कटाक्ष: यह राम राज्य 2.O है प्यारे!
अब तो मान लो कि राम राज्य आ चुका है। अब तो अयोध्या में झंडारोहण का ईवेंट भी हो गया। यानी राम मंदिर फाइनली पूरा भी हो गया। अब इसमें बाल की खाल मत निकालने लग जाना कि मंदिर अगर 2025 के 25 नवंबर को फाइनली अब पूरा हुआ है, तो क्या मंदिर तब अधूरा था, जब 2024 के आम चुनाव का प्रचार अभियान बाकायदा शुरू करने से पहले, मोदी जी ने भागवत के साथ जुगल जोड़ी में, इससे भी ज्यादा गा-बजा कर और सरकारी दफ्तरों तक में छुट्टी करवा कर, उसी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का ईवेंट किया था?
तो क्या शंकराचार्यों की आपत्ति सही थी कि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का ईवेंट कराया जा रहा था, जो शास्त्र विरुद्ध था? क्या विरोधियों की आलोचना सही थी कि आम चुनाव में फायदा उठाने के लिए, जबर्दस्ती अधूरे मंदिर का उद्घाटन कराया जा रहा था?
नहीं, हर्गिज नहीं! मोदी जी का किया उद्घाटन असमय कैसे हो सकता है? मोदी जी के किसी काम का टैम गलत नहीं हो सकता है। मोदी जी को जब जो करना होता है, वही उसे करने के लिए सही समय होता है। मोदी जी ने जब पौने दो साल पहले उद्घाटन किया था, मंदिर तब भी पूरा ही था। बस इतनी बात है कि अब झंडा लगने के साथ, मंदिर फाइनली पूरा हो गया है। वैसे हम तो कहते हैं कि भक्तों को इसे भी फाइनली फाइनल मानने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। कल को मोदी जी मंदिर में कुछ और जोड़ने का ईवेंट करना चाहेंगे तो क्या कोई उन्हें रोक लेगा? और कुछ नहीं तो रंगाई-पुताई से लेकर मरम्मत तक के ईवेंट तो कभी भी कराए ही जा सकते हैं!
देखा ना, बाल की खाल निकालने वालों का जिक्र भर आने से हम भटक कर कहां से कहां पहुंच गए। इतनी मुश्किल से फाइनली मंदिर पूरा हुआ है, और मुओं ने अभी से रंगाई-पुताई और मरम्मत की चर्चा निकलवा दी। नेगेटिविटी को मोदी जी, भागवत जी वगैरह इसीलिए तो इतना बुरा कहते हैं। वर्ना सकारात्मकता होती तो उद्घाटन के टैम पर मंदिर के अधूरेपन को देखने के बजाए, क्या यही नहीं देखा जाता कि मोदी जी ने भक्तों के इंतजार के पूरे पौने दो साल कम करा दिए? जो मंदिर 2025 के आखिर में कहीं जाकर चालू होना था, उसे 2024 के शुरू में ही चालू करा दिया। पर नकारात्मकता के चक्कर में विरोधियों तो विरोधियों, परंपरावादियों तक ने आम चुनाव की टाइमिंग तो देखी, पर भक्तों के इंतजार में पौने दो साल की कमी की टाइमिंग नहीं की। वर्ना मोदी जी का क्या था, उद्घाटन के ईवेंट के लिए मंदिर के झंडे वगैरह के साथ, फाइनली पूरा होने तक तो इंतजार कर ही सकते थे? उद्घाटन के इवेंटों की कमी थी क्या? पर यह मोदी का भारत है। मोदी के भारत के भक्त अधीर और सबसे बढक़र राम काज करने के लिए अधीर हैं। पौने दो साल छोड़ो, मोदी के भारत के भक्त तो पौने दो पल का भी इंतजार करना पसंद नहीं करते। पहले वालों के जमाने के भक्त थोड़े ही हैं जो साढ़े चार सौ साल से ज्यादा से बस इंतजार ही तो कर रहे थे कि इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में कोई मोदी आएगा, जो अपने राज के ग्यारहवें वर्ष में रामलला को उंगली पकड़ाकर, उनकी घर वापसी कराएगा! पहले वाले भक्तों ने अब वालों जैसी अधीरता दिखायी होती, तो क्या अंगरेजों ने ही रामलला की घर वापसी नहीं करा दी होती?
अंगरेज अगर अयोध्या में मस्जिद-मंदिर का झगड़ा खड़ा कर सकते थे, तो क्या रामलला की वापसी भी नहीं करा सकते थे? काश रामलला की आजादी के लिए तभी हिंदुओं को ढंग से जगाया गया होता। काश, ए ओ ह्यूम ने तब कांग्रेस की जगह आरएसएस की स्थापना होती!
खैर, मुद्दे की बात यह है कि फाइनली पूरा होने समेत, राम मंदिर के उद्घाटन के तीन-तीन ईवेंट तो मोदी जी-भागवत जी की जुगल जोड़ी के ही कर कमलों से हो चुके हैं। सबसे पहले, मंदिर बनवाने के सबसे बड़ी अदालत के फैसले के बाद, शिला पूजन का ईवेंट। उसके चार साल बाद, प्राण प्रतिष्ठा का ईवेंट। और अब, झंडारोहण का ईवेंट। और यह तो तब है जबकि राम मंदिर का शिलान्यास तो विवादित क्षेत्र के एक हिस्से में, अस्सी के दशक के अखिर में ही हो चुका था यानी मोदी जी को सारथी बनाकर निकली आडवाणी जी की रथ यात्रा से भी पहले। पर वो सब मोदी-पूर्व भारत की बातें हैं, जब भारत सांस्कृतिक प्रसुप्तावस्था में था।
ऐसे तो मंदिर भी कहीं गया नहीं था, वह तो हमेशा से वहीं मौजूद था; तब भी जब मस्जिद को हटाने के जोश में कार सेवकों ने मस्जिद में एकाएक प्रकट हुए मंदिर को भी हटा दिया था। टेंपरेरी वाले मंदिर का शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक, सब एक साथ तब भी हुआ ही होगा। मगर हड़बड़ी में, बिना किसी ईवेंट के। मोदी पूर्व-युग का उद्घाटन भी कोई उद्घाटन है, लल्लू! वैसे भी मंदिर भले ही हमेशा रहा हो, रामलला जरूर भूल-भटककर या रूठकर कहीं और चले गए थे। तभी तो मोदी जी पौने दो साल पहले उन्हें उंगली पकड़ाकर वापस लाए थे। मोदी जी की तस्वीर वाले पोस्टर झूठ थोड़े ही बोलते हैं।
और बात सिर्फ अयोध्या में राम मंदिर के फाइनली उद्घाटन की ही थोड़े ही है। और बात सिर्फ अयोध्या में राम मंदिर के फिर-फिर उद्घाटन भर की भी नहीं है। अगले दिन, कर्नाटक में उडुपी में राजा बाबू ने श्रीकृष्ण का मोर मुकुट धारण कर, सामूहिक गीता पाठ भी किया और गीता का उपदेश भी दिया। और हां! उडुपी में कृष्ण वेश धारण करने से पहले राजा बाबू को तीन किलोमीटर का रोड शो करना नहीं भूला, जबकि कर्नाटक में अभी चुनाव दूर है। और बाद में उसी शाम गोवा में पुर्तगाली मठ में 77 फीट ऊंची राम की प्रतिमा का उद्घाटन भी कर दिया जो दुनिया की राम की सबसे ऊंची प्रतिमा बतायी जाती है, जो कांसे की बनी है। और इतना सब सिर्फ दो दिन में। यानी ब्राह्मणवादी धार्मिकता की बाढ़ के बीच-बीच में राजनीतिक प्रचार के टापू, जिन पर प्रधानमंत्री फुल टाइम पुजारी की मुद्रा में नाचते और कथावाचक की बोली में उपदेश में देते हुए।
भारत वालो अब तो मोदी जी का कहा सच मान लो– चाहे अच्छे दिन कभी न आएं, चाहे अमृतकाल कोरा जुमला रह जाए और विकसित भारत झांसा, पर मोदी जी राम राज्य ले आए हैं। और कितनी धर्मबाजी चाहिए, राम राज्य के लिए!
अब इस सब में टाटा, रिलायंस, अडानी वगैरह की सेवा की किटकिट मत घसीट लाना। और कभी नोटबंदी, तो कभी लॉकडाउन और अब एसआईआर के जरिए पब्लिक को जान हलकान किए जाने को भी नहीं। वोट चोरी वगैरह से लेकर ऊंची रंगदारी वसूली तक, हद दर्जे की थेथरई को तो हर्गिज-हर्गिज नहीं।
माना कि उस वाले राम राज्य में यह सब नहीं था, पर किसने कहा कि यह उस वाले राम राज्य की नकल भर है। बेशक, राम राज्य है, पर इसमें मोदी तत्व का भी समावेश है, अपनी ओरिजिनालिटी भी तो है। सिंपल राम राज्य नहीं, यह उससे आगे की चीज है--यह राम राज्य 2.O है प्यारे!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं)
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