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तिरछी नज़र: नेपाल के जेन-ज़ी को भारत के जेन-ज़ी से सीखना चाहिए

नेपाल के युवाओं को हमारे युवाओं से सीख लेनी चाहिए थी। युवा हमारे यहाँ भी बहुत हैं। बेरोज़गारी भी बहुत है। महंगाई भी बहुत है। राजनेताओं और बड़े सेठों के बच्चे हमारे यहाँ भी ऐश का जीवन जीते हैं, लेकिन…
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तस्वीर प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार : NBT

नेपाल में गद्दी पलट गई। मतलब तख्ता पलट हो गया। या फिर कहें कि तख्ता पलट कर दिया गया। वही हो गया जो हम हमारे यहाँ हर समय गाते रहते हैं, 'सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है'। लेकिन वहाँ के नौजवानों को पता है, गीत गाने से कुछ नहीं होता है। सिंहासन खाली करवाना पड़ता है। जनता को जा कर सिंहासन खाली करवाना पड़ता है। 

ऐसा इससे पहले बांग्लादेश में भी हुआ, और उससे पहले श्रीलंका में। तीनों देशों में बेरोजगारी थी, महंगाई थी। और वहाँ के हुक्मरानों के बच्चे, एक प्रतिशत लोगों के बच्चे, खूब ऐश का जीवन जी रहे थे जबकि जनता गरीबी में जी रही थी। तो गरीब जनता आ गई, सिंहासन खाली कराने।

लोगों को डर है, हमारे यहाँ भी ऐसा ही न हो जाये। लेकिन उनका यह डर बेकार ही है। हमारे यहाँ ऐसी स्थिति है ही कहाँ। बेरोजगारी तो बिल्कुल ही नहीं है। हर हाथ को रोजगार मिला हुआ है। हर हाथ में फोन है और हर फोन में रील है। और रील बनाने और देखने का रोजगार है। वहाँ की सरकार ने यही गड़बड़ी की। कई सारे सोशल प्लेटफार्म बंद कर दिये। नौजवान बेकार हो गए। हाथ में फोन तो है पर फोन में कुछ नहीं है। रील देखे तो कहाँ देखे। रील बना तो ले पर पोस्ट कहाँ करे।

पर हमारे यहाँ सरकार ऐसा कुछ नहीं करती है। एक दो बार चीन से दुश्मनी के चलते टिक टाक को बंद भी किया था तो जल्दी ही खोल दिया। सरकार से लोगों की बेचारगी देखी नहीं जाती हैI सरकार को पता है, बेरोजगारों के लिए यह एक रोजगार है। रील बनाना और रील देखना। फोन से सम्बंधित एक और रोजगार सरकार जी की पार्टी ने लोगों को दिया हुआ है। फॉरवर्ड करने का। आई टी सेल के मैसेज फॉरवर्ड करने का। सुनते हैं, एक फॉरवर्ड के दो रुपये मिलते हैं। एक दिन में सौ मैसेज भी फॉरवर्ड कर दिये तो दो सौ रुपये तो पक्के। 

नेपाल के युवाओं को हमारे युवाओं से सीख लेनी चाहिए थी। युवा हमारे यहाँ भी बहुत हैं। बेरोजगारी भी बहुत है। महंगाई भी बहुत है। राजनेताओं और बड़े सेठों के बच्चे हमारे यहाँ भी ऐश का जीवन जीते हैं। किसी का बेटा क्रिकेट का सेठ बना बैठा है तो किसी के बच्चे पेट्रोल में एथनोल की मिलावट कर रहे हैं। किसी ने तो अपना चिडिया घर ही बना डाला है। और हम चार पांच हज़ार करोड़ की शादी देख मस्त हो रहे हैं। उसकी रील, वीडियो से फॉरवर्ड फॉरवर्ड का खेल खेल रहे हैं।

नेपाल के युवाओं को हमसे जो सीखना चाहिए वह है सहन शक्ति। हमारी सब कुछ सहने की शक्ति। नेपाली हमारे भाई हैं। वे पहले हिन्दू राष्ट्र थे और उन्होंने उसका चोला 2008 में उतार फेंका था। हम हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हैं। इस मामले में वे हमसे सीनियर हुए। शेष सभी मामलों में हम उनसे सीनियर हैं। हम उनके बड़े भाई हैं। हम उनके ही नहीं, सभी पड़ोसियों के बड़े भाई हैं। उन पर खूब धौंस जमाते हैं।

हाँ तो, नेपाल के युवा हम से सीख सकते हैं कि महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी को कैसे सह सकते हैं। कैसे अपने यहाँ के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बर्बाद होते देख सकते हैं जबकि लगभग सारे राजनेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं। नेपाली यूथ हमारे यूथ से सीख सकता है कि बेगानी शादी में दीवाना कैसे हुआ जाता है। 

बस एक कमी है नेपाल में। नेपाल में हिन्दू मुस्लिम करना जरा मुश्किल है, नहीं तो वहाँ भी ऐसा सरकार उखाड़ने वाला जेन ज़ी नहीं होता। मतलब जेन ज़ी तो होता पर हमारे यहाँ जैसा होता। धार्मिक गतिविधियों में लगा रहता। कावड़ यात्रा, भंडारे आदि में लगा रहता और अगर फुरसत मिलती तो किसी मुसलमान के यहाँ जा कर उसके बरतन भांडे और फ्रिज चेक कर आता। किसी मस्जिद या मज़ार के बाहर गालियां बक आता। 

वजह साफ है। वजह है कि वहाँ, नेपाल में मुसलमान जरा कम ही हैं। बस थोड़े से ही हैं, और वह भी तराई के इलाके में। अगर वहाँ भी मुसलमान थोड़े ज्यादा होते तो वहाँ की सरकार को शासन करने में आसानी हो जाती। वह भी हमारी सरकार की तरह बस हिन्दू मुस्लिम करा देती और आराम से गद्दी पर बैठी रहती। फिर गराबी, महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य, सभी मुद्दे नेपथ्य में चले जाते और सरकार लम्बे समय तक तख्त पर बैठी रहती। हर साल सरकार जी नहीं बदलते। 

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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