बुद्धिजीवियों पर दमन के चार प्रमुख कारण

देश के कई वरिष्ठ बुद्धिजीवियों, जिनमें प्रख्यात पत्रकार, एडवोकेट और लेखक शामिल हैं; की गिरफ्तारी भारतीय राज्यसत्ता की निरंकुशता के खतरनाक स्तर तक पहुंचने का भयावह संकेत है! इनमें 'इकोनामिक एंड पोलिटिकल वीकली' जैसी देश की श्रेष्ठतम पत्रिका से लंबे समय तक सम्बद्ध रहे जाने-माने पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, आदिवासी हक के लिए आवाज उठाने वाली मशहूर एडवोकेट सुधा भारद्वाज, तेलुगू के प्रख्यात कवि और सामाजिक कार्यकर्ता वरवर राव सहित और झारखंड के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी फादर स्टैन स्वामी कई लोग शामिल हैं।
अभी-अभी पता चला कि श्री नवलखा को नजरबंद रखा गया है। संभवतः कोर्ट में कल सुनवाई होगी। दलित मामलों के गंभीर जानकार और विख्यात लेखक आनंद तेलतुंबडे जैसे कई लोगों के महाराष्ट्र स्थित घरों पर छापेमारी की गई है! इनमें ज्यादातर पर जो आरोप लगे हैं, वे राजनीति-प्रेरित और हास्यास्पद हैं! अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने या असहमति की आवाज़ दबाने के लिए अब 'इमरजेंसी' लगाने की जरूरत क्या है?
मेरे हिसाब से इन लोगों पर दमनात्मक कार्रवाई के पीछे चार अहम कारण हैं: १. इस वक्त देश में संघ-मनुवादी-कारपोरेट सत्ता का सबसे सशक्त विरोध समाज के दलित-आदिवासी और अन्य सबाल्टर्न समाजों में हो रहा है। ये सभी बुद्धिजीवी इन समुदायों और वर्गों के पक्षधर हैं। इनकी आवाज उठाते हैं। दलित-आदिवासी और उनके समर्थक बौद्धिक समाज को आतंकित करने के लिए राज्य मशीनरी का कहर बरपाया गया है।
२. महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव कांड में दलितों पर हमला करने वाली संघ समर्थक भिड़े ब्रिगेड के खिलाफ कार्रवाई करने से बचने के लिए अब पुणे के उस आयोजन पर सवाल उठाया जा रहा है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों के सामाजिक कार्यकर्ता और जनपक्षधर बुद्धिजीवी पहुचे थे। सरकार दलितों और ऐसे बुद्धिजीवियों के बीच उभरती एकता को छोड़ना चाहती है। इसलिए ऐसे बौद्धिकों को डराया जा रहा है!
३. इस वक्त पुणे में ही सदरमुकाम रखने वाली उग्र हिंदुत्ववादी संस्था 'सनातन संस्था' के अनेक लोगों के आपराधिक मामलों का जांच में खुलासा हुआ है। भाजपा और संघ इस संस्था को लगातार बचाते आ रहे हैं। सनातन संस्था यानी 'हिंदुत्वा-मनुवादी आतंक' से मीडिया और देश की जनता का ध्यान हटाने के लिए जनपक्षी बौद्धिकों पर दमन की यह कारवाई शुरू की गई है।
४. चुनाव नजदीक आता जा रहा है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित कुछ राज्यों के चुनाव तो इसी साल होने हैं। केंद्र और राज्यों की सरकारों की पहाड़ जैसी बड़ी विफलताओं को छुपाने और लोगों का ध्यान हटाने के लिए यह आपरेशन चलाया जा रहा है। चैनलों के जरिए इसका मनोनुकूल कवरेज कराते जाने की योजना है ताकि सत्ताधारी पार्टी को चुनावी लाभ मिले! इसके जरिए चुनाव में जनपक्षधर बुद्धिजीवियों की आवाज बंद करने या उन्हें डराने की भी कोशिश होगी।
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