किसान परिवारों को सबसे ज़्यादा वित्तीय सहायता की ज़रूरतः नाबार्ड सर्वे

नेशनल बैंक ऑफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के एक सर्वे के मुताबिक़ कुल किसान परिवारों में से लगभग सतासी प्रतिशत छोटे तथा सीमांत किसान(भूमि अधिग्रहण 2 हेक्टेयर या इससे कम) थे। नाबार्ड द्वारा कराए गए पहले अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वे 2016-17 में ये बात भी सामने आई कि 48 प्रतिशत ग्रामीण परिवार कृषक परिवार थे और शेष गैर-कृषक परिवार थे।
इतनी बड़ी संख्या में कृषि क्षेत्र पर ग्रामीण परिवारों के निर्भर रहने के बावजूद यह पता चला कि मुख्य गतिविधियों के लिए 14.4 प्रतिशत ग़ैर-कृषक परिवारों को प्रशिक्षण देने की तुलना में केवल 8.5 प्रतिशत कृषक परिवारों को ही प्रशिक्षण दिया गया था।
2016 में ये सर्वेक्षण किया गया था जिसमें देश के 29 राज्यों में 40,327 कृषक और ग़ैर-कृषक ग्रामीण परिवारों के 1.88 लाख लोगों का सैम्पल शामिल था। सर्वेक्षण में क़र्ज़, बचत, निवेश, बीमा, पेंशन और भुगतान के मामले में ग्रामीण परिवारों के विभिन्न वित्तीय समावेश पहलुओं को शामिल किया गया था।
ऋण की स्थिति
इस सर्वेक्षण के मुताबिक़ सर्वे के समय (2016 में) अगर किसी परिवार के पास कोई बकाया ऋण था तो उसे क़र्ज़दार माना गया। ये बात सामने आई कि ग़ैर-कृषक परिवारों (42.8 प्रतिशत) की तुलना में कृषक परिवारों (52.5 प्रतिशत) में ऋणाग्रस्तता की घटनाएं ज़्यादा थीं। यह कृषक परिवारों के लिए वित्तीय सहायता की उच्च आवश्यकता के बारे में बताता है। कुल मिलाकर, साल 2016 में कुल ग्रामीण परिवारों में से लगभग 47.4 प्रतिशत पर बकाया क़र्ज़ पाया गया था।
तेलंगाना में पिछले चार वर्षों में लगभग 4,000 किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आए। यहां 79 प्रतिशत किसान क़र्ज़दार हैं जो सभी राज्यों में सबसे ज़्यादा है। किसानों के क़र्ज़ के मामले में तेलंगाना के बाद आंध्र प्रदेश (77 प्रतिशत), और कर्नाटक (74 प्रतिशत) है। अरुणाचल प्रदेश (69 प्रतिशत), मणिपुर (61 प्रतिशत),तमिलनाडु (60 प्रतिशत), केरल (56 प्रतिशत), और ओडिशा (54 प्रतिशत) जैसे राज्यों में भी यह काफी ज़्यादा था। सर्वे के समय इन राज्यों में आधे से ज़्यादा परिवार क़र्ज़दार पाए गए।
आय
सर्वेक्षण के अनुसार किसान परिवारों की औसत मासिक आय 8,931 रुपए थी जबकि ग़ैर-कृषक परिवारों की आय मात्र 7,269 रुपए थी। हालांकि, इस श्रेणी के राज्यों में एक उल्लेखनीय भिन्नता देखी गई थी। पंजाब जैसे राज्यों में कृषक परिवारों की औसत मासिक आय 23,133, रुपए थी। इसके बाद हरियाणा (18,496 रुपए)और केरल (16,927 रुपए) था जिसकी आय सबसे अधिक थी। दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रति कृषक परिवार की औसत मासिक आय 7,000 से कम थी जो इन राज्यों में कृषि के निराशाजनक स्थिति को दर्शाते हैं।
सर्वेक्षण में सामने आया कि 50 प्रतिशत से अधिक किसान परिवारों की आमदनी के दो स्रोत थे, जबकि क़रीब 40 प्रतिशत आय के लिए दो से अधिक स्रोतों पर निर्भर थे। इसके विपरीत, ग़ैर-कृषक परिवारों के लगभग चौथे-पांचवें हिस्से में अधिकांश का केवल एक ही आय का स्रोत पाया गया।
व्यय
इस सर्वे में कृषक परिवारों और गैर-कृषि परिवारों की औसत मासिक व्यय क्रमशः 7,152 रुपए और 6,187 रुपए दर्ज किया गया। कुल मिलाकर ग्रामीण परिवारों का औसत मासिक व्यय 6,646 रुपए था।
विभिन्न राज्यों में पंजाब और केरल पदानुक्रम में शीर्ष पर था जहां प्रति परिवार 11,000 रुपए सबसे अधिक मासिक व्यय दर्ज किया गया था। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में मासिक व्यय प्रति परिवार बेहद कम था। इन राज्यों में प्रति परिवार मासिक व्यय 6,000 रुपए से कम था। ग्रामीण परिवारों ने अपने कुल उपभोग व्यय का लगभग 51 प्रतिशत खाद्य पदार्थों पर किया था जबकि शेष 49 प्रतिशत गैर-खाद्य पदार्थों पर किया।
निवेश
सर्वे में भारत के ग्रामीण परिवारों की निम्न निवेश क्षमताओं का खुलासा किया गया। केवल 10.4 प्रतिशत कृषक परिवारों ने 2015-2016 के दौरान किसी प्रकार का निवेश किया, जबकि ग़ैर-कृषक ग्रामीण परिवारों ने सबसे कम निवेश किया है जो सर्वे के समय केवल 8.7 प्रतिशत था। कुल मिलाकर, कुल ग्रामीण परिवारों में से केवल 9 .5 प्रतिशत परिवारों ने पिछले एक साल में निवेश किया है, जिसमें औसत वार्षिक निवेश राशि मात्र 60,529 रूपए थी।
सर्वेक्षण में यह भी खुलासा हुआ कि केवल 26 प्रतिशत कृषक परिवारों और 25 प्रतिशत ग़ैर-कृषक परिवारों को साल 2016 में एक या अन्य प्रकार के बीमा के तहत कवर किया गया था।
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