कटाक्ष: गिफ़्ट-गिफ़्ट ना रहा, बर्थ डे बर्थ डे ना रहा!

अब क्या इन विपक्ष वालों को शिष्टाचार भी मोदी जी को ही सिखाना पड़ेगा? बताइए, 17 सितंबर को मोदी जी का जन्म दिन था या नहीं। जन्म दिन भी मामूली नहीं, पचहत्तरवां। जन्म दिन जो बस मोदी जी को छोड़कर सारी दुनिया ने मनाया। मोदी जी ने नहीं मनाया माने वैसे छुट्टी-वुट्टी लेकर नहीं मनाया, जैसे ज्यादातर बाइलॉजीकल लोग मनाते हैं। नॉन-बाइलॉजीकल जो ठहरे।
मोदी जी छुट्टी-वुट्टी कहां लेते हैं? सुना है ग्यारह साल में मोदी जी ने एक भी छुट्टी नहीं ली है। ओन्ली ड्यूटी, नो छुट्टी । मोदी जी कम से कम अपने लिए तो कोई छुट्टी-वुट्टी नहीं ही लेते हैं। और परिवार वाला होने का इल्जाम उन पर कोई लगा नहीं सकता है। हां! देश के लिए ही छुट्टी लेनी पड़ जाए, तो बात दूसरी है। यानी जिस दिन सारी दुनिया उनका जन्म दिन मना रही थी, उस दिन भी मोदी जी हर रोज की तरह काम कर रहे थे। जी हां, मध्य प्रदेश में धार में पहले पीएम-मित्र पार्क के उद्घाटन का काम। ऐसी है मोदी जी की काम की लगन। कोई उद्घाटन हो, कोई बटन दबाना हो, कोई झंडी दिखाना हो या पब्लिक को सौगात देने का एलान करना हो, मोदी जी, सारा काम खुद अपने हाथों से करते हैं। और हां! मौका कोई भी क्यों न हो, चुनावी भाषण भी। और जगह कोई भी हो, उसके साथ पुराने और खास रिश्ते की खोज भी।
बताइए, ऐसे कामधुनी व्यक्ति को भी—नॉन-बायोलॉजीकल बंदे को भी व्यक्ति कह सकते हैं क्या (?)-- भाई लोग रिटायर कराने पर तुले हुए थे। बस एक ही एक ही रट लगा रखी थी—पचहत्तर साल पूरे हो गए। अब और किसी को मौका दिया जाए! जिसने कभी एक दिन की छुट्टी नहीं ली, चाहते थे कि राजी-राजी परमानेंट छुट्टी पर चला जाए। झोला उठाए और अपने ही बनाए मार्गदर्शक मंडल में चला जाए। आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी, वगैरह की संगत करे। कुछ उनकी सुने और कुछ अपनी सुनाए। उनके कोई गिले-शिकवे हों तो उन्हें भी सुने और उनकी शिकायतें मिटाए। और आगे आने वाले के खिलाफ उनके साथ संयुक्त मोर्चा जमाए।
पर ऐसा नहीं हुआ। उन भारत-विरोधियों का मंसूबा पूरा नहीं हुआ, जो नहीं चाहते हैं कि भारत को 2047 तक एक विकसित देश बनाने का मोदी जी का संकल्प पूरा हो। ये भारत के दुश्मन जानते हैं कि भारत को अगर कोई 2047 तक बल्कि उसके पहले भी विकसित देश बना सकता है, नरेंद्र मोदी ही बना सकता है। और कोई ऐसा होगा जो अठारह-अठारह घंटे काम करता होगा, जो एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेता होगा? हर्गिज नहीं। हमारे देश के दुश्मन जानते हैं कि अब भारत को विकसित देश बनने से रोकने का एक ही तरीका है—नरेंद्र मोदी को रिटायर करा दो। सो उन्होंने पूरी कोशिश की पचहत्तरवें बर्थ डे को रिटायरमेंट दिवस बनाने की। पर उनके मंसूबे पूरे नहीं हुए। और होते भी कैसे? रिटायर तो वो होता है, जो बायोलॉजीकल होता है। जो बायोलॉजीकल होता है, वही माता के गर्भ से जन्म लेता है। जो बायोलॉजीकल होता है, उसी की उम्र बढ़ती है। जो बायोलॉजीकल होता है, उसी के पचहत्तर साल रिटायरमेंट की पुकार करते हुए आते हैं। नॉन-बायोलॉजीकलों की बात ही कुछ और होती है। उनका जन्म दिन होता भी है, तो भी जन्म नहीं होता है, अवतरण होता है। उनके बरस बढ़ते भी हैं, तो उम्र नहीं बढ़ती है। उनकी जवानी कभी खत्म नहीं होती, उनका बुढ़ापा कभी नहीं आता।
एक बार को तो नागपुर वाले भागवत जी को भी धोखा हो गया। पहले तो उन्होंने भी पचहत्तर साल को पचहत्तर साल ही समझा और लगे राजी-राजी रिटायर होने के फायदे गिनाने में। पर जब भक्तों ने याद दिलाया यह तो राष्ट्र विरोधी षडयंत्रकारियों की डिमांड है, तब उन्हें समझ में आया कि मोदी जी के मां को गाली दिए जाने से आहत होने का मतलब यह हर्गिज नहीं है कि वह बाकी लोगों की तरह ही बायोलॉजीकल हैं। झट इशारे में समझ गए कि ऐसा मार्गदर्शक मंडल बना ही नहीं है, जिसमें मोदी जी समा सकें। फिर क्या था, भागवत जी ने फौरन एलान कर दिया—हमारे यहां रिटायरमेंट नहीं होता। रिटायरमेंट संघ की संस्कृति में नहीं है। हाथ के हाथ, हफ्ते भर पहले ही अगले जन्म दिन की बधाई भी दे डाली। मोदी जी ने भी जवाब में पचहत्तरवें जन्म दिन की ही बधाई दी, वह भी लिखा-पढ़ी में। और दोनों भाई एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर आसानी से पचहत्तर की बाउंड्री फलांग गए।
और उसके बाद तो सारी दुनिया ने जो मोदी जी का पचहत्तरवां जन्म दिन मनाया, सारी दुनिया ने देखा। अखबारों ने मनाया, टेलीविजन ने मनाया, रेडियो ने मनाया, सोशल मीडिया ने मनाया। देश में मनाया, विदेश में भी मनाया। दिल्ली में कर्तव्य पथ पर मनाया, तो दुबई में बुर्ज खलीफा पर भी मनाया। भक्तों ने मनाया, तो भगवा सरकारों ने भी मनाया। मुंबइया सेलिब्रिटी लोगों ने मनाया, तो खेल वाले सेलिब्रिटी लोगों ने भी मनाया। अपनी-अपनी मोदी स्टोरी लिखकर मनाया। ट्रंप ने मनाया, तो पुतिन ने भी मनाया। इंग्लैंड के राजा ने भी मनाया और तेल वाले शेखों ने भी मनाया। क्या हुआ कि याद दिलाने पर मनाया, पर सब ने मनाया। क्या हुआ कि हजारों करोड़ फूंक कर दिखाया, पर तमाशा जोरदार दिखाया।
पर राहुल गांधी ने क्या किया? हजारों करोड़ के तमाशे का मजा किरकिरा कर दिया। शिष्टाचार का तकाजा होता है कि किसी का जन्म दिन है, तो उसे बधाई दो और हां गिफ़्ट भी। पर इन्होंने क्या गिफ़्ट दिया? अगले ही दिन वोट चोरी के अरोपों की दूसरी किस्त जारी कर दी। कर्नाटक में, अलंद सीट पर वोट काटने के जरिए वोट चोरी की कहानी। और महाराष्ट्र की एक सीट पर वोट जोड़ने के जरिए, चुनाव चोरी की कहानी। ऐसे में किसी नॉन-बायोलाजीकल के जन्म दिन का जश्न भी कब तक चल पाता। बेचारे भक्तों को और पूरी भगवा पार्टी को तो नाच-गाना बीच में छोडक़र ही, राहुल गांधी को गरियाने में जुटना पड़ा। और रास्ता ही क्या था, वोट चोरों को बचाने का इल्जाम भले चुनाव आयोग पर था, पर वोट चोरी का इल्जाम तो मोदी पार्टी पर ही था। जायका बिगड़ने में जो भी कसर बची थी, ट्रंप के एच1बी वीसा प्रहार ने पूरी कर दी। एक दिन पहले मोदी जी को जन्म दिन की बधाई दी और अगले ही दिन एक ही झटके में, सबसे ज्यादा भारतीयों को ही मिलने वाले इस वीसा की सालाना फीस 6 लाख से बढ़ाकर 88 लाख कर दी। आपका ये कैसा बर्थ डे गिफ़्ट, ट्रंप जी! राहुल तो राहुल, लगता है मोदी जी को ट्रंप को भी बर्थ डे शिष्टाचार सिखाना पड़ेगा।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।