गोरखपुर, फूलपुर उपचुनाव:मुख्य मुकाबला एसपी-बसपा गठबंधन और भाजपा के बीच

उत्तर प्रदेश के दो लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में, 11 मार्च को उपचुनाव होने जा रहे हैं - गोरखपुर और फूलपुर में , राज्य के राजनीतिक घटनाक्रम देखा जाया तो , यह महत्वपूर्ण है कि बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और राष्ट्रीय लोक दल ( आरएलडी) सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराने के एकमात्र एजेंडा के साथ समाजवादी पार्टी (एसपी) के उम्मीदवारों को समर्थन कर रही है |इनकें परिणाम 14 मार्च को घोषित किए जाएंगे।
ये दो सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (गोरखपुर) और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (फूलपुर) ने खाली की , जब वो पिछले साल सितंबर में उत्तर प्रदेश विधान परिषद में सदस्य चुने गए थे। यद्यपि इन चुनावों में जीतने वाले उम्मीदवार 2019 के आम चुनाव तक सांसद के रूप में सेवा करेंगे,इन उपचुनाव को लोग राज्य में मौजूदा बीजेपी शासन पर लोगों के जनादेश का प्रतिबिंबि माना जा रहा है। इसके अलावा, इन चुनावों के परिणाम का 201 9 के आम चुनावो पर भी गहरा प्रभाव पडेगा ।
गोरखपुर में 10 उम्मीदवारो और फूलपुर सीट से 22 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन किया है, हालांकि बीजेपी, सपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय प्रतियोगिता की उम्मीद है|
1991 से, गोरखपुर भाजपा का गढ़ रहा है जहां से योगी आदित्यनाथ को पिछले पांच चुनावों में जीते हैं ,हालांकि, इस क्षेत्र में 82.3% की औसत साक्षरता दर है इसके बावजूद इस क्षेत्र के प्रमुख समस्या दिमागी बुखार( Encephalitis )और उच्च बेरोजगारी दर है जिस के करण यहाँ भाजपा के खिलाफ महौल देखने को मिल रहा है। अगस्त 2017 में, गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कुल 290 बच्चो की मौत हुई थी| मुख्य रूप से इन मौतों का कारण ऑक्सीजन आपूर्ति न होना और दिमागी बुखार( Encephalitis)की बीमारी थी |
यद्यपि 2017 विधानसभा चुनावों में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सभी पांच विधानसभा सीटों में बीजेपी जीती, हालांकि सपा और बसपा (दोनों सीटों के उम्मीदवारों की सीटों पर) के वोट जोडे जाये तो वो भाजपा की तुलना में अधिक हैं ।
इस बार 2014 चुनावों में कांग्रेस के गढ़ (पूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस संसदीय क्षेत्र द्वारा प्रतिनिधित्व् किया है ), फूलपुर संसदीय क्षेत्र पर भाजपा ने कब्जा कर लिया था। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनावों में फूलपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में विधानसभा सीटों में सपा और बसपा के संयुक्त वोट को जोडा जाये तो वो भाजपा के वोट से ज्यादा हैं। इस क्षेत्र में साक्षरता दर 60% की औसत है , पिछले चुनावो में परिणामों में जाति के समीकरणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस संसदीय क्षेत्र में उच्च जाति के ब्राह्मण, ओबीसी और मुस्लिम मतदाता हैं।
राज्य में कांग्रेस पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में एसपी के साथ किये अपने पुराने गठबंधन को जारी रखने में नाकाम रही | रिपोर्टें हैं कि पार्टी बसपा के साथ गठजोड़ करने में विफल रही, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी इस बार अकेले ही चुनाव लड़ रही है | ।
इन चुनावों में विपक्षी दलों की राजनीतिक रणनीति, ये न केवल उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे देश में आगामी 2019 के आम चुनावों में राजनीतिक दलों के भविष्य के दृष्टिकोण का फैसला करेंगी |
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