उत्तराखंड : राजधानी गैरसैंण की मांग को लेकर आंदोलन तेज़, पूरे राज्य में हलचल

उत्तराखंड की सड़कों पर एक बार फिर गैरसैंण-गैरसैंण के नारे लग रहे हैं। पहाड़ के लोग पर्वतीय राज्य की राजधानी पहाड़ में ही चाहते हैं, मैदानी क्षेत्र में नहीं। सभी का मानना है कि पर्वतीय राज्य की समस्याएं तभी हल होंगी, जब सरकार पहाड़ों की समस्या समझेगी, पहाड़ों के बीच रहेगी। ऐसा तभी संभव होगा जब राजधानी गैरसैंण में होगी।
उत्तराखंड में अलग पर्वतीय राज्य के आंदोलन के समय से ही गैरसैंण को राजधानी बनाए जाने की मांग चल रही थी। जो गढ़वाल और कुमाऊं दोनों के बीच बसा सुंदर पर्वतीय कस्बा है। लेकिन राज्य बनने के बाद से अब तक की भाजपा-कांग्रेस की सरकारों को देहरादून ही अधिक भाया। जहां से दिल्ली ज्यादा नज़दीक है, लेकिन जहां से पहाड़ सिर्फ दिखाई भर देते हैं।
आंदोलनकारियों की गिरफ़्तारी से आक्रोश
गैरसैंण और पहाड़ की भावनाओं से सहानुभूति दिखाने के लिए वहां कभी-कभार कैबिनेट बैठकें की गई। विधानसभा सत्र भी किए गए। जो अपनी समयावधि से पहले ही निपटा दिये गये। क्योंकि नेता लोग गैरसैंण के मौसम को बर्दाश्त नहीं पाए। वर्ष 2017 में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित किया। उस समय गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किये गये। चक्का जाम किया गया। आंदोलन के रास्ते पर चलकर अलग राज्य बनने वाली उत्तराखंड की सरकार इस आंदोलन से नाराज़ हो गई। 38 लोगों पर मुकदमे दर्ज किये गये। उन्हें लगातार समन भेजे गए। अदालत में उपस्थित होकर उन्हें ज़मानत लेने को कहा गया लेकिन गैरसैंण के लिए आंदोलन कर रहे इन आंदोलनकारियों ने ज़मानत लेने से इंकार कर दिया और जेल जाने को तैयार हो गए। अब दो साल बाद 10 जुलाई को 38 में से उपस्थित 35 आंदोलनकारियों को 12 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
इस पर एक बार फिर राज्य में आक्रोश छा गया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं। गैरसैंण संघर्ष समिति के केंद्रीय अध्यक्ष चारु तिवारी कहते हैं कि गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए आंदोलन कर रहे लोगों को गिरफ्तार किया जाना गैरकानूनी है। सरकार उन पर लगे मुकदमे वापस ले। 10 जुलाई को आंदोलनकारियों को जेल भेजे जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने लाठियां चलाईं। उन्हें हिरासत में लिया।
चारू तिवारी कहते हैं कि गैरसैंण संघर्ष समिति ने ये तय किया है कि अब राज्य भर में आंदोलन तेज़ किया जाएगा। इस संबंध में गैरसैंण के साथ ही देहरादून और अल्मोड़ा में विरोध प्रदर्शन किया गया।
आज, शनिवार को हल्द्वानी में लोग आंदोलनकारियों के पक्ष में खड़े हुए। इसके साथ ही हरिद्वार में दो दिन के पत्रकार सम्मेलन में भी इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। चारू तिवारी ने बताया कि 4 अगस्त को गैरसैंण में महापंचायत बुलायी गई है।
हरीश रावत ने दी गिरफ्तारी
गैरसैंण के आंदोलनकारियों को जेल भेज जाने की खबर जैसे ही देहरादून तक पहुंची, कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी 12 जुलाई को गिरफ्तारी देने गैरसैंण पहुंच गए। बड़ी संख्या में मौजूद समर्थकों और ढोल दमाऊ के साथ वे गैरसैंण के लोगों के बीच नज़र आए।
शुक्रवार को गैरसैंण में गिरफ्तारी देने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने फेसबुक पर लिखा कि गैरसैंण में सचिवालय भवन सहित सारे निर्माण कार्य पिछले ढाई साल से ठप पड़े हुए हैं। गैरसैंण की भावना को कुचला जा रहा है और राजधानी की मांग कर रहे लोगों के ऊपर गलत मुकदमे और बड़े-बड़े अपराधिक धाराओं में मुकदमे लगाकर, उनको जेल भेजा गया है। इसके विरोध में उन्होंने लगभग 250-300 लोगों के साथ गिरफ्तारी दी। हरीश रावत ने लिखा कि मजिस्ट्रेट ने हम लोगों को डिटेन किया और सूचना दी है कि जो आंदोलनकारी जेल में बंद थे, वो रिहा किये जा रहे हैं, जो कानूनी प्रॉसेस है, वो पूरा हो रही है। उन्होंने आगे लिखा है कि संघर्ष लंबा है मगर सरकार को मजबूर करेंगे कि वो गैरसैंण की भावना का सम्मान करे। मांगें बहुत साधारण सी हैं,
जो निर्माण कार्य कांग्रेस के शासन काल में प्रारंभ हुए हैं जिसमें सचिवालय भवन भी है, उसको तत्काल प्रारंभ किया जाए, गैरसैंण को जिला बनाया जाए और आंदोलनकारियों पर जो धाराएं लगाई गई हैं, उन धाराओं को खत्म किया जाए।
उनकी इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए चारू तिवारी कहते हैं कि आंदोलनकारियों को छोड़ने का कानूनी प्रॉसेस तो यही है कि वे ज़मानत लें, जिससे उन्होंने इंकार किया है। बाकी बातें हरीश रावत अपने कार्यकाल में भी पूरा कर सकते थे।
हरीश रावत ने हाईजैक किया आंदोलन!
गैरसैंण राजधानी के लिए संघर्षरत लोग कहते हैं कि हरीश रावत उस दिन क्यों नहीं आए जब आंदोलनकारी जेल भेजे जा रहे थे। वे एक दिन बाद क्यों आए। उन्होंने अपनी सरकार के समय गैरसैंण को राजधानी क्यों नहीं बनाया। हरीश रावत की गिरफ्तारी दिखावा भर नज़र आ रही थी। जैसे कि चारू तिवारी कहते हैं कि हरीश रावत ने बड़ी चालाकी से इस पूरे आंदोलन को हाईजैक करने की कोशिश की है। कांग्रेस के पास संसाधन हैं, उनके पास लोग हैं, वे पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं, तो उन्होंने पूरा माहौल बनाया। राज्यभर में पुतला दहन करके वे अखबारों में आ गए। लेकिन जो असली आंदोलनकारी हैं, वे संसाधनविहीन है, फिर भी पहाड़ की उम्मीदों को जिंदा रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
पहाड़ की उम्मीदों की राजधानी होगी गैरसैंण
दरअसल गैरसैँण सिर्फ एक राजधानी का मुद्दा भर नहीं है। बल्कि ये पहाड़ की समस्याओं का हल नज़र आता है। ये माना जाता है कि गैरसैंण में नेता-मंत्री बैठेंगे, तो वे सड़कों और स्वास्थ्य सुविधाएं की समस्या का सामना करेंगे। यहां से उन्हें पहाड़ की मुश्किलें नज़र आएंगी। देहरादून से ये बात समझ नहीं आती।
10 जुलाई को प्रदर्शन के दौरान पुलिस की लाठियां झेलनेवाले सीपीआई-एमएल नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि राज्य आंदोलन के समय से ये मांग रही है कि गैरसैंण राजधानी बननी चाहिए। पर्वतीय राज्य होगा, तो पर्वतीय क्षेत्र में राजधानी होगी। उनका कहना है कि पर्वतों से पलायन-पलायन चीखने वाली सरकार खुद ही पलायन करके बैठी हुई है। सरकार गैरैसैंण में रहेगी तो स्वास्थ्य सुविधाओं से लेकर तमाम चीजों के लिए रास्ता बनेगा। यदि ऐसा नहीं होगा तो लोगों के लिए सरकार को घेरना आसान होगा।
आज 13 जुलाई को भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह के निर्देश पर राज्य में जगह जगह उत्तराखंड विरोधी नीति के लिए सरकार का पुतला दहन किया। इसके साथ ही गैरसैंण में ज़मीन की खरीद पर लगी रोक हटाने के लिए भी राज्य सरकार को घेरा। कांग्रेस के लोगों ने कहा कि भाजपा सरकार के इस निर्णय से न केवल राज्य निर्माण की भावनायें आहत हुई हैं, बल्कि राज्य निर्माण आन्दोलन के शहीदों और आन्दोलनकारियों का भी अपमान हुआ है।
अलग राज्य बनने के बाद आंदोलनकारी भाजपा और कांग्रेस के ख़ेमे में विभाजित हो गए। स्वार्थ की राजनीति में वे पहाड़ की उम्मीदों को पूरा नहीं कर सके। पलायन एक आपदा के रूप में राज्य के सामने है और विश्वभर में उत्तराखंड ही एक ऐसी जगह के रूप में सामने आ रहा है, जहां से जाने वाले लोग वापस लौटकर नहीं आ रहे। क्या एक दिन पहाड़ अपने लोगों से खाली हो जाएंगे, ये इस राज्य की सबसे बड़ी चिंता है। इस चिंता को दूर करने और पहाड़ के सपनों को पूरा करने की उम्मीद का नाम है गैरसैंण।
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