जलवायु परिवर्तन : बड़े पेड़ लेकिन कम होती ताक़त

लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से एक दिलचस्प चीज़ सामने आयी है - यह देखा जा रहा है कि अब पेड़ जल्दी उगतें हैं और बड़े भी होते हैं लेकिन उनका धनत्व कम होता जा रहा है। लकड़ी की चौड़ाई कम होने की वजह से पेड़ अपनी ताक़त खो रहे हैं और इससे उन्हें वायु,तूफ़ान ,बर्फ आदि नुक्सान पहुँचा सकते हैं। सैकड़ों सालों से लड़की का इस्तेमाल ईंधन और निर्माण के लिए किया गया है। इसीलिए कमज़ोर पेड़ों की वजह से इन उद्देशों के लिए लड़की के स्थाईत्व और उपयोगिता पर भी असर पड़ेगा।
हाल ही में आयी रिपोर्ट के अनुसार पिछले 100 सालों से लड़की की चौड़ाई कम हो रही है और इसी वजह से उसकी ताक़त भी कम होती जा रही है। मध्य यूरोप में पाए गए लड़की के नमूने दिखाते हैं कि फर ,बीच और बलूत के पेड़ों की लड़की की चौड़ाई कम हुई है। बताया गया है कि 1870 से अब तक चौड़ाई 8 से 12% तक कम हुई है लेकिन पेड़ों की संख्या और अकार में में बढ़ौतरी हुई है। तापमान के बढ़ जाने से फोटोसिंथेसिस की गति बढ़ जाती है और पेड़ों के बढ़ने की अवधि का विस्तार होता है। बढ़ौतरी की अवधि में विस्तार के साथ हवा में कार्बन डाइऑक्साइड में बढ़ौतरी और वायुमंडलीय जमावट की वजह से नाइट्रोजन की सप्लाई में बढ़ौतरी की वजह से पेड़ों की संख्या बढ़ती है। अध्ययन यह बताते हैं कि कीटनाशकों के ज़्यादा इस्तेमाल की वजह से ज़मीन में और वाहनों की वजह से हवा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ गयी है। यह लड़की की चौड़ाई कम होने का मुख्य कारण है। पहले के अध्ययन कीटनाशकों के ज़्यादा इस्तेमाल से लकड़ी की चौड़ाई में कमी की बात कर चुके हैं।
बढ़ौतरी के समय सीमा में विरद्धि का यह भी मतलब होता है कि पेड़ ज़्यादा तेज़ी से बढ़ते हैं जिसका असर शहरों के पेड़ों पर ज़्यादा होता है , जो कि ग्रामीण क्षेत्रों के पेड़ों से 25 %ज़्यादा तेज़ी से उगते हैं। सुनने में ऐसा लग सकता कि ग्लोबल वॉर्मिंग से अच्छा अभी हो सकता है। लेकिन सिर्फ ज़्यादा बढ़ौतरी और पेड़ों का बड़ा होना ,पेड़ों पर ग्लोबल वॉर्मिंग का असर देखने का पैमाना नहीं हो सकता। लकड़ी का कमज़ोर होना और उसकी चौड़ाई में कमी के आलावा पेड़ों में कार्बन की भी कमी होने लगी है। इससे पेड़ों की पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने की योग्यता में कमी आती है। पेड़ों की यह योग्यता उस दौर में पर्यावरण का संतुलन बनाने के लिए ज़रूरी है जब लगातार औद्योगीकरण और वाहनों में बढ़ौतरी हो रही है। पेड़ लगताना पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिए सबसे प्राकृतिक तरीका है इसीलिए पेड़ों की कार्बन डाइऑक्साइड कम करने की योग्यता में कमी पर्यावरण के लिए खतरनाक है। यह भी कहा जा रहा है कि पेड़ों की संख्या बढ़ जाने से बॉयोमास उत्पादन में भी बढ़ौतरी होती है। लेकिन पेड़ों की बढ़ौतरी के अनुपात में बॉयोमास उत्पादन बहुत कम है।
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