कोलंबिया की एक मुख्य नदी में तेल का ख़तरनाक रिसाव

2 मार्च को कोलंबिया के बर्रंकादेर्मेजा के ग्रामीण इलाक़े में स्थित लिज़मा की एक नहर में लिज़मा 158 नाम के तेल के कुएँ में दरार आ गयीI 16 दिन बाद भी इसमें से रिसाव जारी है, जिससे यहाँ के निवासियों और पर्यावरण पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैंI 550 बैरल कच्चा तेल से तीन नहरें और सोगामोसो नदी प्रदूषित हो गयी है, यह नदी कोलंबिया की सबसे बड़ी नदी मग्दलेना में जाकर मिलती हैI इस रिसाव से अब तक अनगिनत मछलियाँ और स्थानीय पशु मारे जा चुके हैंI साथ ही इससे इलाके की प्रमुख पानी के स्रोत्र दूषित और बर्बाद हो चुके हैं और आस-पास के समुदायों में इससे बीमारियाँ भी फैलने लगी हैंI
एल्किन काला ने स्थानीय मीडिया को बताया, ‘मेरे पास खाने को कुछ नहीं बचाI हमारी पूरी ज़िन्दगी (मग्दलेना) नदी से जुड़ी हुई थी और अब वो प्रदूषित हो गयी है’I
इन कुओं को चलाने वाली कोलम्बियाई तेल कंपनी इकोपेट्रोल ने कहा है कि, ‘रिसाव पर काबू पा लिया गया है’I कंपनी ने साथ ही यह भी बताया है कि वो सफाई का काम भी शुरू कर रहे हैंI लेकिन 16 दिन बाद भी कंपनी ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं और सरकारी अधिकारी भी ख़ामोशी से बैठे तमाशा देख रहे हैंI सामाजिक और पर्यावरण आंदोलनों व संगठनों के दबाव में मुख्यधारा के मीडिया ने हाल ही में इस रिसाव पर ध्यान दियाI
यह भी पता चला है कि इकोपेट्रोल को लिज़मा 158 तेल नाम के तेल कि कुएँ समेत लिज़मा क्षेत्र के 5 अन्य कुओं की तकनीकी ख़राबियों के बारे में पता थाI वे जानते थे कि इन्हें नियमों के अनुसार बनाया और सील नहीं किया गया हैI
कोलंबिया के ग्रामीण, क्षेत्रीय और कृषि क्षेत्रों में काम करने वाले दर्जनों जन आंदोलनों और संगठनों के एक संयुक्त पटल, अग्ररियन, पेसेंट, एथनिक एंड पीपल्स समिट, ने एक घोषणापत्र में यह कहा है कि: ‘खादानों और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स से प्रभावित समुदाय सालों से इन प्रोजेक्ट्स द्वारा उत्पन्न खतरों पर अपनी चिंता व्यक्त करते आ रहे हैंI लेकिन इनकी चिंताओं के जवाब में इन्हें कंपनियों की तरफ से सिर्फ ख़ामोशी और प्रशासन की तरफ से दमन ही मिलता हैI इनके कुछ नेताओं की हत्या कर दी गयी है और कुछ को सामाजिक व पर्यावरण सम्बन्धी अन्याय पर बोलने पर धमकियाँ मिलती हैं’I
उन्होंने एकोपेट्रोल और राज्य प्रशासन पर नज़ाराअंदाज़ी का आरोप भी लगाया: ‘कोलंबिया मग्दलेना मेडियो में लिज़मा 158 नाम के तेल के कुएँ की दरार से जो राष्ट्रीय आपदा आई है वह इस बात का सबूत है कि विभिन्न समुदायों की माँगों और चिंताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिएI इकोपेट्रोल और उसके सब-कांट्रेक्टर, यह जानते हुए कि कुओं में तकनीकी खराबी है, इस आपदा के इंतज़ार में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उचित समझाI जबकि इस आपदा से प्रभावित समुदाय दशकों की भूख, गरीबी और बीमारी की गर्त में धकेले जा चुके हैंI हालात रिसाव के 20 दिन गुज़र जाने के बाद और भी गंभीर हो चले हैं, तेल लगातार स्थानीय जल स्रोतों में रिस रहा है, ख़तरनाक केमिकल्स निकल रहे हैं और आपदा को रोकने के कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे, जिससे नेशनल हाइड्रोकार्बन एजेंसी और नेशनल अथॉरिटी ऑफ़ एनवायरमेंटल लाइसेंसिज़ के कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठते हैं’I
लामबंदी
जब से यह रिसाव शुरू हुआ है स्थानीय संगठन, समुदाय, सामाजिक आन्दोलन, मज़दूर संगठन और पर्यावरण संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और यह माँग कर रहे हैं कि सरकारी इकाईयाँ इस आपदा के प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाएँI
उनकी यह भी माँग है कि इकोपेट्रोल, नेशनल अथॉरिटी ऑफ़ एनवायरमेंटल लाइसेंसिज़ तथा इस मुद्दे से जुड़े तमाम सरकारी तंत्र तुरंत सभी फ्रैकिंग गतिविधियों को बंद करेंI यह प्रक्रिया हाल ही में कोलंबिया के विभिन्न इलाकों में शुरू की गयी है और ऐसा मन जा रहा है कि इसकी वजह से रिसाव में तेज़ी आई हैI
सोगामोसो नदी के पास रहने वाले लोगों की कष्टों को इस रिसाव ने और भी बढ़ा दिया हैI इस रिसाव की जगह से कुछ ही दूरी पर साल 2014 में हिद्रोसोगामोसो नाम का एक विशाल बाँध बनाया गयाI इससे आस-पास की आबादी पर सामाजिक और आर्थिक असर पड़े और अब भी जारी हैंI इन्हें बाँध की वजह से विस्थापित होना पड़ा और मछली पकड़ना व खेती जैसे अपने आजीविका के साधन खो बैठेI इससे इस क्षेत्र के वनस्पति और पशुओं सम्बन्धी जैविक विविधता पर भी प्रतिकूल असर पड़ाI हिद्रोसोगामोसो के विरोध में शामिल एक स्थानीय समुदाय के नेता मिगेल एंजेल पबों को साल 2012 में गायब करवा दिया गयाI
यह तमाम संगठन जानते हैं कि यह आपदाएँ प्राकृतिक नहीं हैं और इनका सीधा सम्बन्ध आर्थिक ढाँचे से है: ‘मौजूदा आर्थिक व्यवस्था न सिर्फ संसाधनों का अत्यधिक दोहन करती है बल्कि जहाँ कहीं भी यह विशाल प्रोजेक्ट आते हैं वहाँ लोगों को विस्थापित कर दिया जाता है, इससे जैविक विविधता को नुक्सान पहुँचता है, इकोसिस्टम बर्बाद हो जाते हैं, जंगल काटे जाते हैं, वायु-परिवर्तन के दुष्प्रभाव और बदत्तर होते हैं और हिंसा भी होती हैI यही मौजूदा हथियारबंद संघर्ष की वजहों में से एक है’I
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