तिरछी नज़र: ब्लास्ट, चुनाव और भारी मन से भूटान यात्रा
दिल्ली में लालकिले के सामने विस्फोट हुआ। एक चलती कार में विस्फोटक भरा था, वह फट गया। लोग मारे गए और घायल भी हुए। आतंकवादी काम था। प्लान किसी का भी हो, किसी ने भी किया हो, काम तो आतंकवाद ही था। इसकी जितनी निंदा की जाए कम है।
काम बिहार में दूसरे फेज की वोटिंग से पहले हुआ। इसलिए ज़्यादा डर लगा। डर लगा कि कहीं बिहार चुनाव को प्रभावित करने के लिए तो नहीं…
वैसे तो ज्ञानेश जी ने ज्ञान दे दिया था कि उन्होंने SIR के ज़रिये मतदाता सूची पवित्र कर दी है। काम पूरा कर दिया है पर सरकार जी को और चाणक्य जी को पूरा भरोसा नहीं हो रहा था…।
और फिर इस विस्फोट ने सबका भरोसा हिला दिया…
विस्फोट पुलवामा की तर्ज पर किया गया था। एक विस्फोटक से भरी कार पूरी दिल्ली में दिन भर घूमती रही और देर शाम को विस्फोट कर दिया। कर्तव्य मार्ग पर भी गई पर पकड़ी नहीं गई। हाँ, अब जरूर धड़पकड़ जारी है।
पहले कानून का पालन करने वाले सबको एक आंख से देखते थे पर पर अब वहाँ दो आंख वाले ही होते हैं। खबर है कि विस्फोट करने वाले को आठ लाख की सहायता देने वाली हिन्दू डॉक्टर को क्लीन चिट मिल गई है और विस्फोट करने वाले को सौ रूपये उधार देने वाला और मैस में साथ खाना खाने वाला मुसलमान डॉक्टर जेल में है।
एज़ यूजयल, सरकार जी ने कहा है कि आतंकवादियों को छोड़ा नहीं जायेगा। उनको कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। हमें उम्मीद है सरकार जी अपनी इस बात को हमेशा की तरह अगली वारदात में भी दोहरायेंगे।
एक बात और एज़ यूजयल हुई। सरकार जी ऐसी किसी घटना के समय राजधानी में नहीं होते हैं। एक बार जंगल में मंगल कर रहे थे। दूसरी बार किसी अरब देश में थे और इस बार दुर्घटना होते ही भारी मन से भूटान चले गए। सरकार जी के विमान का पायलेट भी बता रहा था कि इस बार विमान बहुत भारी था।
खैर, इस बार भी, हर बार की तरह सरकार जी और उनके मंत्रियों ने समझाया कि आतंकवादी घटनाओं से देश को बचाने के लिए उनकी सरकार कितनी जरूरी है। और हर बार की तरह इस बार भी हम मान गए। हम भी मान गए कि आतंकवादी घटनाएं होती रहें और सरकार जी हमें उनसे बचाते रहें, इसके लिए सरकार जी कितने जरूरी हैं।
सरकार जी के ग्यारह साल के कार्यकाल में आतंकवाद ने इतनी उन्नति अवश्य की है कि यह कृत्य पहले कम पढ़े लिखे, बेरोजगार लोगों का काम माना जाता था। अब पढ़े लिखे इंजीनियर और डॉक्टर भी इसमें शामिल होने लगे हैं। उन्हें भी लगने लगा है कि वे देश की मुख्य धारा में शामिल नहीं हैं, कि उनसे भी दुभात होता है।
व्यंग्य अपार्ट, सच में तो सरकार ऐसी हो जो 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' का नारा ही नहीं दे, उस पर अमल करे। 'सर्वधर्म सम्भाव' सिर्फ भाषणों में न हो, जीवन में और सरकार के काम में झलके। सरकार और सरकार के सभी मंत्री, देश के सभी नागरिकों को, भले ही वे किसी भी जाति, संप्रदाय या धर्म के हों, अपना समझें, अपने देश का समझें और बात बात पर विदेश न भेजें। और जब वह दिन आएगा, तभी देश आतंकवाद से मुक्त हो पायेगा।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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