बजट 2018: मोदी सरकार के पास कोई रोज़गार नीति नहीं

2018-19 का बजट पेश किया जा चुका है और जैसा कि अंदेशा था रोज़गार पैदा करने की तरफ मोदी सरकार ने ज़्यादा तवज्जो नहीं दी हैI वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक बड़ा ही बचकाना ‘विश्लेषण’ देते हुए देश में रोज़गार बढ़ाने के लिए मोदी सरकार द्वारा उठाये गये छ: कदम गिनवायेI इनमें नयी भर्ति हुए कर्मचारियों के लिए उनके द्वारा दिए जाने वाला योगदान ख़त्म किया और आयकर में कुछ छूट, अप्प्रेंटिस के लिए वज़ीफ़ा देना और उनके प्रशिक्षण का आंशिक ख़र्च उठाना, कपड़ा और जूता उद्योग में ठेका मज़दूर रखने को मंज़ूरी देना और प्रसूति अवकाश बढ़ाना शामिल है I अपनी बात ख़त्म करते हुए जेटली ने कहा कि इन सब क़दमों की वजह से इस साल 70 लाख नये रोज़गार पैदा होंगेI
इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि मौजूदा सरकार रोज़गार के मुद्दे की तरफ बहुत बेरूख़ी रखती है, जो काफी खतरनाक है I इससे यह भी साफ़ दिखता है कि भारत जिस रोज़गार संकट से जूझ रहा है उसे मोदी, जेटली आदि कितनी बेशर्मी से नज़रअंदाज़ कर रहे हैंI जेटली के वक्तव्य से यही लगता है कि उनके मुताबिक लोग सिर्फ इसलिए काम नहीं कर रहे थे कि उन्हें ज़्यादा प्रोविडेंट फण्ड भरना पड़ता था, या फिर इसलिए कि आयकर की दरें बहुत ज़्यादा थीं, या फिर शायद इसलिए कि ठेके पर मिलने वाला काम कम उपलब्ध था! इस तरह के तर्कों पर कौन विश्वास करेगा और खासकर से कि एक देश का वित्तमंत्री ऐसी बातें कर रहा है?
वास्तविकता यह है कि CMIE के सैंपल सर्वे से पता चलता है कि साल 2017 में सिर्फ 20 लाख नयी नौकरियाँ ही पैदा हुईंI पूरे साल के हिसाब से यह बढ़ोत्तरी सिर्फ 0.5% ही रहीI जिस देश की स्थिति ऐसी हो जहाँ हर साल लगभग 250 लाख लोग कामकाजी आयु वर्ग (15-49 साल) में शामिल होते हैं और इनमें से कम-से-कम 44% (110 लाख) रोज़गार की तलाश में हैं, वहाँ क्या महज़ 20 लाख नए रोज़गार कोई बहुत बड़ी कामयाबी हो सकती है?
तो आखिरकार वित्तमंत्री जेटली किस बिनाह पर इस साल 70 लाख नयी नौकरियाँ पैदा करने का दावा कर रहे हैं? जेटली ने यह दावा दो अर्थशास्त्रियों के एक विवादास्पद अध्ययन के दम पर किया जिन्होंने EPF, ESIC और NPS (सामाजिक सुरक्षा की तीन परियोजनाएँ) में हुए एनरोलमेंट के आधार पर यह आँकड़ा दियाI इन दो अर्थशास्त्रियों के अनुमानों को बाकि कई अर्थशास्त्रियों झुठलाया है I इस अध्ययन में मन मुताबिक आयुवर्ग चुनना, दो बार गिनना और दूसरी कई खतरनाक खामियों को सामने लाया गया है I वित्तमंत्री ऐसे अध्ययन को देश की रोज़गार नीति का आधार बना रहे हैं, ऐसा हास्यास्पद कदम सिर्फ हमारी मौजूदा सरकार के ही बस की बात हैI
सरकार अपने ही शब्दाडम्बर से इतनी अंधी हो चुकी है, या शायद उसे सूझ नहीं रहा कि आगे क्या करना है, कि वित्तमंत्री ने अपने भाषण में EPF भुगतान में छूट, सभी क्षेत्रों में फिक्स्ड टर्म के काम (मतलब ठेका प्रथा) को मंज़ूरी देना और सभी ज़िलों में ‘मॉडल एस्पिरेश्नल’ स्किल सेंटरों (जाने यह किस चिड़िया का नाम है!) की स्थापनाI कुल मिलाकर यही है सरकार की रोज़गार नीतिI
औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है, घटते औद्योगिक निवेश को बचाने के लिए कोई उपाय नहीं हैं, उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी निवेश की कोई मंशा नहीं दिखाई देती, MSME क्षेत्र के लिए ऋण सपोर्ट, कैपिटल और ब्याज़ सब्सिडी और नई खोजों के लिए आबंटित 3,794 करोड़ रूपये की भारीभरकम रकम के अलावा कुछ नहीं दिया गयाI यह रकम भी बहुत ज़्यादा बड़ी नहीं है क्योंकि पिछले बजट में MSME मंत्रालय को 6,481.96 करोड़ रूपये (संशोधित आंकलन) के मुकाबले इस साल 6,552.61 करोड़ रूपये आबंटित किये गये हैं, यह महज़ 1% की ही वृद्धि है जो बढ़ती महँगाई के दौर में पलभर में गायब हो जाएगीI
कृषि क्षेत्र की बजट में क्या स्थिति रही? चूँकि भारतीय जनता का एक बहुत बड़ा तबका इस क्षेत्र में काम करता है इसलिए बहुत अच्छा होगा कि मौजूदा रोज़गार संकट से निबटने के लिए इस क्षेत्र के लिए ठोस कदम उठाये जायेंI हालांकि, जेटली ने अपने भाषण में बड़ी अलंकृत भाषा में कृषि और ग्रामीण इलाकों की महत्ता का बखान किया लेकिन नीतिगत तौर पर सबसे बड़ी घोषणा रही कि किसानों को उनकी लागत का 1.5 गुना दाम मिलेगा और यह भी बस घोषणा भर ही लगती हैI बजट दस्तावेज़ में ऊँचे समर्थन मूल्य देने का कोई ज़िक्र नहीं है जिससे कि इस घोषणा पर अमल हो सकेI दूसरे शब्दों में कहें तो यह सारे वायदे भी उन्हें वायदों जैसे हैं जो मोदी ने 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान देश की जनता से किये थे और जो आज भी पूरे किये जाने के इंतज़ार में हैंI
इस बजट में बाकि तमाम चीज़ों की ही तरह रोज़गार के दावे और कुछ नहीं बस खोखले वायदे हैंI सारी जनता को एक साथ ही धोखा नहीं दिया जा सकताI मोदी-जेटली गैंग को यह बात जल्दी ही समझ लेनी चाहिए वरना उन्हें जल्द ही इसका खामियाज़ा उठाना पड़ेगाI
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