यूपी: महिला वोटरों की ज़िंदगी कितनी बदली और इस बार उनके लिए नया क्या है?

देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश और इस सूबे की सबसे बड़ी वोटर महिलाएं इस वक्त सभी के बीच चर्चा का विषय बनी हुई हैं। चुनाव से पहले हवा का रुख़ औरतों की तरफ़ मुड़ता देख, सभी पार्टियां जहां उन्हें लुभाने के लिए बड़े-बड़े दावे और वादे करती नज़र आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीति से परे मानी जानेवाली औरतें खुद अपने नेताओं और उनकी नीतियों के असर पर इस बार खुलकर अपनी राय रख रही हैं।
शुरुआत कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' का नारा देकर 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने का वादा किया, तो वहीं इसकी काट के लिए बीजेपी ने ‘कन्या सुमंगला योजना’ की शुरुआत करके दावा किया कि बीजेपी की सरकारें महिलाओं की हितैषी है। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ‘बेटियों का इंकलाब होगा, बाईस में बदलाव होगा’ के दम पर अपने कार्यकाल में महिला के लिए किये गए काम को अपनी उपलब्धि बता रही है, तो वहीं दूसरी ओर चुनावी समर से लगभग दूरी बना चुकीं बहुजन समाज पार्टी की मायावती महिलाओं के अधिकारों और उसको सशक्त बनाने की बात बड़े ज़ोर-शोर से कर रही हैं।
बता दें कि राज्य के पिछले विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले ज्यादा वोटिंग की थी। साल 2017 में 63.31 फ़ीसद यानि 4.5 करोड़ महिला मतदाताओं ने वोट किया था जबाकि पुरुषों का आंकड़ा 59.15 फ़ीसद ही रहा था। प्रदेश में महिला वोटरों की ये संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और इसलिए उम्मीदवार के तौर पर महिलाओं का चुनाव जीतने का औसत भले कम हो, पर आधी आबादी चुनाव जीताने का पूरा मददा रखती है।
महिला वोटरों के लिए इस बार नया क्या है?
महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के मुद्दे को उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार खूब भुनाती रही है। ‘फर्क साफ है’ जैसे कैंपेन के तहत चुनाव के पहले से ही विज्ञापनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महिला सुरक्षा को लेकर अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाते आ रहे हैं। खुद पीएम मोदी भी अपने भाषणों में प्रदेश की बहन-बेटियों की सुरक्षा को लेकर पिछली सरकारों पर खूब निशाना साध चुके हैं। महिला सुरक्षा का सुदृढ़ संकल्प महिलाओं के लिए बीजेपी का मुख्य चुनावी वादा है।
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार को मजबूत करने और महिला मतदाओं को लुभाने के लिए ‘शक्ति विधान महिला’ घोषणापत्र जारी किया है। पार्टी ने अपने घोषणापत्र के जरिए सत्ता में आने पर महिला मतदाताओं के लिए विशेष तौर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार से जुड़े वादे किये हैं।
छात्राओं के लिए स्मार्टफोन, तीन मुफ्त सिलेंडर, पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल होने वाले मुफ्त सैनटरी उत्पाद, सरकारी महिला कर्मचारियों के बच्चों के लिए शिशुगृह व्यवस्था, बीस लाख नई सरकारी नौकरियों में 40 प्रतिशत आरक्षण का वादा किया है। इसके साथ कांग्रेस ने राज्य के प्रत्येक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को 10,000 रुपये मानदेय देने का भी वादा किया है।
अपने कार्यकाल में महिलाओं के लिए किये गए कामों को अपनी उपलब्धि बताते हुए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी की बालिकाओं, युवतियों और महिलाओं के लिए सपा की सरकार ने लैपटॉप, कन्याविद्या धन, और एम्बुलेंस प्रदान कर नारी सशक्तिकरण का सच्चा काम किया है। पार्टी ‘बेटियों का इंकलाब होगा, बाईस में बदलाव होगा’ जैसा नारा देकर महिला मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर खींच रही है। पार्टी ने चुनाव की शुरुआत में महिला के लिए विधवा पेंशन, बीपीएल कार्ड धारक परिवार की महिला मुखिया को मासिक पेंशन जैसे वादे किए हैं।
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने भी अपने ट्विटर अकाउंट से महिलाओं के अधिकारों और उसको सशक्त बनाने की बात इस बार चुनाव में रखी है। बीएसपी सुप्रीमो ने अपने पूर्व के कार्यकाल में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आत्मनिर्भरता के लिए किए गए प्रयासों को सामने रखा। इसके अलावा उन्होंने लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने की बात भी सामने रखी। कांग्रेस और बीजेपी पर वार करते हुए उनका कहना था कि इन पार्टियों का रवैया ज्यादातर दिखावटी है।
राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) जो अब सपा की सगयोगी बन गई है, उसने सबसे पहले अपना घोषणापत्र जारी कर करते हुए महिला मतदातों के लिए कई लोक-लुभावन वादे किए गए। महिला सशक्तिकरण और सक्षम महिला की प्रतिज्ञा लेते हुए पार्टी ने राज्य के सभी विभागों और सभी स्तर के पदों की भर्ती में महिलाओं के लिए रोजगार में 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रमुख वादा किया है। लोकदल ने अपने ‘लोक संकल्प पत्र 2022’ के नाम से जारी किए गए घोषणापत्र में विधवा पेंशन को तीन गुणा (1500 रुपये प्रति माह), सरकारी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ रही किशोरियों को मुफ़्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने का प्रमुख वादा किया है।
योगी राज में कितनी बदली है महिलाओं की जिंदगी?
न्यूज़क्लिक ने इस चुनावी समर के बीच यूपी की कुछ महिलाओं से बातचीत कर उनके मुद्दे समझने की कोशिश की। इसमें छात्राएं, गृहणी और कामकाजी औरतें शामिल हैं, जो रसोईघर से लेकर खेत-खलिहानों और महिला सुरक्षा की सरकारी नीतियों पर अपनी राय रख रही हैं।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई कर रहीं छात्रा प्रियंका योगी सरकार को छात्र विरोधी सरकार बताते हुए कहती हैं कि ये सरकार सिर्फ छात्रों के भविष्य से खिलावड़ करना जानती है, जो भी उनके खिलाफ आवाज़ उठाए, उसे सबक सीखा दो इस सरकार का यही काम है।
प्रियंका के मुताबिक, "इस सरकार में जितने आंदोलन छात्रों और युवाओं ने किए हैं, शायद ही कभी मैंने पहले देखा हो। लेकिन इसके बावजूद सरकार पर कभी कोई असर नहीं पड़ा है। बीएचयू में छात्राओं को अपनी सुरक्षा के लिए आंदोलन करना पड़ा, इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है। हम जब कैंपस में सुरक्षित नहीं हैं, तो पता नहीं योगी जा किस सुरक्षा की बात कर रहे हैं?”
ममता इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रा रह चुकी हैं और फिलहाल सरकारी नौकरी की तैयारी प्रयागराज में ही रहकर कर रही हैं। ममता बताती हैं कि समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार और अब की योगी सरकार में हम पढ़ने वाली लड़कियों के लिए कुछ नहीं बदला है। अगर सुरक्षा की बात करें तो अब असमाजिक तत्वों, जैसे की तथाकथित बजरंग दल वाले लोगों का डर पहले के मुकाबले बढ़ गया है।
ममता के अनुसार, "पहले यूनिवर्सिटी के कैंपस के आस-पास हमें कोई डर नहीं लगता था, अब अगर आप अपने किसी लड़के दोस्त के साथ पढ़ाई के लिए किसी पार्क या खुली जगह पर बैठ गए तो अलग ही नज़रिए से देखा जाता है। कई घटनाएं भी हुई हैं, जिसे सुनकर अलग ही डर लगता है। ये हर बार नहीं होता, लेकिन एक से दो बार भी हो जाए तो घरवालों के मन में अलग ही डर बैठ जाता है, फिर वो आपको घर बुलाने की जिद्द पकड़ लेते हैं।”
ममता की तरह ही ज्योति भी बीते चीर-पांच सालों में अपनी जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं महसूस करतीं। ज्योति एक गृहणी हैं और बलिया जिले की रहने वाली हैंय़ इसी जिसे से बीजेपी ने उज्ज्वला योजना की शुरुआत कर इसे महिलाओं के लिए एक जीवन बदलने वाला कदम बताया था।
ज्योति के कहती हैं, “फ़्री में सबका कनेक्शन तो मिल गइल, लेकिन महंगाई इतना बढ़ गइल बा कि अब गैस पर कइसे खाना बनी? दाल-चावल, तेल, तरकारी सब इतना महंगा हो गइल बा कि रोज़ कमाए- खाए वाला लोग न ठीक से खा पावता, न कमा पावता।"
ज्योति दूसरों के खेतों में अपने पति के साथ काम करती हैं, इसके अलावा दोनों पति-पत्नी मजदूरी भी करते हैं, लेकिन जब से बीते साल ज्योति के पति को कोरोना हुआ, तब से ज्योति के परिवार की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई है। इलाज़ से लेकर अस्पताल तक ज्योति का बहुत खर्चा हो गया, जिसमें जमा पूंजू भी निकल गई, काम छूट गया सो अलग।
आज़मगढ़ की रहने वाली मंजू एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं और बीते संबे समय से प्रदेश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के आंदोलन का हिस्सा रही हैं। मंजू बताती हैं कि इस बार हम सबने मिलकर नोटा पर बटन दबाने का फैसला किया है क्योंकि योगी सरकार वादाखिलाफी कर रही है।
मंजू कहती हैं, “हम लोगों की सरकार से मांग थी कि सरकार जबरन सेवानिवृत्त किए गए कार्यकर्ताओं को पेंशन जारी करे, खाली पदों पर नई भर्ती, पदोन्नति और समायोजना की प्रक्रिया पूर्ण करे, लेकिन इस सरकार को किसी की नहीं पड़ी। हम लोग कब से प्रदरेशन कर रहे हैं, लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं होती, उल्टा पुलिस हमें डरा- धमका कर भगा देती है।"
महिला वोटरों की बढ़ती संख्या और राजनीति की तस्वीर
गौरतलब है कि सूबे में महिला मतदाताओं की संख्या 46 प्रतिशत से अधिक है। बीती 8 जनवरी को चुनाव आयोग के द्वारा चुनाव की घोषणा करते समय चुनाव आयुक्त ने विशेष तौर पर बताया कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों की संख्या बढ़ी है।
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार यूपी में इस वक्त 15 करोड़ मतदाता है जिसमें से महिला वोटर्स की संख्या 6.98 करोड़ और पुरुष मतदाताओं की संख्या 8.04 करोड़ है। इसके अलावा राज्य में 8,853 ट्रांस वोटर है। पांच राज्यों में होनेवाले चुनावों में उत्तर प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या में सबसे अधिक बढ़त देखी गई है। पिछले चुनाव के बाद से 52 लाख नये वोटर जुड़े हैं।
2017 में यूपी में कुल 14.16 करोड़ वोटर थे। इसमें 6.46 करोड़ महिला और 7.7 करोड़ पुरुष थे। हालांकि महिलाओं की वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा था। वर्ष 2007 के चुनाव तक महिला का वोट प्रतिशत पुरुषों से कम था। इस चुनाव में पुरुष मतदाताओं का वोट प्रतिशत 49.31 और महिलाओं ने 41.92 रहा। पर 2012 के चुनाव में महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ा। चुनाव में 60.28 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया। जबकि पुरुष मतदाताओं के वोट का प्रतिशत 58.68 प्रतिशत था। तब से विधानसभा चुनाव में महिलाओं के मतदान प्रतिशत बढ़ा ही रहा है।
जहां चुनाव में महिलाओं के मतदान प्रतिशत बढ़ रही है, वहीं चुनाव में महिला उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत बहुत अच्छा नहीं रहा है। वर्ष 2017 चुनाव में 151 महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ी थी, पर 40 महिलाएं ही जीत पाई। 2012 में प्रमुख दलों की 153 महिला उम्मीदवारों में सिर्फ 35 जीतकर विधानसभा पहुंची थी। यानि महिलाओं की जीत का प्रतिशत कम है। लेकिन बावजूद इसके वे चुनाव जीताने में जरूर कारगर हैं।
सीएसडीएस के आंकडो के मुताबिक 2007 में बसपा को महिलाओं के सबसे ज्यादा 32 फीसदी वोट मिले थे, तो बसपा सुप्रीमो मायावती सत्ता में पहुंची थी। इसके बाद 2012 के चुनाव में महिलाओं ने सपा को सबसे ज्यादा 31 प्रतिशत वोट मिले। 2017 मे महिलाओं के रिकॉर्ड 41 फीसदी वोट हासिल कर बीजेपी सत्ता की दहलीज तक पहुंची थी।
कुलमिलाकर देखें तो महिलाओं का चुनाव में बढ़ता प्रतिनिधित्व उनकी जागरूकता का ही परिणाम है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी भले ही अभी बराबर की न हो, लेकिन उनकी हिस्सेदारी बढ़ने से उनके मुद्दों पर ज्यादा चर्चा होने की संभावना जरूर बढ़ी है। उम्मीद है कि आगे आने वाले समय में बराबरी का लंबा रास्ता भी महिलाएं तय कर ही लेंगी।
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