शिक्षा के भगवाकरण की तरफ भाजपा का एक और कदम

बीजेपी की हिंदुत्व के प्रचार में जारी मुहिम में सोमवार को एक और कड़ी जुड़ गयी है। १ अगस्त को बीजेपी ने यूपी में "सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता २०१७" आयोजित करने का ऐलान किया है जो कि अगस्त में आयोजित होगी। साथ ही उसकी तैयारी के लिए एक बुकलेट भी जारी की गई है । इस बुकलेट को ध्यान से पढ़नें से ये साफ़ नज़र आता है, इसे इतिहास को तोड़ मरोड़कर के पेश करने और हिंदुत्व के प्रचार के लिए लिखा गया है। अगर इस बुकलेट में लिखे कुछ प्रश्न और उत्तर इस प्रकार हैं –
प्रश्न - भारत को हिन्दू राष्ट्र किसने कहा ? उत्तर - डॉक्टर केशव हेडगेवार
प्रश्न - राम जन्म भूमि कहाँ स्थित है? उत्तर - अयोध्या
प्रचन - स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में किस धर्म का प्रतिनिधित्व किया ?- उत्तर - हिंदुत्व
प्रश्न - महाराज सुहेलदेव ने किस मुस्लिम आक्रांटा को गाजर मूली की तरह काट दिया था? उत्तर - सैय्यद सालार मसूद गाज़ी
अगर सिर्फ इन प्रश्नों और उत्तरों की ही बात की जाये तो इसमें हिन्दुत्व के प्रचार के साथ, इतिहास को तोड़ने मरोड़ने की कोशिश भी की गयी है। मसलन विवेकानंद को हिंदुत्व का प्रचारक दिखाना साफ़ तौर पर गलत है, क्योंकि उन्होंने शिकागो में हिंदुत्व का नहीं बल्कि हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। इसके अलावा इतिहास के साम्प्रदायीकरण की कोशिश भी इस बुकलेट में साफ़ तौर पर की गयी है। इस ७० पेज की बुकलेट मे हेडगेवार, वी डी सावरकर , दीन दयाल उपाध्याय और बाकी आरएसएस से जुड़े लोगों को नायकों की तरह प्रस्तुत किया गया है। साथ ही मोदी सरकार की नीतियों और योगी सरकार की नीतियों के बारे में भी उल्लेख किया गया है । गौर करने वाली बात ये है की इसमें "फर्स्ट इन इंडिया " के नाम से एक लिस्ट है , जिसमें भारत के पहले राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति , पहली महिला सीएम और बाकी लोगों का नाम तो है, पर पहले प्रधानमंत्री का नाम नहीं है।
यह प्रतियोगिता 26 अगस्त को दीनदयाल उपाध्याय के सौंवे जन्म दिवस पर यूपी में आयोजित की जाएगी और बीजेपी के स्टेट सेक्रेटरी सुभाष यदुवंश के अनुसार इसमें करीबन 90,0000 बच्चे हिस्सा लेंगे । मीडिया से बात करते हुए सुभाष यदुवंश नें कहा "नयी पीढ़ियों को इतिहास के उन नायकों और महापुरुषों के बारे में जानना ज़रूरी है , जिनके बारे में उन्हें अब तक बताया नहीं गया है। " उन्होंने ये भी कहा कि " ये तथ्य है कि आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संस्थान है। इस बुकलेट में लिखी गयी सारी बातें सत्य हैं”.
इन बातों के ठीक उलट इतिहासकार ये कहते रहें हैं, कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष में आरएसएस का कोई योगदान नहीं था। वी डी सावरकर के बारे में भी इतिहास बताता है कि उन्होंने 1906 से 1910 के बीच अंग्रेज़ों की खिलाफत तो की पर पकडे जाने और सजा सुनाये जाने के बाद 1911 से 1920 के बीच कई क्षमा याचिकाओं के अलावा, ब्रिटिश सरकार की तारीफ और उनका साथ देने की बातें तक लिखीं। उन्हें 1921 में बरी कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने कभी भी ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत नहीं की ।
इस बुकलेट से पहले भी बीजेपी सरकार इतिहास से छेड़ छाड़ की कोशिशें लगातार कर रही है। हल ही में राजस्थान बोर्ड की किताबों में सावरकर को गाँधी से बड़ा नायक दर्शाया गया। इस ही तरह राजस्थान यूनिवर्सिटी की किताबों में तथ्यों के विपरीत महाराणा प्रताप को हल्दी घाटी की लड़ाई का विजेता बताया गया है।
इन बातों के साथ ये जोड़ना भी ज़रूरी है, कि कांग्रेस के शासनकाल में भी कांग्रेस पर इतिहास के कुछ नायकों को ज़्यादा और कुछ को कम दर्शाने के आरोप लगते रहे हैं। कांग्रेस पर नेहरू गाँधी के परिवार का महिमा मंडन और मज़दूर किसानों के आंदोलनों जैसे , तेहभागा मूवमेंट , तेलंगाना संगर्ष और रॉयल नेवी म्युटिनी को कमतर दर्शाने के आरोप भी लगें हैं। इसमें भगत सिंह के मार्क्सवादी विचारों को भी इतिहास के पन्नों में उतनी जगह न मिलने के आरोप भी शामिल हैं। इस पूरी स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सत्ता में काबिज़ सरकारें अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए इतिहास से छेड़छाड़ करती रहीं हैं। पर हाल की सरकार द्वारा की जा रही इतिहास के साम्प्रदायीकरण की ये कोशिशें, पहले की कोशिशों से ज़्यादा खतरनाक साबित हो सकतीं है। इसके खिलाफ प्रचार करने की तो ज़रूरत है साथ ही साथ इतिहास को देखने के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की भी बहुत ज़रुरत है।
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