क्यों चीन बिडेन को सख़्त तो मानता है,मगर अनुमान के परे नहीं मानता
20 अगस्त को डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में जो बिडेन के स्वीकृति भाषण को अमेरिका में व्यापक सराहना मिली है और यह बात इस बढ़ती धारणा को मज़बूती देती है कि नवंबर के आम चुनाव में उनके मज़बूती से उभरने संभावना है, ऐसा इसलिए है,क्योंकि महामारी और देश की आर्थिक समस्याओं के हल दिये जाने को लेकर ट्रम्प की कथित नाकामी के चलते उनके समर्थन में गिरावट का आना जारी है।
लोकतांत्रिक चुनावों की भविष्यवाणी कर पाना तो कठिन होता है और ट्रम्प जिस तरह से गहरे खाई से ख़ुद को निकाले जाने की कोशिश में गहरे धंसते जाने के लिए जाने जाते हैं,उससे तो ज़्यादातर दूसरे राजनेताओं के करियर ही ख़त्म हो जायेंगे। बहरहाल,नवंबर से पहले पूरी तरह से कुछ ऐसी मुश्किलें पेश आनी वाली है या कुछ ऐसा अप्रत्याशित होने वाला है, जिस कारण बिडेन संयुक्त राज्य अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति हो सकते हैं।
यह कुछ अहम नीतिगत प्रश्न खड़ा करता है,ख़ासकर बिडेन की चीन नीति। बिडेन के भाषण से जो बात सामने आती है,वह यह है कि उन्होंने बड़ी चतुराई से महज़ एक बार ही चीन का ज़िक़्र किया। संभवतः,ऐसा करके उन्होंने ट्रम्प के चीन पर "ज़्यादा सख़्ती" वाले रूख़ को नकारने का संकेत दिया।
हालांकि इस बात की ज़्यादा संभावना है कि उन्होंने ऐसा करके अपनी चीन नीति को ट्रम्प के हमले से बचा लिया है। बिडेन को पता होगा कि अमेरिका की मौजूदा घरेलू समस्याओं के लिए चीन को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और चीन को दोष देने से उन्हें वोट भी नहीं मिलने वाले हैं। हालांकि, घरेलू समस्याओं से निपटने में ट्रम्प नाकाम रहे हैं।
जिस दिन अमेरिका में 174,283 लोगों की मौत के साथ 5.57 मिलियन लोगों के कोरोनोवायरस से संक्रमित होने यानी दुनिया में सबसे ज़्यादा मौत और संक्रमण के मामले अमेरिका में होने की सूचना प्रसारित की गयी, उसी दिन इसे लेकर जो बिडेन ने अपनी ज़बान खोली। इसके अलावे,अमेरिकी श्रम विभाग की तरफ़ से अपनी हाल की रिपोर्ट में 15 अगस्त को समाप्त होने वाले सप्ताह के लिए समय-समय पर समायोजित आधार पर 1.1 मिलियन लोगों के शुरुआती बेरोज़गारी के दावे किये गये, जो वास्तव में 925,000 के पूर्वानुमान से कहीं ज़्यादा है।
लिहाजा, राष्ट्रपति चुन लिये जाने की हालत में कोरोनोवायरस से निपटने को लेकर बिडेन ने कुछ इस तरह से अपने रुख़ को रखा है: “हम अपने देश की चिकित्सा आपूर्ति को दुरुस्त करेंगे और सुरक्षात्मक उपकरण बनायेंगे। और हम उन्हें अमेरिका में ही बनायेंगे। इसलिए,हम अपने देश के लोगों की सुरक्षा के लिए चीन और किसी दूसरे देशों की दया पर निर्भऱ कभी नहीं होंगे।” अपने पूरे भाषण के दौरान बिडेन ने चीन पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा।
चीन पर हमला करने और उसे उकसाने को लेकर ट्रम्प की सोची-समझी कोशिश के पीछे की जटिल राजनीति को भांपते हुए चीन पर कुछ कहने के बजाय,कुछ नही कहकर बिडेन ने ट्रम्प को ख़ुद पर हमला किये जाने का कोई मौक़ा ही नहीं दिया। हालांकि ट्रम्प ने चीन को कोरोनोवायरस के लिए दोषी ठहराने, हुआवेई जैसी चीनी हाई-टेक कंपनियों को मंज़ूरी देने और चीन पर अमेरिकी चुनाव में गड़बड़ी फ़ैलाने, ताइवान स्ट्रेट्स में विमान भेजने जैसे कई आरोप लगाये।
सच्चाई तो यही है कि ट्रम्प के आरोपों और चीन के ख़िलाफ़ हमलों, साथ ही एक वैचारिक पूर्वाग्रह को हवा देने से अमेरिका का भला बिल्कुल नहीं हो सकता,बल्कि इसके बजाय अमेरिका की मौजूदा स्थिति में सुधार लाकर या अमेरिकी कंपनियों की रक्षा करके ही कुछ अच्छा किया जा सकता है।
हालांकि, अमेरिका (और कुछ हद तक चीन) में भी विशेषज्ञों की राय यही है कि बिडेन चीन के ख़िलाफ़ किसी भी सख़्त नीतियों के मामले में अमेरिका के "दोनों ही दलों की सहमति" का ध्यान रखेंगे। दरअसल, 2020 डेमोक्रेटिक पार्टी प्लेटफ़ॉर्म चीन के प्रौद्योगिकी, बौद्धिक संपदा, सुरक्षा और मानवाधिकारों पर एक सख़्त रुख़ अपनाता है, और इसकी योजना ज़्यादा से ज़्यादा सहयोगी दलों को भी अपनी ओर लाने की है।
बीजिंग ने इस बात पर ग़ौर दिया है कि 2016 के मुक़ाबले इस बार के पार्टी प्लेटफ़ॉर्म का एक बड़ा फ़र्क़ यही है कि इस बार डेमोक्रेट्स "एकल-चीन सिद्धांत का समर्थन तो नहीं कर सके, लेकिन ताइवान सम्बन्ध अधिनियम को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को ज़रूर दोहराया है।" ताइवान से सम्बन्धित भाग कुछ इस तरह है: "डेमोक्रेट ताइवान सम्बन्ध अधिनियम को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं और ताइवान (ताइवान क्षेत्र) के लोगों की इच्छाओं और श्रेष्ठतम हितों के अनुरूप इस जलसंधि के दोनों ओर के मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करना जारी रखेंगे।”
इस पर चीन के सरकारी मीडिया ने टिप्पणी करते हुए कहा, “लहज़े में आये बदलाव को देखते हुए ऐसा लगता है कि चीन-अमेरिकी सम्बन्धों में और अधिक तनाव पैदा होगा। वैसे तो ताइवान सम्बन्ध अधिनियम ताइवान को अमेरिकी हथियार की बिक्री का प्रावधान करता है और बीजिंग इसे चीन के राष्ट्रीय हितों का उल्लंघन और ताइवान में अलगाववादियों के समर्थन के रूप में देखता है।
हालांकि, ये शुरुआती दिन हैं और चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता,झाओ लिजियान ने शुक्रवार को अपने प्रेस ब्रीफ़िंग में एक मेल-मिलाप का रास्ता अपनाते हुए कहा: “हमें उम्मीद है कि अमेरिका की दोनों पार्टियां चीन और चीन-अमेरिकी सम्बन्धों को एक उद्देश्यपूर्ण तरीक़े से देख सकती हैं, और समन्वय, सहयोग और स्थिरता के आधार पर चीन के साथ द्विपक्षीय सम्बन्धों को आगे बढ़ाने के लिए काम कर सकती हैं।”
"इस प्लोटफ़ॉर्म से ‘वन-चाइना’ का उल्लेख नहीं करना कोई संयोग तो नहीं हो सकता है, लेकिन इससे इरादा भी साफ़ नहीं होता है। यक़ीनन, इसे सिद्धांत से पीछे हटने के रूप में भी देखे जाने की ज़रूरत नहीं है।कोई शक नहीं कि बिडेन सत्तासीन होने के बाद अगर इस ‘वन-चाइना’ नीति को उलट देते है, तो चीन-अमेरिका सम्बन्ध एक अशांत क्षेत्र में प्रवेश कर जायेंगे। दूसरी ओर, इस विषय पर डेमोक्रेटिक पार्टी की यह रणनीति भी हो सकती है कि वह चीन को लेकर ऐसी कोई "कमज़ोरी" नहीं दिखाये ताकि इसे लेकर ट्रम्प के हमले से बचा जा सके।
असल में पार्टी प्लेटफ़ॉर्मों से इन नीतियों को इस रूप में देखने की ज़रूरत नहीं है। यह समय से पहले की धारणा है कि चीन के प्रति बिडेन की जो नीति होगी,वह ट्रम्प से एकदम अलग होगी। बिडेन चीन को जानते हैं और वह एक बेहद अनुभवी राजनेता हैं।
बिडेन की अंतर्राष्ट्रीयतावादी अवधारणा वास्तव में एक दोधारी तलवार के रूप में काम कर सकती है,जिनमें शामिल हैं-चीन का सामना करने के लिए सहयोगियों और साझेदारों के संयुक्त मोर्चे का निर्माण, या यूरोपीय देशों के साथ एक ऐसे मंच में शामिल होना, जो जलवायु परिवर्तन, अप्रसार और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे उन मुद्दों पर बीजिंग के साथ सहयोग करता है,जहां एक दूसरे के हित आपस में मिलते हैं। गठबंधन बनाने में घाघ माने जाने वाले बिडेन अपने पूर्ववर्ती के "अमेरिका अलोन" वाले नज़रिये को छोड़ देंगे।
ज़ाहिर है, चीन के साथ अमेरिका के सम्बन्धों के लहज़े में सुधार की उम्मीद की जानी चाहिए। और इसकी अहमियत को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। इस लहज़े के सुधार से हाल ही में हुई ज़रूरत से ज़्यादा गर्मागर्मी वाली बयानबाजी में कमी आनी चाहिए और सबसे अहम बात यह है कि इन बयानबाज़ियों से दोनों देशों के बीच के रिश्तों में जो दरार आयी है,उसे दुरुस्त करने को लेकर चीन को एक संभावित मौक़े की तरह देखना चाहिए।
वास्तव में इस सप्ताह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अख़बार,ग्लोबल टाइम्स में जो एक टिप्पणी छपी है,उसका शीर्षक है- ‘बिडेन के साथ बातचीत करना ज़्यादा आसान’। इस लेख में बीजिंग स्थित चाइना फ़ॉरेन अफ़ेयर्स यूनिवर्सिटी के अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध संस्थान में प्रोफ़ेसर,ली हैडॉन्ग को उद्धृत करते हुए कहा गया है: “बिडेन के साथ बातचीत करना ज़्यादा आसान है, इस बात को लेकर दुनिया भर में आम सहमति है। यह बात चीन के लिए भी उतनी ही सही है, ऐसा इसलिए,क्योंकि ओबामा के कार्यकाल के दौरान बिडेन उपराष्ट्रपति थे, और चीनी नेताओं के साथ बातचीत का उनका अनुभव है, अगर वह जीत जाते हैं,तो हम बिडेन के साथ ज़्यादा सहज और असरदार बातचीच की उम्मीद करेंगे।”
कई बार ख़ुद को "संक्रमणकालीन राष्ट्रपति" के तौर बताने वाले बिडेन को पता ही होगा कि उनकी चुनावी जीत का श्रेय काफी हद तक अमेरिका की अर्थव्यवस्था और महामारी से निपटने की रणनीति को जायेगा,न कि चीन से जुड़े सवालों से उस जीत का कोई लेना-देना होगा। अपने स्वीकृति भाषण में बिडेन ने अमेरिका के सामने चार "ऐतिहासिक संकटों" में महामारी के साथ-साथ आर्थिक तबाही और नस्लीय न्याय की ज़रूरत के बीच जलवायु को भी शामिल किया।
गुरुवार रात बिडेन से पहले कन्वेंशन फ़्लोर पर अपनी बात रखने वाले कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर,गेविन न्यूज़ोम ने इस वक़्त की भावना को शानदार ढंग से रखते हुए कहा, “गर्मीयां और प्रचंड होती जा रही हैं, सुखाड़ और शुष्क होते जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन हक़ीक़त है। अगर आपको जलवायु परिवर्तन से इनकार हैं, तो आप कैलिफ़ोर्निया आ जायें।" बिडेन ने अपने आर्थिक संदेश के साथ जलवायु के सवाल को भी जोड़ दिया और उन्होंने इसे "स्वच्छ ऊर्जा में दुनिया का नेतृत्व करने और इस प्रक्रिया में लाखों नये अच्छे वेतन वाले रोज़गार पैदा करने को लेकर अमेरिका के लिए एक बहुत बड़ा अवसर" क़रार दिया।
बिडेन की योजना चार वर्षों में 2 ट्रिलियन डॉलर नये निवेशों को लेकर है। इस पर ग़ौर करना इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि 2024 में सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्त होने से पहले अपनी योजनाओं को हक़ीक़त में बदलने को लेकर पूरी दुनिया में चीन से बेहतर उनका दूसरा साथी नहीं हो सकता है।
जलवायु तो एक प्रभावशाली उदाहरण है। लेकिन,अमेरिका ख़ुद से इस मसले का हल नहीं कर सकता है। इसे मसले का हल उन बड़े देशों के साथ मिलकर सामूहिक रूप से ही किया जाना चाहिए, जिनमें चीन और अमेरिका दो अपरिहार्य नेतृत्व हैं,अगर ऐसा नहीं होता है,तो नाकामी तय है। अमेरिका के ख़ुद के मक़सदों को हासिल करने के लिए भी सहयोग ज़रूरी है। जलवायु एक प्रभावशाली मामला है, लेकिन कोई ग़लती न करें, क्योंकि परमाणु युद्ध से बचना मानव जाति के लिए कम ज़रूरी नहीं है, ऐसा इसलिए,क्योंकि इस मामले में अभी नहीं,तो फिर कभी नहीं।
साभार: इंडियन पंचलाइन
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