक बूंद भी पानी नहीं निकलता है।
बनारस का दिल है पक्का महाल, जहां लाखों लोग पेयजल संकट की मार झेल रहे हैं। जलकल विभाग में शिकायत के बाद भी समस्या में कोई सुधार नहीं हो सका है। आदमपुर जोन के कोयला बाजार चौराहा से बहेलिया टोला रोड और आसपास की गलियों में पानी की गंभीर समस्या है। बनारस के अस्सी मोहल्ले में रानी लक्ष्मीबाई की जन्मस्थली है। यहां पर्यटकों का जत्था आता-जाता रहता है, लेकिन जलापूर्ति के संकट से यहां हर कोई परेशान है। पानी के लिए एक नल के सामने लाइन लगाकर खड़ी किरण पांडेय कहती हैं, "सरकारी नल के पानी का प्रेशर बहुत कम है। एक बाल्टी पानी भरने में 20 मिनट का समय लगता है। कई-कई दिन तो पानी आता ही नहीं है। अक्सर खरीदकर पानी पीना पड़ता है।" अंबा कॉलोनी और बजरडीहा-ककरमत्ता मार्ग के दोनों ओर की बस्ती में रहने वाले हजारों लोगों के लिए पानी बड़े संकट की तरह है। राजकुमार प्रजापति कहते हैं, "पानी के लिए हम कुएं पर निर्भर है। अब ये कुएं भी सूखने लगे हैं।"
ख़ुद जनता भी ज़िम्मेदार?
जानकार बताते हैं कि पेयजल संकट के लिए व्यवस्था से ज़्यादा स्थानीय लोग ख़ुद भी ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि लोगों ने बड़ी संख्या में बने कुओं और तालाबों को पाट दिया है। कुछ नष्ट हो गए या फिर उन पर अवैध कब्ज़ा करके लोगों ने मकान बना लिए। बनारस में कई कालोनियां और अपार्टमेंट तालाबों की जमीन पर खड़े हैं। बनारस शहर में तमाम ऐसे इलाके हैं जहां भूमाफियाओं ने ताल-पोखरों का वजूद मिटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देश के बावजूद तालाबों का वजूद नहीं लौट पाया। इसी का नतीजा है कि बनारस के लोग भीषण गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।
पत्रकार राजकुमार सोनकर "कुंवर" कहते हैं, "बनारस के हर गली-मुहल्ले में पीने के पानी के लिए हाहाकार है। हैंडपंप सूखे पड़े हैं तो नलकूप काम नहीं कर रहे। ऐसे में लोग आसपास के उन लोगों की मदद के सहारे पीने के पानी का इंतजाम कर पा रहे हैं जिनके यहां सबमर्सिबल पंप लगे हैं। ऐसे लोगों की कतार शहर से गांव तक देखी जा सकती है। गर्मी बढ़ने के साथ पेयजल की समस्या बढ़ने लगी है। वाराणसी शहर के कई मोहल्लों में मांग के अनुरूप जलापूर्ति नहीं होने से पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया है। पानी का दबाव कम होने के कारण घंटों मशीन चलाने के बाद किसी प्रकार टंकी भर पाती है। इसके कारण लोगों को पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है।"
वाराणसी शहर के वरुणापार इलाके में भी पेयजल का गंभीर संकट है। पुलकोहना इलाके लोग पिछले छह महीने से पेयजल संकट झेल रहे हैं। इलाकाई भाजपा विधायक एवं सूबे के राज्यमंत्री रविंद्र जायसवाल की देहरी पर लोगों के मत्था टेकने के बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं है। बहुत से लोग सबमर्सिबल वालों से पानी खरीद रहे हैं। महीने के हिसाब से पानी की कीमत तय है। इस इलाके में पेयजल की पाइप लाइन ध्वस्त हो चुकी है। हैंडपंपों का भी बुरा हाल है। दनियालपुर, नर्मदापुरी इलाके के करीब 300 परिवार जल संकट झेलने को विवश हैं। दनियालपुर के पार्षद दूधनाथ राजभर कहते हैं, "हमारी शिकायतें नक्कारखाने में तूती साबित हो रही हैं। जलकल और जल निगम के अफसर हमारी शिकायतें नहीं सुन रहे हैं।" इसी तरह सारनाथ इलाके के बरईपुर की स्थिति भी गंभीर है। इस गांव में सालों से पेयजल का गंभीर संकट है। सरकारी हैंडपंप एक दशक से खराब है। लोगों को काफी दूर से पानी ढोना पड़ रहा है।
तेजी से सूख रहीं गंगा
बनारस शहर की लाइफ लाइन गंगा हैं और इस नदी का पानी भी तेजी से सूखता जा रहा समय से पहले गंगा में उभरे रेत के टीले खतरे का अलार्म बजा रहे हैं। बड़े पैमाने पर भूगर्भ जल के दोहन से बनारस के आराजीलाइन, हरहुआ, पिंडरा, बड़ागांव, चिरईगांव और चोलापुर प्रखंड के गांव क्रिटिकल जोन में चले गए हैं। इस वजह से कुएं सूख गए हैं और सरकारी नल शो-पीस बनकर रह गए हैं। नदी विशेषज्ञ प्रो.बीडी त्रिपाठी कहते हैं, "बनारस के उन ग्रामीण इलाकों में भूगर्भ को चार्ज करने में गंगा जल बहुत अधिक खर्च हो रहा है। इससे कई इलाकों में पेयजल संकट पैदा है गया है।"
स्मार्ट हो रहे बनारस की प्यास बुझाने के लिए जल कल महकमा रोजाना 276 एमएलडी पेयजल आपूर्ति की आपूर्ति करता है। यह पानी भी गंगा से खींचकर लाया जाया है और भदैनी स्थित रॉ-वॉटर पंपिंग स्टेशन से पानी की सप्लाई की जाती है। पंपिंग स्टेशन पर गंगा का वर्तमान जलस्तर 192 फुट है, जो न्यूनतम चेतावनी बिंदु से बस तीन फुट ही ज्यादा है। आलम यह है कि जिस अस्सी घाट पर सुबह-ए-बनारस और शाम को गंगा आरती देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक जुटते हैं वहां गंगा का प्रवाह घाट से 15 मीटर से ज्यादा दूर हो चुका है। वहीं, दशाश्वमेध और राजेंद्र प्रसाद घाट पर भी गंगा किनारा छोड़ काफी आगे बह रही हैं।
जलकल महकमा दावा करता है कि वह बनारस के करीब 15 लाख लोगों को गंगजाल पिलाता है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स सिर्फ 12 लाख की आबादी की प्यास बुझाने का आंकड़ा पेश करती है। बाकी लोगों को रोजाना पेयजल के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। बनारस में जलकल विभाग के एमजी राघवेंद्र प्रताप सिंह दावा करते हैं, "बनारस शहर में पेयजल की किल्लत नहीं है। जलकल विभाग की क्षमता 323 एमडलडी की है। सर्दी के दिनों में सिर्फ 170 एमएलडी और गर्मी में 275 एमएलडी सप्लाई की जाती है। गंगा से जो पानी उठाया जाता है उसमे से करीब 40 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है। बनारसियों की प्यास बुझाने के लिए करीब 180 एमएलडी पानी ग्राउंड वाटर से निकाला जाता है। बाकी पानी गंगा से लिया जाता है। डिमांड के अनुरूप शहर में जलापूर्ति की जा रही है। कुछ इलाकों में पेयजल संकट की शिकायतें मिल रही हैं। क्रिटिकल इलाकों में टैंकरों से जलापूर्ति की जा रही है। बनारस शहर में जल विभाग के 148 ट्यूबबेल चालू हालत में हैं। मिनी पंपों की संख्या 128 है।
ग्रामीण इलाके भी बेहाल
पेयजल की समस्या से सिर्फ मोदी की काशी ही नहीं, ग्रामीण इलाके भी बेहाल हैं। ककरमत्ता गांव के लोगों को बूंद-बूंद पाने के लिए रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ रही है। यहां ट्यूबवेल की मोटर काफी दिनों से खराब है। वाराणसी के आराजीलाइन प्रखंड के कचनार, रानी बाज़ार और परसुपुर में पिछले दो सालों से पेयजल का संकट है। यह इलाका भी पीएम के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। भिखारीपुर ओवरहेड के दूसरे ट्यूबवेल की मोटर दो साल पहले जल गई थी। तभी से यहां पानी का जबर्दस्त संकट बना हुआ है। ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर सरकारी हैंडपंप सूख चुके हैं। सरकारी नलों के आगे सुबह से ही लाइन लगनी पड़ रही है।
राजातालाब इलाके के प्रदीप कन्नौजिया, सिब्बू, भैयालाल, मुख़्तार, इरफ़ान, कल्लू कहते हैं, "ट्यूबवेल और सरकारी हैंडपंपों के खराब होने से कई इलाकों में पेयजल का गंभीर संकट पैदा हो गया है।" सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता कहते हैं, "पेयजल संकट हर किसी को रुला रहा है। यह हाल जब पीएम के क्षेत्र का है तो बाकी इलाकों का क्या होगा? स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो ग्रामीणों के आंदोलन का सहारा लेना पड़ेगा।"
बनारस में पानी की आफत को देखते हुए एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने मांग की है कि शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के लिए बनारस शहर में आपातकाल घोषित किया जाए और पानी की विलासिता पर रोक लगाई जाए। भीषण गर्मी में गंगाजल का स्तर निम्नम स्तर पर पहुंच गया है और राज्य सरकार व जिला प्रशासन को इसे वरीयता देनी चाहिए। योगी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए सिन्हा कहते हैं, "घरों में पानी सीमित मिल रहा है और बनारस क्लब के स्वीमिंग पुलों व होटलों में बॉथ टब के जरिए धड़ल्ले से पानी बहाया जा रहा है। शहर के लोग हैं कि सीवर और नाले का पानी पीने के लिए मजबूर हैं। बनारस में पानी की मांग और आपूर्ति सार्वजनिक की जाए और इस संकट से निपटने के लिए सरकार पुख्ता योजना बनाए। साथ ही जनता का प्यास बुझाने के लिए टिहरी और नरौरा बांधों से प्रचुर मात्रा में गंगा जल छोड़ा जाए।"
बनारस में भूगर्भ जल विभाग के प्रभारी आरके कुशवाहा कहते हैं, "बनारस में भूगर्भ जल की स्थिति चिंताजनक है। जल का दुरुपयोग रोकने और अधिक से अधिक जल संचय करने के लिए मुहिम चलाने की जरूरत है।" बनारस के भूगोलविद् प्रो.सुमन सिंह के मुताबिक सूखती गंगा पर ध्यान नहीं दिया गया तो बनारस के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने पर विवश हो जाएंगे। सरकार के साथ बनारस शहर की जनता को भी जल बचाने के लिए सार्थक पहल करनी चाहिए।"
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