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तीन तलाक़ विधेयक: कांग्रेस अधिक सावधानी क्यों बरत रही है?

पार्टी 2018 के आगामी विधानसभा चुनावों और 2019 के आम चुनावों से पहले 'अल्पसंख्यक तुष्टीकरण' का दोषी होना नहीं चाहती है।
तीन तलाक़
न्यूज़क्लिक फोटो : नितेश कुमार

अपने "सॉफ्ट हिंदुत्व" दृष्टिकोण को बनाए रखने के लिए कांग्रेस 28 दिसंबर को लोकसभा में तीन तलाक़ विधेयक पर बहस करते हुए बहुत ज़्यादा सावधान रही। मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017, जो 'तलाक़-ए-बिद्दत' या त्वरित तलाक़ की प्रथा को आपराधिक बनाता है, को  इसके बाद निचले सदन अर्थात लोकसभा से पारित कर दिया गया।

सबसे पुरानी पार्टी के कई सांसदों ने सदन कार्य की विधायी सूची में विवादास्पद बिल को पेश करने पर विरोध करते हुए एक नोटिस दिया था, लेकिन उनमें से कोई भी अपने विरोध की आवाज़ नहीं उठा सकता क्योंकि - अगर सूत्रों पर विश्वास करें तो - "उन्हें पार्टी हाईकमान से आगे जाने को नहीं कहा गया।"

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला को संसद के बाहर इस मुद्दे पर बोलने का काम सौंपा गया था। अपने बयान में बचाव करते हुए कहा कि पार्टी इस विधेयक का विरोध नहीं करती है,लेकिन मुस्लिम महिलाओं के कल्याण के लिए इसे मज़बूत करने की माँग कर रही थी।

वास्तव में लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी यही बात दोहरायी। उन्होंने कहा कि "स्थायी समिति को बिल भेज दें। सभी पार्टी के लोग वहाँ मौजूद होंगे। कुछ समय दें, विधेयक पर विस्तृत परामर्श लेने की ज़रूरत है। हम सभी इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन कुछ समस्याएँ निश्चित ही हैं जिन्हें स्थायी समिति में सुधारा जाना चाहिए या सुधारा सकता है, हम एक साथ बैठ सकते हैं और समयबद्ध तरीके से निबटा सकते हैं।"

राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि ये पार्टी काफी सतर्क दिखाई देती हैं क्योंकि यह अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी - बीजेपी - को अगले साल कर्नाटक में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का सहारा देने का आरोप लगाने का कोई मौका नहीं देना चाहती है।

समीक्षकों ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि "कांग्रेस जानती है कि राजीव गाँधी सरकार के इस्लामिक कट्टरता के दबाव के कारण शाह बानो मामले में एक धर्मनिरपेक्ष आदेश उच्चतम न्यायालय के फैसले को उलट कर पाया था और मुस्लिम महिला (तलाक़ पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 को पारित कर दिया था, जो अदालत के इस फ़ैसले को कमज़ोर कर दिया और मुस्लिम महिलाओं को तलाक़ के बाद ईद्दत या 90 दिनों की अवधि के लिए गुज़ारा भत्ता का अधिकार दिया। परिणामस्वरूप बीजेपी और अन्य क्षेत्रीय पार्टियाँ वफादार कांग्रेस मतदाताओं के बड़े हिस्से को अपनी ओर करने में सक्षम हो गई।"

वे कहते हैं कि गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गाँधी का लगातार मंदिर का दौरा एक "बुद्धिमत्तापूर्ण योजना" का हिस्सा था। उन्होंने आगे कहा कि "सॉफ्ट हिंदुत्व को अपनाने की एक छवि बनाने की कवायद है, जो कांग्रेस अन्य चुनावों में भी खासकर कर्नाटक और 2018 में अन्य राज्यों में इसे आगे बढ़ना चाहती है।"

उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए सरकार से किसी तरह की लड़ाई करना नहीं चाहती है ताकि उसके एजेंडा को नुकसान पहुँचे।"और इसलिए असम में सिलचर के एक युवा कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव को तीन तलाक़ चर्चा में शामिल होने के लिए कहा गया था।"

उन्होंने उन महिलाओं की प्रशंसा करते हुए अपने वक्तव्य की शुरूआत की जिन्होंने "त्वरित तीन तलाक़ प्रथा" के ख़िलाफ़ साहस जुटाया। उन्होंने तलाक़ प्रक्रिया से गुज़र रही महिलाओं के मुआवज़े का भी मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि ये विधेयक त्वरित तीन तलाक़ को आपराधिक बनाता है लेकिन "अगर कोई पति जेल जाता है, तो मुआवज़ा कौन देगा?"

उन्होंने पूछा कि "क्या सरकार मुआवज़े का इंतजार करने वाली तलाक़शुदा महिलाओं को गुज़ारा भत्ता देने के लिए कोष बनाएगी?"

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