एनआरसी और असम के डिटेंशन कैंपों में हो रही मौतों के ख़िलाफ़ भाकपा-माले का देशव्यापी विरोध

असम के डिटेंशन कैंपों में कथित तौर पर 27 लोगों की मौतों को लेकर डिटेंशन कैंप को बंद करने और नागरिकता संशोधन बिल वापस करने की मांग को लेकर आज, बुधवार को भाकपा-माले ने देश भर में विरोध प्रदर्शन कर सभाएं कीं।
बिहार की राजधानी पटना में कारगिल चैक पर भाकपा-माले कार्यकर्ताओं ने विरोध सभा का आयोजन किया। इस दौरान माले कार्यकर्ता डिटेंशन कैंप में हुई मौतों के जिम्मेवार मोदी-शाह जवाब दो, देश भर में एनआरसी को थोपना बंद करो, डिटेंशन कैंपों को बंद करो, नागरिकता पर हमला नहीं सहेंगे आदि नारे लगा रहे थे।
सभा में भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता राजाराम, केंद्रीय कमेटी के सदस्य व पटना नगर के सचिव अभ्युदय, माले की राज्य स्थायी समिति के सदस्य आरएन ठाकुर, राज्य कमेटी के सदस्य रणविजय कुमार, अनीता सिन्हा व रामबलि प्रसाद, उमेश सिंह, माले नेता मुर्तजा अली, जितेन्द्र कुमार, अनुराधा, संतोष पासवान, विश्वमोहन कुमार, अफशां जबीं, पटना सिटी से नसीम अंसारी , अनय मेहता, पन्नालाल सिंह, इनौस के विनय कुमार, लंकेश कुमार, बीएके शर्मा, केके सिन्हा आदि शामिल हुए।
इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि असम के डिटेंशन कैंपों में अब तक 27 लोगों की मौत हो गई है। फाइनल सूची के पहले 25 लोग मारे गए और उसके बाद दो लोगों की मौत हुई है। इन दो लोगों में 70 वर्षीय फालू दास और 65 वर्षीय दुलाल चंद्र पाल शामिल हैं। दुलाल पाल और फालू दास के परिवार ने उनके शव लेने से इंकार करते हुए कहा है कि अगर वे बांग्लादेशी थे, तो बांग्लादेश में उनके परिवार को तलाशिये, और शव को बांग्लादेश भेजिए। नहीं, तो मानिये कि वे भारत के नागरिक थे जिनकी हत्या सरकार द्वारा डिटेंशन कैम्प में हुईं। इन मौतों के लिए पूरी तरह से मोदी-शाह की जोड़ी जिम्मेवार है। भाजपा ने असम के लगभग 19 लाख लोगों की नागरिकता को खतरे में डाल दिया है। इन लोगों को डिटेंशन कैंपों में डाला जा रहा है जहां लोगों की लगातार मौतें हो रही हैं।
वक्ताओं ने कहा कि आज भाजपा-आरएसएस के लोग पूरे देश में एनआरसी थोपना चाहते हैं। अमित शाह अब देश भर में एनआरसी लागू करवाने पर आमादा हैं, जिसमें हर किसी को कागजात के जरिए साबित करना होगा कि 1951 में उनके पूर्वज भारत में वोटर थे। हर राज्य में डिटेंशन कैम्प खुलवा रहे हैं- महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में ऐसे कैम्प बन रहे हैं। गरीब तो बीपीएल की सूची, वोटर लिस्ट, आधार आदि से भी बाहर रह जाते हैं। वे 1951 के अपने पूर्वजों के कागजात कहाँ से लाएंगे? अगर न ला पाएं तो उन्हें डिटेंशन कैम्प में डाल दिया जाएगा। मोदी - शाह कह रहे हैं कि अगर आप मुसलमान हैं तो आपको देश से निकाल दिया जाएगा, पर अगर आप हिन्दू या गैर मुसलमान हैं, तो हम नागरिकता कानून में संशोधन करके आपको शरणार्थी मान लेंगे।
इस तरह आज नागरिकों की नागरिकता पर भाजपा-आरएसएस ने खतरा पैदा कर दिया है। उन्हें या तो डिटेंशन कैम्प में मारा जाएगा, या नागरिक के बजाय शरणार्थी बना दिया जाएगा।
सभा में कहा गया कि भाकपा-माले, भाजपा-आरएसएस की इन कोशिशों को कभी कामयाब नहीं होंने देगी। आने वाले दिनों में एनआरसी को वापस करने की मांगों पर और भी जोरदार आंदोलन किए जाएंगे।
बिहार में पटना के अलावा आरा, अरवल, सिवान, जहानाबाद, पटना ग्रामीण के पुनपुन, दुल्हिन बाजार, मसौढ़ी; दरभंगा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, नवादा, नालंदा आदि केंद्रों पर भी कार्यक्रम आयोजित किए गए।
नालंदा में माले कार्यकर्ताओं ने बिहारशरीफ में धरना दिया, जिसका नेतृत्व पार्टी के जिला सचिव सुरेन्द्र राम, मकसुदन शर्मा, मनमोहन, पाल बिहारी लाल आदि नेताओं ने किया। मसौढ़ी में कार्यक्रम का नेतृत्व पार्टी की केंद्रीय कमेटी के सदस्य व खेग्रामस के राज्य सचिव गोपाल रविदास, अकलू पासवान, विनेश चैधरी, कमलेश कुमार आदि नेताओं ने किया। अरवल में विरोध मार्च का नेतृत्व पार्टी के जिला सचिव महानंद, विजय यादव, जितेन्द्र यादव आदि नेताओं ने किया।
नवादा में माले कार्यकर्ताओं ने मोदी का पुतला दहन किया। जहानाबाद में जिला सचिव श्रीनिवास शर्मा, किसान महासभा के राज्य सचिव रामाधार सिंह, हसनैन अंसारी आदि नेताओं ने शहर में मार्च किया और नागरिकता संशोधन बिल को वापस लेने की मांग की।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हज़रत गंज स्थित अंबेडकर प्रतिमा के सामने धरना-प्रदर्शन किया गया।
इसके अलावा झारखंड, पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल इत्यादि राज्यों में भी विरोध मार्च और सभाएं की गईं।
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