मोदी सरकार लाभ कमाने वाली सरकारी कंपनी को समाप्त करने का प्रयास क्यों कर रही है?

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बाकायदा समाप्त करने के अपने प्रयासों को जारी रखते हुए अब साहिबाबाद स्थित सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) बंद होने की चुनौती का सामना कर रही है। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन इस सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (पीएसयू) के बंद होने के ख़तरे से हजारों श्रमिकों की आजीविका पर संकट गहराता नज़र आ रहा है।
इसको लेकर सीईएल के कर्मचारी सरकार द्वारा विनिवेश नीलामी को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। वे किसी तरह के दबाव में आना नहीं चाह रहे हैं। एक महीने से अधिक समय तक जारी रही श्रमिकों की अनिश्चितकालीन हड़ताल और उनके कारखाने के बाहर प्रदर्शन ज़ोर पकड़ कर रहा है। न्यूज़़क्लिक से बात करते हुए सीईएल में विरोध की अगुआई वाली संयुक्त समिति में शामिल टीके थॉमस ने कहा, "हम हर दिन विरोध कर रहे हैं,काम के दौरान हाथ पर काले रंग की पट्टी बांधे रहते हैं और विरोध के लिए बारी बारी से बाहर बैठते हैं। सरकार के ख़िलाफ़ इस विरोध का मुख्य कारण यह है कि हम दूसरों के विपरीत लाभकारी पीएसयू हैं, तो फिर सरकार ने निजी बोली दाताओं से इसमें विनिवेश और अपनी हिस्सेदारी का100 फीसदी बेचने के लिए आवेदन मांगना शुरू क्यों कर दिया है?"
कर्मचारी सीईएल को 'राष्ट्रीय संपत्ति' कहते हैं, लेकिन सरकार कंपनी में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच रही है। मार्च 2017 तक इस कंपनी का नेट वर्थ 50.34 करोड़ रुपए है, और पिछले साल लगभग 21 करोड़ का कारोबार हुआ था। विरोध करने वाले कर्मचारी कह रहे हैं कि सीईएल को नुकसान वाली अन्य सीपीएसई के साथ ग़लती से जोड़ दिया गया है। थॉमस ने कहा, "ये कंपनी लाभ में है, सरकार को नियंत्रण बनाए रखना चाहिए।"
थॉमस ने न्यूज़क्लिक को बताया, "वर्तमान में ये सरकार बोली दाताओं से आवेदन मांग रही है, पहले आख़िरी तारीख़ को 21 अक्टूबर रखा गया था, हालांकि अब इसे बढ़ाकर 15 नवंबर कर दिया गया है।" श्रमिक भी संदिग्ध स्थिति में हैं क्योंकि 'हितों की अभिव्यक्ति के आमंत्रण' के दस्तावेज़ में रुचि रखने वाले बोली दाताओं के लिए केवल दो ही प्रमुख पात्रता मानदंड हैं - मार्च 2018 तक उनके पास न्यूनतम 50 करोड़ रुपए का नेट वर्थ होना चाहिए, और 31 मार्च 2018 को कम से कम तीन वित्तीय वर्ष पूरा होना चाहिए। मोदी सरकार से नाराज़ इन श्रमिकों ने कहा है कि जिस भूमि पर कंपनी का कब्ज़ा है वह क़रीब 1000 करोड़ रुपए से अधिक की है। हालांकि, चूंकि सरकार का लक्ष्य पीएसयू का निजीकरण करना है ऐसे में उक्त भूमि की क़ीमत को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं, कई लोगों को इस बात का भय है कि कॉर्पोरेट हितों के लाभ के लिए यह किया जा रहा है।
अपने आंदोलन को तेज़ करते हुए इन श्रमिकों ने प्रधानमंत्री, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय को पत्र लिखा है, हालांकि इसका कोई फायदा नहीं हुआ है। इस विरोध से पीछे हटने से इनकार करते हुए कंपनी के श्रमिकों का कहना है कि वे सड़कों पर आंदोलन करेंगे और अगर आवश्यकता पड़ी तो क़ानून का सहारा लेंगे।
वर्ष 1974 में स्थापित इस कंपनी का वर्तमान में प्रशासनिक नियंत्रण वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) के तहत है जो विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन है। इस कंपनी ने दूरस्थ तथा पहाड़ी क्षेत्रों के विद्युतीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जहाँ निजी कंपनी जाना नहीं चाहते हैं। ये कंपनी फेज कंट्रोल मॉड्यूल (पीसीएम) जैसे उत्पादों का भी उत्पादन करता है जिसका इस्तेमाल मिसाइल सिस्टम में किया जाता है और इसका भारत की रक्षा के लिए रणनीतिक महत्व है।
मान लीजिए कि सीईएल को रणनीतिक उपकरणों तथा पूर्जों के विकास के लिए सराहा गया है ऐसे में इसे बेचने का प्रयास सरकार के इरादे को दर्शाता है। इस कंपनी को 650 करोड़ रुपए की परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार से अनुबंध भी किया गया है।
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