आंबेडकर विश्वविद्यालय : अचानक हटाए जाने की वजह से सफाई कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन।

31 मई को दिल्ली के अंबेडकर विश्विद्यायलय के प्रशासन ने सफाई कर्मचारियों को 15 मिनट का नोटिस दिया और इस नोटिस के आधार पर 2 घंटे के भीतर उन्हें कैंपस छोड़ने के लिए कहा। कर्मचारियों ने बताया कि जब वे बाहर नहीं गए, तब उन्हें जबरदस्ती परिसर से धक्का देकर बाहर करने की कोशिश की गयी। कर्मचारियों का कहना था कि पिछले साल सितंबर के महीने से ही यह सब शुरू हो गया था, जब श्रमिकों ने हाथों से सीवर की सफाई करने से इनकार किया था । तब से उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और अब उनका अनुबंध समाप्त हो गया. यह कहकर उन्हें नौकरी से निकला जा रहा है।
इसे लेकर सोमवार को आंबेडकर विश्विद्यायलय के कश्मीरी गेट परिसर में इन कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया। कर्मचारियों को अपने इस आंदोलन में छात्रों का भी भारी समर्थन मिला। कर्मचारियों ने एक स्वर में कहा कि जब तक उन्हें वापस काम पर नहीं रखा जाएगा, तब तक वो इसी तरह प्रदर्शन करते रहेंगे क्योंकि उनके पास कोई और चारा नहीं है। ये उनके जीवन-मरण का सवाल है। शकुंतला
इनके बीच मौजूद कर्मचारी शकुंतला ने बताया कि वो अकेली हैं और पूरा घर अकेले ही चलाती हैं, उनका एक जवान लडका है जो नशे का आदी है, इसके अलावा उनकी एक 20 वर्षीय लड़की है, जो कि मानसिक तौर से बीमार है और वो किराये के मकान में रहती है। ऐसे में उन्हें इसी नौकरी का सहारा था। अचानक ऐसे निकाले जाने से उनके सामने रोज़ी- रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे? वो पूछती हैं कि इतनी जल्दी मुझे नौकरी कौन देगा? अगर ये नौकरी चली गई तो न उनके पास रहने के लिए घर रहेगा न खाने के लिए रोटी। इसी को लेकर वो परेशान है और बार-बार प्रशासन से गुहार लगा रही थी कि उन्हें वापस काम पर रख लिया जाए।
ऐसे ही एक अन्य महिला कर्मचारी मीरा जो लगभग 5 साल से इसी जगह पर काम कर रही थी , दो दिन पहले ही उन्हें हटा दिया गया। मीरा बताती हैं कि पिछले सालों में उन लोगों के साथ कई तरह के भेदभाव और शोषण भी हुए, उसके बाबजूद भी वो काम करती रही। उन्होंने बताया कि यहां काम करने पर मज़दूरों को मुलभुत अधिकार भी नहीं दिए जाते थे, न उन्हें ईएसआई और न ही पीएफ दिया जाता था। यहाँ तक एक बार वो काम के दौरन चोटिल हो गई थी, तब उन्हें किसी प्रकार का उपचार नहीं दिया गया। इस दौरन जब वो छुट्टी पर थी तब भी उनके सैलेरी काट ली गई थी। सभी कर्मचारियों को ऐसे यातनाएं सहनी पड़ी हैं।
क्या है पूरा मामला ?
विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि जिस संगठन के साथ उनका कॉन्ट्रेक्ट था वह अब ख़त्म हो गया है। ये कर्मचारी उस संगठन की जिम्मेदारी थे। परन्तु कर्मचारियों का कहना है ये बहाना है ,पिछले साल जब हमने हाथ से सीवर साफ करने से मना किया और अपने अधिकार को लेकर बोलने लगे तभी से हम इनके आँखों में खटक रहे थे। यही हमरी नौकरी जाने का कारण भी बना है। नहीं तो ऐसे ही करीब 70 सुरक्षा गार्ड थे उनकी कम्पनी बदली लेकिन सभी पुराने लोग वापस काम पर रहे केवल उनकी वर्दी बदली। लेकिन हमारे साथ यह नाइंसाफी क्यों ?
यह कोई पहला मामला नहीं है जब कर्मचारियों के साथ ऐसा हुआ है, इस तरह की समस्या से दिल्ली विश्विधायलय के कर्मचारी भी पिछले एक महीने से जूझ रहे हैं। वहां भी सैकड़ों कर्मचारी यही तर्क देकर बाहर कर दिया गया कि उनकी कम्पनी का कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो गया है। दोनों मामलों में एक बात समान है की दोनों में कर्मचारी उपलब्ध करवाने वाला संगठन सुलभ इंटरनेशल है। इनको लेकर एक कर्मचारियों की शिकायत थी कि इन्हें ना ईएसआई और न पीएफ मिलता था। इसी कारण विश्विधायलय ने सुलभ का कॉन्ट्रेकट खत्म किया लेकिन इसके वजह से कर्मचारियों के लिए संकट खड़ा हो गया है।
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