मास्टर स्ट्रोक या U टर्न: जाति जनगणना के लिए मजबूर हुई मोदी सरकार!

मोदी सरकार ने आगामी आम जनगणना के साथ जाति जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है। सरकार इसे अपनी एक उपलब्धि की तरह पेश कर रही है लेकिन इसे वास्तव में विपक्ष की ही जीत माना जा रहा है।
जाति जनगणना की मांग बेहद पुरानी है और विपक्ष ख़ासकर राहुल गांधी पिछले कुछ सालों से इसको लेकर सरकार पर लगातार दबाव बनाए हुए थे, लेकिन इस घोषणा की टाइमिंग ने सबको चौंका ज़रूर दिया है। क्योंकि इस समय जब पहलगाम हमले को लेकर कार्रवाई की बात कही जा रही थी और पूरा गोदी/कॉरपोरेट मीडिया युद्ध का माहौल बनाए हुए था, उस समय लगातार हो रहीं हाई लेवल मीटिंग के बाद अचानक जाति जनगणना का ऐलान किसी को समझ में नहीं आया। यही वजह है कि इसे पहलगाम मुद्दे से ध्यान हटाने और बिहार चुनाव के संदर्भ में देखा-समझा जा रहा है।
बुधवार, 30 अप्रैल की शाम केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव अचानक मीडिया के सामने आते हैं और घोषणा करते हैं कि केंद्र सरकार आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करेगी। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (CCPA) की बैठक में लिया गया।
यह एक तरीके से मोदी सरकार का यू टर्न है। सरकारी प्रवक्ता और मीडिया भले ही इसे मोदी जी का एक और मास्टर स्ट्रोक बताए और कहे कि मोदी जी ने विपक्ष से उसका बड़ा मुद्दा छीन लिया, लेकिन हक़ीक़त यही है कि मोदी सरकार, विपक्ष का एजेंडा अपनाने पर ही मजबूर हुई है।
अब बीजेपी समेत एनडीए के सभी दल इस फ़ैसले का स्वागत कर रहे हैं। लेकिन जाति जनगणना के मुद्दे पर बीजेपीऔर मोदी सरकार ने कभी अपना रुख़ साफ़ नहीं किया और हमेशा लगभग इंकार की मुद्रा में रही है। सरकार के कई मंत्री और बीजेपी नेताओं ने सार्वजनिक रूप से जाति जनगणना का विरोध भी किया है। और ऐसी मांग करने वालों को हिंदू विरोधी और हिंदू धर्म तोड़ने की साज़िश के तौर पर प्रचारित किया। अब यह वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हैं।
यही नहीं पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी बीजेपी की जो पहली पोस्ट सामने आती है उसमें भी यही लिखा गया था कि– धर्म पूछा, जाति नहीं। इसे बीजेपी छत्तीसगढ़ के सोशल हैंडल से जारी किया गया था।
लेकिन अब अचानक मोदी सरकार का रुख़ बदल गया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जाति आधारित जनगणना से समाज के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण में मदद मिलेगी और देश की प्रगति सुनिश्चित होगी।
Under the leadership of Prime Minister @narendramodi, the #Cabinet Committee on Political Affairs has decided today that Caste enumeration should be included in the forthcoming census. This demonstrates that the government is committed to the values and interests of the society… pic.twitter.com/kghauMqR1h
— PIB India (@PIB_India) April 30, 2025
उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों द्वारा कराए गए जातिगत सर्वेक्षण राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित और अपारदर्शी थे, जिससे समाज में संदेह की स्थिति उत्पन्न हुई। अब केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि जातिगत जानकारी को सर्वेक्षण के बजाय मुख्य जनगणना के माध्यम से एकत्र किया जाएगा, जिससे पारदर्शिता बनी रहेगी।
उन्होंने इस निर्णय का बचाव करते हुए कांग्रेस और उसके INDIA गठबंधन पर आरोप लगाया कि उन्होंने जातिगत जनगणना को हमेशा राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया है।
अश्विनी वैष्णव जो आरोप विपक्ष पर लगा रहे हैं वास्तव में वह अब उन्हीं पर लग रहे हैं। क्योंकि इस पूरी कवायद को बिहार चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है, जो इसी साल नवंबर-दिसंबर में होने हैं।
लेकिन यहां भी एक पेच है–बिहार में नीतीश सरकार जाति जनगणना कहें या जाति सर्वे करा चुकी है और वहां इससे आगे की मांग यानी जाति के आंकड़ों के अनुसार नई विकास योजनाओं और आरक्षण की सीमा 65 फ़ीसद तक बढ़ाने की मांग की जा रही है। यानी वहां अब केवल जाति जनगणना मुद्दा नहीं है बल्कि इससे आगे के क्रियान्वयन का मुद्दा है। इसलिए इससे बिहार में बीजेपी या नीतीश की गठबंधन सरकार को क्या फ़ायदा मिलेगा यह भी एक सवाल है।
बिहार की राजनीति के जानकारों का भी यही कहना है कि लगता है कि इस दांव से बीजेपी नीतीश बाबू की बची-खुची ज़मीन भी खिसकाने की कोशिश कर रही है। क्योंकि यहां जाति गणना कराने का श्रेय नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की महागठबंधन सरकार को है।
बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण 2023 में कराया गया था। इस दौरान बिहार में महागठबंधन यानी नीतीश कुमार के नेतृत्व में जनता दल (यूनाइटेड) [JDU], राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और वाम दलों की गठबंधन सरकार सत्ता में थी।
बिहार में यह ऐसा मुद्दा था कि बीजेपी को न चाहते हुए भी मजबूरी में समर्थन करना पड़ा था। इसलिए माना जा रहा है कि अब इसके जरिये यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि हम पूरे देश में जाति जनगणना कराने जा रहे हैं यानी पिछड़ों के सामाजिक आधार में बीजेपी की सेंध लगाने की यह एक ओर कोशिश है। और इसके जरिये नीतीश बाबू को अगले चुनाव में सियासी तौर पर ‘निपटाने’ की भी कोशिश है।
कब होगी यह जनगणना
हमारे देश में हर दस साल में आम जनगणना का नियम है। आख़िरी जनगणना 2011 में हुई थी। इस हिसाब से अगली जनगणना 2021 में पूरी हो जानी थी लेकिन कोविड-19 महामारी के नाम पर इसे स्थगित कर दिया गया और इतना टाला गया कि अभी 2025 में भी इसका काम शुरू नहीं हो पाया है। अब सरकार ने इसमें जाति जनगणना भी जोड़ी है तो लगता है कि इसमें और देर होगी क्योंकि जनगणना फॉर्म को शायद अपडेट करना होगा। सरकार ने कहा कि वह जनगणना जल्द शुरू करने की तैयारी में है, लेकिन सटीक समयसीमा की घोषणा अभी नहीं की गई है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यही सवाल उठाया है और एक समय सीमा तय करते हुए इससे आगे का भी रोड मैप मांगा है। सरकार की घोषणा के बाद राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें कहा कि यह हमारा विजन था, जिसे सरकार ने एडाप्ट किया है, हम इसका स्वागत और समर्थन करते हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि यह पहला क़दम है–
LIVE: Press Conference | AICC Office, New Delhi https://t.co/DwEZrmT1aC
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 30, 2025
अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल ने जाति जनगणना के तेलंगाना मॉडल का भी ज़िक्र किया और सरकार से उसे अपनाने की मांग की।
दरअसल तेलंगाना में दिसंबर 2023 में चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और सत्ता में आने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने जाति आधारित सर्वेक्षण (समग्र सामाजिक सर्वे) कराने का ऐलान किया था। नवंबर 2024 में इस सर्वे की शुरुआत हुई और दावा किया जाता है कि दिसंबर 2024 तक इसमें 96% आबादी को कवर कर लिया गया था।
राहुल गांधी ने इस मॉडल को बिहार के मॉडल से बेहतर बताते हुए कहा कि यह एक विस्तृत परामर्श प्रक्रिया के तहत तैयार किया गया है और इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जा सकता है।
कर्नाटक में भी 2015 में ऐसा सर्वे हुआ था। तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के तहत सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण (Socio-Economic and Educational Survey) कराया था, लेकिन इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। सिद्धारमैया ने अपने दूसरे कार्यकाल में 2025 में इसे कैबिनेट के सामने पेश किया।
हालांकि राहुल गांधी इसे अपना मॉडल नहीं बताते, क्योंकि इसके नतीजों को लेकर काफ़ी विवाद रहा।
अब मोदी सरकार की घोषणा के बाद राहुल गांधी क्रेडिट लेने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते।
उन्होंने सोशल मीडिया X पर भी लिखा–
“कहा था ना, मोदी जी को ‘जाति जनगणना’ करवानी ही पड़ेगी, हम करवाकर रहेंगे!
यह हमारा विज़न है और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सरकार एक पारदर्शी और प्रभावी जाति जनगणना कराए। सबको साफ़-साफ़ पता चले कि देश की संस्थाओं और power structure में किसकी कितनी भागीदारी है।
जाति जनगणना विकास का एक नया आयाम है। मैं उन लाखों लोगों और सभी संगठनों को बधाई देता हूं, जो इसकी मांग करते हुए लगातार मोदी सरकार से लड़ाई लड़ रहे थे - मुझे आप पर गर्व है।”
कहा था ना, मोदी जी को ‘जाति जनगणना’ करवानी ही पड़ेगी, हम करवाकर रहेंगे!
यह हमारा विज़न है और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सरकार एक पारदर्शी और प्रभावी जाति जनगणना कराए। सबको साफ़-साफ़ पता चले कि देश की संस्थाओं और power structure में किसकी कितनी भागीदारी है।
जाति जनगणना विकास का…
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 30, 2025
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और सांसद अखिलेश यादव ने भी इसे INDIA की जीत बताया। उन्होंने लिखा–
“जाति जनगणना का फ़ैसला 90% पीडीए की एकजुटता की 100% जीत है। हम सबके सम्मिलित दबाव से भाजपा सरकार मजबूरन ये निर्णय लेने को बाध्य हुई है। सामाजिक न्याय की लड़ाई में ये पीडीए की जीत का एक अतिमहत्वपूर्ण चरण है।
भाजपा सरकार को ये चेतावनी है कि अपनी चुनावी धांधली को जाति जनगणना से दूर रखे। एक ईमानदार जनगणना ही हर जाति को अपनी-अपनी जनसंख्या के अनुपात में अपना वो अधिकार और हक़ दिलवाएगी, जिस पर अब तक वर्चस्ववादी फन मारकर बैठे थे।
ये अधिकारों के सकारात्मक लोकतांत्रिक आंदोलन का पहला चरण है और भाजपा की नकारात्मक राजनीति का अंतिम। भाजपा की प्रभुत्ववादी सोच का अंत होकर ही रहेगा। संविधान के आगे मनविधान लंबे समय तक चल भी नहीं सकता है।
ये INDIA की जीत है!”
जाति जनगणना का फ़ैसला 90% पीडीए की एकजुटता की 100% जीत है। हम सबके सम्मिलित दबाव से भाजपा सरकार मजबूरन ये निर्णय लेने को बाध्य हुई है। सामाजिक न्याय की लड़ाई में ये पीडीए की जीत का एक अतिमहत्वपूर्ण चरण है।
भाजपा सरकार को ये चेतावनी है कि अपनी चुनावी धांधली को जाति जनगणना से दूर… pic.twitter.com/n7oszx3v0N
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) April 30, 2025
आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी इसे उनकी वैचारिक जीत बताया है–
उन्होंने X पर लिखा– “हमारी वैचारिक जीत, सामाजिक न्याय की हमारी लड़ाई अब अगले पड़ाव पर। जो आज हम करते है वो बाकी 35-40 साल बाद सोचते है।
अब हम पिछड़ों/अतिपिछड़ों के लिए विधानसभा, विधानपरिषद, लोकसभा और राज्यसभा में सीटें आरक्षित करेंगे। मंडल कमीशन की अनेक सिफारिशें भी अभी लागू होना शेष है। सामाजिक न्याय ज़िंदाबाद!”
हमारी वैचारिक जीत, सामाजिक न्याय की हमारी लड़ाई अब अगले पड़ाव पर।
जो आज हम करते है वो बाकी 35-40 साल बाद सोचते है।
अब हम पिछड़ों/अतिपिछड़ों के लिए विधानसभा, विधानपरिषद, लोकसभा और राज्यसभा में सीटें आरक्षित करेंगे। मंडल कमीशन की अनेक सिफारिशें भी अभी लागू होना शेष है।
सामाजिक…
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) April 30, 2025
उन्होंने अपने पिता और पूर्व मुख्यमंंत्री लालू प्रसाद यादव के भी एक ट्वीट को रिट्वीट किया–
हम क्या बोले थे?
1990 में मंडल कमीशन लागू करवाने के बाद, हमने सारा ध्यान जाति जनगणना पर लगाया, बिना डरे झुके संघियों की आँख में आँख डाल ललकारा, बारंबार केंद्र सरकार नकारती रही लेकिन आखिरकार उन्हें झुकना पड़ा।
हम समझौतावादी नहीं बल्कि कट्टर समाजवादी है।
जो कहते है उसे पूरा करते… pic.twitter.com/tAIFUdPzWl— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) April 30, 2025
वाम दलों ने भी इस घोषणा का स्वागत किया है। लेकिन अपने सवाल भी सामने रखे हैं–
सीपीआई-एम के नव-निर्वाचित महासचिव एमए बेबी ने X पर लिखा–
"जाति जनगणना को आम जनगणना का हिस्सा बनाने का CCPA का निर्णय विपक्ष, जिसमें सीपीआई(एम) भी शामिल है, की सर्वसम्मत मांग के प्रति एक देर से आया हुआ जवाब है। हालांकि, अब भी कोई ठोस समयसीमा घोषित नहीं की गई है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए जातीय सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण बेहद ज़रूरी है ताकि सरकारी नीतियाँ वास्तव में समावेशी बन सकें।"
Decision of CCPA to include caste census as part of the general census is a belated response to the unanimous demand of opposition, including the CPIM. However, even now there is no timeline given. Caste socio-economic survey is essential to ensure social justice in govt policies
— M A Baby (@MABABYCPIM) April 30, 2025
पार्टी ने भी एक ट्वीट करके बताया कि आज़ाद भारत में पहली जाति जनगणना का श्रेय कम्युनिस्ट पार्टी को ही जाता है। -
“आज़ाद भारत में पहली जाति जनगणना केरल में ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार ने कराई थी। यह सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण 1968 में आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य विभिन्न जातियों की सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का आकलन करना था।
यह स्वतंत्र भारत की पहली और लंबे समय तक एकमात्र जाति आधारित गणना थी। इसके बाद दूसरी बार 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कराई गई, जो पूरे देश के स्तर पर थी।”
The EMS-led Communist government in Kerala held the first caste census in independent India. The Socio-Economic Survey of 1968, conducted in Kerala, aimed to assess the social and economic backwardness of various castes. It was the only caste-based count in post-independence…
— CPI (M) (@cpimspeak) May 1, 2025
सीपीआई महासचिव डी राजा ने भी इस मुद्दे पर अपनी पार्टी का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि–
विपक्षी दलों जिसमें सीपीआई भी शामिल है, के निरंतर दबाव और आंदोलन ने केंद्र सरकार को जाति जनगणना कराने पर मजबूर किया है।
उन्होंने सरकार की घोषणा को "चेहरा बचाने की कोशिश" बताया और 2021 से लंबित आम जनगणना में देरी की आलोचना की। उन्होंने सरकार से जनगणना की समयसीमा तय करने की मांग की है।
साथ ही, पार्टी ने आरक्षण पर 50% की सीमा को हटाने और सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियों को बढ़ाने की मांग दोहराई है। उसके अनुसार, इन संरचनात्मक सुधारों के बिना जाति जनगणना सामाजिक न्याय के उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएगी।
The consistent pressure and mobilization by opposition parties, including the @CPI_National, has compelled the Union Government to undertake a #CasteCensus. CPI has been at the forefront of this demand, advocating for a caste-based enumeration that truly and scientifically… pic.twitter.com/zNsLlRV9v7
— D. Raja (@ComradeDRaja) April 30, 2025
सीपीआई-एमएल (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने एक बयान जारी कर कहा–
“2024 के संसदीय चुनावों में जाति जनगणना इंडिया गठबंधन की एक प्रमुख मांग रही है। बिहार में पहले ही 2023 में जाति गणना हो चुकी है। मोदी सरकार द्वारा राज्य स्तरीय सर्वेक्षणों को राजनीति से प्रेरित बताना हास्यास्पद है, जबकि आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल करने का निर्णय बहुत देरी से घोषित किया गया है। आम जनगणना पहले से ही चार साल से विलंबित है। जाति सर्वेक्षण करने वाले राज्यों और इस मांग का समर्थन करने वाले विपक्ष को निशाना बनाने की बजाय, मोदी सरकार को बिहार विधानसभा द्वारा पारित किए गए 65 प्रतिशत आरक्षण नीति के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। खोखली बयानबाजी नहीं, बल्कि कार्रवाई होनी चाहिए!”
उन्होंने कार्टूनिस्ट मंजुल के कार्टून को साझा करते हुए X पर एक ट्वीट भी किया–
“जाति जनगणना कराने की मंशा की घोषणा की गई है। अब सवाल यह है कि कब और कैसे। मुद्दा यह है कि पूर्ण रूप से सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जाए, गहराई से जमी हुई विशेषाधिकारों की संरचना को समाप्त किया जाए और वास्तव में समावेशी तथा समानतामूलक सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे!”
The intent to have a #CasteCensus has been announced. The question now is when and how. The issue is to secure social justice in full, destroy the well-entrenched pattern of privileges and ensure a truly inclusive and egalitarian social order. We shall fight, we shall win! pic.twitter.com/zztC1ykmGT
— Dipankar (@Dipankar_cpiml) May 1, 2025
कब हुई थी पहली और आख़िरी जाति जनगणना
आपको बता दें कि 1881 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में पहली बार जनगणना आयोजित की गई थी, जिसमें जाति आधारित आंकड़ों का भी संग्रह किया गया था। 1931 में आख़िरी बार ब्रिटिश सरकार ने सभी जातियों की गणना की। इस जनगणना के आंकड़ों के आधार पर मंडल आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जनसंख्या को कुल आबादी का लगभग 52% बताया था।
स्वतंत्र भारत में 1951 से 2011 तक की सभी जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जनसंख्या का ही आंकड़ा अलग से एकत्र किया गया। अन्य जातियों, विशेषकर OBC, की गणना नहीं की गई।
यूपीए सरकार के कार्यकाल में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) का आयोजन किया गया। यह आज़ाद भारत में पहली बार था जब जाति आधारित व्यापक सर्वेक्षण किया गया, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए।
अब देखना है कि 2021 से टाली जा रही आम जनगणना और उसके साथ जाति जनगणना कब शुरू हो पाती है और सामाजिक बदलाव से पहले राजनीति के मैदान में अभी और क्या-क्या नए गुल खिलाती है।
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