ओडिशा में बढ़ती हाथियों की मौत

दो दिन पहले ही वाइल्डलाइफ सोसाइटी ऑफ़ ओडिशा ( WSO ) ने ओडिशा में हाथियों की मौत को लेकर आकड़े निकाले. आकड़े यह दिखाते है कि पिछले नौ महीनो में अप्रैल 2018 से लेकर दिसंबर 18 तक ओडीशा में 67 हाथियों की मौत हो चुकी है. इनके मरने के कारण अलग अलग है. प्राकृतिक वजहों से मरने वाले हाथियों की संख्या 18 है,अज्ञात कारणों से मरने वाले हाथियों की संख्या 19 है, 4 शिकारी घटनाओ में मारे गए हैं. गड्ढे में गिरने से या छोटे तालाब में डूबने से 11 हाथियों की मौत हुई, 9 हाथियों की मौत बिजली के तारो की चपेट में आने से हुई और 6 हाथी रेलवे ट्रैक पार करते समय ट्रैन की चपेट में आने से मारे गए. ये मौतें 1 अप्रैल, 2018 से 18 दिसंबर, 2018 के बीच बताई गईं .
यह अकड़े दर्शाते हैं कि 45 फीसदी हाथियों की मौत अप्राकृतिक कारणों के कारण हुई.अप्राकृतिक कारणों से मौत होने का मतलब कि बाहरी कारणों से मौत होना जैसे रेलगाड़ी द्वारा कुचल देना. 28 फीसदी मौत का कोई कारण पता ही नहीं चल पाया. इसमें से कुछ अप्राकृतिक कारणों से मौत भी हो सकती है .
हाथियों के लिए ओडिशा भारत में शीर्ष पांच इलाके में से एक है. पर अफ़सोस की बात यह है निरंतर जमीन की बढ़ती खुदाई, औद्योगिकीकरण, खुले कुएं, जंगलो के पास से रेलवे पटरियों का होना हाथियों के लिए एक तरह का भूलभुलैय्या बनता जा रहा है .जिससे इनकी आबादी पर खतरा बढ़ता जा रहा है. इसलिए भारत जंगली हाथियों के आवास में पिछड़ता जा रहा है. पिछले दस वर्षों में केवल बिजली की लाइनों में गिरने से ओडिशा में 150 से अधिक हाथियों की दर्दनाक मौतें हुई हैं.
इंसानो की आबादी बढ़ने और इनके निवास स्थान में बढ़ोतरी की वजह से जंगलो का एरिया कम हो रहा है. जिसकी वजह से हाथी भी इंसानी बस्तियों में घुसने के लिए मजबूर हुए हैं. इन्ही सब कारणों से इंसान और हाथियों में संघर्ष बड़ गया है. इस गड़बड़ी ने पूरे राज्य में मानव-पशु संघर्ष को बढ़ाया है। ओडिशा के गरीब किसानों को इस तरह के संघर्ष के परिणामस्वरूप भारी फसल और संपत्ति की क्षति होती है। हर साल हम इस बढ़ते संघर्ष के परिणामस्वरूप लगभग 50 हाथियों की मौत के साथ-साथ अनगिनत मानव जीवन की क्षति को दर्ज करते हैं.
यह परियोजना चल रहे मानव-हाथी संघर्ष मुद्दों को संबोधित करने और जंगली हाथियों के खतरे को कम करने और सात प्रमुख जिलों में उनके निवास स्थान को कम करने का प्रयास करती है, जिनमें राज्य की 50% से अधिक आबादी हाथियों की आबादी है.
ओडिशा जिसे भारत में हाथियों का घर माना जाता है. अभी यही ओडिशा हाथियों के लिए कब्रिस्तान में बदलता दिखाई दे रहा है .ओडिशा में 1990 से अब तक 1400 हाथियों की अप्राकृतिक मृत्यु हो चुकी है। पिछले आठ सालों में 618 हाथियों की मौत हो चुकी है.
1990 से 2000 के बीच सलाना तकरीबन 33 हाथियों की मृत्यु हुई. लेकिन यह आंकड़ा 2000 और 2010 के बीच बढ़कर सालाना तकरीबन 46 हाथियों के मौत में बदल गया. इसके बाद यह 2010-11 से 2017-18 प्रति वर्ष 73 हाथियों के खतरनाक औसत तक पहुंच चूका है.
रेलवे ट्रैक्स हाथियों के लिए ओडिशा में मौत का जाल बनता जा रहा है. इस साल अप्रैल 2018 से अभी तक रेलवे ट्रैक पार करते समय 6 हाथियों की मौत हो चुकी है . ईस्ट कोस्ट रेलवे के अधिकारी नीरकर दास, डाउन टू अर्थ से बात करते हुए कहा कि " इन मौतों का जिम्मेदार रेलवे को बताना अनुचित होगा क्योकि यह वन्य विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वह स्टेशन मास्टर को सचेत करे कि ट्रैक के आस पास से हाथी गुजर रहे है ताकि ड्राइवर गाड़ी की रफ़्तार को धीमे या रोक दे " कही न कही इसमें रेलवे विभाग की भी चूक है क्योकि जंगलो के जगहों से रेलगाड़ी गुजरना बिलकुल सही नहीं है. जब तक रेलवे ट्रैक्स जंगलो के बीच से गुजरते रहेंगे तब तक ऐसी घटनाये रुकना बंद नहीं होंगी .क्योकि हाथियों की आवाजाह को नहीं रोक सकते लेकिन रेलवे ट्रैक्स की दिशा हम बदल सकते है. ओडिशा के झारसुगुड़ा जिले में एक ट्रेन की चपेट में आने से 16 अप्रैल को चार हाथियों की मौत हो गई थी.इसके पीछे कारण कई हैं: लगातार बढ़ती हुई मानव जनसंख्या, निवास स्थान का विनाश, तेज रेलगाड़ियों की आवृत्ति में वृद्धि, और शायद सबसे महत्वपूर्ण - अधिकारियों की ओर से लापरवाही .
बिजली की तारे हाथियों के लिए हानिकारक बनता जा रहा है. वाइल्डलाइफ सोसाइटी ऑफ़ ओडिशा ( wildlife society of odisha ) द्वारा निकाले गए आकड़े बतलाते है की 2000 के बाद से बिजली की तारो से मरने के कारण ओडिशा ने अभी तक 179 हाथी खो दिए है . 2000 और 2010 के बीच 77 हाथियों के मरने के मामलें बिजली की तारो से करंट लगने के कारण आये थे. इस अवधि के दौरान सरकार ने इसके सन्दर्भ में कोई कदम नहीं उठाये थे. खुली बिजली की तारे कभी कभी शिकारियों द्वारा भी हाथियों के शिकार के लिए भी इस्तेमाल की जाती है . इस साल अवैध शिकार के 4 मामले सामने आ चुके है जिसमे सभी में हाथियों के सींग गायब है .1 अप्रैल, 2010 से 27 अक्टूबर, 2018 के बीच हालात और भी ख़राब हो गए. अब तक राज्य में 102 हाथियों बिजली के तारो की चपेट में आ चुके है .
हाथियों का पर्यावरण में महत्व :
हाथियों को कीस्टोन प्राणी का जानवर कहा जाता है. शुष्क मौसम के दौरान हाथी पानी के लिए खुदाई करने के लिए अपनी सूंढ़ का उपयोग करते हैं। यह न केवल हाथियों को शुष्क वातावरण में जीवित रहने की अनुमति देता है बल्कि अन्य जानवर जो साथ में जंगल साझा करते है , उनके लिए भी शुष्क मौसम में जीवित रहने में मदद करता है. जब वन हाथी घास खाते है तो वो पेड़-पौधों के बीच में गैप छोड़ देते है जिसकी वजह से नयी वनस्पति को उगने में मदद मिलता है और छोटे जानवरो को चलने का रास्ता मिल जाता है. जहाँ भी हाथी रहते हैं वहां हाथी गोबर छोड़ते हैं जो उनके द्वारा खाए जाने वाले कई पौधों के बीजों से भरा होता है, जिसकी मदद से नयी जगहों पर भी नयी घास , पेड़, झाड़िया उग आती है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को काफी मदद मिलती है. और हाथियों का एक योगदान जंगल के विकास में भी है. अगर इनके अस्तित्व को खतरा आया , जो एक तरह से आ भी रहा है, तो जल, जंगल, ज़मीन को काफी नुकसान होगा और जंगलो का विकास होना बंद हो जायेगा और इसके साथ में मानव अस्तित्व पर भी खतरा आएगा .
वाइल्डलाइफ सोसाइटी ऑफ़ ओडिशा ने सरकार से प्रत्येक हाथी की मौत के मामले की जांच की मांग की और हाथियों के लिए ओडिसा का कब्रिस्तान में तब्दील होने का मुख्य कारण सरकार की जवाबदेही का आभाव होना बतया .ओडिशा सरकार ने 2011 में एक सर्कुलर में कहा था ' प्रत्येक हाथी की मौत को लेकर एक अनिवार्य जांच होनी चाहिए. लापरवाही के लिए विभाग के अधिकारी में जिम्मेदारी तय करें'. लेकिन WSO के मुताबिक अभी तक कुछ गार्ड को ससपेंड करने क आलवा कोई और कदम नहीं उठाये गए .
अगर ऐसे ही चलता रहा तो फारेस्ट डिपार्टमेंट और रेलवे डिपार्टमेंट एक दूसरे पर हाथी के मौत को लेकर इलज़ाम लगाते रहेंगे और इसका कुछ भी हल नहीं निकल पायेगा, इसी तरह हाथियों की मौत होती रहेगी जिसकी वजह से हाथी एक दिन ये विलुप्त हो जायेंगे . इसलिए हमको अपनी विकास की गाड़ी थोड़ी धीमी करके देखना चाहिए की विकास का पर्यावरण और उसके आस पास जानवरो पर क्या प्रभाव पड़ रहा है . क्योकि जितना हम जंगलो के आस पास मानव बस्ती बसाएंगे उतना ही जानवरो और मानव में टकराव बढ़ता जायेगा . और जंगल नष्ट होने से जानवर मानव बस्ती में तो आएंगे ही !
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