मुज़फ़्फ़रनगर: 2013 के दंगों के बाद किसान आंदोलन ने किया जाटों और मुसलमानों को फिर से एकजुट

लखनऊ: पश्चिमी उत्तरप्रदेश का जिला मुज़फ़्फ़रनगर साल 2013 में दंगों के खून से लथपथ था। रविवार को मुज़फ़्फ़रनगर ने गवर्नमेंट इंटर कालेज (जीआईसी) में एक विशाल ‘किसान महापंचायत’ का दीदार किया। यह विशाल किसान महापंचायत जाट-मुस्लिम गठबंधन और एकता दिखाने में सफल रही। जाट और मुस्लिम समुदायों के बीच में लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को पीछे छोड़ते हुए एक साथ आना, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्त्व वाली राज्य सरकार का मुकाबला करने के लिए नए उभरते आंदोलन के प्रति समर्थन को दर्शाता है।
‘कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं’
अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले यूपी चुनावों के लिए महापंचायत ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। यह जमावड़ा चुनावों से पूर्व भाजपा नेतृत्व को जाट-मुस्लिम गठबंधन को प्रतीकात्मक रूप से प्रदर्शित करने के मामले में सफल रहा है।
सुजरु जीआईसी मैदान से बमुश्किल 5 किमी की दूरी पर बसा एक मुस्लिम बहुल गाँव है। इस दौरान चर्चा का केंद्र बना हुआ था जहाँ पर भारी संख्या में गोल टोपी पहले मुस्लिमों ने किसानों का स्वागत किया। उन्होंने महापंचायत में शामिल होने के लिए देश भर के विभिन्न हिस्सों से पहुँच रहे किसानों के बीच में हलवा, पूरी और केले बाँटे।
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में 50 से अधिक लोग मारे गये थे और 50,000 लोग प्रभावित हुए थे। इस दंगे ने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच के रिश्तों को पूरी तरह से तोड़ डाला था। भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत जो कि पश्चिमी यूपी के एक प्रभावशाली किसान नेता हैं, ने आठ सालों के बाद एक बार फिर से दोनों समुदायों को एक एकजुट करने का काम किया है, और उन जख्मों को भरने का वादा किया है।
दिवंगत किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के पूर्व सहयोगी और एक सक्रिय मुस्लिम नेता गुलाम मोहम्मद जोला ने मुजफफरनगर दंगों के बाद से खुद को बीकेयू से अलग कर लिया था। भारतीय किसान मज़दूर मंच के नाम से एक नया किसान संगठन खड़ा कर लिया था। उन्हें भी बीकेयू अध्यक्ष नरेश टिकैत के साथ मंच के केंद्र में देखा गया।
न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में जोला का कहना था “आखिर कितने समय तक हम एक दूसरे के खिलाफ नफरत पाले रखेंगे? इस बात को आठ साल बीत चुके हैं। मुजफ्फरनगर के लोग नहीं चाहते कि इस शहर को 2013 के दंगों के लिए याद किया जाए, बल्कि वे इसे किसानों, जाटों और मुसलमानों के बीच की एकता के रूप में याद रखना चाहते हैं। दंगों की सभी बुरी यादों को भुलाकर हम एक बार फिर से एकजुट हो चुके हैं, और उम्मीद करते हैं कि यह भाईचारा कायम बना रहेगा और लोगों के बीच में पुल बनाने में मदद करेगा।”
उन्होंने आगे कहा कि मुसलमानों और जाटों के बीच का सांप्रदायिक मतभेद अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। उन्होंने कहा “अगर किसान ठोस समाधान चाहते हैं तो उन्हें एक झंडे तले आना होगा और मौजूदा शासन को शिकस्त देनी होगी।”
इस बीच, परिसर में “अल्लाह हू अकबर” और “हर हर महादेव” के नारे गुंजायमान हो उठे। जब राकेश टिकैत ने इन दो नारों का हुंकारा लगाया तो हजारों-हजार की संख्या में आई हुई भीड़ ने इसे दोहराया। उन्होंने कहा कि इन नारों को अतीत में भी एक साथ लगाया जाता था, और भविष्य में भी इन्हें जारी रखा जायेगा।
महापंचायत को संबोधित करते हुए टिकैत ने कहा “इन लोगों (भाजपा) ने हमेशा लोगों को बांटने का काम किया है और दंगों के लिए जिम्मेदार हैं। हमें उन्हें रोकना होगा। हमें रचनात्मक तरीके से काम करना होगा। हम अपने राज्य को उन लोगों के हाथों में नहीं सौंपेंगे जो दंगों के लिए जिम्मेदार हैं।”
कुछ इसी प्रकार की भावनाओं को प्रतिध्वनित करते हुए नरेश टिकैत ने कहा “हमें सत्तारूढ़ सरकार की विभाजनकारी राजनीति से बाहर निकलना होगा। 2013 में हुए दंगों के बाद से हमारे रिश्तों में एक मोटी लकीर खिंच गई थी, लेकिन समय आ गया है कि हम इससे आगे बढें।”
इस बीच महापंचायत में सैकड़ों की संख्या में दंगा पीड़ित भी मौजूद थे, जो आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने के प्रति कृत संकल्प थे। उन्होंने शपथ ली कि राजनीतिक आधार पर वे दोबारा से नहीं बटेंगे। उनका कहना था कि इस प्रकार के आयोजन से अंततः उन भीषण दंगों से उपजे गहरे घावों को भरने में थोड़ी मदद अवश्य मिलेगी।
दंगों के उपरांत हुए ध्रुवीकरण से भाजपा को काफी फायदा हुआ था और दंगों के एक साल बाद पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल की थी, क्योंकि जाट पार्टी के पक्ष में आ गये थे।
दंगों के शिकार आलम, जो कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आये हुए थे ने न्यूज़क्लिक को बताया “रविवार को हुई किसान महापंचायत ने योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी दोनों सरकारों को यह अहसास करा दिया है कि मुजफ्फरनगर में हिन्दू और मुसलमान एकजुट हो गए हैं।”
आलम ने दंगों में अपने भाई को खो दिया था और उनके घर को जला दिया गया था। पिछले आठ वर्षों में उन्होंने उन सारी चीजों को दोबारा से निर्मित किया है। उन्होंने कहा “मौजूदा स्थिति की मांग है कि यदि हम साथ मिलकर काम करना चाहते हैं तो हमें अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। एक साथ मिलकर हम न सिर्फ अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं बल्कि एक विशाल वोट आधार भी खड़ा कर सकते हैं।”
मस्जिदों के भीतर आराम करते किसान
आसिफ राही, जो कि मुजफ्फरनगर जिले में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए काम करने वाले एक एनजीओ, पैगाम-ए-इंसानियत के अध्यक्ष हैं, ने कहा “मुजफ्फरनगर को हमेशा से ही इसकी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए जाना जाता रहा है। रविवार की पंचायत में शहर के लोगों ने जिस प्रकार से सद्भावना की मिस्शल पेश की है, असल में यही असली मुजफ्फरनगर की पहचान है। कुछ लोगों ने अपने निहित स्वार्थ के लिए यहाँ पर भाईचारे को खत्म कर दिया था, लेकिन अब मुजफ्फरनगर के लोगों ने इस बात को समझ लिया है, और उन्होंने 2013 के दंगों से सबक सीख लिया है।”
आसिफ राही ने न्यूज़क्लिक को बताया कि महापंचायत की घटना के बाद जाटों और मुसलमानों के बीच की खाई निश्चित रूप से काफी कम हो जायेगी। जिस प्रकार से मुजफ्फरनगर के लोगों ने इस बात की परवाह किये बगैर कि वे किस धर्म के हैं, किसानों का तहे दिल से स्वागत किया है; मस्जिद, गुरूद्वारे खोल दिए, लंगरों का इंतजाम किया, ‘तहरी’, हलवा-पूड़ी बांटी, यह दिखाता है कि वे उन बदनुमा दंगों की यादों को मिटा देना चाहते हैं।
जाट और मुस्लिम दोनों ही समुदायों के प्रभावशाली लोगों ने कहा कि हर किसी को पता है कि मुजफ्फरनगर दंगों के कारण पश्चिमी यूपी में किसे चुनावी फायदा और राजनीतिक लाभ हासिल हुआ है। उनका कहना था कि किसी भी राजनीतिक दल की विभाजनकारी राजनीति अब वहां काम आने वाली नहीं है, क्योंकि हजारों लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ी है।
एक जाट नेता नरेश चौधरी ने कहा “यह बदलाव तो तभी से दिखने लगा था जब राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर रो पड़े थे और उसके तुरंत बाद जीआईसी मैदान में पहली पंचायत हुई थी। उस प्रकरण के बाद से न सिर्फ बुजुर्ग जाट बल्कि हमारे युवा भी इस वर्तमान सरकार से निराश हैं। हमने गलती की और उनके पक्ष में (भाजपा) मतदान किया, लेकिन हम इस गलती को आगामी चुनावों में नहीं दोहराने जा रहे हैं और न ही हमारा जुड़ाव ही अब कभी कमजोर पड़ने जा रहा है।”
इस लेख को अंग्रेजी में इस लिंक के जरिए पढ़ सकते हैं:
Muzaffarnagar: Farmers’ Movement Unites Muslims, Jats Again After 2013 Riots
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