काला सागर और तीन तिलंगे

जैसे ही यूक्रेन में चल रहा संघर्ष ओडेसा की ओर मुड़ जाता है, वैसे ही यह युद्ध रोमांच पैदा करने वाले एक साहसिक क्षेत्र की तरफ़ बढ़ जाता है। अगर अलेक्ज़ेंडर डुमास ज़िंदा होते, तो उन्हें अपने थ्री मस्किटियर्स की अगली कड़ी लिखने का विचार आया होता।थ्री मस्किटियर्स 1844 में लिखा गया एक ऐतिहासिक उपन्यास है।इसमें इंसाफ़ के लिए लड़ने वाले शौर्यवान, शूरवीर तलवारबाज़ हैं, जो किसी व्यवस्था में प्राचीन शासन की नासमझी को उजागर करते हैं। फ़्रांस में उस समय भी गणतंत्र और राजा के समर्थकों के बीच की बहस भीषण थी।
ओडेसा पर रूसी मिसाइल हमले पर एक बेवजूद विवाद पैदा करने की नासमझी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की को फिर से एक बार तीन तेज़तर्रार तिलंगों,यानी अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और यूरोपीय संघ की विदेश नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल के साथ मुख्य भूमिका में ला खड़ा कर दिया है।
पहली बार ज़ेलेंस्की ने डुमास के उपन्यास पर आधारित एक संगीतमय रूसी फ़िल्म में बतौर तीन तिलंगे सोवियत ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों- अन्ना अर्दोवा, रुस्लाना पिसंका और एलोना स्विरिडोवा के साथ अभिनय किया था।यह फ़िल्म 2004 में नये साल की पूर्व संध्या पर मॉस्को में रिलीज़ हुई थी।
अब ज़रा अतीत से निकलकर मौजूदा दौर में आते हैं,तो शुक्रवार को उस समय मानो एक विवाद खड़ा होने का इंतज़ार ही कर रहा था, जब रूस ने इस्तांबुल में रूस-यूक्रेन अनाज समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के ठीक एक दिन बाद ओडेसा बंदरगाह में एक-एक करके बेहद सटीक कलिब्र मिसाइलें चार दाग दी गयीं और यूक्रेन के उस सैन्य बुनियादी ढांचे को तबाह कर दिया गया, जो इस क्षेत्र से अनाज के निर्यात को फिर से शुरू करने का इंतज़ाम करता है।
ज़ेलेंस्की बिना देर किये इस मिसाइल हमले को एक "बर्बर" कार्रवाई क़रार दिया और ब्लिंकन ने भी रूस के ख़िलाफ़ आरोप लगाते हुए उसे एक ख़तरनाक़ कार्रवाई बता दिया; गुटेरेस ने उस रूसी हमले की निंदा करते हुए "बिना शक़" हमले के इस मैदान में छलांग लगा दी; और, बोरेल ने ट्वीटर पर सुस्ती के साथ लिखा कि वह मिसाइल हमला "ख़ासकर निंदनीय था और यह फिर से अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और प्रतिबद्धताओं को लेकर रूस की संपूर्ण अवहेलना को दिखाता है।"
जहां तक रूसियों का सवाल है,तो उन्होंने रविवार तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी,लेकिन उसी दिन दोपहर को मास्को स्थित रक्षा मंत्रालय ने यूक्रेन में उस दिन के सैन्य अभियान पर अपने नियमित रोज़ाना बुलेटिन में दो संक्षिप्त शब्दों वाले वाक्य के साथ संभली हुई प्रतिक्रिया दी:
“लंबी दूरी की समुद्र-आधारित बेहद सटीक मिसाइलों से शुरू किये गये इन हमले से यूक्रेनी सैन्य जहाज और ओडेसा के बंदरगाह में यूएसए की ओर से कीव की हुक़ूमत को उपलब्ध कराये गये हार्पून एंटी-शिप मिसाइलों के एक डिपो का भी सफ़ाया हो गया है। निशाने को कामयाबी के साथ ध्वस्त किये जाने की इस सूची में यूक्रेनी नौसेना के बेड़े की मरम्मत और आधुनिकीकरण में विशेषज्ञता वाली इकाई की उत्पादन सुविधायें भी शामिल हैं।”
ज़ेलेंस्की ने जल्द ही स्पष्टीकरण देते हुए एक बयान जारी कर दिया कि ओडेसा पोर्ट से होने वाले अनाज समझौते को अमल में लाने को लेकर किसी तरह का कोई शक नहीं है। ज़ाहिर है, वह बयान देने से पहले कहीं और बैठे उन तीन तीलंगों के साथ तालमेल नहीं किया गया था, जिन्होंने समय से पहले प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी थी। ब्लिंकन ने संभवत: यूक्रेन से कम से कम कोशिश में ज़्यादा से ज़्यादा अमेरिकी लाभ उठाने के सिलसिले में बेल्टवे में फिर से पैदा होने वाले भ्रष्टाचार को लेकर उठती चिंताओं से ध्यान हटाकर तर्कसंगत काम कर दिया था।
अनाज को लेकर होने वाला वह समझौता बुनियादी तौर पर बाइडेन प्रशासन की आंख की किरकिरी है,क्योंकि बाइडेन को कभी भी किसी ऐसे समझौते की उम्मीद नहीं थी, जिसे लेकर रूसी सेना की ओर से ज़बरदस्त लचीलेपन की ज़रूरत हो। उनके लिए इससे भी ज़्यादा दुख की बात यह है कि यह सौदा रूस की राजनीतिक जीत के रूप में सामने आ रहा है।
वैश्विक खाद्य संकट को हल करने के सिलसिले में अपनी नौसैनिक नाकेबंदी को हटाने को लेकर मॉस्को की व्यावहारिकता की वाहवाही हो रही है। लेकिन, ज़्यादातर लोगों के सामने जो बात साफ़ नहीं है,वह यह है कि यह अनाज समझौता एक ऐसा क्रमिक समझौता है, जो संयुक्त राष्ट्र को यूरोपीय संघ और अमेरिका की ओर से रूस के अनाज और उर्वरक निर्यात पर प्रतिबंध लगवाने को लेकर भी प्रतिबद्ध करता है।
इसके अलावा, अनाज और उर्वरक निर्यात से होने वाली बड़ी आय के अतिरिक्त मॉस्को को उन तमाम देशों,ख़ासकर पश्चिम एशिया और अफ़्रीकी देशों से बेहिसाब दुआयें मिल रही हैं, जो रूसी गेहूं पर बुरी तरह निर्भर हैं। ज़ाहिर है कि ब्लिंकन एंड कंपनी की ओर से मास्को के उस जश्न को ख़राब करने की खुजली किसी काम नहीं आयी।
इस परिदृश्य में सर्गेई लावरोव दाखिल हुए।वह कांगो गणराज्य के ओयो से लेकर अफ़्रीका के मध्य स्थित देशों के बीच उस अनाज समझौते को लेकर क्रमिक कार्रवाई के सिलसिले में दौरे कर रहे थे। रूस अफ़्रीका के लिए नंबर 1 अनाज आपूर्तिकर्ता है। विदेश मंत्री लावरोव ने इस आपात स्थिति में अपार संभावनाओं को महसूस किया। कंपाला की दिशा में ओयो से उड़ान भरते हुए लावरोव ने तीन बिंदु तय किये :
अनाज के इस समझौते में "हमें विशेष सैन्य अभियान जारी रखने और सैन्य बुनियादी ढांचे और अन्य सैन्य लक्ष्यों पर प्रहार करने से रोकने के लिहाज़ से कुछ भी नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के प्रतिनिधियों ने...कल इन दस्तावेज़ों की इस व्याख्या की पुष्टि कर दी।" (ज़ाहिर है कि गुटेरेस इसे लेकर अनजान थे।)
इस मिसाइल हमले का लक्ष्य "ओडेसा बंदरगाह का एक अलग हिस्सा, कथित तौर पर सैन्य हिस्सा" था और इसलिए, "इस्तांबुल समझौतों के तहत ठेकेदारों को अनाज को लाने-ले जाने को लेकर किसी भी तरह की कोई बाधा नहीं है और हमने किसी तरह की कोई बाधा पैदा भी नहीं की है।" (असल में ज़ेलेंस्की ख़ुद ही इसे स्वीकार कर रहे हैं।)
उस मिसाइल हमले का निशाना वह डिपो था, जहां पेंटागन की हार्पून एंटी-शिप मिसाइलों को इकट्ठा किया गया था। "इन मिसाइलों को रूसी काला सागर बेड़े से पैदा होने वाले ख़तरे को संतुलित करने के लिए उपलब्ध कराया गया था। अब, उन्हें कोई ख़तरा नहीं दिखता।"
लावरोव ने जो कुछ नहीं कहा, लेकिन जिसका मतलब यही होता कि ओडेसा अब युद्ध को "गति देने वाला" एक रंगमंच बन गया है और शुक्रवार का हमला उसका एक नज़ीर बन गया है। यह मिसाइल हमला इस बात को रेखांकित करती है कि मॉस्को ने इस अनाज समझौते की आड़ में ओडेसा बंदरगाह में उन्नत हार्पून मिसाइलों की तैनाती के इस्तेमाल के सिलसिले में पेंटागन की हरक़तों का क़यास लगा लिया था।
दिलचस्प बात है कि अमेरिका ने 14-25 जुलाई को बुल्गारिया से दूर ओडेसा के बगल में एक बहुराष्ट्रीय समुद्री सैन्य अभ्यास-ब्रीज 2022 में भाग लिया था, जिसमें 24 युद्धपोत, एक हल्की, तेज़ तटीय गश्ती नाव, सहायक जहाज़, पांच विमान और चार हेलीकॉप्टर शामिल थे, जिनमें ग्यारह नाटो सदस्य देशों से 1,390 नौसैनिक थे !
इस मिसाइल हमले को लेकर होने वाला यह विवाद इस बात पर रौशनी डालता है कि यूक्रेन में रूस का विशेष सैन्य अभियान तब तक अधूरा और अनिर्णायक रहेगा, जब तक कि मास्को अमेरिका और नाटो की ओडेसा बंदरगाह तक पहुंच को पूरी तरह से रोक नहीं देता और काला सागर में गठबंधन की क्षमता को पंगु नहीं बना देता। ज़ाहिर है, यह अब भी दूर की कौड़ी है।
इस बीच अज़रबैजान को लुभाने के लिए सोमवार को ब्लिंकन के साथ काला सागर में बड़े खेल में लगी हुई बाज़ी को तेज़ किया जा रहा है। उन्होंने सोमवार को राष्ट्रपति अलीयेव के साथ वाशिंगटन के लंबित प्रस्ताव को "क्षेत्रीय परिवहन और संचार संपर्क खोलने की सुविधा में मदद करने के सिलसिले में" दबाव डालने की बात कही। अज़रबैजान दक्षिणी काकेशस में नाटो के लिए चुना गया मोर्चा है। ( मेरा ब्लॉग यूक्रेन्स ग्रेट गेम सरफ़ेसेस इन ट्रांसकेशिया देखें।)
एमके भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वह उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। इनके विचार व्यक्तिगत हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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