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अंग्रेजी में देहली की बजाय दिल्ली लिखे जाने से क्या बदलेगा?

'देश में इससे कहीं बड़े दूसरे बहुत से मसले हैं, एक सांसद को इस पर अपना समय बेकार नहीं करना चाहिए। वैसे भी यह मसला सिर्फ एक राजनीतिक शिगूफा है। हमें इस पर बेवजह का विवाद नहीं खड़ा करना चाहिए। इस मांग का ऐतिहासिकता से कोई लेना देना नहीं है।' - एस इरफान हबीब
लाल किला

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने संसद में दिल्ली के अंग्रेजी नाम की स्पेलिंग बदलने की मांग की है। दिल्ली को हिंदी और अंग्रेजी में अलग-अलग तरीके से लिखे जाने पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजी में देहली की बजाय दिल्ली लिखा जाना चाहिए। 

उन्होंने तर्क दिया है कि देहली नाम में दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की झलक नहीं मिलती है, इसलिए इसे बदला जाय। उन्होंने जल्द ही गृह मंत्रालय को इस संदर्भ में एक प्रस्ताव भेजने की बात भी कही है।

खबरों के मुताबिक, गोयल ने कहा कि राजधानी का नाम दिल्ली किस महत्व की वजह से पड़ा, यह निश्चित रूप से तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन लोकप्रिय धारणाएं बताती हैं कि दिल्ली का नाम मौर्य राजवंश के शासक राजा दिल्लू से मिला, जिन्होंने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में इस शहर का नाम खुद के नाम पर रख दिया था। वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि दिल्ली का नाम दहलीज शब्द से मिला, क्योंकि दिल्ली को एक तरह से सिंधु-गंगा के मैदानों के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता था।

उन्होंने अपनी मांग की वजह समझाते हुए कहा कि दिल्ली नाम में इस शहर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत झलकती है, जबकि देहली शब्द सुनने पर वह एहसास नहीं होता है। साथ ही इसकी वजह से लोगों के अंदर एक तरह का भ्रम भी पैदा होता है, क्योंकि कुछ लोग इसे देहली कहते हैं, तो वहीं ज्यादातर लोग दिल्ली कहते हैं। 

उन्होंने बताया कि वैसे दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ या हस्तिनापुर रखे जाने की मांग पहले भी उठाई जा चुकी है, लेकिन इस समय वह यह नहीं कह रहे कि ऐसा कोई बदलाव हो, लेकिन कम से कम राजधानी के नाम की स्पेलिंग में सुधार करके एकरूपता तो लाई ही जा सकती है।

पहले भी बदले कई शहरों के नाम की स्पेलिंग

नवभारत टाइम्स के मुताबिक गोयल ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाने के लिए किसी शहर या जगह का नाम बदला गया हो। आजादी के बाद से ही कई बड़े शहरों के नामों को कानून पास करके बदला गया है। 

उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि जैसे कोचीन का नाम बदलकर कोच्चि रखा गया, बॉम्बे का नाम मुंबई किया गया, इंदुर का नाम इंदौर, पूना का पुणे, बनारस का वाराणसी या कलकत्ता का नाम बदलकर कोलकाता किया गया। 

इसी तरह कई शहरों के नामों की स्पेलिंग भी सही की गई। जैसे Kawnpore को Kanpur लिखा जाने लगा, Monghyr को Munger और Orissa को Odisha किया गया। इसी तर्ज पर उन्होंने दिल्ली के नाम की स्पेलिंग में सुधार करने की मांग रखी है। 

गृह मंत्रालय का रुख 

गोयल ने कहा कि इस बारे में वह अन्य राजनीतिक दलों से भी चर्चा करेंगे और एकराय कायम करने की कोशिश करेंगे। उसी के बाद वह गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजेंगे।

हालांकि अपनी मांग के बाद गोयल ने जानना चाहा कि क्या गृह मंत्रालय दिल्ली की स्पेलिंग में सुधार करेगा? 

इस पर गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि गृह मंत्रालय की नाम परिवर्तन के मामले में भूमिका सिर्फ एनओसी देने तक ही सीमित है। बाकी कार्य राज्यों या दूसरे विभागों के जिम्मे होता है। मंत्रालय अपने स्तर पर कोई बदलाव नहीं करता है। उसे प्रस्तावों को देखना होता है।

हुआ विरोध 

दिल्ली का नाम बदलने को लेकर राष्ट्रीय राजधानी में सियासी घमासान शुरू हो गया है। आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पर लगातार निशाना साध रही है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया,'हमें दिल्ली का नाम नहीं, दिल्ली वालों की ज़िंदगी बदलनी है, उनकी ज़िंदगी बेहतर बनानी है। लोगों का विकास दिल्ली का नाम बदलने से कैसे होगा? लोगों की ज़िंदगी में ख़ुशहाली तब आएगी जब हम उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा, उनको अच्छा इलाज, उनके लिए अच्छी सड़क, बिजली, पानी का इंतज़ाम करेंगे।'

चांदनी चौक विधायक अलका लांबा ने ट्वीट कर लिखा था कि 'बीजेपी नेताओं के मुताबिक दिल्ली का नाम बदलते ही दिल्ली का भाग्य भी बदल जायेगा। नाम बदलते ही जादू होगा। दिल्ली का प्रदूषण छुमंतर हो जायेगा। पीने के पानी और बिजली की कोई कमी नहीं रहेगी। बेटियां खुद-ब-खुद सुरक्षित हो जायेंगी। अपराध खत्म हो जायेगा। सबकी बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।'

वहीं, आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से ट्वीट कर लिखा है, 'विजय गोयल जी, जब हिंदी में "गोयल" तो अंग्रेजी में "Goel" क्यों? आप भी अपना नाम बदल कर VIJAY GOYAL कर दो । बाकी खानदान का भी नाम बदल दो। संस्कृति का मामला है।'

क्या कहते हैं इतिहासकार?

इतिहासकारों का मानना है कि यह मांग गैर जरूरी है। इस मांग को मान लेने से भी दिल्ली में कुछ बदलने वाला नहीं है। स्पेलिंग में बदलाव, बेवजह भ्रम पैदा करेगा। वैश्विक स्तर पर मैप, एटलस, दूसरे जरूरी दस्तावेजों के रिकॉर्ड में नाम की स्पेलिंग बदलना आसान नहीं होता है। इसके लिए बेवजह की कसरत होगी। 
आम लोगों के बीच देलही व दिल्ली दोनों नामों का चलन है। अंग्रेजी में कुछ लोग देहली बोलते हैं तो कुछ लिखते भले ही देहली हों बोलते दिल्ली ही हैं। हिंदी में ज्यादातर लोग दिल्ली लिखते और बोलते हैं। 

इतिहासकार एस इरफान हबीब कहते हैं कि लोग दोनों नामों का उच्चारण सहजता से कर लेते हैं। इसके साथ कोई विवाद भी नहीं है। ऐसे में फेरबदल का मतलब क्या है। देश में इससे कहीं बड़े दूसरे बहुत से मसले हैं, एक सांसद को इस पर अपना समय बेकार नहीं करना चाहिए। वैसे भी यह मसला सिर्फ एक राजनीतिक शिगूफा है। हमें इस पर बेवजह का विवाद नहीं खड़ा करना चाहिए। इस मांग का ऐतिहासिकता से कोई लेना देना नहीं है। 

आपको बता दें कि दिल्ली दुनिया के कुछ पुराने शहरों में से एक है। यहां की पुरानी इमारतें कई राजाओं और बादशाहों की दास्तां बताती हैं। महाभारत काल में इंद्रपस्थ नाम से इसका जिक्र मिलता है। खिलजी, तुगलक, मुगलों की राजधानी रही है। बाद में यह अंग्रेजों की राजधानी बनी।

इस शहर को कई बार उजाड़ा और बसाया भी गया है। अभी यह देश की राजधानी है। इस दरम्यान इसे इंद्रप्रस्थ, किला राय पिथौरा, किलकोरी, सिरी, तुगलकाबाद, शाहजहानाबाद और दिल्ली जैसे तमाम नामों से जाना गया।

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