किसान आंदोलन : प्रदर्शन स्थलों पर सरकार ने नहीं करवाईं बुनियादी सेवाएं उपलब्ध, वॉलेंटियर्स कर रहे पूरा काम: जेएसए (दिल्ली-हरियाणा चैप्टर)

भारी बारिश ने दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन स्थल को कीचड़ भरा बना दिया है। यहां जगह-जगह पानी भरा हुआ है। सड़कों के किनारे इकट्ठा हुए मैले में मक्खियां अपना घर बना रही हैं। पास ही में एक लंगर के लिए रसोई बनाई जा रही है। जब कोई जरूरी स्वच्छता को लेकर पशोपेश में है, उसी वक़्त थोड़ी दूर एक ट्रक दिखाई पड़ता है, जिसे पंजाब यूथ फोर्स (समराला) के कुछ युवा लेकर आए हैं। ट्रक में बेहद उच्च दर्जे की तकनीक मौजूद है, जिसके ज़रिए सड़क में झाड़ू लगाकर, मैला और पानी खींचना तक शामिल है। इससे कुछ ही मिनटों में पूरी जगह सूखी और साफ हो जाती है।
यह सिंघु बॉर्डर पर एक सामान्य दिन है। प्रदर्शनकारी किसानों को सीमा पर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन कई स्वयंसेवियों और संगठनों के इस तरह के छोटे-छोटे प्रयासों से किसान आंदोलन के लिए भाईचारे और एकता के उदाहरण पेश हो रहे हैं।
11 जनवरी को किसान प्रदर्शन अपने 47 वें दिन में प्रवेश कर चुका है। इस मौके पर जनस्वास्थ्य अभियान ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें प्रदर्शन स्थल पर बुनियादी सुविधाओें का जायजा लिया गया है। रिपोर्ट में स्वच्छता की कमी, अपर्याप्त बिजली व्यवस्था, ठोस मैले के निष्पादन का खराब प्रबंधन, पानी के जमावड़े और गर्म कपड़ों की कमी जैसी चीजें प्रदर्शनकारियों के लिए प्राथमिक चिंता के तौर पर सामने आईं हैं।
यह समस्याएं जनस्वास्थ्य अभियान (जेएसए) के दिल्ली और हरियाणा चैप्टर द्वारा तेजी से किए गए विश्लेषण के आधार पर सामने आई हैं। जेएसए स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सुविधाओं पर एक राष्ट्रीय आंदोलन है, जिसमें 21 राष्ट्रीय नेटवर्क और 150 से ज़्यादा संगठन और राज्य स्तरीय जेएसए मंच शामिल हैं। 19 से 22 दिसंबर, 2020 के बीच पांच प्रदर्शन स्थल- सिंघु, टिकरी, शाहजहांपुर, गाजीपुर और पलवल पर इस विश्लेषण को किया गया था, जिसमें 201 लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं।
जेएसए टीम ने पाया कि राज्य ने लोगों के लिए बुनियादी चीजों की आपूर्ति करवाने के अपने कर्तव्य से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है। किसानों का संघर्ष, बड़ी संख्या में लोगों और संगठनों के स्वयंसेवी रवैये से चल रहा है। रिपोर्ट में केंद्र सरकार, अलग-अलग राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और दूसरे प्रशासन से लोगों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की अपील की गई है।
साफ़-सफ़ाई से संबंधित सुविधाएं
रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के पांचों प्रदर्शन स्थलों पर स्वच्छता सुविधाओं की हालत खस्ता है। लोगों को खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर होना पड़ा है। प्रतिक्रिया देने वाले हर पांच में से दो लोगों ने खुले में शौच की बात कबूली है। दिल्ली सरकार द्वारा कुछ चलित शौचालयों की सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई हैं, लेकिन इनकी संख्या काफ़ी कम है और इन्हें स्थानीय प्रशासन द्वारा नियमित ढंग से साफ भी नहीं किया जाता। क़रीब 70 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि चलित शौचालयों में सफाई नहीं की जाती, जिसके चलते वे उपयोग लायक नहीं हैं।
महिलाओं के सामने स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई संबंधी समस्याएं
सीमा पर महिला प्रदर्शनकारियों के लिए समस्याएं और भी ज़्यादा हैं। रिपोर्ट बताती है कि "शौचालयों के आसपास बिजली की व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे अंधेरा होने के बाद इनका इस्तेमाल मुश्किल हो जाता है।" महिलाओं को और भी ज़्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे खुले में शौच जाना नहीं चाहतीं। महिला प्रदर्शनकारी "शौचालय जाने से बचने के लिए खाना-पानी कम खा-पी रही हैं।" नहाने के लिए कोई भी चौहद्दीबंद और सुरक्षित जगह ना होने के चलते यह महिलाएं कई दिनों तक नहीं नहातीं, जिससे उनकी साफ़-सफ़ाई से समझौता हो रहा है।
कई महिलाओं को खुद ही सेनेटरी पैड्स की व्यवस्था करनी पड़ रही है, क्योंकि प्रदर्शन स्थल पर कम ही स्वास्थ्य कैंप हैं, जिससे इनकी प्रदर्शन स्थल पर उपलब्धता कम ही है। महिलाओं के लिए इन पैड्स का निष्पादन भी चुनौती साबित हो रही है, इसलिए कई महिलाएं कपड़े का इस्तेमाल कर रही हैं।
पीने और दूसरे इस्तेमाल के लिए पानी की उपलब्धता
सर्वे के मुताबिक़, प्रतिक्रिया देने वाले ज़्यादातर लोग या तो पैकिंग वाले पीने के पानी या फिर स्वयंसेवियों द्वारा उपलब्ध कराए गए पानी के टैंकों पर निर्भर हैं। राज्य सरकार द्वारा बमुश्किल ही किसी प्रदर्शन स्थल पर कोई सुविधा उपलब्ध कराई गई है। 70 फ़ीसदी लोगों ने कहा, सफ़ाई, नहाने और कपड़े धोने जैसी कई गतिविधियों के लिए भी पानी की व्यवस्था स्वयंसेवी कर रहे हैं, वहीं 18 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि स्थानीय लोग इस मामले में मदद कर रहे हैं। केवल 5।8 फ़ीसदी लोगों ने ही कहा कि वे सरकारी पानी के टैंकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
पानी की रुकने की समस्या
प्रतिक्रिया देने वाले क़रीब 40 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि प्रदर्शन स्थल के आसपास पानी का जमावड़ा होता है, वहीं 57।8 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि पानी निकासी की उचित व्यवस्था ना होने के चलते पानी इकट्ठा होता है। पानी का इकट्ठा होना, खासकर लंगर और रसोई की जगहों के पास, चिंता की बात है, यहां बड़ी संख्या में मक्खियां हो जाती हैं। इस तरह की स्थिति से पानी से पैदा होने वाली बीमारियां फैल सकती हैं, जिससे प्रदर्शन स्थल पर लोगों की जिंदगियां खतरे में आ सकती हैं।
ठोस मैले का निस्तार
ज़्यादातर प्रदर्शन स्थलों पर सरकारी संस्थानों ने कचरे को इकट्ठा करने के लिए सफाई कर्मियों की नियुक्ति में बहुत ज़्यादा कमी दिखाई है। सर्वे में शामिल लोगों के मुताबि़क़, या तो स्वयंसेवी कचरे को ट्रकों औऱ ट्रॉलियों में इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं या फिर प्रदर्शनकारी खुद ही कचरा स्वयंसेवियों द्वारा उपलब्ध कराए गए कचरे के डिब्बों में कचरा इकट्ठा कर रहे हैं।
स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे
जेएसए ने सिंघु, टिकरी और शाहजहांपुर के प्रदर्शन स्थलों पर स्वास्थ्य कैंप लगवाए हैं। कई डॉक्टर, नर्सिंग छात्र और दूसरे पैरामेडिक्स यहां कैंपों में स्वयंसेवी सेवाएं दे रहे हैं। जेएसए की रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रदर्शनकारियों में मध्य से लेकर ज़्यादा उम्र तक के लोगों की बड़ी संख्या है, इसके चलते ज़्यादातर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं NCD (नॉ़न कम्यूनिकेबल डिसीज़) से जुड़ी हैं। यहां इस बात पर गौर करना जरूरी है कि जेएसए मेडिकल कैंपों में आज की तारीख़ तक आने वाले 14 हजार मरीज़ों में से कोई भी कोरोना के लक्षणों वाला मरीज़ सामने नहीं आया है।
जेएसए की रिपोर्ट बताती है कि बुढ़ापे के दौर में पहुंच लोगों पर विशेष ध्यान देने के लिए प्रदर्शनस्थलों पर डॉक्टर्स और पैरामेडिक्स की आपात जरूरत है। दिल्ली में अब भी ठंड की जकड़न में है, इसके चलते स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में इज़ाफा हो सकता है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में स्वास्थ्यकर्मियों और एंबुलेंस उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है।
जेएसए रिपोर्ट के मुताबिक़, अवसाद और चिंता (एंजॉयटी) के मामलों में भी इज़ाफा हो रहा है, यह समस्याएं देश की कृषि नीतियों और केंद्र सरकार के तीन नए किसान कानूनों के चलते किसान समुदाय और ग्रामीण आबादी में उपजी चिंताओं को भी दर्शाती हैं।
किसानों की कृषि कानून को रद्द किए जाने की मांग का समर्थन करते हुए जेएसए दिल्ली और हरियाणा ने लोगों के लिए इन बुनियादी सुविधाओं की मांग की है।
1) स्वच्छता सुविधाओं की ठीक ढंग से व्यवस्था करवाई जाए, इसके तहत जरूरी संख्या में शौचालय और इनकी नियमित सफाई की व्यवस्था की जाए।
2) स्वच्छ पानी का प्रबंध किया जाए।
3) प्रदर्शन स्थल पर ठोस मैले के नियमित एकत्रीकरण और निस्तारण का प्रबंधन किया जाए।
4) करीबी स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों (PHCs, CHCs, जिला अस्पताल) से इन प्रदर्शन स्थलों पर स्वास्थ्य सुविधाओं और दवाईयों को जरूरतमंदों तक पहुंचाने की तैयारी की जाए। इसके तहत पर्याप्त संख्या में डॉक्टर, स्वास्थ्य पेशेवर उपलब्ध कराए जाएं और मरीजों के स्थानांतरण और पर्याप्त एंबुलेंस सर्विस उपलब्ध करवाई जाए। बूढ़ें लोगों और NCD बीमारियों पर विशेष ध्यान दिया जाए।
5) सभी प्रदर्शन स्थ्लों पर सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य सेवा और परामर्श का प्रबंध किया जाए और लोगों को इन केंद्रों से मदद लेने के लिेए सक्रिय तरीके प्रेरित किया जाए।
6) प्रदर्शनों स्थलों पर टेंट लगाए जाएं, ताकि मौसम संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सके।
7) मच्छरों और मक्खियों से निपटने के नियमित प्रयास किए जाएं।
12 जनवरी को हालिया घटनाक्रम में, सरकार द्वारा किसान आंदोलन से किए जा रहे व्यवहार पर नाराज़गी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों के अगले आदेश तक लागू करने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने किसानों से बातचीत कर इस संकट को ख़त्म करने के लिए कृषि विशेषज्ञों की एक समिति भी बनाई है। लेकिन अभी जब प्रदर्शन जारी हैं, तब यह जरूरी है कि दिल्ली सीमा पर संबंधित राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन सक्रियता दिखाए और लोगों को बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराने के अपने कर्तव्य का पालन करे।
(लेखिका जेएसए सर्वे और रिपोर्ट लिखने वाली टीम की हिस्सा थीं।)
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