आपको किस बात से आपत्ति है 370 से या मुसलमानों से?

मैं आपके जश्न में शामिल नहीं। आपको कश्मीर की चिंता है और मुझे कश्मीरियों की। आप का वास्ता केवल कश्मीर की ज़मीन से है और मेरा वहां के अवाम से। मेरे लिए देश या प्रदेश का मतलब केवल भूगोल नहीं है, कुछ सरहदें नहीं हैं, बल्कि उसमें रहने वाले लोग हैं। इसलिए मैं जम्मू कश्मीर को लेकर चिंतित हूं।
हैरत है कि महाराष्ट्र, गुजरात से यूपी, बिहार के लोगों को मारकर भगाने वाले और मार खाकर भागने वाले भी कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले से खुश हैं। महाराष्ट्र मराठों का कहने वाली शिवसेना जैसी पार्टियों को भी कश्मीर के विशेष दर्जे, अनुच्छेद 370 से आपत्ति है। और उनसे मार खाकर लौटने वाले हम ‘भइया’ भी कह रहे हैं कि हां, 370 की वजह से हम वहां नहीं बस पा रहे थे। जिनके पास दिल्ली,नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव, चेन्नई, बेंगलुरु में तो छोड़िए अपने गांव-कस्बे तक में एक इंच ज़मीन नहीं है वे भी डल झील और लाल चौक पर प्लाट खरीदने का मैसेज व्हाट्सऐप कर रहे हैं।
जिन लोगों पर यूपी, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड में रोज़गार नहीं है, वे कह रहे हैं कि हां, इसी ‘धारा-370’ की वजह से जम्मू-कश्मीर में उद्योग धंधे नहीं लग पा रहे हैं। लोगों को रोज़गार नहीं मिल पा रहा है। कोई इन लोगों से पूछे कि बिना 370 की ‘बाधा’ के उनका प्रदेश कौन सी तरक्की कर रहा है। कितने उद्योग-धंधे और रोज़गार पैदा हो रहे हैं।
पूरे देश में इस समय रोज़गार का संकट है। उद्योग-धंधे मंदी का शिकार हैं। नोटबंदी के बाद से तो जो रहे-सहे छोटे उद्योग-धंधे भी थे वे भी चौपट हैं। आपने ख़बर तो पढ़ी होगी कि देश का ऑटोमोबाइल सेक्टर इस समय भारी मंदी का शिकार है। तीन महीने में ही दो लाख कर्मचारियों की छंटनी हो चुकी है। इस साल अप्रैल तक ही 18 महीने के दौरान देशभर के 271 शहरों में 286 शोरूम बंद हो गए हैं।
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तो कोई बताए कि कौन सी बाधा देश में इन उद्योग-धंधों को डुबो रही है। किस वजह से रोज़गार का संकट है?
देश के गृह मंत्री अमित शाह भी संसद में जब 370 के नुकसान और उसे हटाने के फायदे गिनाते हैं तो कुछ इसी तरह की बातें करते हैं। लेकिन वे यह नहीं बताते कि शेष भारत में जो बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार की दिक्कते हैं उनका कारण क्या है। क्या वे कश्मीर की वजह से हैं!
ख़ैर आपको ये भी मालूम होना चाहिए कि केवल जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं था। केवल वहीं बाक़ी भारत के लोगों के ज़मीन ख़रीदने पर रोक नहीं थी। बल्कि देश के अन्य राज्य भी हैं जिन्हें विशेष परिस्थितियों की वजह से विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है।
10 राज्यों को है विशेष राज्य का दर्जा
जम्मू-कश्मीर समेत अब तक देश के 29 राज्यों में से 11 को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। अन्य राज्य हैं: अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश,सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, नगालैण्ड, त्रिपुरा, उत्तराखंड, मिजोरम और असम। अब जम्मू-कश्मीर को इससे बाहर किए जाने पर यह संख्या 10 रह गई है। आपको ये भी मालूम होना चाहिए कि 5 अन्य राज्य भी ये विशेष दर्जा मांग रहे हैं।
1969 में पहली बार पांचवें वित्त आयोग के सुझाव पर 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला। इनमें वे राज्य थे जो अन्य राज्यों की तुलना में भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक संसाधनों के लिहाज से पिछड़े थे। नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र,कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर इन राज्यों की पहचान की।
विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा दी गई राशि में 90% अनुदान और 10% रकम बिना ब्याज के कर्ज के तौर पर मिलती है। जबकि दूसरी श्रेणी के राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा 30% राशि अनुदान के रूप में और 70% राशि कर्ज के रूप में दी जाती है। इसके अलावा विशेष राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स आदि में भी रियायत मिलती है। केंद्रीय बजट में प्लान्ड खर्च का 30% हिस्सा विशेष राज्यों को मिलता है। विशेष राज्यों द्वारा खर्च नहीं हुआ पैसा अगले वित्त वर्ष के लिए जारी हो जाता है।
14वें वित्त आयोग के बाद अब यह दर्जा पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के अलावा किसी और को नहीं मिल सकता है। केंद्र के मुताबिक आंध्र प्रदेश के अलावा बिहार, ओडिशा, राजस्थान व गोवा की सरकारें केंद्र सरकार से विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रही हैं।
हैरत है कि बिहार जो अपने लिए विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है, उसके भी बाशिंदे भी जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा छिनने पर खुश हैं। जो आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे की लगातार मांग कर रही है, जिसका कहना है कि पूर्ण राज्य के बिना दिल्ली का पूर्ण विकास संभव नहीं, वह और उसके मुखिया भी दूसरे राज्य के पूर्ण दर्जे का ख़त्म किए जाने का समर्थन कर रहे हैं।
जो उत्तराखंड खुद विशेष राज्य का लाभ रहा है, उसके मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि अनुच्छेद 370 खत्म होने से जम्मू-कश्मीर में विकास को बढ़ावा मिलेगा। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के निर्णय से जम्मू कश्मीर में विकास को बढ़ावा मिलेगा और वहां के लोग देश की मुख्य धारा में शामिल हो सकेंगे। क्या वे ये कहना चाहते हैं कि विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने पर राज्य के लोग मुख्य धारा से अलग हो जाते हैं।
370 ही नहीं 371 के बारे में भी जानिए
अनुच्छेद 370 ही नहीं 371 भी आपको विशेष अधिकार देता है और इसी के तहत कई राज्यों में बाहरी व्यक्ति के ज़मीन खरीदने पर रोक है।
नगालैंड में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते। 371ए के मुताबिक नगालैंड का स्थायी नागरिक ही वहां जमीन खरीद सकता है। यहां के आदिवासियों की जमीनें सुरक्षित रखने के लिए ये प्रावधान रखा गया है।
मिजोरम में भी बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते। यहां के आदिवासी ही सिर्फ जमीन के मालिक हो सकते हैं। हालांकि यहां उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार मिजोरम भूमि अधिग्रहण पुनर्वासन और पुनर्स्थापन एक्ट 2016 लेकर आई। इस एक्ट के मुताबिक राज्य सरकार उद्योग धंधों के लिए भूमि अधिग्रहित कर सकती है।
सिक्किम सबसे आखिर 1975 में भारत में शामिल हुआ। अनुच्छेद 371एफ के मुताबिक यहां की जमीनों पर राज्य सरकार का अधिकार है। विलय से पहले अगर किसी की निजी जमीन भी रही हो तो उस पर अब राज्य सरकार का अधिकार है। इस अनुच्छेद ने राज्य सरकार को कई दूसरे अधिकार भी दे रखे हैं।
हिमाचल प्रदेश में भी बाहरी लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है। भू राजस्व अधिनियम 1972 की धारा 118 के तहत हिमाचल प्रदेश में बाहरी और गैर किसान जमीन नहीं खरीद सकते। इसी नियम के तहत कुछ मामलों में गैर किसानों को आवासीय सुविधा के लिए जमीन मिल सकती है, लेकिन इसके लिए पहले उन्हें औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सरकार से अनुमति लेनी होगी।
उत्तराखंड में भी बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर रोक है। राज्य सरकार ने उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धारा 154के मुताबिक 12 सितंबर 2003 तक जिन लोगों के पास राज्य में जमीन है, वो 12.5 एकड़ तक जमीन खरीद सकते हैं, लेकिन जिनके पास जमीन नहीं है वो इस तारीख के बाद सिर्फ 250 वर्गमीटर से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकते। इस अधिनियम के जरिये बिल्डर के हाथों में जमीन जाने से रोका गया है।
कुछ राज्यों ने अपनी खेती वाली जमीन की ख़रीद-फरोख़्त पर रोक लगाई हुई है, ताकि खेती लायक ज़मीन बची रहे। तमिलनाडु में खेती में निवेश पर रोक नहीं है, लेकिन वहां 59.95 एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं खरीदी जा सकती। इसे नॉन एग्रीकल्चर लैंड में डीसी के आदेश पर बदला जा सकता है, लेकिन ये साबित करना होगा कि उस जमीन पर पिछले 10 वर्षों से खेती नहीं हो रही थी।
कर्नाटक में सिर्फ किसान ही खेती की जमीन खरीद सकता है। राज्य में 25 लाख सालाना से ज्यादा की आमदनी वाले को किसान नहीं माना गया है। कर्नाटक लैंड रेवेन्यू एक्ट 1964 के मुताबिक इंडस्ट्रियल ऑर्गेनाइजेशन जमीन खरीद सकते हैं लेकिन पहले उन्हें सरकार से अनुमति लेनी होगी।
महाराष्ट्र में भी एक किसान ही खेती वाली जमीन खरीद सकता है। अगर किसी शख्स के पास देश के किसी भी हिस्से में खेती वाली जमीन है तो उसे यहां भी किसान माना जाएगा। हालांकि यहां भी 54 एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकते।
केरल में कोई भी जमीन खरीद सकता है, लेकिन यहां भी सीलिंग रखी गई है। केरल लैंड रिफॉर्म एक्ट 1963 के मुताबिक एक वयस्क गैरशादीशुदा शख्स 5 एकड़ तक जमीन रख सकता है। दो से ज्यादा और पांच से कम सदस्य वाला परिवार 10 एकड़ तक जमीन रख सकता है। पांच से ज्यादा सदस्य होने पर परिवार हर बढ़े सदस्य के लिए एक एकड़ ज्यादा जमीन रख सकता है, लेकिन फिर भी 20एकड़ से ज्यादा नहीं हो सकता।
आख़िरी बात : अब बताइए कि आपको जम्मू-कश्मीर से क्या शिकायत है। इस रियासत ने अपनी मर्जी से भारत में विलय स्वीकार किया था और भारत की सेना पहुंचने से पहले यहां के बाशिंदों ने खुद पाकिस्तान के हमले का जवाब दिया था। और जानकार कहते हैं कि आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने का नहीं, बल्कि भारत से जोड़ने के पुल का नाम था।
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आप सच नहीं बताएंगे, लेकिन मैं बताऊं कि आपत्ति आख़िरकार किस बात से है। आपकी आपत्ति सिर्फ़ इस बात से है कि ये मुस्लिम बहुल राज्य है। और हिन्दुत्वादी राजनीति ने हमारे दिमागों में मुसलमानों के खिलाफ जिस कदर ज़हर बोया है, उसमें हमें यही लगता है कि मुसलमान बाहरी हैं, दुश्मन हैं और इन्हें इस देश में रहने का अधिकार नहीं है और अगर रहना है तो दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रहना होगा।
सिटीजनशिप एक्ट (नागरिकता संसोधन विधेयक) और असम में लागू किए गए एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) के पीछे भी लगभग यही मानसिकता और मकसद काम कर रहा है। एनआरसी को तो अब पूरे देश पर लागू करने की बात की जा रही है।
बीजेपी-आरएसएस की नफ़रत की राजनीति इस कदर परवान चढ़ी है कि हमें अब मुसलमानों की मॉब लिंचिंग भी सामान्य बात लगने लगी है। यही आज इस देश का ‘न्यू नार्मल’ है। लेकिन हमें ये बात हमेशा याद रखनी होगी, जो राहत इंदौरी ने अपने अशआर में भी कही है :
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है...
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है...
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