कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने में नाकाम हो रही शिवराज सरकार

माने या न माने कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने में शिवराज सरकार नाकाम हो रही है। रोते बिलखते परिजन और श्मशान और कब्रिस्तान पर अंतिम संस्कार की लंबी कतारें सरकार की लापरवाही का ही परिणाम है।
इन डरावने दृश्यों और जान से हाथ धोते मरीजों की मौत की जिम्मेदारी से भाजपा सरकार कैसे बच सकती है? अगर अभी यह हाल है तो कोरोना की तीसरी लहर से कैसे लड़ पायेगी सरकार। क्योंकि सरकार ने जिन अफसरों पर भरोसा किया वह उन्हें आंकड़ों की बाजीगरी दिखा रही है। जमीनी हकीकत यह है कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
सरकार अस्पताल में इलाज कराने से लेकर चिता तलाशते परिजनों को यही सलाह दे रही है कि कोरोना को हम सावधानी बरतकर रोक सकते हैं। मास्क लगाकर बाहर निकलने और सामाजिक दूरी बनाये रखने जैसी सीख देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है। सरकार को यह भी सोचना होगा कि इस महामारी से जो 2 फीसदी मरीजों की मौत हो रही है, उसकी भरपाई कोई दूसरा नहीं कर सकता है।
जब वर्ष 2018 दिसंबर में शिवराज सरकार नहीं बनी, तो उन्होंने यही कहा था, कि जनता की सेवा जारी रखेंगे। पिछले साल मार्च में जब शिवराज की वापसी हुई, तब भी उन्होंने जनता की सेवा का ही वादा किया था। लेकिन आज अस्पतालों में हालात बहुत खराब हैं। कोरोना मरीजों के परिजनों से अमानवीय लूट जारी है। ऑक्सीजन, इंजेक्शन और अस्पताल में बिस्तरों के लिए परिजनों से मोटी रकम वसूली जा रही है। परिजनों से अस्पताल में केवल बिस्तर के लिए 60 हजार रुपये तक वसूला जा रहा है।
ऑक्सीजन की कमी से मरीज दम तोड़ रहे हैं और राजधानी में सरकारी अस्पताल के अधिकारी और स्वास्थ्यकर्मी रेमडेसिविर इंजेक्शन आपस में बंदरबांट कर चोरी की कहानी रच देतेे हैं, जिसका खुलासा क्राइम ब्रांच की पूछताछ में अगले दिन तब होती है, जब हमीदिया अस्पताल के पूर्व अधीक्षक आई डी चौरसिया के साथ उनके 17 कर्मचारियों के रेमडेसिविर इंजेक्शन का बंदरबांट का खुलासा होता है।
जांच में पता चला , कि 15 अप्रैल की रात स्टोर कीपर तुलसी राम पाटनकर ने स्वास्थ्य विभाग के संभागीय अधिकारी के फोन पर दिए मौखिक निर्देश पर ही लगभग डेढ़ हजार इंजेक्शन वितरित करने की इंटरी कर दी और इसे आपस में बांट दिया।
उज्जैन में तो तीन बेटियां डॉक्टरों के कहने पर अपने मां के इलाज के लिए एक लाख रुपये में छह रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदती और मां की मौत के बाद पता चलता है, कि मां कोरोना संक्रमित नहीं थीं। मृत्यु प्रमाण-पत्र में कोरोना नेगेटिव का उल्लेख किया जाता है।
अंजलि,संजना और प्रिया ने अस्पताल में धरना देकर यह जानना चाहा, कि जब मां कोरोना संक्रमित नहीं थी, तब हमसे इंजेक्शन क्यों मंगवाया गया। संजना ने बताया, कि पहले ही पिता का साया हमारे सिर से उठ चुका था। अब मां भी डॉक्टरों की लापरवाही से साथ छोड़ गई। रोजाना बल्कि हर थोड़ी देर में इस तरह की ख़बरों से किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का मन विचलित होना स्वाभाविक है।
यहां तक कि शांतिवाहन और चिता के लिए मृतकों को 24 घण्टे का इंतजार करना पड़ रहा है। राजधानी भोपाल में जब ये हालत है, तो प्रदेश के दूसरे शहरों में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है, कि सरकार से हालात संभल नहीं रही।
दरअसल कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार की मंशा ही साफ नहीं है। क्योंकि सरकार ने इस बार स्वास्थ्य के बजट में कटौती तो की ही, साथ ही प्रस्तावित बजट भी खर्च नहीं कर पायी।
इसीलिए स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी और विस्तार नहीं हो पाई। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह बताते हैं, कि वर्ष 2020-21 के बजट में स्वास्थ्य विभाग के लिए 7557 करोड़ का प्रावधान किया गया था। पिछले साल कोरोना की लहर से सबक सीखते हुए बजट को बढ़ाने की बजाय भाजपा की शिवराज सरकार ने इसे घटा कर 6799 करोड़ कर दिया और इसे भी पूरा खर्च नहीं किया। साल भर में राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य विभाग पर केवल 4709 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए हैं।
उन्होंने कहा है कि इस 4709 करोड़ की राशि की तुलना यदि पूर्व की कमलनाथ सरकार से की जाये, तो उन्होंने वर्ष 2019-20 के बजट में 6817 करोड़ का प्रावधान किया था। इस तरह भाजपा सरकार ने कोरोना की महामारी के बावजूद पिछले साल की तुलना में 2108 करोड़ की कटौती की है।
आज इसी कटौती का खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। भाजपा सरकार ने केवल स्वास्थ्य बजट ही नहीं, बल्कि चिकित्सा शिक्षा के बजट में भी कटौती कर चिकित्सा शिक्षा के प्रसार में अवरोध खड़े किए र्हैं। पिछले साल चिकित्सा शिक्षा के लिए बजट में 2299 करोड़ का प्रावधान था, इसे भी घटाकर 2251 करोड़ कर दिया गया और इसमें से केवल 1409 करोड़ ही व्यय किया गया। यह वर्ष 2019-20 के बजट की तुलना में 681 करोड़ कम है, क्योंकि कमलनाथ सरकार ने 2090 करोड़ खर्च किए थे।
जन स्वास्थ्य अभियान के जुड़े अमूल्यनिधि ने बताया, कि इस वर्ष प्रदेश में कुल बजट में स्वास्थ्य बजट का हिस्सा आश्चर्यजनक ढंग से लगभग 8 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया गया। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं और सूचकांकों की दृष्टि से यह कटौती चिंताजनक है।
इसी तरह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए वर्तमान बजट में 3038 करोड़ किया गया , जो वर्ष 2020-21 के बजट अनुमान 3036 करोड़ से थोड़ा अधिक है, जबकि वास्तविक रूप से देखा जाये, तो यह बजट आवंटन में गिरावट है। कोविड-19 महामारी से सीख लेकर व कोविड-19 महामारी की परिस्थितियों के अनुसार स्वास्थ्य में बजट प्रावधान ज्यादा बढ़ाने की जरूरत थी। बजाय इसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मास्क लगाने की अपील करने रोड शो और स्वास्थ्य सत्याग्रह जैसे इवेंट कर लाखों रुपये खर्च कर देते हैं।
बहरहाल 21वीं शताब्दी के 21 वें वर्ष को मध्य प्रदेश के लोग याद रखेंगे। वे इन सब बातों को देख समझ रहे हैैं। वर्तमान सरकार को एक बात का ध्यान रखना होगा, कि धारणा और मत एक दिन में नहीं बनते। वर्ष 2023 बहुत दूर नहीं है। कोरोना की चेन तोड़ने के लिए लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध के साथ-साथ सरकार को जनता का पेट भरने और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए कई विकल्पों पर ध्यान देना होगा।
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