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कोबाड गांधी पुस्तक : पुरस्कार चयन समिति के तीन सदस्यों ने महाराष्ट्र साहित्य बोर्ड से दिया इस्तीफ़ा

सरकार के फैसले से आहत होकर और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में सदस्यों ने महाराष्ट्र साहित्य बोर्ड से इस्तीफ़ा दिया।
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मुंबई: महाराष्ट्र सरकार द्वारा कथित माओवादी विचारक कोबाड गांधी के संस्मरण के मराठी अनुवाद को दिया गया पुरस्कार वापस लिए जाने के फैसले के बाद पुरस्कार चयन समिति के तीन सदस्यों ने ‘‘लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अपमान’’ करने का हवाला देते हुए राज्य साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड से इस्तीफा दे दिया।    

डॉ. प्रज्ञा दया पवार, नीरजा और हेरंब कुलकर्णी ने महाराष्ट्र साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड से इस्तीफा दे दिया है। ये उस समिति के सदस्य थे, जिसने कोबाड गांधी की ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: ए प्रीजन मेमॉयर’ के मराठी अनुवाद के लिए अनघा लेले को यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार 2021 देने की छह दिसंबर को घोषणा की थी।    

हालांकि, सरकार ने न केवल पुरस्कार वापस लिए जाने की घोषणा की बल्कि पुरस्कार चयन समिति को भी भंग कर दिया है।     कोबाड के माओवादियों से कथित संबंध होने के कारण पुरस्कार देने के फैसले की सोशल मीडिया पर आलोचना के बाद सरकार ने यह फैसला किया था।    

डॉ. पवार ने अपने बयान में कहा, ‘‘ महाराष्ट्र सरकार का चयन समिति को भंग करने का फैसला एकतरफा है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अपमान है। मैंने महाराष्ट्र साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड से इस्तीफा देने का फैसला किया है।’’    

कुलकर्णी ने कहा, ‘‘ गांधी की किताब पर कोई प्रतिबंध नहीं है, तब भी महाराष्ट्र सरकार ने अनुवादित संस्करण को पुरस्कार देने का अपना फैसला वापस लिया। सरकार का ऐसा रवैया भविष्य में ऐसी प्रक्रिया का हिस्सा बनने से लोगों को हतोत्साहित करेगा। अगर बोर्ड हमारा समर्थन नहीं कर रहा तो बेहतर यही है कि मैं इस्तीफा दे दूं। कृपया मेरा इस्तीफा स्वीकार करें।’’    

नीरजा ने भी इस्तीफे की यही वजह बतायी। उन्होंने कहा, ‘‘अगर बोर्ड हमारे साथ नहीं खड़ा है और हमारा समर्थन नहीं कर रहा है, तो बेहतर यही है कि हम इसकी सदस्यता से इस्तीफा दे दें। मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करती हूं और मैं सरकार के फैसले से बेहद दुखी हूं।’’    

सरकार द्वारा सोमवार को जारी एक बयान के अनुसार, चयन समिति के निर्णय को ‘‘प्रशासनिक कारणों’’ से उलट दिया गया, और पुरस्कार (जिसमें एक लाख रुपये की नकद राशि शामिल थी) को वापस ले लिया गया है।


वो 2009 में जेल गए थे। हालांकि वो हमेशा से कहते आ रहे हैं कि उनका प्रतिबंधित पार्टी से कोई संबंध नहीं है। 

गांधी ने आतंकी हमलों को अंजाम देने की साजिश रचने के आरोप में देशभर की जेलों में एक दशक बिताया। जून 2016 में, दिल्ली की एक अदालत ने गांधी को यूएपीए के सभी आरोपों से बरी कर दिया और अक्टूबर 2019 में उन्हें सूरत जेल से जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पिछले साल कथित तौर पर जारी एक बयान में कोबाड गांधी की पार्टी सदस्यता रद्द करने की घोषणा की थी। इसमें उन पर संगठन से खुद को दूर करने, "आध्यात्मिकता के मार्ग का समर्थन करने" और "यह सुझाव देते हुए कि मार्क्सवाद में कोई अच्छी बात नहीं रही" का आरोप लगाया गया था।" 

पार्टी ने बयान में लिखा था कि“गांधी ने नक्सलबाड़ी की राजनीति के सिद्धांतों का पालन करते हुए 50 से अधिक वर्षों तक काम किया है, पहले सीपीआई (एमएल) केंद्रीय समिति के सदस्य के रूप में, बाद में महाराष्ट्र राज्य के रूप में समिति के नेता और बाद में भाकपा (माओवादी) पोलित ब्यूरो के सदस्य के रूप में। 

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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