नफ़रत की क्रोनोलॉजी: वो धीरे-धीरे हमारी सांसों को बैन कर देंगे

नफ़रत की क्रोनोलॉजी
पहले वे अज़ान के ख़िलाफ़ आए
सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर में घंटा बजाते हुए
शंख फूंकते हुए
पूरे गले से माइक पर आरती गाते हुए
मैंने किया ऐलान
हां, किसी को हक़ नहीं है दूसरों की नींद में ख़लल डालने का
रात के दो बजे
डीजे पर फ़िल्मी गानों से सजे
देवी जागरण के मंच से भी
मैंने यही बात दोहराई
हां, अब मस्जिदों पर लाउडस्पीकरों की क्या ज़रूरत है
अब तो सबके पास है घड़ी
और सब हैं इतने जानकार
कि ख़ुद ही देख सकें कि नमाज़ का टाइम हो गया है या नहीं,
रोज़ा इफ़्तार या सहरी का वक़्त क्या है!
फिर वे नमाज़ के ख़िलाफ़ आए
कांवड़ियों पर फूल बरसाते हुए
रास्ते रोक कर भंडारे लगाते हुए
मैंने कहां- हां, खुले में नमाज़ की क्या है ज़रूरत
बीच सड़क पर भव्य टेंट सजाते हुए
स्वामी जी के धारावाहिक सत्संग में भी
मैंने यही बात दोहराई
हां, अपने धार्मिक आयोजन के लिए किसी को सार्वजनिक सड़क रोकने की इजाज़त नहीं दी जा सकती
फिर वे हिजाब के विरुद्ध आए
मैंने भी कहा- हां, 21वीं सदी में हिजाब की क्या है ज़रूरत
ये तो औरतों को ग़ुलाम बनाने की प्रथा है
इस बीच उन्होंने जींस पहनने वाली महिलाओं पर हमला किया
उन्होंने मोबाइल रखने वाली महिलाओं पर हमला किया
उन्होंने लिखने-पढ़ने-बोलने वाली महिलाओं की नीलामी की
आंदोलन करने वाली महिलाओं को वैश्या कहा
प्रेम और प्रेम विवाह को जिहाद बताया
ऐप बनाए, बोली लगाई, गालियां दीं
पार्कों में रुसवा किया
सरेआम सज़ाएं मुकर्रर कीं
उन्होंने हर स्वतंत्र और आधुनिक सोच रखने वाली महिला को घर के भीतर धकेलने की साज़िश की
मैंने भी कहा- हां, इतनी आज़ादी भी ठीक नहीं
बिना घूंघट, नंगे सर बहुएं अच्छी नहीं लगती
मैं तो बिना दुपट्टे अपनी बहन और बेटी तक को बाहर न जाने दूं
हां, लेकिन मैं इस बात पर कायम हूं कि हिजाब और बुर्का पिछड़ेपन की निशानी हैं और हमें मुसलमान औरतों को इस ग़ुलामी से मुक्त कराना ही होगा।
बिल्कुल तीन तलाक़ की तरह। जिसमें हमने एक सिविल मैटर को आपराधिक मामला बना दिया।
पहली बार किसी हिंदू प्रधान (बिना बताए अपनी पत्नी को छोड़ने वाले) ने मुसलमान औरतों का दर्द समझा।
और ये तो स्कूल-कॉलेज यूनिफॉर्म का मामला है
कलावा बंधी अपनी कलाई झटकते हुए
अपनी राखी, अपना जनेऊ ठीक करते हुए
अपना टीका और गहरा बनाते हुए
अपने साथी की पगड़ी संभालते हुए
मैंने दो टूक कहा- हिजाब तो नहीं होगा बर्दाश्त
हां, हमारी बेटियों को अंग्रेज़/ईसाई बनाने की कोशिश भी नहीं की जाएगी बर्दाश्त
हमने मिशनरी और कॉन्वेंट स्कूल-कॉलेजों को जारी कर दी है एडवाइजरी (चेतावनी)
कि यूनिफॉर्म के नाम पर भी लड़कियों के लिए
पेंट-शर्ट या स्कर्ट नहीं चलेगी हमारे भारत में
कुमकुम-बिंदी, काजल, कुंडल, चूड़ी-नथुनी भी है हमारी परंपरा,
सरस्वती पूजा है हमारी आस्था...
सरस्वती तो हैं ज्ञान की देवी...शिक्षा के मंदिर में उनकी पूजा नहीं होगी तो किसकी होगी!
और गीता...गीता तो है ही ईश्वर का संदेश...इसे तो सबको पढ़ना और पढ़ाना चाहिए
इस सबसे किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता है और हो भी तो तुम्हारे ऐतराज़ के मायने क्या हैं?
हम अपनी परंपरा, अपनी आस्था से किसी को खिलवाड़ नहीं करने देंगे।
क्या आपने पूछा बकरीद...क़ुर्बानी?
जी हां, मैं इसके भी ख़िलाफ हूं
अख़लाक़ और पहलू ख़ान के
लिंचरों को माला पहनाते हुए
मैंने उनके साथ ज़ोर से दोहराया
हां, कब तक धर्म के नाम पर
जानवरों की क़ुर्बानी दी जाती रहेगी।
मैं तो मिड मील तक में अंडा दिए जाने के ख़िलाफ़ हूं
प्याज़ लहसुन तक मुझे बर्दाश्त नहीं (और दलित भोजनमाता!...ये विषय और कभी)
और मत पूछिए!
हां हां आपको भी पता ही है
शुरुआत एक पुरानी मस्जिद से हुई थी
मैंने भी कहा था- हां राम के नाम पर अयोध्या में मंदिर नहीं बनेगा तो कहां बनेगा
और उन्होंने कोर्ट में झूठा शपथ पत्र देकर मस्जिद ढहा दी
हां हां अब उसी कोर्ट की कृपा से मंदिर निर्माण शुरू हो चुका है
और रामजी की कृपा से न्यायाधीश जी सांसद का पद पा चुके हैं
और मथुरा-काशी का अभियान शुरू हो चुका है
ये चमत्कार नहीं तो क्या है...
आगे मत पूछिए
हिंदू-मुस्लिम का सवाल
अस्सी-बीस का बवाल
आपने...
सॉरी...
तुमने ही किया था इंकार
बेदख़ली का क़ानून (सीएए-एनआरसी) मानने से
अब भुगतो...
‘धर्म संसद’ में नरसंहार का ऐलान हो चुका है
मुझे बहुत तैयारी करनी है
नहीं नहीं तरस मत खाइए
सहानुभूति मत जताइए
कि अंत में मेरे पक्ष में बोलने वाला कोई नहीं बचेगा
अपनी फ़िक्र कीजिए
अपनी ख़ैर मनाइए
जाइए भाग जाइए
ये देश तुम्हारा नहीं है
...
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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