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बडवाइज़र के मज़दूरों के धरना आंदोलन को 500 दिन, लेकिन कोई सुनवाई नहीं   

दुनिया की मशहूर बीयर बनाने वाली कंपनी बडवाइज़र के हरियाणा स्थित प्लांट के मज़दूर 2018 की शुरुआत से धरने पर हैं। हालांकि इन मज़दूरों ने काम बंद नहीं किया है, बल्कि काम के बाद ये लोग धरने पर बैठते हैं, लेकिन आज तक इनकी सुनवाई नहीं हुई।  

 
बडवाइज़र के मज़दूरों के धरना के   500 दिन, लेकिन कोई सुनवाई नहीं    

देश और दुनिया की सबसे बेहतरीन मानी जाने वाली बीयर में से एक है बडवाइज़र (Budweiser)। जिसे दिल्ली और अन्य शहरों में एसी पब या बार में बैठकर ऑर्डर करते हैं तो शायद ही हममें से कोई इनको तैयार करने वाले मज़दूरों के बारे में सोचता है। हरियाणा के सोनीपत में इसके कर्मचारियों को अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन करते हुए जुलाई 2019  को 500 दिनों हो गए हैं।

जी हाँ 500 दिन और रविवार को इस 500वें दिन मज़दूरों ने कंपनी प्रबंधकों और सरकार को जगाने के लिए अपने परिवारों समेत धरना स्थल से लेकर जीटी रोड तक प्रदर्शन किया। उन्होंने मांग की कि निकाले गए मजदूरों को कंपनी प्रबंधक तुरंत ड्यूटी पर ले। जो भी झूठे केस बनवाए गए हैं उन्हें रद्द किया जाए और जो अन्य मांगे हैं उन पर बैठकर समझौता वार्ता की जाए। 

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यूनियन प्रधान अनिल सैनी ने धरने को संबोधित करते हुए कहा कि अगर कंपनी प्रबंधक अभी नहीं मानते हैं तो मजबूरन यूनियन को कठोर कदम उठाने पड़ेंगे।

मज़दूरों के इस धरने को भारतीय भारतीय किसान यूनियन ने भी अपना समर्थन दिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय किसान यूनियन बीयर कंपनी के मजदूरों के संघर्ष को लेकर तन मन धन से उनके साथ हैं। इसके आलावा छात्र एकता मंच जिसमे कई छात्र संगठन शामिल हैं उन्होंने भी अपना समर्थन दिया। 
क्या है पूरा मामला?
इस पूरे मामले की शुरुआत तीन साल पहले हुई थी जब फैक्ट्री के चार स्थायी मज़दूरों को फैक्ट्री से बाहर कर दिया गया था। मज़दूरों का कहना था कि इस तरह निकालना गैरकानूनी है। और उसके बाद से ही मज़दूर का आंदोलन शुरू हो गया। 2018 के शुरुआती महीनों धरना आंदोलन शुरू हुआ। इस दौरान मज़दूर अपना काम करने के बाद धरने पर बैठते रहे। छुट्टी वाले दिन सभी मज़दूर धरने पर बैठते हैं।
मज़दूरों ने बताया कि शुरुआती 20 दिनों तक धरना प्रदर्शन के बाद समझौता हुआ लेकिन उसके बाद भी मज़दूरों की बहाली नहीं हुई मज़दूर अभी भी प्रदर्शनरत हैं।  
लेकिन ये सिर्फ मज़दूरों के हटाने का मसला नहीं है। यह सबसे सटीक उदाहरण है सरकारी फैक्ट्रियों के निजीकरण का और उसके बाद मज़दूर उत्पीड़न और शोषण का। आपको बता दें कि ये फैक्ट्री पहले हरियाणा सरकार के अंडर थी, जिसको 90 के दशक में जब सरकार ने अर्थवयवस्था का उदारीकरण करने का निर्णय किया, उस समय इसका भी विनिवेश कर दिया गया यानी प्राइवेट कंपनी के हाथों दे दिया गया। इसके बाद इस फैक्ट्री को कई निजी कंपनियों ने खरीदा और बेचा। वर्तमान में इसकी मालिक एबी इन वेव बीयर कंपनी है, उसने इसे अक्टूबर, 2016 में खरीदा था। मजदूरों के मुताबिक उसके बाद से ही उसने मज़दूर यूनियन को खत्म करने की साज़िश शुरू कर दी। जो कि निजी कम्पनियों का एक पुराना पैटर्न है पहले मज़दूरों की एकता को तोड़ो, फिर श्रम कानूनों को ताक पर रखकर मज़दूरों का शोषण करो। इस कंपनी में यही हुआ। प्रबंधन ने मज़दूर यूनियन के शीर्ष नेताओं को बिना किसी वाजिब कारण के कंपनी से बाहर करना शुरू दिया। 

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अनिल कुमार सैनी जो इस मज़दूर यूनियन के प्रधान भी हैं, उन्हें केवल दो दिन की छुट्टी लेने के कारण हटा दिया गया तो वहीं इस यूनियन के महामंत्री देशराज को ग़लत कागज जाम करने के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अनिल कुमार सैनी ने बताया कि ये दोनों मामले ही पूरी तरह से गलत हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने यूनियन के काम के लिए दो दिनों की छुट्टी ली थी। उनको पहले सुपरवाइजर ने परमिशन दे भी दी थी। उनका रिलीवर भी तैयार थापरन्तु बाद में उन्हें बताया गया कि उनकी छुट्टी कैंसिल हो गई है। 
देशराज के जिस पेपर को गलत बताकर बाहर किया गया है, उसी कागज पर कई कर्मचारियों को प्रमोशन दिया गया है। देशराज ने कहा कि उन्हें भी प्रमोशन का ऑफर दिया गया था और कहा गया था कि प्रमोशन ले लो और यूनियन से बहार हो जाओ। लेकिन उन्होंने इससे इंकार किया जिसके बाद से उन्हें कंपनी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। 
एक अन्य कर्मचारी कृष्ण कुमार को यह आरोप लगाते हुए बाहर किया गया कि उसका व्यवहार ठीक नहीं है। 
यूनियन को तोड़ने की साज़िश, बीएमएस सवालों के घेरे में! 
पहले इस फैक्ट्री की मज़दूर यूनियन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) से संबद्ध थी लेकिन जब बीएमएस मज़दूरों के बजाय मैनजमेंट की तरफ दिखने लगातो मज़दूरों ने उसका विरोध किया और उससे अपना नाता तोड़ लिया।
आपको बता दें कि यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी बीयर कम्पनी है भारत के अलावा इसके कई अन्य देश में भी प्लांट हैं। सभी अलग अलग देश की एक सयुंक्त मज़दूर यूनियन इंटरनेशनल यूनाइटेड फैडरेशन (आईयूएफ) है। इसके सदस्य प्रवीण हैं जो भारत में मज़दूरों के सहलाकर के रूप में हैं।  

प्रवीण ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया कि इस फैक्ट्री में 90  के करीब मज़दूर हैं जिसमें 60 के करीब मज़दूर पुरानी यूनियन के साथ हैं लेकिन बीएमएस ने मैनेजमेंट के इशारे पर दो दर्जन मज़दूरों को लेकर फ़ैक्ट्री में एक दूसरी यूनियन बनाई।
यूनियन नेताओं ने कहा कि ये नई यूनियन अवैध है क्योंकि इसके लिए मज़दूरों ने मतदान किया ही नहीं। इसको लेकर मज़दूरों ने लिखित में मैनजमेंट से विरोध भी जताया। 

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कर्मचारियों की मुख्य मांगें 
सभी निलंबित कर्मचारियों को बिना किसी शर्त के वापस काम पर लिया जाए। 

मज़दूर नेताओ पर जो केस की गए हैं सभी को वापस लिया जाए

इसके आलावा 2016 में समिट किये गए मांगपत्र पर बातचीत शुरू कर जल्द ही सैटलमेंट किया जाए। 
प्रवीण ने कहा कि जो कम्पनी एबी इन वेव बीयर है, इसका श्रम कानूनों को लेकर ट्रेक रिकॉर्ड बहुत खराब है। इस कम्पनी के यूरोप के प्लांटों में भी कई बार श्रम कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं। इस कंपनी का मुख्यालय बेल्जियम में हैइन सभी श्रम कानूनों के उल्लंघन को लेकर अंतररष्ट्रीय स्तर पर शिकायत की गई है और मुकदमा भी दायर किया है। 

 

 

 

 

 

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