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ख़बरों के आगे-पीछे: क़ुरआन ख़्वानी और गीता पाठ, मक़सद क्या?

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन कोलकाता से हैदराबाद तक कुरआन और गीता पाठ की होड़, मद्रास हाई कोर्ट के जज के फ़ैसले और उनके ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव समेत तमाम विषयों पर बात कर रहे हैं।
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क़ुरआन और गीता पाठ की होड़

लगता है सौ साल पुराना वाकया दोहराया जा रहा है, जब देश में विभाजन की शुरुआत राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक आधार पर हुई थी, जो अंतत: भौगोलिक विभाजन में बदल गई। इस समय भी वही होता दिख रहा है। धर्म की राजनीति मंदिर और मस्जिद से आगे बढ़ कर धर्मग्रंथों तक पहुंच गई है। अयोध्या में नवनिर्मित राममंदिर पर ध्वज फहराए जाने के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने बेलडांगा में बाबरी मस्जिद की नींव रखी है। इसमें बड़ी संख्या में दूर दूर से मुस्लिम ईंटें लेकर पहुंचे। राममंदिर के लिए भी एक समय ऐसे ही शिलापूजन हुआ था। हुमायूं कबीर ने शिलान्यास के लिए छह दिसंबर का दिन चुना, जिस दिन बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया था। 

इसके अगले दिन कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में पांच लाख लोगों ने गीता पाठ किया। इसमें राज्यपाल सीवी आनंद बोस, रामदेव और धीरेंद्र शास्त्री भी शामिल हुए। ऐसा लग रहा है कि यह एक बार का शो नहीं था। अब पूरे देश में इस तरह के काम होने जा रहे हैं। हुमायूं कबीर ने कहा है कि वे फरवरी में 'कुरआन ख्वानी’ कराएंगे, जिसमें एक लाख लोगों खाना खिलाया जाएगा। उधर हैदराबाद में 28 दिसंबर को 'किराअत’ यानी कुरआन का पाठ कराया जाएगा। इसके लिए मस्जिद-ए-कुतुबशाही में कुरान पाठ का प्रशिक्षण कराया जा रहा है। मुस्लिम समूहों की इस तैयारी के बरक्स वहां भी गीता पाठ या किसी धार्मिक आयोजन की संभावना है। सो, कोलकाता से हैदराबाद तक कुरआन और गीता का पाठ होगा। सब अपने-अपने हिसाब से भोज कराएंगे और इस तरह पाला खिंचता जाएगा। सौ साल पहले में विभाजन की शुरुआत ऐसे ही हुई थी। 

गरीब ओडिशा में विधायकों के ऐश

ओडिशा में वह हुआ है जो पहले कभी नहीं हुआ। राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नवीन पटनायक ने अपने करीब 25 साल के राज में विधायकों के वेतन-भत्तों में कोई खास बढ़ोतरी नहीं की थी। जिस समय सारे देश के विधायक और सांसद भी अपने वेतन-भत्तों आदि में बढ़ोतरी कर रहे थे उस समय भी ओडिशा में विधायकों के वेतन-भत्तों में कछुआ चाल से बढ़ोतरी हुई। लेकिन उनकी सरकार जाते ही राज्य में बहुत कुछ बदलने लगा। 

बीजू जनता दल को हरा कर सत्ता में आई भाजपा ने एक बार में विधायकों के वेतन में तीन गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी है। अभी तक ओडिशा के विधायकों को एक लाख रुपया महीना मिलता था, जिसे बढ़ा कर 3.45 लाख रुपया कर दिया गया है। यह देश में विधायकों को मिलने वाला सबसे बड़ा सैलेरी पैकेज है, जबकि ओडिशा की गिनती देश के गरीब राज्यों में होती है। बहरहाल मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और पूर्व विधायकों की पेंशन में भी लगभग तीन गुना बढ़ोतरी कर दी गई है। इसके लिए लाया गया विधेयक बीते मंगलवार को विधानसभा में पारित हो गया। 

मुख्यमंत्री को 3.74 लाख रुपया महीना मिलेगा। गौरतलब है कि ओडिशा में पिछले सात साल से वेतन नहीं बढ़ाया गया था। उससे पहले भी नवीन पटनायक ने मामूली बढ़ोतरी की थी। अब एक ही बार में भाजपा की मोहन चरण माझी की सरकार ने सारी कसर पूरी कर दी है।

तीन जजों के ख़िलाफ़ महाभियोग

संसद में अरसे बाद जजों के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव आए हैं। एक प्रस्ताव आया तो उसका सिलसिला ही शुरू हो गया। बड़ी जद्दोजहद के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ सरकार की ओर से लोकसभा में महाभियोग का प्रस्ताव पेश हुआ। इस पर स्पीकर ने जांच कमेटी का गठन कर दिया है। जांच रिपोर्ट आने के बाद संसद में उस पर चर्चा होगी और अगर उससे पहले जस्टिस वर्मा का इस्तीफा नहीं होता है तो उनको महाभियोग के जरिए हटाया जाएगा। वे अभी इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज हैं। उनके घर से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के आरोप लगे हैं।

 इस बीच अब विपक्ष की ओर से मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के जज जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश हुआ है। उन पर धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने वाले फैसले देने का आरोप डीएमके, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी आदि ने लगाए हैं। उन्होंने सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के अधिकारियों को वहां एक दरगाह के पास स्थित स्तंभ पर दीप जलाने की अनुमति दी है। उनके खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव पर 107 सांसदों ने दस्तखत किए हैं। महाभियोग के लिए 50 सांसदों के दस्तखत की जरुरत होती है। 

डीएमके नेता कनिमोझी के मुताबिक स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा है कि वे इस पर विचार करेंगे। इसी तरह सांप्रदायिक टिप्पणी को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ राज्यसभा के 50 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया है। हालांकि यह प्रस्ताव दस्तखत में गड़बड़ी की वजह से विवाद में फंस गया है।

शिंदे की पार्टी को भाजपा बचाएगी

आमतौर पर भाजपा पर दूसरी पार्टियों को तोड़ने का आरोप लगता है और कहा जाता है कि वह अपनी विरोधी पार्टी को ही नहीं बल्कि अपनी सहयोगी पार्टी को तोड़ने में भी कोई संकोच नहीं बरतती। लेकिन यह पहला मौका है जब उसे अपनी एक सहयोगी पार्टी को टूटने से बचाना पड़ेगा। मामला महाराष्ट्र का है, जहां भाजपा के साथ सरकार में शामिल एकनाथ शिंदे की शिव सेना पर टूट का खतरा मंडरा रहा है। महाराष्ट्र में बहुमत का आंकड़ा 145 का है। भाजपा ने अकेले 132 सीटें जीती हैं और शिव सेना व एनसीपी को मिला कर उसके पास प्रचंड बहुमत है। बताया जा रहा है कि भाजपा की ओर से लगातार इस बात की कोशिश हो रही है कि उसका अपने दम पर बहुमत हो जाए। लेकिन क्या यह बहुमत शिंदे की शिव सेना को तोड़ कर बनेगा? कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की शिंदे के साथ खटपट चल रही है लेकिन शिंदे को दिल्ली से भाजपा के बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है। 

मुश्किल यह है कि अगर भाजपा अपने को मजबूत करने के लिए शिव सेना को तोड़ती है तो फिर उसका मौजूदा विशाल बहुमत नहीं रह पाएगा। क्योंकि शिंदे के कुछ विधायक टूट कर भाजपा में जाएंगे तो बचे हुए विधायक और पार्टी उद्धव ठाकरे के साथ चली जाएगी। फिर उद्धव ठाकरे की शिव सेना का रिवाइवल हो जाएगा। भाजपा ऐसा नहीं होने दे सकती है। इसलिए एकनाथ शिंदे की शिव सेना का वजूद बचा रहेगा। 

सिद्धू की राजनीतिक पारी समाप्ति की ओर 

नवजोत सिंह सिद्धू का राजनीतिक करिअर मुश्किल में है। वे न तो सांसद हैं और न विधायक और न कांग्रेस में उनके पास कोई पद है। कांग्रेस चाहती तो उनके जैसे ऊर्जावान नेता का प्रदेश मे प्रभावी तरीके से इस्तेमाल कर सकती थी। रवनीत सिंह बिट्टू के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस को दिल्ली, हरियाणा और पंजाब तीनों की राजनीति के लिए एक प्रभावशाली सिख चेहरे की जरुरत है। लेकिन कांग्रेस ने नवजोत सिद्धू को बर्फ में डाल दिया, जिसे पंजाबी में खुड्डे लाइन लगाना कहते हैं। सिद्धू भाजपा में थे तो तीन बार सांसद बने। भाजपा से उनकी पत्नी विधायक भी बनीं। कांग्रेस में गए तो सिद्धू एक बार विधायक ही बन पाए हैं और नवजोत कौर का राजनीतिक करिअर भी डूब गया। 

अब नवजोत कौर ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस सिद्धू को मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर चुनाव लड़े तो उसको फायदा होगा। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह जोड़ दिया कि उनके पास पांच सौ करोड़ रुपए नहीं हैं। अगर होते तो वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन जाते। उनके इस बयान पर विवाद छिड़ा है। उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया है। भाजपा पूछ रही है कि पांच सौ करोड़ रुपए का बैग कांग्रेस में किसको देना होता कि सिद्धू मुख्यमंत्री का चेहरा बन जाते? कांग्रेस में माना जा रहा है कि नवजोत कौर के बयान के बाद पार्टी में सिद्धू के लिए बची खुची संभावना भी समाप्त हो गई है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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