MLC चुनावः मोदी के गढ़ बनारस में भाजपा की बुरी हार, माफ़िया बृजेश सिंह की पत्नी के सामने केवल डमी प्रत्याशी थे सुदामा पटेल!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गढ़ में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) स्थानीय निकाय की वाराणसी विधान परिषद (एमएलसी) सीट पर माफिया बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह ने एक बार फिर कब्जा जमा लिया है। बसपा शासन में अन्नपूर्णा सिंह पहली मर्तबा इसी सीट पर एमएलसी बनी थीं। पिछले चुनाव में भाजपा ने माफिया बृजेश सिंह को वाकओवर देकर चुनाव जिताया था। प्रतिष्ठापरक इस चुनाव से पहले भाजपा यहां इतनी दीन-हीन बन गई थी कि गैर तो गैर भाजपा के तमाम जनप्रतिनिधियों ने अपने प्रत्याशी से पल्ला झाड़ लिया था। नतीजा, वाराणसी-चंदौली-भदोही सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ. सुदामा पटेल तीसरे स्थान पर चले गए। दूसरा स्थान सपा का था। बनारस में शर्मनाक हार पर भाजपा ने बस इतनी सी सफाई दी है कि वह हार के कारणों की समीक्षा करेगी।
स्थानीय निकाय की वाराणसी-चंदौली-भदोही सीट पर भाजपा की करारी पराजय ने यूपी की सियासत में गंभीर सवाल खड़ा किया है? पहला सवाल यह है कि क्या भाजपा ने इस चुनाव में अपना डमी प्रत्याशी मैदान में उतारा था? दूसरा, भाजपा के नेता पूरे मनोयोग से अपने प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार क्यों नहीं कर रहे थे? क्या वो माफिया बृजेश सिंह से डर रहे थे या फिर धनबल हावी हो गया था?
बनारस, चंदौली और भदोही में भाजपा के तमाम जनप्रतिनिधि थे, फिर सत्तारूढ़ दल के डॉ. सुदामा पटेल को सिर्फ 170 वोटों पर ही संतोष क्यों करना पड़ा?
पीएम नरेंद्र मोदी अपने प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने और वोट देने क्यों नहीं आए?
इन तमाम सवालों पर बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चुनाव विश्लेषक प्रदीप कुमार ने त्वरित टिप्पणी की। वह कहते हैं, "बनारस में धनबल और बाहुबल के आगे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी पल्टन ने शरणागत की भूमिका अपना ली थी। भाजपा ने अपने अधिकृत उम्मीदवार डॉ.सुदामा पटेल को तकरीबन अकेला छोड़ दिया था। इस चुनाव के नतीजे से यह सच तस्दीक हो गया कि वाराणसी में भाजपा की पहली पसंद धनबल और बाहुबल है। यह नतीजा भले ही सिर्फ एक विधान परिषद सीट का है, लेकिन इसका संदेश बहुत दूर तक जाएगा। एमएलसी चुनाव के नतीजों से यह स्पष्ट हो गया कि फिलहाल राजनीति को अपराध और अपराधियों के दबदबे से मुक्ति मिलने वाली नहीं है। इस दिशा में भाजपा समेत तमाम राजनीतिक दल भले ही चाहे जितने दावे करते रहें, उनका मूल चरित्र एक जैसा ही है।"
बाबुबली बृजेश सिंह और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह
भाजपा के सवर्ण प्रेम को रेखांकित करते हुए प्रदीप कुमार कहते हैं, "पिछड़े तबके के एक चिकित्सक को उम्मीदवार बनाने के बाद उसे चुनावी भंवर में अकेले छोड़ देना इस बात को तस्दीक करता है कि भाजपा कहती कुछ है और करती कुछ है। पिछड़े वर्ग के लोगों को अब यह सोचना होगा कि वह अपने सामाजिक न्याय की राजनीतिक लड़ाई कैसे लड़ेंगे? हमें लगता है कि डॉ. सुदामा पटेल का इस्तेमाल सिर्फ बलि के बकरे की तरह किया गया। वह लगातार गुहार लगाते रहा कि पार्टी के लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है, लेकिन पार्टी हाईकमान चुप्पी साधे रहा। उनकी तरफ से न तो सार्वजनिक स्तर पर और न ही निजी स्तर पर कोई स्थिति स्पष्ट की गई, जिसके चलते आम मतदाताओं के बीच यह धारणा मजबूत हो गई कि निर्दल अन्नपूर्णा सिंह को ही वोट देना है। भाजपा के पास धन और सत्ता बल दोनों था, लेकिन इस पार्टी ने कृष्ण की तरह सुदामा की मदद नहीं की। सियासी अखाड़े में अकेला छोड़कर भाजपा नेताओं का लापता हो जाना इस पार्टी की रीति-नीति पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है। हमें लगता है कि भाजपा गुप्त दरवाजे से बाहुबलियों को ओब्लाइज करने और उन्हें सत्ता में पहुंचाने में जुटी हुई है। एमएलसी चुनाव में भाजपा ने कई बाहुबलियों को मैदान में उतारा था, जिनमें कई ऐसे भी थे जो धनबल और बाहुबल के दम पर पहले ही चुनाव जीत गए थे।"
इकतरफा था मुकाबला
एमएलसी चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो मुकाबला इकतरफा था। माफिया बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में थीं। इनसे मुकाबला करने के लिए भाजपा ने अपने पुराने कार्यकर्ता डॉ. सुदामा पटेल को मैदान में उतारा था। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी थे उमेश यादव। इस चुनाव में भाजपा जिस मंथर गति और दीन-हीन हालत में चुनाव प्रचार में जुटी थी उससे पहले ही साफ हो गया था कि वह भाजपा सैयदराजा (चंदौली) के विधायक सुशील सिंह की सगी चाची को वाकओवर देने के मूड में है। पहले चरण के वोटों की गिनती में अन्नपूर्णा सिंह ने 2058 वोट हासिल किया तो भाजपा प्रत्याशी डॉ. सुदामा पटेल को महज 103 वोट और सपा प्रत्याशी उमेश यादव को 171 वोट मिले। आखिरी चक्र की गिनती में सपा को 345 और भाजपा ने सिर्फ 170 वोट हासिल किया। आखिर में बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह ने 4234 वोट हासिल कर जीत दर्ज की।
बड़ी बात यह है कि जिस समय एमएलसी चुनाव के मतों की गिनती हो रही थी उस समय भाजपा का कोई वरिष्ठ नेता मौके पर मौजूद नहीं था। मौके पर मौजूद भाजपा प्रत्याशी डॉ. सुदामा पटेल काफी खिन्न नजर आए। मीडिया से बातचीत में उन्होंने ऐलानिया तौर पर कहा, "भाजपा के लोग अन्नपूर्णा सिंह से मिले हुए थे। चुनाव प्रचार में पार्टी के जो लोग हमें मुंह दिखाने आ रहे थे और हमारे जीत का खम ठोंक रहे थे उनमें से कई निर्दल प्रत्याशी अन्नपूर्णा सिंह के एजेंट बन गए थे। हमारे साथ छल और बड़ा धोखा किया गया। हमें अब एहसास हो रहा है कि संभवतः बलि का बकरा बनाने के लिए हमें मैदान में उतारा गया था।"
बीजेपी के पराजित प्रत्याशी डॉ. सुदामा पटेल
भाजपा के डमी प्रत्याशी थे सुदामा?
वरिष्ठ पत्रकार एके लारी कहते हैं, "यह चुनाव ही ऐसा है कि जिस पर सत्ता पक्ष की कृपा बरसती है वही चुनाव जीतता है। चाहे वो माफिया हो या फिर कार्यकर्ता। एमएलसी चुनाव में जितने भी उम्मीदवार विजयी हुए हैं उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया है। यह पहले से ही तय था कि नतीजा ऐसी ही आएगा। भाजपा का वोटर तो उसी तरफ जाएगा जो मजबूत होगा। बनारस सीट से निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतने वाली अन्नपूर्णा सिंह काफी दिनों से पीएम मोदी और सीएम योगी की तारीफ करती नजर आ रही हैं। सभी को पता था कि भाजपा ने ‘फेस सेविंग’ के लिए डॉ. सुदामा पटेल को ‘डमी’ प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा था। भाजपा की असली प्रत्याशी तो अन्नपूर्णा सिंह ही थी। देखिएगा वो जल्दी ही भाजपा की सदस्यता दे लेंगी। एमएलसी चुनाव के नतीजों ने आइने की तरह साफ कर दिया है कि भाजपा के कई चेहरे हैं। एक चेहरा खाने वाला और दूसरा दिखाने वाला। पुराना इतिहास देख लीजिए। एमएलसी चुनाव तो धनबल और बाहुबल के अलावा सत्तारूढ़ का माना जाता रहा है। यूपी में जिसकी भी सरकार रही है वही एमएलसी चुनाव जीतता आ रहा है। भाजपा के लिए आसानी यह है कि वह अब विधान परिषद में पूरी तरह बहुमत में आ जाएगी। उसे किसी तरह का बिल पास कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी।"
दैनिक जनवार्ता के संपादक डॉ. राज कुमार सिंह कहते हैं, "भाजपा प्रत्याशी डॉ. सुदामा पटेल शुरुआती दौर से ही निर्दल प्रत्याशी एवं बाहुबली की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह के आगे नहीं टिक पाए। भाजपा के नेता सिर्फ दिखाने के लिए बैठकें करते रहे। समूचा चुनाव धनबल का था। भाजपा के नेता और पदाधिकारी अपने प्रत्याशी के लिए लगे ही नहीं। उनका मौन समर्थन बाहुबली की पत्नी के साथ था। यह भी संभव है कि निर्दल प्रत्याशी किसी दिन भाजपा के खेमें खड़ी नजर आएंगीं। वोटरों को पहले ही यह समझ में आ गया था कि बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह आखिर मोदी और योगी की तारीफ क्यों कर रह हैं? संभवतः अंदरूनी पैक्ट रहा हो। हमें लगता है कि बनारस में हारकर भी भाजपा जीत गई।"
खुल गई भाजपा की कलई
समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशुतोष सिन्हा भाजपा की दुरंगी नीतियों पर सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, "एमएलसी चुनाव में भाजपा की कलई खुल गई। बनारस के सांसद देश के प्रधानमंत्री हैं। यहां महापौर और जिला पंचायत अध्यक्ष के अलावा सभी विधायक भाजपा के हैं। वाराणसी नगर निगम में ज्यादतर पार्षद भी भाजपाई हैं। मूल्यों और सिद्धांतों पर चलने का खम ठोंकने वाली भाजपा के जनप्रतिनिधि बाहुबलियों के हाथों बिक बिक गए और इस पार्टी पर कोई असर नहीं है। यह हार भाजपा की नहीं, पीएम और सीएम की है। कितने शर्म की बात है कि पूरा प्रदेश जीतकर भाजपा पीएम नरेंद्र मोदी के गढ़ में ही हार गई। इस चुनाव में बाहुबल और धनबल का खुलेआम इस्तेमाल हुआ। भाजपा प्रत्याशी डॉ. सुदमा गुहार भी लगाते रहे, लेकिन भाजपा नेताओं की जुबान बंद रही। वो खामोशी के साथ सिर्फ तमाशा देखते रहे। सपा ने तो बेहद गरीब प्रत्याशी उमेश यादव को टिकट दिया था। राजनीति में पिछड़ों को पीछे ढकेलने के लिए भाजपा ने डॉ. सुदामा पटेल को मैदान में उतारा, बड़ी चालाकी से उन्हें चुनाव हरवा दिया। पिछड़े तबके के लोगों को यह बात अब समझ जानी चाहिए कि पूर्वांचल में उनकी सियासत को कुंद करने के लिए सुनियोजित ढंग से भाजपा ने यह नायाब खेल खेला है।"
एमएलसी सिन्हा यह भी कहते हैं, "स्थानीय निकाय चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी खुद बनारस के मतदाता थे और वह वोट डालने नहीं आए। बनारस में जब भी कोई चुनाव होता है, वह यहां जरूर आते हैं। हमारे चुनाव के समय भी वो बनारस आए थे। हर चुनाव में वह प्रचार भी करते हैं। माफिया बृजेश सिंह की पत्नी मैदान में थीं तो अपने प्रत्याशी का चुनाव प्रचार करने आखिर वह क्यों नहीं आए? वह भी ऐसी स्थिति में जब भाजपा के पास सत्ता की ताकत और मजबूत संगठन दोनों है। जगजाहिर है कि यूपी में कई जगहों पर नामांकन करने जा रहे विपक्षी दलों के प्रत्याशियों के पर्चे फाड़े गए और उनके साथ मारपीट तक की गई। आखिर वो कौन सी वजह है कि भाजपा आखिर तक बनारस सीट पर दीन-हीन बनी रह गई? भाजपा की दोरंगी चालों को लोग अब भली-भांति समझ रहे हैं। "
बनारस में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनोज राय धूपचंडी कहते हैं, "काशी में भाजपा ने एक बार फिर लोकतंत्र की हत्या की है। कमजोरों के घर बुल्डोजर भेजने वाली सरकार में ज्यादातर बाहुबली माननीय हो गए। पीएम नरेंद्र मोदी गढ़ में भाजपा का हाल बहुत बुरा रहा। एमएलसी चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि यूपी में सरकार अब भाजपा नहीं, बाहुबली और माफिया चला रहे हैं।"
विपक्ष के आरोपों पर सफाई देते हुए भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अशोक पांडेय कहते हैं, "भाजपा प्रत्याशी की हार के कारणों की हम समीक्षा करेंगे। हमने एक अच्छे कार्यकर्ता को चुनाव लड़ाया था। चुनाव में पदाधिकारियों ने मेहनत की, लेकिन धनबल हावी रहा। वाराणसी, चंदौली और भदोही में सभी एमएलए ने वोटरों के साथ बैठकें की। अलग बात है कि हमारा प्रत्याशी हार गया। भाजपा अपनी पराजय पर गंभीर है और वह इसके कारणों की समीक्षा करेगी।"
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि एमएलसी चुनाव में भाजपा ने एक तीर से दो निशाना साधे थे। डॉ. सुदामा पटेल भाजपाई साजिश के शिकार हुए। अपनी पार्टी के दिग्गज नेताओं पर भरोसा करके वह भले ही मैदान में उतर गए थे, लेकिन वो शुरू से ही बाहुबली बृजेश सिंह के प्रभाव से घबराए हुए थे। चुनाव से कुछ रोज पहले उन्होंने भाजपा नेताओं पर बाहुबली की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार करने का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी। डॉ. पटेल ने ऐलानिया तौर पर कहा था कि माफिया बृजेश सिंह का समूचे पूर्वांचल में खासा प्रभाव है और लोग उनसे डरते भी हैं। भाजपा नेताओं को लगता था कि अगर वह सुदामा पटेल का चुनाव प्रचार करेंगे तो वो चिह्नित हो जाएंगे। भाजपा के तमाम दिग्गज नेता बृजेश सिंह की पत्नी को जिताने और हमें हराने में लगे हुए थे। जो लोग ऐसा कर रहे थे उनके बारे में हमें पूरी जानकारी है। हमने भाजपा में रहकर सत्य और न्याय के रास्ते पर चलना सीखा है। आगे भी इसी रास्ते पर चलते रहेंगे।"
ऐसा है बाहुबली बृजेश सिंह का जलवा
माफिया बृजेश का कितना दबदबा?
स्थानीय निकाय की वाराणसी विधान परिषद (एमएलसी) सीट पर पिछले 24 सालों से केंद्रीय जेल में निरुद्ध बृजेश सिंह अथवा उनके परिवार का कब्जा रहा है। साल 1998 माफिया बृजेश सिंह के बड़े भाई उदयभान सिंह उर्फ चुलबुल सिंह चुनाव जीतते आ रहे थे। वह दो बार एमएलसी चुने गए और पंचायत चुनाव में उनका दबदबा जगजाहिर है। साल 2010 में बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह बसपा के टिकट से इस सीट पर एमएलसी बनीं। साल 2016 में बृजेश सिंह मैदान में उतरे तो भाजपा ने उन्हें समर्थन दिया और उनके खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं उतारा। सत्ता में होने के कारण अबकी भाजपा ने डॉ. सुदामा पटेल पर दांव लगाया, लेकिन बृजेश सिंह ने अपनी पत्नी को निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारकर सत्तारूढ़ दल को तगड़ी शिकस्त दे दी। साथ ही भी साबित कर दिया कि बनारस में माफिया बृजेश की सियासी ताकत कम नहीं हुई।
बनारस की नवनिर्वाचित एमएलसी अन्नपूर्णा सिंह के पति बृजेश सिंह का नाम बड़े माफिया के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि बचपन में बृजेश सिंह की गिनती प्रतिभाशाली स्टूडेंट के रूप में होती थी, लेकिन इनके पिता रविंद्र नाथ सिंह की हत्या के बाद उन्होंने अपनी धारा बदल और जरायम के रास्ते पर निकल पड़े। इनके पिता रविंद्र गाजीपुर में सिंचाई विभाग में मुलाजिम थे और वह स्थानीय राजनीति में भी सक्रिय रहते थे। 27 अगस्त 1984 को रघुनाथ सिंह की हरिहर और पांचू गिरोह ने मिलकर उनकी हत्या कर दी। ये दोनों बृजेश के पिता के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे।
बाद में बृजेश ने 27 मई 1985 को हरिहर सिंह आदि को मौत के घाट उतारकर बदला लिया। फिर वह पेशेवर अपराधी के रूप चर्चित हो गए। माफिया बृजेश सिंह के दबदबे के बल पर इनके बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह ने दो मर्तबा एमएलसी का चुनाव जीता। साल 2018 में चुलबुल सिंह का निधन हो गया। बृजेश के पास करोड़ों की दौलत है। इनके दो बच्चे अज्ञात (पुत्र) और प्रियंका सिंह (बेटी) हैं। बृजेश सिंह का साम्राज्य फिलहाल बनारस के सेंट्रल जेल से चल रहा है।
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