चुनाव वाले चार राज्य: कौनसा एक राज्य है, जिसे लोगों की परवाह है?

ख़ास तौर पर इन दिनों राज्य सरकार चलाना एक जटिल कार्य इसलिए है क्योंकि भारत में एक ऐसी मग़रूर केंद्र सरकार है जो सभी राजकोषीय और प्रशासनिक शक्तियों को केंद्रीकृत करने पर अमादा है। और अक्सर उन राज्यों को लेकर भेदभावपूर्ण तरीक़े से कार्य करती है, जो अलग राजनीतिक नज़रिया रखते हैं।
हालांकि, राज्य सरकार को उस तरह चला पाना मुमकिन है जिससे कि लोगों के कल्याण को केंद्र में रखा जा सके और इस बात को सुनिश्चिय करते हुए बेहद चौकन्ना रहे कि लोगों के जीवन स्तर में सुधार को लेकर जो कुछ किया जा सकता है, वह ज़मीन पर उतर सके। विभिन्न राज्यों के हालिया पारित बजट इस बात की झलक देते हैं कि राज्य सरकारों की प्राथमिकतायें क्या हैं और ये सरकारें इन अहम क्षेत्रों में कितने पैसे लगा रहे हैं।
चार हफ़्तों के भीतर जिन चार प्रमुख राज्यों में चुनाव होने हैं, उनके 2021-22 के पारित बजट के बीच तुलना करने पर एक दिलचस्प तस्वीर सामने आती है। वाम और लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) के नेतृत्व वाली केरल की राज्य सरकार दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण पर ख़र्च करने के मामले में साफ़ तौर पर अग्रणी है। केरल के मुक़ाबले तमिलनाडु कृषि और ग्रामीण विकास पर थोड़ा ज़्यादा ख़र्च करता है, लेकिन यह भी तो है कि केरल में कृषि क्षेत्र बहुत छोटा है।
सटीक तुलना करने के लिए न्यूज़क्लिक ने एक-एक राज्य में प्रति व्यक्ति ख़र्च की गणना की है। केरल और असम की आबादी तक़रीबन 3.5 करोड़ है, जबकि तमिलनाडु की आबादी 7.6 करोड़ और पश्चिम बंगाल की 9.75 करोड़ है। ये आबादी, नई दिल्ली स्थित जनगणना कार्यालय की तरफ़ से लगाया गया 2021 के लिए जनसंख्या अनुमान हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य: केरला आगे, बंगाल पीछे
जैसा कि नीचे दिखाया गया है, राज्य सरकार की ओर से शिक्षा पर प्रति व्यक्ति सबसे ज़्यादा ख़र्च (6, 702रुपये) करने वाला राज्य केरल और इस मामले में सबसे कम ख़र्च (4, 402रुपये) करने वाला राज्य ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल है। ज़्यादातर स्कूली शिक्षा, व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा भी राज्य सरकारों के अधीन ही आती है। हाल के सालों में केरल ने सरकार द्वारा संचालित स्कूलों को ग़ज़ब तरीक़े से बदल दिया है, जिससे इन स्कूलों का नामांकन बढ़ रहा है।
स्वास्थ्य पर भी केरल में सबसे ज़्यादा ख़र्च (1919 रुपये) हुआ है, इसके बाद (2513 रुपये के साथ) तमिलनाडु का स्थान है। इस लिहाज़ से पश्चिम बंगाल ख़ास तौर पर पिछड़ा हुआ है, जहां स्वास्थ्य पर व्यक्ति महज़ 1, 308 रुपये खर्च किया जाता है, जो केरल के ख़र्च से आधे से भी कम है। पिछले कुछ सालों में केरल ने वायरस (कोरोना और इससे पहले निपा) या फिर 2018 और 2019 के विनाशकारी बाढ़ जैसे कई स्वास्थ्य आपदाओं का सामना किया है। इनके बावजूद, राज्य सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का विस्तार करना और उसे मज़बूती देना जारी रखे हुआ है। इससे कोविड-19 के बहुत सारे मामले होने के बावजूद यहां मृत्यु दर में साफ़ तौर पर कम दिखायी देती रही है।
अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और दूसरे वंचित तबक़े
जैसा कि नीचे दिये गये चार्ट में प्रति व्यक्ति ख़र्च में दिखाया गया है कि केरल की एलडीएफ़ सरकार दलितों, आदिवासियों, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण पर ख़र्च करने के मामले में अग्रणी है। असम में 857 रुपये और पश्चिम बंगाल में महज़ 612 रुपये के मुक़ाबले केरल ने 907 रुपये प्रति व्यक्ति ख़र्च किये हैं। इन सभी चार राज्यों में इन तबकों में से कोई न कोई बड़ा समुदाय रहता है।
भले ही चुनाव के वक़्त इनकी चिंताओं की बात की जाती हो, मगर धरातल पर होते काम के लिहाज़ से यह कथित चिंता "सोशल इंजीनियरिंग" के एकदम उलट है। ये चुनावी रणनीति महज़ वोट खींचने के लिए होती है, चुनाव के बाद सबकुछ भुला दिया जाता है। असम में भारतीय जनता पार्टी पिछले पांच वर्षों से शासन कर रही है, उसने संकीर्ण राजनीतिक फ़ायदे के लिए जातीय पहचान बनाने और उन्हें विभाजित करने का ही प्रयास किया है, लेकिन जहां तक विकास कार्यों की धरातल पर उतरने की बात है, तो इस लिहाज़ से यहां की सरकार बहुत पीछे है।
कृषि और ग्रामीण विकास
तमिलनाडु में इन अहम क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति ख़र्च सबसे ज़्यादा है, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों शामिल किया गया हैं। तमिलनाडु प्रति व्यक्ति 4, 086 रुपये खर्च करता है, इसके बाद केरल 3, 994 रुपये ख़र्च करता है, हालांकि केरल में कम कृषि योग्य भूमि होने के चलते कृषि क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से काफ़ी सीमित रहा है।
हैरानी की बात यह है कि भारी कृषि आबादी वाले अन्य दो राज्य इस लिहाज़ से पीछे रह जाते हैं, हमेशा की तरह इस मामले में पश्चिम बंगाल सबसे पीछे है, यहां कृषि और ग्रामीण विकास पर प्रति व्यक्ति महज़ 3, 178 रुपये ख़र्च किये जाते हैं। कृषि से सम्बन्धित इन राज्यों की तरफ़ से ख़र्च की जाने वाली ये मामूली दरें इस बात का एक संकेत हैं कि इन राज्यों और दूसरे राज्यों में किसानों के साथ कितनी नाइंसाफ़ी हुई है, जो कि तीन नये कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसानों के संघर्ष में भी दिखायी देती है।
यह हर एक राज्य सरकार के प्रदर्शन की पूरी कहानी तो नहीं है। लेकिन, जो कुछ भी मुमकिन है, उसकी यह एक झलक तो देती ही है कि अगर एक ऐसी ईमानदार सरकार, जो अपनी सीमित शक्तियों का इस्तेमाल करने को लेकर प्रतिबद्ध हो, तो लोगों के जीवन में बड़े बदलावों के प्रयासों में उन्हें कुछ हद तक मदद और राहत दी जा सकती है।
(पीयूष शर्मा द्वारा राज्य सरकार के पोर्टल से संकलित डेटा)
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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