ख़बरों के आगे–पीछे: तहव्वुर राणा तो ‘छोटी मछली’, मास्टर माइंड कहां है?

भारत सरकार 'छोटी मछली’ पाकर ही ख़ुश!
अमेरिका ने 16 साल पहले 26/11 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के एक आरोपी तहव्वुर राणा को भारत भेज दिया है तो सारा देश खुशी मना रहा है। लेकिन भाजपा और मीडिया कुछ ज्यादा ही खुश और उत्साहित है। वे इसे नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक सफलता के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं। लेकिन भारत के गृह सचिव रहे जीके पिल्लई इस बात से बहुत खुश नहीं है। उन्होंने कहा है कि राणा तो बहुत छोटी मछली है। बड़ा दोषी, बल्कि मुख्य साजिशकर्ता तो डेविड कोलमैन हेडली है, जिसे अमेरिका ने भारत नहीं भेजा।
जीके पिल्लई का यह कहना इसलिए अहम है क्योंकि वे मुंबई आतंकी हमले के बाद भारत के गृह सचिव बने थे और उनके समय में भारत ने हेडली को अमेरिका से लाने का प्रयास किया था। लेकिन अमेरिका ने उसे भेजने से इनकार कर दिया क्योंकि वह अमेरिका का एजेंट था और डबल क्रॉस करके पाकिस्तानी खुफिया एजेसी आईएसआई का भी एजेंट बन गया था। उसकी मां अमेरिकी थी और बाप पाकिस्तानी था। लेकिन उसने अपने पासपोर्ट पर सिर्फ मां का नाम रखा था, जिससे कभी उस पर पाकिस्तानी होने का संदेह नहीं हुआ। उसने ही मुंबई पर हमले की साजिश रची और उसको अंजाम देने का बंदोबस्त किया। लेकिन अमेरिका ने उसे भारत को सौंपने से इसलिए मना कर दिया कि उसने प्ली बारगेनिंग कर ली है यानी अपराध स्वीकार कर लिया है और उस डील के तहत उसको जो सजा होना थी, वह वहां हो गई। भारत सरकार भी उस पर ध्यान नहीं दे रही हैं, क्योंकि उसे भी तहव्वुर राणा में ज्यादा दिलचस्पी है। मुस्लिम नाम होने की वजह से तहव्वुर राजनीतिक रूप से ज्यादा कीमती है।
क़ानून का विरोध करना भी अब देशद्रोह?
दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में संसद से पारित कानूनों का नागरिक समूह और राजनीतिक दल विरोध करते हैं, लेकिन विरोध करने वालों को कोई भी गद्दार या देशद्रोही नहीं कहता है। भारत में भी आजादी के बाद कई कानून बने जिनका व्यापक विरोध हुआ लेकिन विरोध करने वालों को कभी किसी ने गद्दार नहीं किया या सरकार ने उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया। लेकिन अब भाजपा ने संसद से पारित कानून का विरोध करने वालों को गद्दार मानना शुरू कर दिया है।
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात आदि कई राज्यों में भाजपा की ओर राहुल गांधी, शरद पवार, लालू प्रसाद, अखिलेश यादव आदि नेताओं की तस्वीर वाले पोस्टर लगाए गए हैं जिन पर लिखा है, ''वक्फ बिल का विरोध करने वाले गद्दार।’’ उत्तर प्रदेश में तो कानून का विरोध करने पर नोटिस भेजे जा रहे हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों तीन अप्रैल को संसद से पास हुए वक्फ कानून के खिलाफ चार अप्रैल को मुजफ्फरनगर में जुमे की नमाज अदा करने गए लोगों ने बांह पर काली पट्टी बांध कर इस कानून का विरोध जताया। सरकार ने ऐसे लोगों की पहचान की और करीब तीन सौ लोगों को नोटिस भेज कहा कि वे थाने पहुंच कर दो लाख रुपए का मुचलका जमा कराएं और दो जमानतदार अपने साथ लेकर आएं।
काली पट्टी बांध कर या सड़क पर भी उतर कर सरकार के बनाए कानून का विरोध करना अपराध कैसे हो गया? क्या हिंदू समुदाय के लोग भी किसी कानून का इस तरह से विरोध करते हैं तो उनको भी नोटिस भेजा जाएगा? माना जा रहा है कि दो साल बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव तक इस तरह के काम होते रहेंगे, जिनसे यह मैसेज बने कि सरकार मुसलमानों को टाइट कर रही है।
अब नहीं उतरेंगे पेट्रोल-डीजल के दाम
शायद केंद्र सरकार ने सोच लिया है कि चाहे जो हो जाए, अब पेट्रोल और डीजल के दामों कमी नहीं करनी है। सरकार को लगता है कि लोगों की अब महंगे दामों पर पेट्रोल-डीजल खरीदने की आदत पड़ गई है और वे कोई शिकायत नहीं कर रहे हैं। इसलिए अगर अभी दो-चार रुपये प्रति लीटर की कटौती हो जाए तो उनको ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन अगर उसके बाद फिर कभी दाम बढ़ाने की जरुरत पड़ी तो मुश्किल होगा। यानी दाम घटा कर जितना लाभ होगा, उससे ज्यादा नुकसान फिर दाम बढ़ाने पर होगा। इसलिए दाम स्थिर रखने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम कम हुए तो उसका लाभ जनता को देने की बजाय सरकार ने खुद लेने का फैसला किया है। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों के कारण दुनिया भर में मंदी की आशंका है और उसी वजह से तेल सहित तमाम कमोडिटी के दाम घटे हैं। कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। फिर भी दाम कम करने की बजाय सरकार ने दो रुपए उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया और उसका बोझ तेल कंपनियों पर डाल दिया। अब कच्चा तेल महंगा होगा और सरकार उत्पाद शुल्क घटाएगी भी तो फायदा कंपनियों को ही देगी। दूसरी ओर रसोई गैस के सिलेंडर पर 50 रुपए की और सीएनजी की कीमत में एक रुपए प्रति किलो की बढ़ोतरी का बोझ जनता पर डाल दिया गया है।
प्रधानमंत्री को ऐसा करना शोभा नहीं देता
तमिलनाडु में एक साल बाद चुनाव है और भाजपा किसी तरह से वहां पैर रखने की जगह हासिल करने में लगी है। दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता है कि प्रधानमंत्री राज्य के दौरे पर जाएंगे तो मुख्यमंत्री का मजाक बनाएंगे और उसको चिढ़ाने वाली ओछी बातें कहेंगे? मुख्यमंत्री स्टालिन ने निश्चित ही प्रोटोकॉल तोड़ा और प्रधानमंत्री की अगवानी करने नहीं गए। स्टालिन ने गलती की लेकिन प्रधानमंत्री ने भी राज्य के लोगों की संवेदनशीलता को समझे बगैर भाषा के सवाल पर स्टालिन को चिढ़ाया।
उन्होंने कहा कि तमिल का गौरव बना रहे इसके लिए कम से कम मुख्यमंत्री तमिल में दस्तखत तो करें। सवाल है कि क्या देश के प्रधानमंत्री को ऐसी बात करना शोभा देता है? मोदी खुद भाषाई आधार पर बने एक राज्य से आते हैं लेकिन क्या गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए गुजराती भाषा का गौरव बढ़ाने के लिए उन्होंने कभी गुजराती में दस्तखत किए? गुजरात में रहते हुए वे हमेशा सिर्फ छह करोड़ गुजरातियों की बात करते थे, जैसे अभी स्टालिन तमिल लोगों की बात करते हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री ने कहा कि स्टालिन मेडिकल की पढ़ाई तमिल में कराएं। यह बात भी स्टालिन के तमिल प्रेम पर उनको चिढ़ाने के लिए ही कही गई। सारे देश में हिंदी को प्रमुखता दिलाने में लगी मोदी सरकार पहले मेडिकल और इंजीनियरिंग का एक भी बैच हिंदी में पढ़ा कर निकाले फिर राज्यों को चिढ़ाए तो बात समझ में आएगी।
बिहार में शुरू हुआ अमृत काल
बिहार में छह महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले देश के इस सबसे पिछड़े और गरीब प्रदेश का कम से कम छह-सात महीने के लिए अमृत काल शुरू हो गया है। इस छह-सात महीनों के दौरान बिहार में बहुत सारे वादे किए जाएंगे। बिहार एकमात्र राज्य है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी गारंटी का राग नहीं अलापते हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने 11 साल पहले मोतिहारी में कहा था कि अगली बार जब वे मोतिहारी आएंगे तो यहां की बंद पड़ी चीनी मिल की बनी चीनी की चाय पिएंगे। लेकिन 11 साल बाद भी चीनी मिल बंद है। इसी तरह उन्होंने 10 साल पहले बिहार के लिए सवा लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया था। आज तक लोग उस पैकेज को खोज रहे हैं।
बहरहाल, चुनाव से पहल शुरू हुए अमृत काल में दिल्ली से पटना तक अमृत भारत हाईस्पीड ट्रेन और नई वंदे भारत ट्रेन चलाने की घोषणा की गई है। सूत्रों के मुताबिक चुनाव के मद्देनजर अगले छह-सात महीने के दौरान शादी के सीजन, गर्मी की छुट्टियों और फिर छठ के लिए बिहार के लोगों की भीड़ का अंदाजा लगा कर बड़ी तैयारी हो रही है, क्योंकि अगर लोग भेड़-बकरियों की तरह लद कर पहुंचे तो चुनाव में नुकसान हो सकता है। अमृत काल में पटना हवाईअड्डे के नए टर्मिनल का भी उद्घाटन होने जा रहा है। केंद्रीय मंत्रियों के लगातार दौरे हो रहे हैं। इस महीने प्रधानमंत्री का दौरा भी होने वाला है। सो, बिहार के लोगों को कमर कस कर नई घोषणाएं सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए।
एक मुख्यमंत्री के मुंह से मवाली की भाषा
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की बदजुबानी की कई मिसालें हैं। कई लोगों ने उनकी पुरानी सोशल मीडिया पोस्ट्स निकाल कर साझा की हैं, जिनमें उन्होंने दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर विपक्ष के अनेक नेताओं के बारे बेहद आपत्तिजनक, अभद्र और अश्लील टिप्पणियां की हैं। अब वे मुख्यमंत्री के रूप में भी विपक्षी नेताओं को लेकर इसी तरह की अभद्र और आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रही हैं, जिससे लोगों को कहना के मौका मिल रहा है कि 'अन्य योग्यताओं’ के साथ-साथ अभद्र भाषा ने भी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में बड़ा योगदान दिया है।
इस सिलसिले में और कई मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की मिसालें हैं, जिन्हें उनकी बदजुबानी के लिए पुरस्कृत किया गया है। बहरहाल, रेखा गुप्ता पिछले कुछ दिनों से कई विपक्षी नेताओं पर की गई अपनी टिप्पणियों के कारण विवाद मे फंसी हैं। दरअसल एक टीवी चैनल का उजड्ड एंकर रेखा गुप्ता से इंटरव्यू के दौरान रैपिड फायर राउंड में हर नेता के बारे में एक शब्द में उनकी राय पूछ रहा था। इसी क्रम में उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को 'टोटी चोर’, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को 'बेवकूफ’, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को 'गुड फॉर नथिंग’ और कन्हैया कुमार के लिए 'देश तोड़ो’ का जुमला बोला। कायदे से तो किसी पार्टी के प्रवक्ता को अपनी विरोधी पार्टियों के नेताओं के बारे में ऐसी बातें करनी नहीं चाहिए और अगर करे तो एंकर को टोकना चाहिए। लेकिन जब एंकर भी मवाली जैसा व्यवहार करे तो कोई क्या कर सकता है?
वादों से मुकरती महाराष्ट्र सरकार
चुनावों में राजनीतिक पार्टियां जो बड़े-बड़े वादे कर रही हैं, सत्ता में आने के बाद उन वादों को पूरा करना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार इसकी ताजा मिसाल है। राज्य की देवेंद्र फड़णवीस सरकार एक भी चुनावी वादा पूरा नहीं करने जा रही है और सरकार ने इसका ऐलान भी कर दिया है। यानी डंके की चोट पर सरकार ने कहा है कि उसने चुनाव से पहले जो कहा है उसे पूरा नहीं करेगी।
पहला वादा महिलाओं के लिए चल रही लाड़की बहिन योजना के तहत 2100 रुपए हर महीने देने का है। सरकार ने ऐलान कर दिया है कि वह डेढ़ हजार रुपया महीना ही देगी। गौरतलब है कि राज्य की एकनाथ शिंदे सरकार ने महिलाओं को डेढ़ हजार रुपए देना शुरू किया था। लेकिन भाजपा ने चुनाव में इसे बढ़ा कर 2100 रुपए महीना करने का वादा किया था। अब बजट में डेढ़ हजार रुपए के हिसाब से ही प्रावधान किया गया है। इसी तरह किसानों की कर्ज माफी के मसले पर भी सरकार पीछे हट गई। राज्य के वित्त मंत्री अजित पवार ने किसानों से कहा है कि वे कर्ज की राशि चुकता करे और इस इंतजार में नहीं रहे कि सरकार कर्ज माफी करने जा रही है। हालांकि बाद में भाजपा, शिव सेना की ओर से सफाई दी गई लेकिन अजित पवार ने किसानों को बहुत साफ मैसेज दे दिया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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