अमित शाह का एक और जुमला: पिछले 7 सालों में नहीं हुआ कोई भ्रष्टाचार!

हरि अनंत हरि कथा अनंता की तर्ज पर ही भारत के भ्रष्टाचार का भी बखान किया जा सकता है। भ्रष्टाचार अनंत भ्रष्टाचार कथा अनंता। लेकिन अफसोस की बात यह है कि भारत की सरकारी संस्थाओं और लोगों ने भ्रष्टाचार और लूट के कुकर्म को इस कदर स्वीकार कर लिया है कि खुलेआम भ्रष्टाचार का नमूना दिखे फिर भी उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। समाज में मौजूद इस माहौल का फायदा उठाते हुए भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने सभी मीडिया वालों के सामने कह दिया कि पिछले सात साल में भ्रष्टाचार का एक भी उदाहरण नहीं रहा है। हमने भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दी है।
अगर जमाना ईमान के दम पर चलता तो अमित शाह को यह झूठ कहने की हिम्मत ना पड़ती। लेकिन जो पार्टी खुद झूठ के दम पर चल रही हो, जिस पार्टी के नेता लोगों के बीच सच और ईमान की बजाए झूठ और बेईमानी का पाठ पढ़ाने का काम करते हों उस पार्टी से उम्मीद भी क्या की जा सकती है।
भारत के किसी इलाके में चले जाइए। गांव देहात गली मोहल्ले किसी इंसान से पूछिए। भरसक ही कोई ऐसा इंसान होगा जो आपसे यह कह सके कि उसके साथ जीवन में कभी भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। वैसे समाज में जहां पर क्लर्क से लेकर अफसर तक नेता से लेकर न्यायाधीश तक भ्रष्ट लोगों की फौज खड़ी है, वहां पर अमित शाह की भ्रष्टाचार मुक्त 7 साल शासन वाली बात सुनकर जितनी अधिक हंसी आती है उतना ही अधिक अफसोस होता है कि हमने अपने नेताओं को कितनी छूट दे दी है?
भाजपा के भ्रष्टाचार के बारे में लिखा जाए तो एक नहीं बल्कि कई किताब लिखी जा सकती हैं। चुनावी चंदा से शुरू कीजिए। जिसके आधार पर चुनाव होते हैं। जिस से जुड़े इलेक्टोरल बांड के हथियार पर कई विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है कि यह एक ऐसा परनाला है, जिसका मुंह सीधे भाजपा कार्यालय में खुलता है। जम कर चुपचाप भ्रष्टाचार कीजिए। भ्रष्टाचार का पैसा इलेक्टोरल बांड में डालिए। कानूनी तौर पर भाजपा कार्यालय में पहुंचा दीजिए।
चुनावी चंदा और चुनावी प्रक्रिया पर निगरानी रखने वाली नागरिक समाज की संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के आंकड़े कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियों के 70% चुनावी फंडिंग का कोई अता-पता नहीं होता। यह बेनामी होती है। इस 70% में लगभग 90% की चुनावी फंडिंग सीधे भाजपा को मिलती है। भाजपा को मिलने वाली चुनावी फंडिंग देश भर की सभी पार्टियों को मिलने वाली चुनावी फंडिंग से तकरीबन 3.50 गुना अधिक है। अगर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह रहे हैं कि पिछले सात सालों में भ्रष्टाचार नहीं हुआ तो उन्हें चुनावी चंदा का ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए? कहां से पैसा मिला, किस से पैसा मिला, कब मिला, यह सब सार्वजनिक कर दें। अगर भ्रष्टाचार नहीं हुआ तो डर किस बात का? सूचना के अधिकार नियम के तहत अपने चंदे का ब्यौरा सार्वजनिक कर दें? इलेक्टोरल बांड को लेकर नागरिक समाज के जो सवाल हैं उन सवालों की सुनवाई करते हुए इलेक्टोरल बांड की खामियां ठीक कर दें? अगर ऐसा नहीं कर सकते तो कैसे कहा जा सकता है कि अमित शाह की सरकार बेईमान नहीं है.
मीडिया को देख लीजिए। केवल मीडिया में भ्रष्टाचार ना होता तो वह सूचनाएं जनता तक पहुंचती जो सूचनाएं सरकार के भ्रष्ट आचरण से जुड़ी होती हैं वह सूचनाएं सरकार तक पहुंचती जो सूचनाएं लोगों के कष्ट और तकलीफ से जुड़ी होती हैं। भारत की सारी संस्थाएं कमतर काम करती मगर केवल मीडिया आजाद होता तो भ्रष्टाचार के खुलासों की ऐसी लाइन लग जाती जहां पर भाजपा तो क्या लेकिन भारत की कोई भी पार्टी खड़ी ना हो पाती। केवल खातों में दर्ज सरकार के विज्ञापनों पर होने वाले खर्च की बात की जाए तो न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट है कि पिछले 5 सालों में केंद्र सरकार ने तकरीबन 5000 करोड रुपए केवल विज्ञापन पर खर्च किए हैं। हर दिन के हिसाब से देखा जाए तो तकरीबन ₹10000 महीने की कमाई करने वाले 80% भारतीय कामगारों वाली भारतीय सरकार ने हर दिन 2 करोड़ 74 लाख रुपए केवल विज्ञापन पर खर्च किए हैं। उस विज्ञापन पर जिसका सरकार के प्रोपेगेंडा के अलावा कोई सार्थक मतलब नहीं निकलता। अमित शाह से पूछना चाहिए कि जनता से वसूले गए टैक्स का इस तरह का निरर्थक खर्चा क्या भ्रष्टाचार नहीं कहलाता है? यह तो केवल खाते में दर्ज विज्ञापन पर होने वाले खर्च की बात है। जिस तरह से पूरे मीडिया को सरकार अपने प्रोपेगेंडा मशीन के लिए इस्तेमाल करती है अगर उसकी फंडिंग की छानबीन ढंग से हो जाए तो पता लगेगा कि पिछले 75 साल की सरकारों ने मीडिया को काबू में करने के लिए इतना भ्रष्टाचार नहीं किया जितना भ्रष्टाचार अमित शाह की सरकार ने पिछले 7 सालों में किया है।
सरकारी और संस्थागत भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट, सेंट्रल ब्यूरो इन्वेस्टिगेशन, कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल जैसी संस्थाओं कि पिछले 7 साल के काम का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाए तो ऐसे दिखेगा कि सरकार और भाजपा के भ्रष्टाचार का समुद्र भी दिखे तो ऐसी संस्थाएं उस पर कोई कार्यवाही नहीं करने वाली। जो अमित शाह कह रहे हैं कि पिछले 7 साल में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ उनके खुद के बेटे जय शाह की संपत्ति नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद 16000 गुना बढ़ गई। तथ्यों के आधार पर ढेर सारे आरोप लगाए गए। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। जब सुनवाई ही नहीं होगी। पुलिस चोर को पकड़ने की बजाय चोर को देखकर मुंह मोड़ लेगी तो कैसे कहा जा सकता है कि पिछले 7 साल में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा पर जमीन जायदाद कोयला खनन से जुड़े ढेर सारे भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। उन्हें भ्रष्टाचार का राजा कहा जाता है। कांग्रेस के दौर में सीबीआई ने इनकी खूब छानबीन की। इनके भ्रष्टाचार को उजागर किया। लेकिन जैसे ही यह भाजपा में शामिल हुए दूध के धुले हो गए। सीबीआई को इनके खिलाफ सबूत ही नहीं मिले। इसी तरह से शिवराज सिंह चौहान से जुड़ा व्यापम घोटाला, हेमंता बिस्व शर्मा से जुड़ा वाटर सप्लाई घोटाला, बेल्लारी के रेड्डी ब्रदर्स का कोयला घोटाला जैसे भाजपा के तमाम बड़े नेताओं पर घोटाले के आरोप हैं लेकिन इनकी फाइलें बंद कर दी गईं। इस पर भारत की बड़ी बड़ी संस्थाओं ने कोई काम नहीं किया। एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट और सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल दूसरी पार्टियों के नेताओं को डराने धमकाने के लिए किया गया। जब वह डर गए और भाजपा में शामिल हुए तो उनकी फाइलें बंद कर दी गई। इस प्रवृत्ति के भ्रष्टाचार के पिछले 7 साल में 700 से ज्यादा कहानियां होंगी लेकिन फिर भी अमित शाह का कहना है कि पिछले 7 साल में कोई घोटाला नहीं हुआ?
उस CAG को याद कीजिए, जिसकी रिपोर्ट की भूमिका अन्ना आंदोलन को खड़ा करने और यूपीए की सरकार को सत्ता से बाहर करने में सबसे अधिक थी। उन रिपोर्टों में 2015 के बाद 75% की गिरावट आई है। भारत सरकार के मंत्रालय और विभाग का लेखा-जोखा पेश करने वाली रिपोर्टों की संख्या 2015 के मुकाबले 75% कम हो चुका है। इसका मतलब फिर से वही है कि पिछले 7 सालों की यही प्रवृत्ति रही है कि उस औजार को ही तोड़ दिया जाए जिस औजार से भ्रष्टाचार का पता चलता है। अगर ढंग से याद नहीं आ रहा हो तो राफेल घोटाले से जुड़े कैग की रिपोर्ट को पढ़ना चाहिए। जहां पर किस तरीके से राफेल घोटाले से जुड़े तमाम तरह के पैसों को दर्ज ही नहीं किया गया था। पैसे का उल्लेख करने के लिए अंग्रेजी के अक्षरों का इस्तेमाल किया गया।
आरटीआई कानून को तो पिछले 6 सालों में खूब इधर उधर किया गया है। आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर वह जमीन पर काम करते हैं तो छोटे भैया नेता और कारोबारी प्रशासन के साथ मिलकर उन्हें प्रताड़ित करते हैं। उनकी जिंदगी मरने के कगार तक पहुंच जाती है।अगर बड़े लोगों की सूचना प्रधानमंत्री कार्यालय सचिवालय और कैबिनेट से मांगते हैं तो बस सूचना ही नहीं मिलती है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय तो तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा को ए टू जेड घोटाला पार्टी कहा था। और अंग्रेजी के ए अक्षर से लेकर जेड अक्षर तक के घोटालों के आरोपों को जिनकी छान बीन नहीं हुई उन्हें जनता के सामने पेश किया था। उनमें से कुछ घोटालों के नाम है : अडानी पावर प्लांट घोटाला, बाल्को घोटाला, भूकंप राहत कोष घोटाला, जीएसपीसी घोटाला, इंडिगो रिफाइनरी घोटाला, ललित घोटाला, मेट्रो लाइन घोटाला, पीडीएस घोटाला, नैनो प्लांट घोटाला, सृजन घोटाला, व्यापम घोटाला, एक्स रे टेक्नीशियन घोटाला, जुबिन इरानी जमीन घोटाला, राफेल घोटाल, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना घोटाला, पीएम केयर घोटाला, इस तरह घोटाले पर घोटाले की लंबी फेहरिस्त है। तथ्य के आधार पर बड़े आरोप लगाए गए हैं। लेकिन कहीं भी छानबीन नहीं की गई है। इनके बदले सच को उजागर करने वाली छोटी-छोटी मीडिया संस्थाओं को प्रताड़ित किया गया है। लेकिन फिर भी जनता के सामने यह जुमला उछाल दिया गया है कि पिछले 7 साल में कोई घोटाला नहीं हुआ।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक भारत एशिया में रिश्वतखोरी के मामले में पहले नंबर का देश है। यानी एशिया में भारत से ज्यादा भ्रष्टाचार कहीं भी नहीं होता है। हमारी अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानता घनघोर तरीके से बढ़ी है। पैसे के जरिए पैसे कमाने वालों ने सरकार और के साथ मिलकर के वह रास्ता निकाला है कि केवल उनकी कमाई हो। बाकी सब मरे गरीब रहे बेरोजगार रहे या कुछ भी हो इससे सरकारों का भी कोई लेना देना नहीं। इन सभी प्रवृत्तियों की जड़ों में भ्रष्टाचार है। पिछले 7 साल में चुनाव आयोग न्यायपालिका विधायिका कार्यपालिका से जुड़े तमाम संस्थाओं में भ्रष्टाचार के सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। देश अगर केवल मीडिया में चमक रहा है और अंदर से खोखला हो रहा है तो इसकी जड़ में भ्रष्टाचार है। यह भ्रष्टाचार ही भारत के नसों में इतनी गहराई से समा चुका है जिसकी वजह से देश का गृह मंत्री मीडिया के सामने खुल्लम-खुल्ला कह सकता है कि पिछले 7 सालों में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ।
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