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रायपुर हिंद युग्म उत्सव – 2025: लेखक भी हत्यारों के साझीदार हुए!

सोचिये, यह कैसा साहित्य उत्सव है, जो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हो रहा है, और छत्तीसगढ़ के इलाक़े बस्तर की आदिवासी जनता पर जो भयानक सरकारी हिंसा जारी है, उस पर पूरी तरह ख़ामोश है!
VINOD NARESH

क्या लेखक को हत्यारों के साथ खड़ा होना चाहिए? क्या लेखक को हत्यारों और जनसंहार के सूत्रधारों के साथ मंच साझा करना चाहिए?

अगर यह सवाल हिंदी के रूपवादी/कलावादी उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल (जन्म 1937) और कवि नरेश सक्सेना (जन्म 1939) से पूछा जाये, तो घुमाफिराकर उनका जवाब होगा, हां! वे आगे बढ़कर शायद यह भी कहेंगेः हाथ जोड़कर, माथा नवाकर हत्यारों का  अभिवादन करना चाहिए!

यह कोई मनगढ़ंत बात या टिप्पणी नहीं है। यह हक़ीक़त है। पिछले दिनों ऐसा हुआ है।

हिंदुत्व फ़ासीवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्य छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 20 और 21 सितंबर 2025 को हिंद युग्म प्रकाशन की ओर से हिंद युग्म उत्सव-2025 का आयोजन किया गया था। साहित्य उत्सव के नाम पर जो तमाशा किया गया, उसे, ऐसी चर्चा है, कुछ पूंजीवादी घरानों (कॉरपोरेट पूंजी) ने स्पॉन्सर किया था, और उसे राज्य की भाजपा सरकार का समर्थन और सहयोग मिला था।

इस कार्यक्रम में भाजपा नेता, छत्तीसगढ़ के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा के अध्यक्ष रमन सिंह की मौजूदगी और उनका भाषण इस बात की तस्दीक कर रहा था कि हिंद युग्म उत्सव -2025 के आयोजकों का भाजपा से नज़दीकी तालमेल और रब्त-ज़ब्त है।

यही वजह रही कि कार्यक्रम में देश की मौजूदा फ़ासीवादी नरेंद्र मोदी निज़ामशाही के बारे में या बस्तर-छत्तीसगढ़ में भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों किये जा रहे आदिवासियों/माओवादियों के क़त्लेआम पर कोई चर्चा नहीं हुई। भाजपा का कर्ज़ उतारना और ईडी के छापे (ED raid) से बचना भी ज़रूरी है!

सोचिये, यह कैसा साहित्य उत्सव है, जो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हो रहा है, और छत्तीसगढ़ के इलाक़े बस्तर की आदिवासी जनता पर जो भयानक सरकारी हिंसा जारी है, उस पर पूरी तरह ख़ामोश है!

बस्तर में जारी क्रूर सरकारी हिंसा के प्रति विनोद कुमार शुक्ल और नरेश सक्सेना की सायास चुप्पी को आपराधिक (criminal) ही कहा जा सकता है। यह चुप्पी भाजपा के पक्ष में बहुत-कुछ कहती है।

लेकिन हिंद युग्म उत्सव -2025 का सबसे शर्मनाक नज़ारा, सबसे निंदनीय दृश्य था- छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के जबरन विस्थापन और क़त्लेआम के सूत्रधार रमन सिंह के आगे माथा नवाते, हाथ जोड़ते, गदगद मुस्कान मारते विनोद कुमार शुक्ल और नरेश सक्सेना।

ध्यान दीजिये। हिंदी के दो लेखक-कवि विनोद कुमार शुक्ल और नरेश सक्सेना एक फ़ासिस्ट के साथ हंस-बोल रहे हैं, हाथ मिला रहे हैं और उसके साथ फ़ोटो खिंचवा रहे हैं, (नरेश सक्सेना की तो यह पुरानी आदत है!)

रमन सिंह जब छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री (2003-2018) थे, तब इस सरकार की देखरेख और प्रोत्साहन से सलवा जुडूम अभियान (2005-2011) चलाया गया था। इस अभियान का एकमात्र मक़सद थाः माओवाद का दमन करने के नाम पर आदिवासियों को उनकी ज़मीन, घर, जंगल से ज़बरन बेदख़ल करना और उनका (आदिवासियों का) क़त्लेआम करना। यह सिलसिला आज भी जारी है।

सवाल हैः क्या लेखक आगे भी हत्यारों, बलात्कारियों, यौन शोषण करने वालों, अपराधियों के साथ मंच साझा करते रहेंगे?

(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

 

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