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पेंटागन को चीनी ख़तरे के ख़्वाब से बाहर आने की ज़रूरत

यह पल राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनके आजू-बाजू के लोगों पर इस बात का दबाव बनाने का है कि वे ‘पहले परमाणु हमला न करने के सिद्धांत’ को अपनाएं। वहीं, कांग्रेस के लिए यह क्षण भूमि-आधारित आइसीबीएम और अन्य परमाणु हथियारों से पहले हमले की रक्षा करने, हथियारों की आत्मघाती दौड़ को रोकने के लिए एशिया-प्रशांत फ्रीज की बातचीत शुरू करने का है। 
US China

मैं अपने दोस्तों के लिए शर्मिंदा हो जाता हूं, जब वे गलतियां करते हैं। ऐसा नहीं है कि मैंने एकाध गलतियां नहीं की हैं। हाल ही में, जब पेंटागन ने चीन पर सावधान करती हुई किंतु आतंकित करने वाली अपनी वार्षिक रिपोर्ट पेश की, जिसमें यह दावा किया गया था कि 2030 तक चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पास परमाणु हथियारों की कुल तादाद 1,000 हो सकती है। तब हमारे एक मूल्यवान सहयोगी ने टिप्पणी की कि इस हिसाब से चीन के पास अल्बुकर्क, न्यू मैक्सिको के जितने परमाणु हथियार हो जाएंगे।

मेरे दोस्त गलत थे।

उस दर पर तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पास अल्बुकर्क में किर्कलैंड एयर बेस पर पेंटागन के पास 2,500 परमाणु हथियारों में से आधे से भी कम होंगे। 

वाशिंगटन के पास राष्ट्रीय स्तर पर आत्म-पराजय और विषाक्त चीन के खतरे और चीन के साथ एक ऐसे बेहद अत्यंत खतरनाक परमाणु हथियारों की होड़ को बढ़ावा देने की बहस का विकल्प है, जो परमाणु युद्ध से पैदा होने वाली तबाही और जैसा कि हमें मालूम है कि लगभग सम्पूर्ण जीवन के विनाश के साथ यह युद्ध समाप्त हो सकता है। 

चीन पर पेंटागन की यह वार्षिक रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी गई है, जिसमें 1950 के दशक के अंत और 1960 के दशक की शुरुआत में मिसाइलों की तैनाती के अस्तित्वविहिन अंतर की याद दिलाती है। वह जार्ज डब्ल्यू बुश (जूनियर)-डिक चेनी-कोंडोलिजा राइस के इन दुराग्रहों की स्मृति ताजा करती है कि अगर इराक पर पहले आक्रमण न किया गया तो सद्दाम हुसैन (तत्कालीन इराकी राष्ट्रपति) सामूहिक विनाश के हथियारों से अमेरिका पर हमला कर देंगे, जबकि इराक के पास वास्तव में ऐसा कोई हथियार था ही नहीं। 

पेंटागन का अपनी रिपोर्ट जारी करने के समय का चुनाव बेहद सटीक है। उसका खतरे का निशान वाला लाल झंडा बाइडेन प्रशासन के न्यूक्लियर पोस्चर रिव्यू (NPR) और वाशिंगटन के पहले-परमाणु हमले के लिए हथियार भंडारण के लिए कोष की मांग पर कांग्रेस में जारी विमर्श के बीच लहराया जा रहा है। जैसा कि ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने हाल ही में रिपोर्ट किया था कि बाइडेन प्रशासन-पेंटागन समेत-पहले परमाणु हमले के सिद्धांत के विपरीत, जवाबी कार्रवाई में किए जाने वाले संभावित परमाणु हमले के "एकमात्र उपयोग" के अधिकार पाने के विमर्श में फंसा हुआ है।(लेकिन एकमात्र उपयोग के अधिकार का सिद्धांत भी परमाणु युद्ध के खतरे को समाप्त नहीं कर सकेगा। यह अमेरिकी राष्ट्रपतियों को केवल उसी स्थिति में जवाबी कार्रवाई के अधिकार तक सीमित करेगा, जब अमेरिका को परमाणु हमले में भयंकर विनाश का सामना करना पड़ा हो)। भूमि-आधारित अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों की एक नई पीढ़ी को उत्तरी मैदानी राज्यों में तैनात करने, हवा से लॉन्च की जाने वाली क्रूज मिसाइलों को अस्थिर करने और यूरोप में युद्ध के लिए नए बी-61 परमाणु हथियारों को तैनात करने के प्रश्न पर अमेरिकी कांग्रेस में और उसके बाहर भी एक साभिप्राय विरोध है। 

पेंटागन की इस ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी खतरे की स्थिति में, जैसा कि जनरल मिले का कहना है, अपने आजमाए हुए और परमाणु युद्ध के खरे सिद्धांत फर्स्ट-स्ट्राइक को बनाए रखने, उसका आधुनिकीकरण करने तथा अनुमानित $1.7 ट्रिलियन डॉलर राशि को आक्रामक एवं रक्षात्मक हथियारों के निर्माण में और उनकी तैनाती पर खर्च किए जाने की जरूरत है, जो किसी देश के विरुद्ध परमाणु युद्ध की धमकी देने या वास्तव में उसे शुरू करने के लिए आवश्यक हैं। इसके अलावा, हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है। 

लेकिन क्या यही हमारा एकमात्र विकल्प है? 

आइंस्टीन की सूक्ति और चीनी खौफ 

चीन के प्रति अमेरिकी नीति, चाहे वह डोनाल्ड ट्रम्प की रही हो या मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन की, वह आइंस्टीन के इस सार्वभौमिक नियम का ही प्रमाण है कि "एक ही काम को बार-बार करने और उससे हर बार एक अलग परिणाम की उम्मीद करने" का हठ पागलपन है। जलवायु अराजकता को पलटने, दुनिया के लोगों का टीकाकरण करने और सुरक्षा संजाल को धन आवंटन के लिए लाखों जीवन एवं राष्ट्रीय खजाने की शिद्दत से जरूरत है, जो सीनेटर फुलब्राइट के कभी कहे शब्दों में "सत्ता के अहंकार" के परिणामस्वरूप नष्ट हो गए हैं। यह प्रतिद्वंद्वियों के साथ एक मील चलने की बजाए उनके डर, चिंताओं और वैध महत्त्वाकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए अपना पिछलग्गू बनने का आग्रह है। एक बुद्धिमत्तापूर्ण नीति, जिसने शीत युद्ध के चरम दिनों में इसे सर्वव्यापक रूप से गर्म युद्ध में बदलने से रोका था, वह नीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों में होने वाले अपरिहार्य संघर्षों को टालने के लिए सामान्य सुरक्षा के लिए राजनयिक संकल्पों का अनुसरण कर रही है, जो पारस्परिक रूप से लाभकारी है। इस बात को, राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी की सोवियत संघ के अपने समक्ष निकिता सेर्ग्येयेविच ख्रुश्चेव के साथ क्यूबा मिसाइल संकट टालने के लिए की गई गुप्त वार्ता और मिखाइल गोर्बाचेव के साथ राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की कूटनीति के संदर्भ में सोचें, जिसके परिणामस्वरूप इंटरमीडिएट न्यूक्लियर फोर्सेस संधि संभव हुई थी, जिसने 1987 में बर्लिन की दीवार के ढहने से पहले ही शीत युद्ध को समाप्त कर दिया था। 

पेंटागन और अमेरिका के हमारे बहुत से राष्ट्रीय नेताओं ने अभी तक वियतनाम, अफगानिस्तान और इराक से कोई सबक नहीं सीखा है। 

यदि उन्होंने इनके बारे में आवश्यक शोध-अनुसंधान किया होता और चीनी विद्वानों की बात सुनी होती, तो वे यह समझ जाते कि चीन का परमाणु हथियार भंडार, जबकि वास्तव में बहुत खतरनाक है, उसकी न्यूनतम से मध्यम प्रतिरोध सिद्धांत की ओर बढ़ने की स्पष्ट योजना एक व्यावहारिक राजनीति एवं अमेरिका के परमाणु युद्ध में पहले हमले के सिद्धांत तथा एशिया और प्रशांत क्षेत्र में डेढ़ दशक पहले बने सैन्य अड्डों के प्रति पेइचिंग की रक्षात्मक कार्रवाइयां हैं। चूंकि कर्ट कैंपबेल, जो अब राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में बाइडेन के एशिया मामलों में अग्रणी सहयोगी हैं, ने तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के युग को "एशिया के लिए धुरी" के रूप में परिकल्पित किया था ताकि एशिया-प्रशांत में अमेरिकी आधिपत्य को मजबूत किया जा सके। इसी के तहत अमेरिका ने अपनी 60 फीसदी नौसेना और वायु सेना को एशिया-प्रशांत क्षेत्र (अब हिंद-प्रशांत) के मैदान में तैनात कर दिया है। दक्षिण चीन सागर में और ताइवान के आसपास लगभग हर हफ्ते ही उकसावे की घटनाएं हो रही हैं और इनमें किया गया एक गलत आकलन भी क्षेत्र में सैन्य तैनाती को और तेज कर सकता है।

चीनी नेताओं के लिए अमेरिका का थल-जल से प्रक्षेपित की जाने वाली "मिसाइल रक्षा" पंक्ति सबसे अधिक चिंताजनक रही है। हालांकि अमेरिका के पास इन तैनातियों के लिए एक रक्षात्मक तर्क है-दक्षिण कोरिया, जापान और गुआम में सैकड़ों अमेरिकी सैन्य ठिकानों की हिफाजत करना। ये अड्डे  उत्तर कोरिया और चीन के साथ-साथ उन संबद्ध देशों की आबादी को भी रणनीतिक कवच प्रदान करते हैं और सैद्धांतिक रूप से अमेरिका को पहले तलवार भांजने के सिद्धांत पर बल देने के लिए एक ढाल के रूप में भी काम करते हैं। अपने अपेक्षाकृत छोटे, अगरचे वे संहारक हों तो भी 250-300 के लगभग न्यूनतम निवारक क्षमता के परमाणु हथियारों के साथ वे वाशिंगटन के 5,550 परमाणु हथियारों के जखीरे का मुकाबला कैसे कर सकते हैं, इसलिए चीन के रणनीतिक विचारकों और नीति-निर्माताओं को डर है कि ताइवान पर बढ़ते संकट की स्थिति में, या इसके बाद दक्षिण चीन सागर में हुई किसी एक घटना के बाद, अमेरिका पहले परमाणु हमला कर चीन के निवारक परमाणु हथियारों को खत्म कर सकता है। इस परिदृश्य में, अमेरिकी मिसाइल रक्षा का उपयोग किसी भी चीनी परमाणु सशस्त्र मिसाइलों को नष्ट करने के लिए किया जाएगा, जो अमेरिकी हमले से बचे रह जाएंगे और जिन्हें चीन अपनी जवाबी कार्रवाई में लॉन्च कर सकता है।

चीनी सोच में, यह संभावित परिदृश्य अफीम युद्ध, बॉक्सर विद्रोह और नानजिंग नरसंहार की भयावह यादों को ताजा कर देता है, जब चीन और उसके लोग तबाह हो गए थे, और बड़ी भारी विदेशी शक्तियों के सामने असहाय हो गए थे। 

क्या चीनियों को वास्तव में यह चिंता करने की वजह है? पहले उदाहरणों को देखें तो उसकी फ्रिक जायज लगती है। दरअसल, यह तो संयुक्त राज्य अमेरिका ही था, जिसने विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमों से हमले कर उसे तहस-नहस कर दिया था। फिर 1955 और 1958 में ताइवान संकट के दौरान अमेरिका ने चीन पर भी परमाणु हथियारों से हमले की तैयारी की थी और इसकी धमकी दी थी। वास्तव में, हम तब से ही जानते हैं कि 1958 में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन फोस्टर डलेस सोवियत संघ के विरुद्ध जवाबी परमाणु हमलों के लिए ताइवान को एक विस्तारित संस्करण के रूप में बलिदान करने पर आमादा हो गए थे, जो बाद में इसे बचाने के लिए एक गांव को नष्ट करने के वियतनाम युद्ध का प्रतिमान बन गया था।

अमेरिकी साथियों की तरह ही, चीनी विद्वान और नीति-निर्माता बखूबी जानते हैं कि 1946 के ईरान संकट से शुरू होकर या जब-तब उत्पन्न अंतरराष्ट्रीय संकटों और युद्धों के दौरान, अमेरिकी नेताओं ने कोई तीसेक मौकों पर परमाणु युद्ध शुरू करने की तैयारियां की थीं या इसकी धमकियां दी थी। मध्य-पूर्व में अमेरिकी आधिपत्य को मजबूत करने के इरादे से लगभग एक दर्जन बार। उत्तर कोरिया के खिलाफ कम से कम छह बार, वियतनाम युद्ध के दौरान चार बार और, ज़ाहिर है कि क्यूबा मिसाइल संकट और 1954 सीआइए समर्थित ग्वाटेमाला में तख्तापलट के दौरान भी परमाणु हमले की तैयारी करने और इसकी धमकियां दी थीं। इस सूची में न्यूयार्क के 9-11 के हमलों पर बुश-चेनी की तरफ से दी गई पहली प्रतिक्रिया, इराक के खिलाफ बुश-द्वय (पिता एवं पुत्र) के छेड़े गए युद्धों, ईरान के खिलाफ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की "किसी भी तरह से आवश्यक" कार्रवाई करने की दी गई धमकी और उत्तर कोरिया के खिलाफ डोनाल्ड ट्रम्प "फायर एंड फरी" की धमकी भी शामिल है। 

यह इतिहास है, जिसे अवश्य ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस तथ्य को डैनियल एल्सबर्ग ने अच्छी तरह से प्रतिपादित किया है, जो जॉन एफ कैनेडी, लिंडन बेन्स जॉनसन और रिचर्ड निक्सन जैसे राष्ट्रपतियों के प्रशासन में एक वरिष्ठ परमाणु युद्ध योजनाकार के रूप में काम कर चुके हैं। डेनियल ने लिखा है कि सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने परमाणु हथियारों का उसी तरह से इस्तेमाल किया "जिस तरह से विवाद में किसी के सिर पर निशाना बनाते हुए बंदूक तान दी जाती है, भले आप ट्रिगर दबाएं या नहीं। आप तब भी बंदूक का उपयोग कर रहे होते हैं, जब इसे दिखावट के लिए ही सही अपने कूल्हे पर लटकाए होते हैं।" 

सामान्य सुरक्षा के विकल्प

वाशिंगटन के पास राष्ट्रीय स्तर पर आत्म-पराजय और विषाक्त चीन के खतरे और चीन के साथ एक ऐसे बेहद अत्यंत खतरनाक परमाणु हथियारों की होड़ को बढ़ावा देने की बहस का विकल्प है, जो परमाणु युद्ध से पैदा होने वाली तबाही और जैसा कि हमें मालूम है कि लगभग सम्पूर्ण जीवन के विनाश के साथ यह युद्ध समाप्त हो सकता है। 

इस संदर्भ में पहला कदम तो बाइडेन के 2017 और 2019 के बयानों को बदलना होगा, जिनमें उन्होंने कहा था कि वे ऐसी किसी परिस्थिति की कल्पना नहीं कर सकते हैं, जिसमें अमेरिका को परमाणु युद्ध की पहल को अपनी राष्ट्रीय नीति में शामिल करने की कोई आवश्यकता होगी। वर्तमान में परमाणु रुख की समीक्षा, जो आने वाले वर्षों के लिए अमेरिकी परमाणु हथियारों और युद्ध नीतियों के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करेगी, उसको पहले उपयोग न करने वाले सिद्धांत को अपनाना चाहिए जो अमेरिकी राष्ट्रपतियों को परमाणु युद्ध शुरू करने से रोकेगा। ऐसा करने से चीन भी परमाणु हथियार को पहले इस्तेमाल न करने के सिद्धांत का पालन करने लगेगा, वह पुतिन को भी इसके पालन पर जोर देगा, और इन परमाणु महाशक्तियों में से प्रत्येक देश को अपने परमाणु हथियार का जखीरा बढ़ाने की होड़ को कम करेगा। 

जैसा कि प्रमुख चीनी विद्वान और विश्लेषक बताते हैं कि अमेरिका का पहले उपयोग न करने के सिद्धांत की ओर बढ़ना भविष्य में पारस्परिक रूप से लाभकारी अमेरिकी-चीनी कूटनीति के लिए एक आधार प्रदान करेगा। इसमें प्रत्येक पक्ष के उत्तेजक सैन्य युद्धाभ्यास के परिणामस्वरूप बने युद्ध का जोखिम, साइबर शस्त्रीकरण और ए.आइ. युद्ध-क्षमताओं, और अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण को शामिल किया जा सकता है।

अपेक्षाकृत रूढ़िवादी बाइडेन जलवायु ज़ार जॉन केरी (एक पूर्व परमाणु शीत योद्धा जिन्होंने बोस्टन हार्बर को परमाणु हथियारों के आधार में बदलने को बढ़ावा दिया) और कांग्रेस के प्रगतिशील कॉकस के रूप में उभरने वाली आवाजें हमें याद दिलाती हैं कि असली लड़ाई चीन के खिलाफ नहीं है। यह जलवायु गड़बड़ी, महामारियों और गरीबी से उत्पन्न खतरों के खिलाफ है। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच इतने गहरे मतभेदों के बावजूद, दुनिया की इन दो सबसे बड़ी आर्थिक और वैज्ञानिक शक्तियों के बीच परस्पर लाभकारी सामान्य सुरक्षा सहयोग के बगैर इन तेजी से बढ़ते अस्तित्व संबंधी आसन्न खतरों के खिलाफ मानवता की रक्षा संभव नहीं है। 

1981 में, जब शीत युद्ध चरम पर था, अमेरिका-सोवियत परमाणु हथियारों की दौड़ एक भयंकर आपदा की ओर बढ़ रही थी, तब स्वीडिश प्रधानमंत्री ओलोफ पाल्मे ने अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री साइरस वेंस सहित प्रमुख अमेरिकी, सोवियत और यूरोपीय हस्तियों को निरस्त्रीकरण और सुरक्षा मुद्दों पर एक स्वतंत्र आयोग के मंच पर लाने का प्रयास किया था। उनका निष्कर्ष यह था कि सुरक्षा किसी एक देश के विरोधी देशों के विरोध में नहीं, बल्कि समान होनी चाहिए। वे अपने दृष्टिकोण में स्पष्ट थे कि “देश अब एक-दूसरे देश की कीमत पर अपनी सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते; यह केवल सहकारी उपक्रमों के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है"। पांच सोवियत महासचिवों के वरिष्ठ सलाहकार रहे जॉर्जी अर्बातोव सहित इन आयुक्तों के बीच चर्चा ने शीत युद्ध को रोकने वाली आइएनएफ संधि के लिए की जाने वाली बातचीत में केंद्रीय भूमिका निभाई थी और उनके निष्कर्ष चार दशक बाद भी पहले की तुलना में आज भी कम सच नहीं हैं। 

आज तो सर्वविदित है कि दुनिया के सबसे जरूरी खतरे परमाणु हथियारों के जखीरे और जलवायु में गड़बड़ी है। इसके समाधान के लिए राजनीतिक साहस और लोकप्रिय इच्छाशक्ति चाहिए, जो गायब है। महाशक्तियों के बीच युद्ध, परमाणु युद्ध और विनाशकारी जलवायु अराजकता की संभावनाएं अब अकल्पनीय नहीं रह गई हैं। लेकिन, इंसानों ने जो रचा-बनाया है, उसे तो हम बदल ही सकते हैं।

हमारे सामने चुनौती यह नहीं है कि पेइचिंग के पास जल्द ही अल्बुकर्क के आकार का परमाणु शस्त्रागार होगा या नहीं। यह है अगर हमारे पास परमाणु युद्ध और विनाशकारी जलवायु परिवर्तन के लिए प्रकट नियति अभियान को बदलने के लिए पारस्परिक रूप से लाभकारी सामान्य सुरक्षा विकल्पों की खोज पर जोर देने के लिए ज्ञान और इच्छाशक्ति है। यदि एक अधिक शांतिपूर्ण, न्यायसंगत और समृद्ध राष्ट्र बनाना हमारे लिए वैश्विक साम्राज्य को बनाए रखने से अधिक महत्त्वपूर्ण है, तो इसकी चुनौती है।

यह राष्ट्रपति बाइडेन और उनके आसपास के लोगों पर दबाव डालने का है कि वे पहले हमला न करने के सिद्धांत को अपनाएं, कांग्रेस के लिए भूमि-आधारित आइसीबीएम और अन्य परमाणु हमले के हथियारों की रक्षा के लिए, आत्मघाती हथियारों की दौड़ को रोकने के लिए एशिया-पैसिफिक फ्रीज की बातचीत शुरू करें। 

लेखक शांति, निरस्त्रीकरण और सामान्य सुरक्षा अभियान के अध्यक्ष हैं। वे एक SANE अमेरिका- चीन नीति के लिए गठित समिति के सह-संस्थापक हैं, और अंतर्राष्ट्रीय शांति ब्यूरो के उपाध्यक्ष हैं। उनकी किताबों में एम्पायर एंड द बॉम्ब और विद हिरोशिमा आइज़ शामिल हैं। लेख में व्यक्त उनके विचार व्यक्तिगत हैं।) 

यह लेख मूल रूप से कॉमन ड्रीम्स में प्रकाशित हुआ था, जो एक पाठक समर्थित स्वतंत्र समाचार आउटलेट है, जिसे 1997 में एक नए मीडिया मॉडल के रूप में बनाया गया था। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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