स्वामी प्रसाद मौर्य का जाना: ...फ़र्क़ साफ़ है

अब आप स्वामी प्रसाद मौर्य को भले ही मौसम विज्ञानी कहें या अवसरवादी, या दल-बदलू। लेकिन यह केवल दल-बदल या अवसरवाद का मामला नहीं है, यह एक मंत्री ने इस्तीफ़ा दिया है, वो भी श्रम मंत्री ने। यह योगी सरकार की विफलता ही दिखाता है। इसका जवाब योगी जी से लिया ही जाना चाहिए।
मौर्य जी ने जो वजह या जो सवाल अपने त्यागपत्र में उठाए हैं वे गंभीर हैं। हालांकि सौ सवाल उनसे भी पूछे जा सकते हैं कि जब योगी सरकार ने दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोज़गार नौजवानों की इतनी उपेक्षा की, छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों का भी ख़्याल नहीं रखा तो वे पांच साल से बीजेपी में क्या कर रहे थे। एक श्रम मंत्री के तौर पर क्यों बने हुए थे। इन पांच सालों में इस सबके ख़िलाफ़ उनकी आवाज़ पुरज़ोर तरीके से क्यों नहीं निकली। जब साल भर से किसान यूपी गेट समेत दिल्ली की सीमाओं पर जमे थे, तब उन्होंने एक बार भी उनके पक्ष या तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में क्यों नहीं एक बार भी बयान दिया। यूपी में बेरोज़गार नौजवान लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं, शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थी लाठियां खा रहे हैं, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बोला। कोविड काल में दिल्ली-मुंबई से जब बड़ी संख्या में कामगार यूपी लौटे तो उन्होंने श्रम, सेवायोजन एवं समन्वय मंत्री होने के नाते उनके लिए क्या किया।
दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के कारण उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देता हूं। pic.twitter.com/ubw4oKMK7t
— Swami Prasad Maurya (@SwamiPMaurya) January 11, 2022
ख़ैर, सवाल बहुत हैं, जिनमें से एक का भी जवाब शायद वह नहीं देंगे। सबका एक ही जवाब होगा, उन्होंने कोशिश की लेकिन उनकी सुनी नहीं गई।
लेकिन फिर भी उनके इस्तीफ़े को इसी वजह से हल्के में नहीं लिया जा सकता। वजह...? वजह या फ़र्क़ साफ़ है-
आप नोट कीजिए कि वे एक सत्तारूढ़ पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। उस दल को जिसकी अभी केंद्र में सरकार है और कम से कम दो साल और रहने वाली है। यूपी में भी अभी यह तय नहीं हो गया कि भाजपा वापस नहीं आएगी। यानी मोर्य जी ने एक रिस्क लिया है। मंत्री पद छोड़ा है। और अभी भी उनकी इतनी हैसियत है कि बीजेपी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें मनाने को कहते हैं। यानी यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनका टिकट कट रहा था। अगर ऐसा होता तो उन्हें मनाने की बात अमित शाह या केशव प्रसाद मोर्य न कहते।
आदरणीय स्वामी प्रसाद मौर्य जी ने किन कारणों से इस्तीफा दिया है मैं नहीं जानता हूँ उनसे अपील है कि बैठकर बात करें जल्दबाजी में लिये हुये फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं
— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) January 11, 2022
कल को हो सकता है मौर्य जी मान भी जाएं। कोई सौदा पट जाए। कोई और बड़ी हैसियत मिल जाए, या मिलने का वादा हो जाए, क्योंकि अभी उन्होंने मंत्री पद छोड़ा है, पार्टी नहीं। समाजवादी पार्टी में उनके जाने की पूरी संभावना है, लेकिन उन्होंने अभी इसका ऐलान नहीं किया है। हालांकि अखिलेश यादव ने उनका स्वागत कर दिया है। और बाइस में इंकलाब का दावा भी।
सामाजिक न्याय और समता-समानता की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नेता श्री स्वामी प्रसाद मौर्या जी एवं उनके साथ आने वाले अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का सपा में ससम्मान हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन!
सामाजिक न्याय का इंक़लाब होगा ~ बाइस में बदलाव होगा#बाइसमेंबाइसिकल pic.twitter.com/BPvSK3GEDQ
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) January 11, 2022
मौर्य जी ने अभी पूरे पत्ते नहीं खोले हैं। उनकी बेटी डॉ. संघमित्रा मौर्य भी यूपी के बदायूं से ही बीजेपी से सांसद हैं। उनका बयान आया है कि वे बीजेपी में ही बनी रहेंगी। अभी कुछ और दबाव भी आ सकते हैं। आरोप भी। कुछ भी संभव है, वैसे भी राजनीति में किसी भी संभावना को लेकर पुख़्ता तौर पर कोई दावा नहीं किया जा सकता, नहीं करना चाहिए। ताज़ा मिसाल तो पश्चिम बंगाल की ही दी जा सकती है। वहां चुनाव से पहले और चुनाव के बाद कैसे लोग इधर से उधर हुए। कैसा खेला हुआ!, हां यह बात अलग है कि दूसरी पार्टियों से बीजेपी में आने पर किसी नेता को दल बदलू या अवसरवादी नहीं कहा जाता। आप गोदी मीडिया और अन्य की भाषा देख सकते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य जी जब 2017 के चुनाव से पहले बीएसपी से बीजेपी में आए तो उनका काफी गुणगान ही हुआ था। वैसे दलबदल के अलावा उनकी अपनी बड़ी हैसियत है। वे अपने क्षेत्र और समाज के कद्दावर नेता माने जाते हैं। वे किसी भी दल में रहे लेकिन उन्होंने अपने क्षेत्र पडरौना से लगातार तीन बार जीत हासिल कर हैट्रिक बनाई है। यही वजह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़े ने न सिर्फ़ यूपी की राजनीति में हलचल मचा दी है, बल्कि बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सरकार पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं और उस धारणा को बल दिया है कि यूपी में इस बार बीजेपी सरकार नहीं लौट रही है। चुनाव के दौरान सारी लड़ाई परसेप्शन की होती है। धारणाएं और संदेश बाज़ी पलट देते हैं और मौर्य जी अकेले बाहर नहीं आ रहे हैं, बल्कि उनके साथ तीन विधायकों रोशनलाल वर्मा, भगवती सागर, ब्रजेश प्रजापति ने भी इस्तीफ़ा दिया है। ख़बरें हैं कि अभी और दलित-पिछड़े नेता पार्टी छोड़ेंगे। इतना ही नहीं कुछ ब्राह्मण नेता या चेहरे भी योगी जी का साथ छोड़कर जा सकते हैं। बीजेपी के बड़े सहयोगी और योगी सरकार में ही पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री रहे ओमप्रकाश राजभर पहले ही बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं। यानी इस बार बीजेपी की हालत कतई अच्छी नहीं है। 2017 से पहले वाली तो बिल्कुल नहीं। फ़र्क साफ़ है... खदेड़ा नहीं तो भगदड़ तो मच ही गई है।
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