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तिरछी नज़र: धनतेरस पर आपने सोना खरीदा या चम्मच

सोना खरीदने की सोचने में भी जो ख़ुशी मिलती है, वह अतुल्य है। और इस बार तो वह ख़ुशी भी ज्यादा है। पहले सत्तर अस्सी हज़ार की खुशी मिलती थी, इस बार सवा लाख की ख़ुशी मिल रही है। और सोचने पर जीएसटी भी ज़ीरो है…
DHANTERAS
तस्वीर प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार

 

एक मित्र हैं। व्यंग्यकार हैं। कल सुबह, यानी धनतेरस के दिन सुबह सुबह फोन आ गया। पहले तो धनतेरस की बधाइयों का आदान प्रदान हुआ। फिर पूछने लगे, कोई सुनार है जान पहचान का। सोच रहे हैं धनतेरस के दिन कुछ सोना-चांदी ही खरीद लें। क्यों भाई, कितना सोना खरीद लें इस बार।

क्यों भाई साहब, धनतेरस के दिन सोना ही खरीदते हो हर बार?, मैंने आश्चर्य से पूछा।

नहीं भाई, सोचते हैं। हर बार सोचते जरूर हैं कि सोना खरीदेंगे पर हर बार बाजार से चम्मच खरीद ले आते हैं। अब तो इतनी चम्मच हो गई हैं घर में कि हम भी चम्मच की दुकान खोल लें। मिसिज अलग से परेशान है कि इतनी चम्मच रखे कहाँ। पर बाजार में सबसे सस्ती चम्मच ही मिलती है। जितने में चार आती हैं, उतने में कटोरी या थाली एक भी नहीं आती है। वैसे ना, सोना खरीदने की सोचने में भी जो ख़ुशी मिलती है, वह अतुल्य है। और इस बार तो वह ख़ुशी भी ज्यादा है। पहले सत्तर अस्सी हज़ार की खुशी मिलती थी, इस बार सवा लाख की खुशी मिल रही है। फिर वे गुनगुनाने लगे, सवा लाख से एक लड़ाऊ, तभी मैं सरकार जी कहलाऊं।

मैंने कहा, सोचना है तो तोला भर सोने की क्यों सोचो, दो चार किलो की सोचो। खुशी भी ज्यादा मिलेगी। सोचने पर पहले भी जीरो जीएसटी लगता था, अब कम हो कर भी जीरो जीएसटी ही लगता है। 

देखो भाई, सोचने की भी औकात होती है। जब हवाई जहाज का कैटल क्लास का टिकट बुक करा रहे होते हैं तो यही तो सोचते हैं ना कि इस बार एग्जीक्यूटिव क्लास में बुक करवा लेते हैं। यह थोड़ी ना सोचते हैं कि चलो हवाई जहाज ही खरीद लेते हैं। तो भैया, हम भी तोला, दो तोले की सोच खुश हो लेते हैं।

तो अपने यहाँ के ही किसी ज्वेलर्स से खरीद लो। यहाँ इतनी दूर क्या आओगे।

बात यह है, उन्होंने फुसफुसा कर कहा, यहाँ के सारे सुनार हमें पहचान गए हैं। पहले तो आदर से पेश आते थे। और हम भी असली खरीददार की तरह और दिखाओ, और भारी दिखाओ जरा। इससे भारी नहीं है क्या? कह कर दुकानदार का समय बर्बाद कर उठ आते थे। धीरे धीरे आसपास के सभी सुनारों के यहाँ हम हो आये और वे हमें पहचान गए। और वे ही हमें नहीं पहचाने, हम भी उन्हें पहचान गए।

देखो, सबसे पहली बात तो यह कि कोई भी सुनार किसी दूसरे सुनार की दुकान से ख़रीदे गए सोने की तारीफ नहीं करेगा, उन्होंने अपना एक्सपीरियंस बताया। दूसरे सुनार का सोना कितना भी खरा हो उसे खोटा ही बताएगा। यहाँ तक कि अपने भाई, अपने बाप की दुकान के सोने को खोटा बताएगा। कहेगा, यह कहाँ से नकली माल खरीद लिया आपने। इसमें बीस प्रतिशत भी सोना हुआ तो बहुत है। निरा पीतल है पीतल। आप तो ठगे गए। हम यह नहीं कहते भाई साहब कि सोना हमारे से ही लो पर लो तो जरा विश्वास की दुकान से लो।

विश्वास से याद आया कि ये आपके विश्वास का ही तो खाते हैं। आप उन पर विश्वास करते हो इसलिए पीतल भी सोने के दाम में बेच देते हैं। बस विश्वास यह दिलाते हैं, अजी साहब जब मर्जी वापस ले आना और अपने पैसे वापस ले जाना। एक पैसा नहीं कटेगा। और कभी वापस करने जाओ तो अपना वायदा भूल जाते हैं। अजीब अजीब शर्ते लगा देते हैं। कभी टांके का काटेंगे, तो कभी स्टोन का।

लेकिन भाई साहब, अब तो हॉलमार्क का सिस्टम आ गया है। सोने पर हॉलमार्क का मार्क लगा होता है। सारा सोना शत प्रतिशत शुद्ध मिलता है। कहीं कोई गड़बड़ नहीं।

हा, हा, हॉलमार्क। दवाइयां खाते हो ना। फार्मूला से लेकिन मैन्युफैक्चरिंग और मार्केटिंग, सब पर कंट्रोल है। फिर भी पी कर बच्चे मरते हैं ना। विदेशों से खेप वापस आ जाती है ना। मसाले हैं ना। बड़ी बड़ी कम्पनियों के। उन पर भी कोई मार्क लगा होता है। शायद एगमार्क। हम बड़े भरोसे और चाव से खाते हैं। कि ये हेल्थ के लिए अच्छे हैं और स्वाद में भरपूर। पर अमरीका से, कनाडा से, सिंगापुर से रिजेक्ट हो वापस आ जाते हैं। और बी.आई.एस के सर्टिफिकेशन का हाल तो सबको पता ही है। हम यहाँ एक ही चीज में माहिर हैं। डुप्लीकेट मार्क लगाने में। चाइना से माल मगवाते हैं। अपना स्वदेशी स्टीकर लगाते हैं और बेच देते हैं। मेक इन इंडिया में हमने डिब्बे बनाने में और स्टीकर बनाने में आत्मनिर्भता प्राप्त कर ली है।

भाई, आप जरा ज्यादा ही बोल गए, मैंने टोका। पहले तो यह बताओ कि आप सुनार की बात कर रहे हो या सरकार जी की!

जिसकी मर्जी समझ लो। दोनों एक ही हैं। दोनों ही धीरे धीरे हमें ठोक ही रहे हैं। यह कहते हुए उन व्यंग्यकार मित्र ने फोन रख दिया।

(Disclaimer- यह एक व्यंग्य रचना है। इसका मंतव्य लेखक द्वारा किसी भी व्यक्ति अथवा व्यवसाय के प्रति द्वेष फैलाना नहीं है। फिर भी किसी बंधु को इससे ठेस पहुँचती है तो लेखक बिना शर्त माफ़ी मांगता है)

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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