तिरछी नज़र: अगले जनम मुझे 'मुचुआ' ही कीजो
छोटा पोता मेरे घर के क्लिनिक से मेरा स्टेथो उठा लाया और मेरे सीने पर लगा कर बोला, दादू, जरा जोर जोर से सांस लो। मैं उसे बहलाने के लिए जोर जोर से सांस लेने लगा। फिर मेरी ओर देख कर बोला, दादू, डॉक्टर ऐसे ही करते हैं ना। मैं भी डॉक्टर बनूँगा। मैंने कहा, डॉक्टर मत बनना। निन्यानवे को ठीक करो और एक को न कर पाओ तो लोग तोड़फोड़ करने लगते हैं।
अगले दिन वह लहरा लहरा कर दौड़ रहा था। मेरे पास आ कर बोला, दादू में तो पायलट बनूँगा। हवाई जहाज उड़ाऊंगा। आपको और दादी को मुफ्त में दुनिया की सैर करवाऊंगा। मैंने कहा, पायलट मत बनना। हवाई जहाज गिरने की स्थिति में लोग हवाई जहाज बनाने वाली कम्पनी को बचाने के चक्कर में पायलट को दोष देने लगते हैं। उससे अच्छा तो ऑस्ट्रेनोट बन जाना। उस पर कोई गुण दोष नहीं आता है। राकेट उड़ जाए तो सरकार जी की वाही वाही, नहीं उड़े तो वैज्ञानिकों का दोष।
फिर एक दिन कहीं से एक सीटी ले आया। उसे बजा बजा कर बोलने लगा, जागते रहो, जागते रहो। बोला मैं वॉचमैन बनूंगा। सबकी चौकीदारी करूंगा। मैंने समझाया, बेटा चौकीदार मत बनना। आजकल चौकीदार बहुत बदनाम है। लोग कहते हैं कि ‘चौकीदार ही चोर है’। वही तो खबर देता है, कहाँ चोरी करनी है और कैसे चोरी करनी है। उसकी मिलीभगत के बिना चोरी हो ही नहीं सकती है।
दो तीन दिन बाद आ कर बोला, दादू, दादू, मैं तो वोट चोर बनूँगा। पिछली शाम को ही गली में 'वोट चोर गद्दी छोड़' की रैली निकली थी। मैंने कहा, यह तो ठीक है बेटा। वोट चोर न जाने क्या से क्या बन गए हैं। मंत्री, मुख्यमंत्री। यहाँ तक कि सरकार जी भी बन गए हैं। पर बेटे, इनसे ऊपर भी एक है। तुम वही बनना।
वह क्या है दादू!
वह है, मुचुआ मतलब मुख्य चुनाव आयुक्त। विपक्ष कहता है कि वही वोट चोरी का सरगना है। उसकी सहमति के बिना वोटचोरी हो ही नहीं सकती है। वही एक पते पर दो सौ, चार सौ वोट बनवा सकता है। वही एक फोटो पर सौ सौ फर्जी वोट बना सकता है। उसी ने शून्य नंबर के मकान का अविष्कार किया है। यह उसी के अधिकार क्षेत्र में है कि वह लाखों लोगों के नाम काट दे और लाखों के नाम जोड़ दे। वही है जो यहाँ के नागरिकों की नागरिकता नकार सकता है और विदेशी मॉडल को यहाँ का वोटर कार्ड प्रदान कर सकता है।
एक बात और बेटा। उसको तो कोई फंसा भी नहीं सकता है। जो कुछ वह करे, चाहे वोट जोड़े या वोट काटे, चाहे जितने मर्जी नकली वोट डलवा दे, चाहे वोटिंग खत्म होने के बाद भी वोट बढ़वाता रहे, चाहे जीते हुए को हारा और हारे हुए को जीता घोषित कर दे, ये उसकी मर्जी। इस चुनाव के महाभारत में वह जिसके साथ है, वही जीतता है।
वह सर्वशक्तिमान है। उसके ऊपर तो उच्चतम न्यायालय भी नहीं है। बल्कि वह उच्चतम न्यायालय से ऊपर है। उसे किए की कोई सज़ा नहीं है। ऐसा हमेशा से नहीं था, ऐसा नियम सरकार जी ने हाल में ही बनाया है। राष्ट्रपति और शायद उपराष्ट्रपति जी के आलावा ऐसी इम्युनिटी बस मुचुआ को ही प्राप्त है। और हमारे सरकार जी की दयालुता देखो। उन्होंने यह इम्युनिटी सिर्फ मुचुआ को ही दिलवाई है। अपने आप भी नहीं ली।
बेटा, जो दादा पोते की बातचीत सुन रहा था, बोला, मुचुआ तो बनना पर शेषन, लिंगदोह या कुरैशी जैसा बनना जिससे तुम्हें इतिहास याद रखे। आज के कुमारों जैसे मत बनना।
हूँ, और सरकार जी ने मुचुआ के चुनाव में जो बदलाव किए हैं, जो इतनी इम्युनिटी दी है, वह शेषन या लिंगदोह बनाने के लिए दी है या फिर कुमार एंड कुमार बनने के लिए दी है। और क्या इतिहास इन्हें नहीं याद रखेगा! मैंने पोते की ओर मुख़ातिब हो कहा, तुम तो बेटे इस जन्म में ही मुचुआ बन जाना।
और हे ईश्वर! अगले जनम मुझे मुचुआ ही कीजो। अगर तब तक लोकतंत्र जिन्दा रहा तो, चुनाव होते रहें तो।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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