Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

राजनीति का नया हथियार : निजी अपमान

प्रधानमंत्री मोदी ने निजी चोटों को राष्ट्रीय विमर्श में बदलकर इसे परंपरा बना दिया है। इस परंपरा का नुकसान आम जनता को उठाना पड़ता है बेरोज़गारी, अपराध, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे गौण हो जाते है।
BIHAR BAND

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 सितम्बर 2025 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘बिहार राज्य जीविका निधि साख सहकारी संघ लिमिटेड’ का शुभारंभ किया। इस शुभारंभ में प्रधानमंत्री ने वही किया, जिसका डर था। प्रधानमंत्री ने एक सप्ताह पहले की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए कहा- “मां ही तो हमारा संसार होती है, मां ही हमारा स्वाभिमान होती है। बिहार में कुछ दिनों पहले जो हुआ, उसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। बिहार में आरजेडी-कांग्रेस के मंच से मेरी मां को गालियां दी गईं। ये गालियां सिर्फ मेरी मां का अपमान नहीं है, ये देश की मां-बहन-बेटी का अपमान है।”

प्रधानमंत्री 28 अगस्त 2025 को दरभंगा में घटी उस घटना का वर्णन कर रहे थे, जब सभा समाप्त होने के बाद एक पिकअप वैन चालक ने मंच पर चढ़कर प्रधानमंत्री के बारे में अपशब्द कहे। इस ड्राइवर को पुलिस ने 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया था।

प्रधानमंत्री हों या कोई आम व्यक्ति – किसी को गाली देना, धमकाना, मारना-पीटना, या किसी के घर-दफ़्तर में जबरन घुसने जैसे कृत्य सही नहीं ठहराए जा सकते। अफसोस की बात है कि भारत में झगड़े की शुरुआत हो या पुलिस की पूछताछ—अक्सर मां-बहनों की गाली से होती है। यहां तक कि बहुत नज़दीकी जताने का तरीका हो या कुछ पेशेवर तबकों की बातचीत—वहां भी शुरुआत मां-बहन की गाली से ही होती है। संसद से लेकर सड़क और मीडिया की बहसों तक, हम नेताओं के मुंह से गालियां सुन चुके हैं। ऐसे में एक लंपट ड्राइवर (जिस पर पुलिस पहले ही कार्रवाई कर रही है) की गाली को प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा इस कदर प्रमुखता देना, उनकी कमजोरी को दर्शाता है।

बच्चियों की हत्याएं और चुप्पी

जिस दिन (28 अगस्त 2025) प्रधानमंत्री को गाली दी गई, उसी दिन पटना के मनेर थाना क्षेत्र में एक नाबालिग लड़की की लाश पेड़ से लटकी मिली। उसकी मां कुछ ही दिन पहले इस दुनिया से विदा हो चुकी थी और पिता हैदराबाद में मजदूरी करता था। वह लड़की लकड़ी लेने घर से कुछ दूर महिनावाँ सोन बांध के पास गई थी, लेकिन घर नहीं लौटी।

27 अगस्त को पटना के ही गर्दनीबाग के अमलाटोला कन्या मध्य विद्यालय में पांचवीं कक्षा की छात्रा शौचालय में जली हुई मिली। यह भी बच्चियाँ किसी की बेटी, किसी की बहन थी। ये घटनाएं बिहार की राजधानी पटना में हुईं, न कि किसी दूरदराज़ गांव में। लेकिन प्रधानमंत्री ने इस पर एक शब्द तक नहीं बोला। अगर उन्हें 28 अगस्त को दरभंगा में दी गई गाली याद रही, तो 27 और 28 अगस्त को हुई इन बच्चियों की मौत वे कैसे भूल गये? 

2 सितम्बर को प्रधानमंत्री जब भावुक होकर अपनी बात रख रहे थे, तब बिहार बीजेपी अध्यक्ष और वहां मौजूद कई महिलाओं की आंखों में आंसू दिख रहे थे। लेकिन उन्हें मुज़फ्फरपुर की विभा कुमारी की वो चित्कार क्यों नहीं सुनाई दी, जिसकी चार वर्षीय बेटी की लाश 2 सितम्बर को खेत से बरामद हुई? चार साल की बच्ची 1 सितम्बर को सुबह 10 बजे अपनी मां से कहकर निकली थी कि वह आंगनवाड़ी जा रही है, लेकिन वह घर वापस नहीं लौटी। उसके पिता मिंटू कुमार ने बताया कि शाम को पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन बच्ची की लाश अगले दिन ही घर से थोड़ी दूर मिली। प्रधानमंत्री जी, आपको गाली देने वाले शख्स को पुलिस ने 24 घंटे में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन बच्ची को 24 घंटे बाद सिर्फ लाश के रूप में खोजा जा सका। 

इन बच्चियों की आवाज न पुलिस-प्रशासन सुन पा रहा है, न ही जनप्रतिनिधि। इस तरह की दर्दनाक घटनाएं आए दिन हो रही हैं। सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री जी को गाली पर इमोशनल होने वाले पुरुष-महिला नेता इन क्रूर हत्याओं पर भी कभी आक्रोशित होंगे? इनके लिए बिहार या भारत बंद का ऐलान कब किया जाएगा?

चुनावी हथियार

13 नवम्बर 2022 को प्रधानमंत्री ने हैदराबाद में कहा था- “लोग मुझसे पूछते हैं कि थकते नहीं हो? अब कल मैं सुबह दिल्ली में था, फिर कर्नाटक, फिर तमिलनाडु, फिर रात को आंध्र में, अभी तेलंगाना में। मैंने उनसे कहा कि रोज़ मैं ढाई-तीन किलो गाली खाता हूं और परमात्मा ने ऐसी रचना की है कि ये सारी गालियां मेरे भीतर जाकर न्यूट्रिशन में बदल जाती हैं।”

जब प्रधानमंत्री गालियों से ऊर्जा प्राप्त करने की बात कर चुके हैं, तो इस बार वही गालियां उन्हें ऊर्जाहीन कैसे कर गईं? वह कोई चुनावी सभा नहीं, बल्कि सरकारी कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा- “मैं जानता हूं कि इसकी जितनी पीड़ा मेरे दिल में है, उतनी ही तकलीफ़ मेरे बिहार के लोगों को भी है। आज जब मैं बिहार की लाखों माताओं-बहनों के दर्शन कर रहा हूं, तो अपना दुख आपसे साझा कर रहा हूं... देश और बिहार की सत्ता इन्हें अपने खानदान की विरासत लगती है। इन्हें लगता है कि कुर्सी इन्हीं को मिलनी चाहिए। लेकिन आपने, देश की जनता-जनार्दन ने एक गरीब मां के कामदार बेटे को आशीर्वाद देकर प्रधानसेवक बना दिया।”

प्रधानमंत्री ने सरकारी योजना के मंच से सत्ता और कुर्सी की बात छेड़कर साफ़ कर दिया कि असली मकसद बिहार चुनाव है। इसी रणनीति के तहत बीजेपी महिला मोर्चा ने 4 सितम्बर को बिहार बंद का आह्वान भी कर दिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने हैदराबाद में यह भी कहा था- “वो लोग मेरे ख़िलाफ बोलने के लिए गालियों की डिक्शनरी प्रकाशित करते हैं। मैं बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहता हूं कि ऐसे बयानों से दुखी या नाराज़ मत होइए। बस उनका मज़ा लीजिए, अच्छी चाय पीजिए और इस उम्मीद में सो जाइए कि अगले दिन कमल खिलेगा।” फिर इस बार प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकर्ताओं को वही सलाह क्यों नहीं दी? उन्होंने सत्ता और कुर्सी के लिए मां की गाली को चुनावी हथियार क्यों बनाया?

मां की गाली से आहत होकर बीजेपी वालों ने बिहार बंद के दौरान जिस तरह से महिलाओं के साथ बर्ताव किया, वह मां (महिलाओं) का सम्मान नहीं बल्कि मां का अपमान दिखा। सड़क पर एक महिला शिक्षिका के साथ अभद्रता की गई, तो दूसरी ओर एक पत्रकार को फोटो लेने  के हटने को कहने पर “मां” सूचक गाली दी गई। गर्भवती महिलाओं की एम्बुलेंस और स्कूली बच्चों की बस को भी रोका गया। साइकिल सवार के साथ धक्कामुक्की करने पर जब पत्रकार ने सवाल उठाया, तो सोनिया गांधी को बार डांसर कहा गया। महिलाओं के सम्मान के लिए उतरी बीजेपी खुद महिलाओं का ही अपमान कर रही थी।

  1. राजनीति में निजी भावनाओं का इस्तेमाल तभी जायज़ है जब वह सार्वजनिक हित में हो। जब यह केवल सत्ता को मजबूत करने का हथियार बन जाए, तब वह नैतिक पतन है।
  2. सवाल उठता है कि क्या लोकतंत्र में केवल बयानबाज़ी से अपमान का राजनीतिक लाभ उठाना, नैतिक ज़िम्मेदारी से बच निकलने का साधन बन गया है?
  3. लोकतांत्रिक राजनीति के चरित्र में संवेदना का उपयोग यदि सिर्फ चुनावी लाभ के लिए किया जाए, तो न केवल भाषा का स्तर गिरता है, बल्कि राजनीतिक स्तर भी नष्ट हो जाता है।

इसी कारण संसद से लेकर सड़क तक गाली-गलौच जैसे अपशब्द भाषा का प्रयोग आम हो गया है, जिसमें प्रधानमंत्री जी के भी कई वक्तव्य शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी का 2 सितम्बर का भाषण राजनीतिक और भावनात्मक संवेदनाओं को चुनावी लाभ के लिए साधने का उदाहरण है। उन्होंने निजी चोटों को राष्ट्रीय विमर्श में बदलकर इसे परंपरा बना दिया है। इस परंपरा का नुकसान आम जनता को उठाना पड़ता है बेरोज़गारी, अपराध, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे गौण हो जाते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest