भारत-पाकिस्तान: संघर्ष विराम से उठते सवाल

अलकायदा के आतंकवादियों ने 11 सितंबर 2001 को न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और पेंसिलवानिया में एक साथ आतंकी हमला किया। आतंकवादियों ने दो यात्री विमान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टावर में घुसा दिए थे। तीसरा हमला पेंटागन के पास और चौथा क्रैश पेंसिलवानिया में हुआ था। इस हमले में कुल 2996 लोग मारे गए थे। हमले के पीछे अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन का हाथ था। तभी अमेरिका ने ठान लिया था कि वह इसका बदला लेगा और आतंकवाद को खत्म करेगा। उसके करीब दस साल बाद अमेरिका ने 2 मई 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में कड़ी सुरक्षा के बीच छिपे ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था। यह पहला अवसर था जब किसी देश ने बिना संबंधित देश को सूचना दिए उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करते हुए उस देश में घुसकर अपने दुश्मन को खुलेआम मार गिराया था। अमेरिकी लड़ाकू विमान रात में आये उन्होंने आसमान से ही ठीक उस मकान को निशाना बनाया जहां ओसामा छिपा हुआ था और उसकी लाश लेकर चले गये। तब इसे बहुत आश्चर्य जनक घटना माना गया था कि ऊंचाई से मिसाइल दागकर उस घर को ही उड़ा दिया गया और अगल-बगल के घरों को थोड़ा भी नुकसान नहीं पहुंचा।
तब पाकिस्तान के आतंकवाद से पीड़ित भारत में एक सवाल उठा था कि क्या भारत भी ऐसा कर सकता है ? जवाब सेना की ओर से दिया गया था। भारत के पास भी ऐसा कर सकने की क्षमता है। अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा को मार गिराया, उसकी लाश ले गया, पाकिस्तान की संप्रभुता छीन ली लेकिन उस पर पाकिस्तान ने चूं तक नहीं की लेकिन जब भारत की ओर से कहा गया कि उसके पास भी ऐसा कर गुजरने की क्षमता है तो उसने घोर आपत्ति जताई और कहा कि पाकिस्तानी सेनाएं खामोश नहीं बैठेंगी।
14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों का आत्मघाती हमला हुआ जिसमें भारतीय सेना के 40 जवान मारे गए। उसके 12 दिन बाद 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना के 12 मिराज 2000 जेट्स ने नियंत्रण रेखा पार किया और बालाकोट में जैश ए मोहम्मद द्वारा संचालित आतंकवादी शिविर पर हमला किया। इस हमले में करीब 300 आतंकवादियों के मारे जाने की बात सामने आई। भारतीय सेना ने हमला तो किया लेकिन इसमें ओसामा बिन लादेन वाला कारनामा नहीं था।
अब 22 अप्रैल 2025 को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या कर दी। पूरा देश इस हमले से गमगीन हो गया। बदला लेने की बात पूरे देश से उठने लगी। देश के लोगों के साथ ही विपक्ष ने भी खुलकर सरकार का समर्थन किया। नतीजा 15 दिन बाद 6-7 मई की रात को सामने आया। सेना ने बिना अंतरराष्ट्रीय सीमा पार किये अपने ही आकाश से पाकिस्तानी आतंकवादियों के नौ ठिकानों को जमींदोज कर दिया। पाकिस्तान कुछ भी नहीं कर सका। यह कार्रवाई करीब-करीब वैसी ही थी जैसी अमेरिका ने ओसामा को मारने के लिए की थी।
इस घटना से खिसियाए पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के राजौरी और पुंछ क्षेत्रों में सीज फायर तोड़ते हुए लगातार भारी गोली बारी शुरू कर दी। भारतीय पक्ष से कई लोगों की जान गई। फिर भी भारतीय जवानों ने संयम का परिचय दिया। उन्होंने सिर्फ पाकिस्तानी फायरिंग का जवाब दिया। जब बात बनती नहीं दिखी तो पाकिस्तान ने भारत के करीब 15 शहरों को निशाना बनाने की कोशिश की जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया। जवाब में उसने फिर संयम बरतते हुए पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर दिया ताकि वह भविष्य में ऐसे हमलों की योजना न बना सके। भारत ने आक्रामक रणनीति नहीं अपनाई। वह उसकी सीमा क्षेत्र में नहीं घुसा। यह भारत का बड़प्पन है। उसने पाकिस्तान को मौका दिया कि वह जल्दी शांत हो जाए। उसने उसे चेताया कि वह चाहे तो कुछ घंटों में ही उसके काफी शहरों को ध्वस्त कर सकता है लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। बावजूद इसके पाकिस्तान नहीं माना और ड्रोन के जरिये भारत के शहरों पर हमले करने की नाकाम कोशिश में लगा रहा। अब यह भय बढ़ने लगा कि कहीं भारत-पाक के बीच बाकायदा युद्ध न छिड़ जाए। अंतरराष्ट्रीय ताकतें दोनों देशों से संयम बरतने की अपील करने लगीं। अंत में खबर आई कि दोनों देशों के बीच सीज़फायर यानी संघर्ष विराम हो गया है। भारत के लोगों समेत पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली।
संघर्ष विराम से क्या मिला?
क्या पहलगाम पर भारत की प्रतिक्रिया ठीक थी? सारा देश इस मानस का था कि पहलगाम की घटना के लिए पाकिस्तानी आतंकवादियों को सबक सिखाया जाना चाहिए। चूंकि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देता है और उसी की धरती से आकर आतंकवादी भारत में कोहराम मचा रहे हैं इसलिए पाकिस्तान को भी सबक सिखाने की जरूरत है। फिर अमेरिका का उदाहरण हमारे सामने था। अगर वो सबक सिखा सकता है तो हम क्यों नहीं ? भारतीय सेना ने बहुत समझ-बूझ कर फैसला लिया। उसने पाकिस्तान की सीमा पार नहीं की और अपनी सीमा में रहते हुए ही आतंकवादियों के नौ अड्डों को तबाह कर दिया। कायदे से तो पाकिस्तान को भी थोड़ा बहुत फूं-फां करके इस मामले को समाप्त कर देना चाहिए था। आखिर आतंकवादी उसे भी काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। वह उनसे निपटने में अब सक्षम नहीं रह गया है। अगर भारत उन्हें निपटा रहा है तो वे भारत को मौन समर्थन दे सकते थे। लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकता। वहां के हुक्मरानों और सेना का भविष्य भारत विरोध पर ही टिका है, लिहाजा उसने इस घटना को तूल दिया।
यहां तक तो भारत की कार्रवाई संयमित और उचित थी। लेकिन जिस तरह से अचानक संघर्ष खत्म कर दिया गया उसने कई सवाल खड़े कर दिये हैं।
पिछले 17 दिनों से सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा जा रहा था। लेकिन अब लोग सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल तो यही कि संघर्ष विराम का फैसला भारत का है या अमेरिका का? क्या भारत ने अमेरिका के पक्ष में यह फैसला स्वीकार किया? क्योंकि संघर्ष विराम की घोषणा सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने की। बाद में भारत और पाकिस्तान ने किया। अब सवाल पूछा जा रहा है कि क्या भारत का फैसला अब अमेरिका ले रहा है? फिर भारतीय संप्रभुता का क्या होगा? इसी परिप्रेक्ष्य में लोग पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी याद कर रहे हैं जब उन्होंने 1971 में अमेरिकी दबाव को न मानते हुए, उसके जंगी बेड़े की परवाह न करते हुए 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का आत्म समर्पण कराया और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये।
यहां मोदी सरकार को पाकिस्तान के आतंकवादी शिविरों पर हमला करके क्या हासिल हुआ? क्या जिन आतंकवादियों ने पहलगाम में हमला किया उन्हें मार गिराया गया? आपने आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला किया लेकिन जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा के शीर्ष कमांडर तो अभी भी जिंदा हैं। आपने उनके खात्मे के बिना युद्ध विराम कैसे स्वीकार कर लिया? क्या अब वे भविष्य में भारत पर हमलों को अंजाम नहीं देंगे? अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन और उसके दूसरे प्रमुख कमांडरों को मार गिराया, अलकायदा की कमर तोड़ दी, तब जाकर शांत हुआ। उसी का नतीजा है कि 2001 के बाद से अमेरिका में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ। क्या भारत ऐसी कोई गारंटी हासिल कर पाया? यहां तो कुछ भी नहीं हुआ? जिन 80-90 आतंकवादियों को मारने की बात सामने आ रही है उनमें प्रमख आतंकवादी कोई भी नहीं। फिर ऐसा सरकार ने क्यों किया?
एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि जब बदला लेने की बात आई तो मोदी जी ने सारी जिम्मेदारी सेना पर थोप दी। सेना ने बेहतरीन ढंग से पाकिस्तान और आतंकवादियों को सबक सिखाना शुरू किया तो फिर उसे ही इसे अंजाम तक पहुंचाने देते। लेकिन अब इन्होंने सेना को दरकिनार कर खुद युद्ध विराम का फैसला ले लिया।
जीत कर भी हार गए!
अभी तक जो हम लोग देख पा रहे हैं इस अघोषित युद्ध में भारत का पलड़ा भारी था। अब अगर संघर्ष विराम करना ही था तो हम अपनी शर्तों पर कर सकते थे। शर्तें पहलगाम के आतंकियों समेत मसूद अजहर और लखवी समेत उन तमाम आतंकवादियों ( करीब 20, जिनकी मांग भारत पाकिस्तान से पहले से ही करता रहा है, डोजियर बनाकर पाकिस्तान को सौंपा है और पाकिस्तान ने उसे झूठ का पुलिंदा बताकर खारिज कर दिया है।) को सौंपने की हो सकती थी।
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लोग पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को इस बात के लिए दोषी ठहराते हैं कि 1947 में जब भारतीय सेना जीत रही थी और पाकिस्तान में घुस गई थी तो नेहरू इस मामले को संयुक्त राष्ट्र क्यों ले गए? कुछ ही दिनों में पूरा पाक अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा हो गया होता। उसकी वजहें कई थीं जिसे भारतीय जनता पार्टी जानना नहीं चाहती लेकिन अब जब भारत बढ़त बनाये हुए था तो उन्होंने बिना कुछ हासिल किये क्यों युद्ध विराम कर लिया? आखिर भारत को इस युद्ध से क्या मिला ?
रफ़ाल का सच
हवाओं में एक और बात तैर रही है। जब 6-7 मई की रात भारतीय विमानों ने नौ जगहों पर मिसाइलें दागीं तो पाकिस्तान ने कहा था कि उसने भारत के तीन रफ़ाल विमान मार गिराये हैं। उसकी बात पर किसी को भरोसा नहीं हुआ। सबने पाकिस्तान के दावे को शेखचिल्ली का सपना माना। लेकिन अब कुछ पश्चिमी स्रोतों से भी ये बात सामने आ रही है कि तीन तो नहीं लेकिन भारत के दो रफ़ाल विमान मार गिराये गये। एक प्रसिद्ध न्यूज एजेंसी ने अमेरिकी सूत्रों के हवाले से ये खबर चलाई है। कल एक प्रतिष्ठित भारतीय अखबार ने भी खबर छापी है जिसमें बताया गया है कि भारत का एक रफ़ाल विमान मार गिराया गया और एक किसी तरह से वापस लौट सका। अखबार ने तो यहां तक दावा किया है कि पाकिस्तान के वायु क्षेत्र को चीनी रक्षा प्रणाली ने कवर कर लिया था। इसी वजह से भारतीय लड़ाकू विमान पाकिस्तानी क्षेत्र में घुस ही नहीं पाये। जो रफ़ाल मार गिराया गया उसे बहुत बाद में पता चला कि वह मिसाइल के टारगेट पर आ चुका है। तब उसके पास बचने के लिए बहुत ही कम समय था। रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी देश और अमेरिका इस घटना से बहुत चिंतित हैं। उनकी रक्षा प्रणाली चीन की रक्षा प्रणाली के सामने कमजोर साबित हुई है। क्या ये बातें सच हैं ? ऐसा लगता नहीं। भारतीय सेना बहुत मजबूत है। लेकिन सरकार को इन सब बातों का सच बताना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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