…तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है
1950 में जन्में पंजाब के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह ‘पाश’ की हर कविता, सल्तनत के नाम एक बयान है और आज भी प्रासंगिक है। शायद कल से भी ज़्यादा। पाश धार्मिक संकीर्णता के कट्टर विरोधी थे। धर्म आधारित आतंकवाद के खतरों को उन्होंने अपनी कई कविताओं में बेहद धारदार शब्दों में लिखा है। यही वजह थी कि महज 38 साल की उम्र में 23 मार्च 1988 को उनके ही गांव में खालिस्तानी आतंकवादियों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। उनकी एक बेहद प्रभावशाली कविता।
अपनी असुरक्षा से
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है ।
हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है
गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे क़ुरबानी-सी वफ़ा
लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है
गर देश का अमन ऐसा होता है
कि क़र्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
क़ीमतों की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से ख़तरा है
गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है ।
(साभार : कविता कोश)
इसे भी पढ़े: जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएँगे
इसे भी पढ़े: बलात्कार : उसके बाद मर्द पूछता है– मज़ा आया?
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।