कोरोना आपदा में बुजुर्गों को लेकर सरकार और समाज का रवैया कैसा है?

दिल्ली: कोरोना वायरस का संक्रमण देश में लगातार बढ़ रहा है। दुनिया भर में कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा खतरा सीनियर सिटीजन को है। ऐसे में सबसे ज्यादा ख्याल उन्हीं का रखने की जरूरत है। दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को आप सरकार से कहा कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान बुजुर्गों की समस्याओं को दूर करने और उन्हें सहायता देने के लिए वह एक हेल्पलाइन शुरू करे।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा। याचिका में मांग की गई थी कि लॉकडाउन के दौरान वरिष्ठ नागरिकों को बैंकिंग, स्वास्थ्य, किराना तथा अन्य मूलभूत सुविधाएं उनके घर पर उपलब्ध करवाई जाएं। पीठ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह तत्काल प्रभाव से एक हेल्पलाइन नंबर शुरू करे और इसका व्यापक प्रचार करे।
इससे पहले सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से देश के सीनियर सिटीजन के लिए एडवायजरी जारी की गई थी जिसमें लॉकडाउन के समय सीनियर सिटीजन को सलाह दी गई है कि वे घर से बाहर न निकलें। खुद को साफ रखें और अपने आसपास सफाई रखें। घर के भीतर रहकर खुद को एक्टिव रखें। योग व हल्के व्यायाम करते रहें। नाक-मुंह ढंककर रखें।
गर्मी में पर्याप्त पानी पीते रहें। समय-समय पर हाथ धोते रहें। चश्मा व रोजाना काम में आने वाली अन्य चीजें भी साफ करते रहें। घर का बना पौष्टिक खाना खाएं और इम्यूनिटी मजबूत बनाए रखने के लिए ताजा जूस पीते रहें।
लेकिन क्या इस कठिन दौर में यह एडवायजरी जारी करने से बुर्जुगों के लिए सरकार के कर्तव्य पूरे हो गए? क्या इस समय उनका अतिरिक्त ख्याल रखने की जरूरत नहीं है?
कोरोना से सीनियर सिटीजन को ख़तरा कितना बड़ा है इसका अंदाजा स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 19 अप्रैल को जारी एक आंकड़े से हो जाता है। मंत्रालय के अनुसार भारत में कोविड 19 के संक्रमण से होने वाली कुल मौत में 75.3 प्रतिशत लोगों की उम्र 60 साल से ज्यादा है। उम्र के साथ साथ इस संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। अभी तक कुल मौतों में से 42.2 प्रतिशत लोगों की उम्र 75 साल से ज्यादा है।
ऐसे में सवाल यह है कि सरकार 60 की उम्र पार कर गए लोगों के लिए अलग क्या कर रही है तो जवाब आएगा कि कुछ नहीं। दरअसल हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन भारत के बुजुर्ग राम भरोसे हैं। इनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है पर ऐसे बुजुर्ग मुफलिसी में जीवन गुजारने को मजबूर हैं।
गौरतलब है कि भारत में बुजुर्गों की आबादी साल 2011 में 10.4 करोड़ थी, 2016 में तकरीबन 11.6 करोड़ थी और साल 2026 में यह 17.9 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसी तरह एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक पूरी दुनिया में करीब एक अरब लोग 65 साल के आसपास के होंगे। इनमें से ज्यादातर बूढ़े भारत जैसे विकासशील देशों में होंगे क्योंकि यहां जनसंख्या ज्यादा है। इनमें भी औरतों की संख्या ज्यादा होगी क्योंकि वे पुरुषों से ज्यादा जीती हैं।
अब बड़ा सवाल ये है कि क्या बुजुर्गों को सरकारी स्कीम की मदद मिल रही है, और अगर मिल रही है तो उनकी सभी जरूरतें इस मदद से पूरी हो रही हैं? एक बुजुर्ग को केंद्र सरकार 200 रुपये प्रति महीने पेंशन देती है। 12 साल से इस राशि में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। यानी इस बीच महंगाई में कितना इजाफा हो गया लेकिन बुर्जुगों की पेंशन राशि में कोई बदलाव नहीं किया गया है। महंगाई के हिसाब से देखें तो साल 2007 में तय किए गए 200 रुपये की कीमत आज मात्र 92 रुपये से कम रह गई है।
गौरतलब है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार वृद्धों को पेंशन के तहत 200 रुपये पेंशन का मामूली अंशदान करती है जो 80 साल या उससे अधिक उम्र के बुजुर्ग के लिए 500 रुपये महीना है। यह राशि बताती है कि सरकारें वृद्धों के साथ कितना क्रूर मजाक कर रही हैं। एक बार जरा सोचकर देखिये कि एक 60 या 80 साल का बूढ़ा आदमी जो यूपी-बिहार में किसी सुदूर गांव में रहता है, उसे पेंशन के लिए 50 किलोमीटर दूर अपने ब्लॉक पर जाना होता है, उसे पेंशन लेने के लिए कितना परेशान होना पड़ता होगा और 200 या 500 रुपये में उसके पास कितना बचता होगा।
हालांकि कुछ राज्यों ने अपनी तरफ से धनराशि जोड़कर इसे 2000 तक कर दिया है लेकिन ऐसे राज्यों में गोवा, दिल्ली, केरल और हरियाणा जैसे छोटे राज्य शामिल हैं।
इससे इतर पेंशन परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार सहित कई राज्यों और संगठित क्षेत्र से उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि भारत में तकरीबन 2 करोड़ 20 लाख लोगों को पेंशन मिल रही है। बहुत सारे राज्यों में केंद्र सरकार की तरफ से केवल उन्हीं लोगों को पेंशन दी जाती है जो गरीबी रेखा से नीचे निवास करते हैं। इन सब को जोड़ देने के बाद भी तकरीबन 5 करोड़ 80 लाख लोगों को पेंशन नहीं मिलती है। यानी वृद्धों की तकरीबन आधी आबादी पेंशन से महरूम रह जाती जाती है।
बुर्जुगों के आर्थिक हालत की यह स्थिति है। अब सामाजिक हालत की बात करते हैं। बड़े शहरों में सीनियर सिटीजन का मतलब ही असुरक्षित नागरिक बन गया है। कोरोना से इतर आम दिनों में अखबार में बुजुर्गों की हत्याओं की खबरें आपको हर दो चार दिन में जरूर पढ़ने को मिल जाएंगी। यह प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों में बढ़ी है।
आम तौर पर ऐसे बुजुर्गों को निशाना बनाया जा रहा है जो अकेले रहते हैं। या फिर घर में बस पति-पत्नी ही हैं। ऐसी बहुत सी हत्याएँ ऐसी कॉलोनियों में हुई हैं जहां गेट पर पहरा रहता है। किसी भी आने-जाने वाले की शिनाख़्त होती है। इससे अंदाज़ा लगता है कि यह हत्याएं जान-पहचान वालों ने की हैं। यानी जिनके आने पर घर के लोग बिना किसी शक शुब्हे के दरवाज़ा खोल देते हैं। इसके अलावा बूढ़े हो चुके मां बाप से दुव्यर्वहार और उन्हें अकेले छोड़ देने की खबरें भी अब आम हो चली हैं। मतलब साफ है कि बूढ़े लोगों की एक बड़ी आबादी सामाजिक रूप में असुरक्षित है।
कोरोना जैसे संकट के दौर में यह खतरा और भी बढ़ गया है। एक लोक कल्याणकारी राज्य के तौर भारत सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह वृद्धों की उपेक्षित होते जीवन पर ध्यान दे। जब इस वायरस का खतरा सबसे ज्यादा बूढ़ों को है तो उनके लिए अलग से टास्क फोर्स का गठन किया जाय। अकेले रहने वाले सीनियर सिटीजन की मदद के लिए गैरसरकारी संस्थाएं भी आगे आएं। दरअसल कोरोना से लड़ाई बूढ़े लोगों को साथ में ही लेकर जीती जा सकती है। सरकार और समाज को इसमें बड़ी भूमिका निभानी होगी।
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