आलोचक दलपत सिंह राजपुरोहित को मिला देवीशंकर अवस्थी सम्मान

वर्ष 2024 का देवीशंकर अवस्थी सम्मान युवा आलोचक दलपत सिंह राजपुरोहित को उनकी आलोचना पुस्तक 'सुंदर के स्वप्न : आरंभिक आधुनिकता, दादूपंथ और सुंदरदास की कविता' के लिए प्रदान किया गया।
देवीशंकर अवस्थी के जन्मदिन के अवसर पर 5 अप्रैल, 2025 को नई दिल्ली के साहित्य अकादेमी सभागार में आयोजित सम्मान समारोह में लेखक दलपत सिंह राजपुरोहित की अनुपस्थिति में वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने प्रशस्तिपत्र, स्मृति चिह्न और पच्चीस हजार रुपये की राशि उनकी एवज में उनके दोस्त को प्रदान की।
दलपत सिंह राजपुरोहित का जन्म 16 जून, 1982 को राजस्थान के पाली ज़िले के सोकड़ा गांव में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई। उन्होंने दिल्ली स्थित जेएनयू और प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, कोलकाता से एम.ए., एम.फ़िल. और पी-एच.डी. की डिग्रियां प्राप्त कीं। वे अब अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास (ऑस्टिन) में एशियाई अध्ययन विभाग में पिछले चार साल से असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। इससे पहले एक दशक तक कोलंबिया यूनिवर्सिटी न्यूयॉर्क में हिन्दी-उर्दू के व्याख्याता रहे।
अमेरिका में निज़ाम बदलने यानी डोनाल्ड ट्रंप के शासन में आने के बाद से जिस तरह की उथल-पुथल है और वीज़ा को लेकर संकट है, इस वजह से लेखक राजपुरोहित कार्यक्रम में भारत नहीं आ सके। उनकी अनुपस्थिती में उनका लिखित वक्तव्य उनके दोस्त अजय कुमार यादव ने पढ़कर सुनाया। उन्होंने उनकी ओर से कहा कि इस सम्मान से न केवल मेरा सम्मान हुआ है बल्कि मध्यकालीन साहित्य का भी सम्मान हुआ है। सुंदर दास की लेखनी यह बताती है कि कविता कैसे मंत्र या प्रार्थना का रूप ले सकती है। सत्य की खोज के लिए विवेकपूर्ण और तर्कसंगत आस्था आवश्यक है।
इससे पहले समिति की ओर से अशोक वाजपेयी ने प्रशस्ति वाचन किया। इस वर्ष की सम्मान चयन समिति में अशोक वाजपेयी, मृदुला गर्ग, पुरुषोत्तम अग्रवाल और अनुराग अवस्थी शामिल थे।
आलोचना के क्षेत्र में दिया जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार सुप्रसिद्ध आलोचक दिवंगत देवीशंकर अवस्थी की स्मृति में उनकी धर्मपत्नी कमलेश अवस्थी द्वारा वर्ष 1995 में स्थापित किया गया। यह सम्मान अवस्थी जी के जन्मदिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष 45 वर्ष तक की आयु के किसी युवा आलोचक को दिया जाता है।
अब तक यह सम्मान मदन सोनी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, विजय कुमार, सुरेश शर्मा, शम्भुनाथ, वीरेन्द्र यादव, अजय तिवारी, पंकज चतुर्वेदी, अरविन्द त्रिपाठी, कृष्ण मोहन, अनिल त्रिपाठी, ज्योतिष जोशी, प्रणय कृष्ण, प्रमीला के.पी., संजीव कुमार, जितेन्द्र श्रीवास्तव, प्रियम अंकित, विनोद तिवारी, जितेन्द्र गुप्ता, वैभव सिंह, पंकज पराशर, अमिताभ राय, मृत्युंजय पाण्डेय, राहुल सिंह, आशुतोष भारद्वाज, अच्युतानंद मिश्र, सुजाता, निशांत को प्रदान किया जा चुका है।
विडंबना देखिए कि इस सम्मान की शुरुआत से लगभग हर साल आयोजन में पूरी सक्रियता से शामिल रहने वालीं कमेलश अवस्थी भी इस बार कार्यक्रम में न आ सकीं। दुर्भाग्य से इसी वर्ष 85 वर्ष की उम्र में 2 फ़रवरी 2025 को उनका निधन हो गया।
कार्यक्रम के आरम्भ में उनकी याद में एक मिनट का मौन रखा गया। अशोक वाजपेयी ने कमलेश जी से जुड़ी अपनी स्मृतियों को साझा किया। उन्होंने देवीशंकर अवस्थी सम्मान की यात्रा और आलोचना के विकास में इस सम्मान के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। कमलेश जी को याद करते हुए विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि कमलेश जी एक सांस्कृतिक व्यक्तित्व थीं।
वरिष्ठ लेखक रवीन्द्र त्रिपाठी ने देवीशंकर अवस्थी के लेख ‘नए पुराने के बीच सहअस्तित्व का संघर्ष’ के एक अंश का पाठ किया। इस अवसर पर 'आस्था की विडंबनाएं' विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में सुधा रंजनी, पुरूषोत्तम अग्रवाल और रमाशंकर सिंह ने अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम में दिल्ली स्थित विभिन्न विश्वविद्यालयों के अध्यापक व छात्रों सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं संस्कृतिप्रेमी उपस्थित थे। दिवंगत देवीशंकर अवस्थी के बड़े बेटेअनुराग अवस्थी ने कार्यक्रम में पधारे सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन अशोक वाजपेयी ने किया।
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